कथा संग्रह: मुर्दा स्थगित -महेश कटारे
नये पाठ की संभावना जगाती कथायें
ग्रामीण पृष्ठभूमि से आये और अपने साथ गॉंव की सोंधी महक, टटके मुद्दे और मानवता की ज्वलंत समस्याओं को साथ लेकर उपस्थिति हुये कथा लेखक महेश कटारे का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। उनका नया कथा संग्रह मुर्दा स्थगित इन दिनों अपने कथ्य और शिल्प के अनूठेपन के कारण चर्चा में है। इस संग्रह में कटारे की ग्यारह कहानियां शामिल हैं ये सभी कथायें जिन दिनों लिखी गयी, उन्हीं दिनों खूब चर्चित हुई थी। पर ऐसा नहीं कि उनका कथ्य किसी काल-खण्ड़ तक सीमित था। बल्कि इनमें उठाये गये मुद्दे, इनमें रचा बसा संसार, इनमें विचरण करते पात्र, शाष्वत हैं और हर युग में समकालीन नजर आते है।
संग्रह की पहली कहानी ‘मुर्दा स्थगित’ महेश कटारे की अद्भुत कथा रचना है। महानगर में एक सामंत हैं जो प्रजातंत्र में भी बहुत ताकतवर हैं। महानगर के सामंती परिवेश में यकायक उत्सवी माहौल पैदा होने से आरम्भ होती इस कहानी में एक-एक दिन के विवरण के साथ सजते जा रहे नगर, की जा रही तैयारियों, हुजूर की बेटी की बारात की चर्चा और विवाहोपरांत निकलने वाली शोभयात्रा की तैयारी का विवरण कथा में रस पैदा करता है। हुजूर की बेटी को ब्याहने आए दूल्हे के जुलूस आने के ठीक पहले एक घर में मौत हो जाती है। उस घर से शव यात्रा शुरू हो रही होती है कि व्यवस्थापक लोग सामने से आ रहे जुलूस और शोभायात्रा के नायकों की दृष्टि से शवयात्रा और मुर्दा छिपाने के लिये मुर्दा की अंतिम क्रियायें स्थगित करा देते हैं। मुर्दा स्थगित होकर भीढ़ के पीछे लेटा हुआ अपनी यात्रा आरंभ होने की बाट जोहता हैं, और शवयात्रा के भागीदार लोग शोभायात्रा में शामिल होने का ढोंग करते है।
पोखर का पंचतंत्र एक प्रतीक कथा हैं, जिसमें एक प्रजातंत्री पोखर, वंहा के प्रशासक चंचुभद्र, मंत्री कंकमणि तथा पत्रकार काकमणि के माध्यम से देश के वर्तमान तंत्र के छद्म मुखौटों को हटाया गया है। जहां भैंसे गायों को अपदस्थ करना चाहती है। सहज रूप से दुही जाने वाली बकरियों पर बलात्कार होते हैं। अशांति, गंदगी, बदबू है पर स्थिति नियंत्रण में बताई जाती है। बगल में बहता सच समाज के भेड़ियों के भय से थामकर खंडहर में पनाह लेने वाली मां-बेटी (गीता और आशा) की कहानी हैं, जिनके समाचार-सात माह के अपूर्व गर्भ से पैदा हुये। अपूर्व व्यक्ति-सत्ता के माध्यम से गॉंव वालो को प्राप्त होते है। खंडहर को डायन भय दिखाकर गॉंव वाले जला डालते हैं। और गीता इसके पहले ही वहां से भाग कर बीहड़ में चली जाती है। कांकर पाथर कहानी दरअसल समाज के कई तबको के उन विचारकों की दिनचर्या का एक विष्लेष्णात्मक आख्यान हैं, जो चम्बल क्षेत्र की निजी समस्या (ड़कैत समस्या) से लेकर विश्व में साम्यवाद के भविष्य तक की चिन्ता में पूरे उत्साह से शामिल होते हैं। प्रकारान्तर से इस कहानी में महिला-डकैत, ड़कैतों के सामाजिक सम्बन्ध आदि भी प्रसंगानुकूल उभर के आते है। “लक्ष्मण रेखा“ ऐसी कहानी है जो भारतीय गांवों के भोले मानस, भेदभाव विहीन समाज और फुरसत में गपियाते लोगों की कथा है। समृद्ध किसान रमेश और उसकी मुंहबोली बहन से ज्यादा सखी-फातिमा का रोज मिलना जुलना है। फातिमा सिलाई-बुनाई करती हैं, वह अकेली रह रही दबंग, सुंदर आकर्षक महिला है जो गॉंव के उचक्कों को घास नहीं ड़ालती, इस कारण लोग रमेश और उसके सम्बन्धों पर नजर रखने कुछ खोजना चाहते है। गॉंव का लचका (जो पैर लचका कर चलता है) पक्की जासूसी करके भी ऐसा-वैसा नहीं खोज पाता है तो सिर्फ फसलों की बातचीत या गॉंव के दुख दर्द पर बहस। फातिमा और रमेश के बीच बचपन में मजाक में कराये गये निकाह और तलाक का किस्सा रमेश की पत्नि को पता है, और वह लम्बे अरसे से रिश्तों की लक्ष्मणरेखा की हद में जी रहें अपने पति को प्रेरित करती है कि अब फातिमा को अलग न रहने दिया जाये बल्कि वे घर भर के साथ रहे।फतह कहानी में एक छोटे से गॉंव की साम्प्रदायिक हिंसा में झुलसने की कथा है, जहां जुनून में उछलती भीड़ दूसरे धर्म का स्थान खोदकर अपने धर्म के प्रतीक चिन्ह रख देने के जोश में अपने धर्म के प्रतीक चिन्ह ही नष्ट कर ड़ालती है, जिसे देख पूरी बस्ती को अपना परिवार मानता आ रहा फत्ते दुख विगलित हो मूर्छित हो जाता है। निबौरी कहानी गॉंव के स्कूल में बच्चों को पढाने वाली विधवा पूर्णिमा की कथा है, जिसे उसका देवर, सहकर्मी और गॉंव भर के लोग सिर्फ स्त्री देह के रूप में देखतें है, पर वह समझदार युवती के रूप में खुद को स्वतंत्र रखती हुई अपनी ड्यूटी पूरी करती है। पर अंत में उसे जबरन पथभ्रष्ट किया जाता है, जिसका बदला वह कानूनी सहयोग से करती है और पुनः अपनी नौकरी पर हाजिर होती है। जहां कि सहकर्मी लोग उससे डरने लगे है, पर गॉंव का कोई भी व्यक्ति अपनी बच्ची को पढ़ाने नहीं भेज रहा है, पर वह निराश नहीं है। गॉंव का जोगी छिंगे नामधारी एक ऐसे कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति की कहानी है जो न ज्यादा महत्वाकांक्षी है न गपोड़ीबाज। वहीं पुनश्च में विनाश के बाद जीवन के पुनः आरम्भ होने का हल्का-सा संदेश देकर कथा लेखक दुनियादारी में हर बरबादी के बाद नयी पीड़ी और नयी कोंपलों से ही आशा बांधने का आख्यान इस रामप्रसाद के माध्यम से देते हैं जिसका बेटा किसनलाल असामयिक मौत मरा है और उस घर का जीवन एक अबसाद खोह में रूक सा गया है। घर में रामप्रसाद को अपने नाती के रूप में नवजीवन की आशा दिखती है। “पानीघर“ और “सिद्धी की कहता है“ इस संग्रह की दो अलग-अलग मुद्दों पर लिखी कथायें लिखी कथायें हैं, जो व्यक्ति चित्र के ज्यादा निकट है। पर ये सशक्त और महीन बुनावट की कथाए है जो महेश कटारे की निजी विशेषता है।
