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छोड़ा हुआ आदमी

"हमें तो बचपन से ही इस तिरस्कार को सहने की आदत होती है। बेटों को हमसे ज्यादा आज़ादी देकर हमारे सपनों को तिरस्कृत किया जाता है। हमें पर्दे में रहना चाहिए ये कहकर हमारी आज़ादी को तिरस्कृत किया जाता है। तुम मुझे क्या डरा रहे हो!! अपनी फिक्र करो तुम एक छोड़े हुए आदमी बनकर, कैसे जी पाओगे??"-
वसुधा ने बड़ी निर्भीकता से जवाब दिया।

वसुधा और विनय की शादी को 2 साल हो चुके थे।
विनय शुरू से ही वसुधा को धमकी देता रहता था, मेरी बात नहीं मानोगी तो छोड़ दूंगा तुम्हें।
फिर देखना कैसे जियोगी?

विनय को शराब पीने की लत तो शादी से पहले ही लगी हुई थी। जब वो हास्टल में रहकर पढ़ रहा था तो उस हॉस्टल से निकाल दिया गया। आए दिन वो दीवार फांद कर बाज़ार में जुए की बाज़ी लगाने जाता था। एक दिन वार्डन ने पकड़ लिया और भेज दिया घर वापिस।

विनय की मां कभी अपने बेटे को गलत कहने के लिए तैयार ही नहीं थी। फिर अपने शहर आकर ही उसने पढ़ाई पूरी की। विनय के पिता जी का अपनी पुश्तैनी कपड़ों का कारोबार था।

जब विनय कॉलेज गया तो उसने अपनी क्लास की एक लड़की के साथ बदतमीजी की। लड़की के पिता पुलिस के साथ उनके दफ्तर पहुंचे, उन्होंने माफी मांगी और बेटे को पुलिस केस से बचाया।

घर आकर विनय की मां को बताया तो मां ने अपने ही बेटे का समर्थन किया।

विनय के पिता पूरी रात इसी चिंता में घुलते रहे की अब बेटे का क्या होगा???
हर तरह का नशा तो करने लग ही गया था। अब ये लड़कियों के साथ बदतमीजी भी??

उन्हें खुद पर गुस्सा आ रहा था, अब बेटा हाथ से निकल चुका । अब क्या करूं। उन्होंने वकील को फोन किया और वसीयत बनाने को कहा।

वकील साहब आए, उन्होंने विनय के पापा को सलाह दी कि बेटे की शादी कर दो। जिम्मेदारी पड़ेगी तो सुधार जाएगा।
मेरे जान पहचान में है लड़की, हमारे क्लर्क मिश्रा जी की बेटी। बहुत ही गुणी है, वो विनय को भी अच्छे से संभाल लेगी और आपके घर को भी। बस थोड़े गरीब हैं।

विनय के पिता जी को धन का कोई लोभ नहीं था । विनय की शादी वसुधा से करवा दी गई।
ससुर जी ने पहली रसोई बनाने की रस्म के आशीर्वाद के रूप में वसीयत दी वसुधा को।

विनय के पिता के पूरे कारोबार की संरक्षक वसुधा को बनाया गया।

विनय के पिता जी ने कहा -" बेटा!! मुझसे वादा करो। इस कारोबार के असली वारिस को तुम अपनी तरह गुणवान, साक्षर बनाओगी ।

वसुधा -" पिताजी!! मै पूरी कोशिश करूंगी।"

वसुधा समझी नहीं , ससुर जी आते ही ऐसा वादा क्यों ले रहे हैं।

तभी विनय आया, उसने खूब शराब पी हुई थी।
वसुधा खाना लगाने लगी, विनय को होश ही नहीं था, खाने की मेज पर ही लेट गया।

वसुधा रोने लगी। तभी ससुर जी आए। बेटा !! मुझे माफ़ करना । मैंने तुम्हे बताया नहीं , विनय की बुरी आदतों के बारे में। अब तुम आ गई हो तो इसे समझाओ कुछ।

वसुधा -" पिता जी !! आपने इन्हें जन्म दिया, पाला, जब आपकी बात इन्होंने नहीं मानी तो मेरी क्या मानेंगे। मेरे पिता की गरीबी की ये सजा मिली मुझे!!"