महेश कटारे भाषा के मामले में बड़े सजग और दक्ष लेखक है। शब्दो के सही उपयोग, कहन की अपनी निजी विशेषता और लोक प्रचलन के पूरे वाक्य उठाकर जब वे कहानी में जड़ देते हैं, तो कथ्य और दमदार हो उठता है। कहानी ऐसी विधा है, जो शुरूआत या अन्त की चार छह पंक्तियों से सशक्त नहीं होती, बल्कि इसके लिये एक-एक शब्द चुनकर जमाना पड़ता है। इस चुनने और जमाने में महेश कटारे खूब निपुण है। मुर्दा स्थगित का यह अंश देखिये धक्के खातें, धकियाते और बचते घिसतटे हुये वह उल्टी दिशा में सरकता गया। मार्ग पर प्रतीक्षा बिखरी पड़ी थी। जो पिछले कुछ दिनों से ज्यादा ही गहरा गयी थी। जम्न, मरण, चोरी, ड़कैती, बलात्कार दो-तीन दिन से बिल्कुल बंद थे। अखबारों और चर्चाओं में सिर्फ शादी थी। आज तो उत्सुकता का चरम था। और सारे शहर में आदमी के नाम पर सिर्फ हुजूर थे। कुल मिलाकर ये कथायें किस्सा गो शैली की सशक्त रचनायें तो हैं ही, जीवन और जगत की कोई महत्वपूर्ण बाम कर विष्लेषण करती कथायें भी हैं, जो किस्सा से आगे की चीज है। कहीं-कहीं अमूर्तन दृष्यों की झलक इसी आगे की चीज के कारण इस संग्रह में दिखती है। जो रचना के नये पाठ की सम्भावनायें जगाती है। या फिर बगल में बहता सच का अंश देखा जा सकता है- जग लगती बात है, कहते समय यूं दी जीभ उठाकर नहीं परक देते है- है तो अचंभे की बात जिस जगह पहुंचने तक में बड़ें-बड़ें बल कारियों की पोक छूटती हो वहां कोंई औरत जाज रात को भी टिक रहे। ऐसा काम तो कोई आंता करें या मांता। माने आफत का मारा या मतवारा। बिना छानबीन अंट-संट बकने पर कंटरोल रखनी चाहिए।
आज का सामान्य लेखन फैशनेबुल लेखन है। लेखक, गॉंव और गॉंव की समस्याओं को फैशन के तौर पर उठा लेते हैं, जो प्रायः नकली होती है। कस्बे से बहुत दूर हो चुका लेखक कस्बे की मानसिकता का कृत्रित चित्रण करते वक्त जरा भी नहीं हिचकता। पर महेश कटारे की कहानियां चलन से अलग है, वे नकली और प्रकल्पित पात्रों की कृत्रिम समस्याओं का गट्टर लादे खड़ी कहानियां नहीं है। चाहें धुर गॉंव की कथा बगल में बहता सच, लक्ष्मणरेखा या गॉंव का जोगी हो, चाहे मुर्दा स्थगित और पोखर का पंचतंत्र तथा कांकर पाथर जैसी महानगरीय मानसिकता की कहानी हो, महेश कटारे कहीं भी कृत्रिम नहीं लगते, अपनी कहानी कहते भुक्तभोगी लेखक प्रतीत होते है। उनकी कहानियां हमारे आसपास घटती यथार्थपरक कहानियां हैं। जिन्हें जीवंतपात्र, तीखे संवाद और चित्रात्मक विवरण सत्यकथा सी बना देते है। इन कथाओं के पात्र हर असुविधा को नियतिमान के झेल लेने वाले लुंज पुंज पात्र नहीं हैं, बल्कि बुरे को बुरा महसूस वाले जागरूक लोग हैं, जो यथा-संभ्व सूरत बदलने के लिये बेताव दिखते है। पर ऐसे सभी पात्र फार्मूला चरित्र नहीं हैं। जीवन पात्रों में मुर्दा स्थगित का वह, बगल में बहता सच की गीता, लक्ष्मण रेखा की फातिमा, फतह का फत्ते, और पुनश्च का रामप्रसाद कथा से निकलकर हमारी आखों के सामने आ खड़ें होते हैं।
महेश कटारे गॉंव की जिस जमीन पर रहते हैं, ठीक वैसे ही वे जीते भी हैं, और वे वैसा ही लिखते ही हैं।उनका सोच गॉंव वालों के ही सोच जैसा है। प्रेमचंद की तरह उनकी कथाओं के संवाद और कथाओं की मूल चिंता वास्तविक हैं, गॉंव के चित्र वास्तविक हैं तो चरित्र भी वास्तविक हैं। वे प्रेमचंद के सच्चे उत्तराधिकारी हैं। -----------