विनय के पिता जी वसुधा के आंसू देखकर मौन हो गए थे। वो कमरे में चले गए।

वसुधा सुबह चाय देने पहुंची, तो पता चला ससुर जी नहीं रहे। उन्हें दिल का दौरा पड़ा, उनकी मृत्यु हो गई।

वसुधा चिल्लाई, वो खुद को अपराधी मान रही थी। मन ही मन सोच रही थी कि मुझे पिताजी को वो सब नहीं बोलना चाहिए था। वो पहले ही परेशान थे। यूंही वो खुद को कोसती रही।

पिता को मुखाग्नि देते हुए भी विनय खूब नशे में था। विनय के पिता जी की तेरहवीं हुई, सब रिश्तेदार आए और चले गए; विनय ने किसी से सीधे मुंह बात नहीं की।

अब विनय की मां को भी चिंता होने लगी, ऐसा चलता रहा तो बिजनेस भी बंद हो जाएगा।

विनय चिल्लाता हुआ घर आया -"मां!! कहां हो?? ये देखो जिसके लिए रो रही हो उन्होंने क्या किया अपने इकलौते बेटे के साथ!"

मां -"क्या हुआ??"

विनय -"पिताजी ने सारे क्रेडिट कार्ड बंद करवा दिए। मैनेजर ने भी पैसे देने से मना कर दिया है। सब कुछ इस गरीब की बेटी के नाम कर गए वो।"

मां -" बेटा सब्र से काम लो!! अगर ये अपने घर चली गई तो हम मां बेटा रोड पर आ जाएंगे । अब तो कोई बच्चा हो जाए जल्दी से, तभी कुछ हमारे हाथ आ पाएगा।"

विनय को वैसे ही इतनी झुंझलाहट थी, बिना नशे के उससे रहा नहीं जा रहा था। पर उसने वसुधा को कुछ नहीं कहा।

धीरे धीरे कभी मां कभी वसुधा के गहने चुराता और नशा करता। नशे वालों की भी खूब उधार हो गई थी।

एक दिन पता चला कि वसुधा उम्मीद से है। मां बेटे के तो जैसे मन की मुराद पूरी हो गई।

उधार मांगने वाले घर तक पहुंच गए। उन्होंने धमकी दी की पुलिस केस करा देंगे।
वसुधा की सास ने कहा-" बहू इनको पैसे दे दो वरना तुम्हारे ससुरजी की इज्जत नीलाम हो जाएगी।"

वसुधा ने पैसे तो दे दिए, पर आगे से उधार चुकाने को मना कर दिया।

यूंही दिन बीतते गए और वसुधा ने बेटी को जन्म दिया। सास और विनय बहू और बेटी को अस्पताल से लेकर भी नहीं आए।

वसुधा के पिताजी और वकील साहब उसे घर लेकर आए।
वकील साहब ने कहा -"बेटा!! मुझे माफ़ कर दो। ये रिश्ता मैंने है करवाया था। मुझे इस अपराध के लिए भगवान भी माफ़ नहीं करेगा।"

वसुधा -"चाचा जी!! किस्मत के आगे किसकी चलती है?"

वकील साहब -" तुम चिंता मत करो, सब तुम्हारी बेटी के नाम करके गए हैं तुम्हारे ससुर जी। तुम इसकी संरक्षक हो । तुम्हारी मर्जी के बिना वो मां बेटे कुछ नहीं कर पाएंगे।"

वसुधा बच्ची को लेकर घर आ गई। वसुधा ने बहुत समझाया शायद बच्ची के लिए ही विनय बदल जाए।

विनय ये समझ चुका था , अब वसुधा से माफी मांगने के अलावा उसके पास कोई रास्ता नहीं बचा था।

उसने वसुधा से माफी मांगी और पिता जी के दफ्तर जाने लगा।

वसुधा बच्ची के कामों में ही उलझी रहती थी, उसे दफ्तर जाने का समय नहीं मिलता था। अब विनय भी काम करने लगा था तो उसकी चिंता कम हो गई थी।

कुछ महीने ऐसे ही चलता रहा, विनय पार्टी का नाम लेकर अभी भी पीता था, पर पहले की तरह हंगामा नहीं करता था।
वसुधा की सास भी बीमारी से चल बसी। अब तो वसुधा बिल्कुल ही अकेली हो गई थी बेटी के साथ। विनय भी बिजनेस ट्रीप पर जाने लगा।

वसुधा को एक दिन पता चला कि विनय ने एक दुकान के कागज़ गिरवी रख दिए।

उसने विनय से पूछा तो विनय ने कहा -" ये कारोबार मेरे बाप का है, तुम्हारे बाप का नहीं। तुम्हारी औकात यही है कि घर बैठकर बच्चे पालो। तुम्हें तलाक़ देकर इस घर से निकाल दूंगा और बच्ची भी मेरे पास नहीं रहेगी। एक छोड़ी हुई औरत की क्या इज्जत होती है ये तो तुम्हे पता ही होगा। इसलिए अगर इज्जत से रहना है तो रहो , वरना जा सकती हो।"

वसुधा को एक दम से झटका लगा, उसका विश्वास टूट गया। बच्चे की तरफ़ ध्यान देते हुए, उसने विनय पर अंधा विश्वास करना शुरू कर दिया था।

वसुधा ने दफ्तर से पता किया तो पता चला, जाने कितने ही रुपए विनय जुए में उड़ा चुका था। बिजनेस बढ़ाने के नाम से जो शहर से बाहर जाता रहा वो भी झूठ था। उसने दूसरी औरतों से संबंध रखने शुरू कर दिए थे।

वसुधा बुरी तरह टूट चुकी थी। उसके हाथ से सब फिसलता जा रहा था।

वकील साहब को फोन किया, वो घर आए । विनय ने उनके साथ मारपीट शुरू कर दी।

वसुधा ने पुलिस को बुलाया।

विनय चिल्ला रहा था, मैं आदमी हूं, मुझे हक है कुछ भी करूं। तुम एक छोड़ी हुई औरत बनकर जीना अब। तुम्हारी वजह से कोई तुम्हारी बेटी से भी शादी नहीं करेगा ।

वसुधा जो खुद को टूटा हुआ समझ चुकी थी, अचानक बेटी का नाम सुनते ही, उसकी आवाज़ में विद्युत सी तेजी आ गई।

वसुधा ने कहा -" तुम मुझे क्या छोड़ोगे?? मैं तुम्हें छोड़ रही हूं। रही मेरी बात, तो तुम फिक्र ना करो, हम लड़कियों को बचपन से आदत से ऐसे जीने की। कभी अपने सपने, अपनी पढ़ाई, अपनी खुशी, अपनी आज़ादी, फिर अपना घर। सब छोड़ना पड़ता है। फिर भी तुम्हारे जैसे आदमियों के सामने खुद को कमजोर समझ कर , सहती रहती हैं सब कुछ। पर अब और नहीं। अब तुम अपनी चिंता करो। तुम एक छोड़े हुए आदमी बनकर कैसे जियोगे।

इंस्पेक्टर साहब इसे लेे जाइए, मारपीट का केस तो इस पर लगेगा ही । मेरे ससुर जी की प्रॉपर्टी में धोखाधड़ी का केस भी इसपर जरुर लगवाइए।

नशे के बिना ये रह नहीं पाएगा आपकी जेल में, इसे इसकी सही जगह पर जरुर पहुंचाएं।

वकील साहब आप तलाक़ की अर्जी भी डाल दें , कोर्ट में। ना मुझे इस छोड़े हुए आदमी की जरूरत है, ना मेरी बेटी को।

शायद आज पिताजी की आत्मा को शांति मिलेगी।
ससुर जी की तस्वीर के आगे हाथ जोड़ते हुए बोली -" पिता जी आपको दिया हुए वादा मैं मरते दम तक निभाऊंगी। "

*** औरत कोई सुधार गृह नहीं है कि अपने बुरी आदतों में फंसे बेटे को सुधारने के लिए, किसी की बेटी की ज़िन्दगी खराब की जाए। अगर वसुधा के ससुर जी भी इसी बात को मानकर बेटे की शादी करवाने की बजाय उसको पहले ही नशा मुक्ति केंद्र भेज देते तो शायद कहानी कुछ और होती। मां का प्यार बच्चे के लिए जितना जरूरी है, बच्चे को अनुशासन में रखना भी उतना ही जरूरी है। आखिर में पति पत्नी ही एक दूसरे का सहारा बनते है। अपने बच्चे के दोष छुपाना, मां की ममता नहीं है।


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