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अग्निपरीक्षा

"तुम जब बाहर होती हो तो मुझे बताती रहा करो। इतना कहने से कौनसी अग्निपरीक्षा हो गई तुम्हारी?"- ऋषि ने श्वेता से कहा।
ऋषि श्वेता के नौकरी करने से बहुत नाखुश था। पर जब ऋषि का बिजनेस प्लान फेल हो गया तो श्वेता को नौकरी करने देना ऋषि की मजबूरी बन गई थी। ऋषि शुरू से ही शक्की स्वभाव का था। ऋषि के इसी स्वभाव के चलते श्वेता ने अपने घर तक जाना बंद कर दिया था।
जब भी घर में श्वेता की बुआ या मामा के बच्चे साथ बैठकर हंसी मजाक करते तो ऋषि को बिल्कुल पसंद नहीं आता था। वो 2-3 बार ऐसे ही नाराज होकर ससुराल से वापिस आ गया था, इसलिए श्वेता ने घर ना जाना ही ठीक समझा।
ऋषि और श्वेता की जब शादी हुई तब तक श्वेता और ऋषि एक ही दफ्तर में काम करते थे।
ऋषि को किसी और का श्वेता से बात तक करना पसंद नहीं था। किसी दिन श्वेता की किसी काम के लिए तारीफ हो जाती फिर तो उस दिन घर में ऐसा माहौल बना देता था कि घर में खाना तक नहीं खाता था।
थोड़े दिन ये सब चला फिर श्वेता उम्मीद से हो गई।

ऋषि ने श्वेता से कहा की तुम नौकरी छोड़ दो तुम्हे आराम की जरूरत है।


श्वेता रोज रोज की लड़ाई से तंग आ चुकी थी। ऑफिस से आते ही उसे पहले सफाई देनी पड़ती की आज क्यों उसने किसी से बात की, क्या बात की?
श्वेता ने जॉब छोड़ने का फैसला कर लिया।

एक दिन ऋषि श्वेता को हॉस्पिटल जांच के लिए लेकर गया । वहां श्वेता के ऑफिस से सुबोध भी अपनी बीवी के साथ आया हुआ था।
ऋषि दवाई लेने गया तो सुबोध और उसकी पत्नी; श्वेता से बात करने लग गए।

ऋषि ने दूर से ही देखा की श्वेता किसी से बात कर रही है। उसने सुबोध की पत्नी को देखकर भी अनदेखा कर दिया।
ऋषि तेजी से श्वेता के पास आया। सुबोध ने हाथ मिलाने की कोशिश की इतने में ऋषि ; श्वेता का हाथ पकड़कर उसे वहां से लेे गया।
सभी हैरान थे ये क्या हुआ?? सुबोध को लगा कहीं श्वेता की रिपोर्ट्स में कुछ गडबड तो नहीं थी जो ऋषि ऐसे उसे लेे गया जल्दी जल्दी में।
सुबोध की बीवी ने कहा -"पहले डॉक्टर से चेकअप करा लेते हैं। फिर आराम से घर जाकर फोन कर लेना।"
श्वेता ने पूछा -" तुम्हे क्या हुआ है ऋषि!! ऐसा क्यों किया तुमने। सुबोध की पत्नी भी थी वहां वो क्या सोचती होगी?"
ऋषि -" तुम अपनी नसीहत बंद रखो। मुझे नहीं पसंद कोई मेरी गैर मौजूदगी में मेरी पत्नी से बात करें।"
श्वेता -" तुम बच्चों वाली बातें क्यूं कर रहे हो? मैं तुम्हारी बीवी बनने से पहले से ही सुबोध को जानती हूं। किसी से बात करने से पहले तुम्हारी परमिशन लेनी पड़ेगी क्या?"
ऋषि -" तुम मुझे गुस्सा मत दिलाओ। तुम्हे क्या पता मर्द कैसे होते है। मैं जानता हूं।"


श्वेता -" तुम भी किसी की बीवी से बात करते हो तो किसी गलत सोच के साथ ही करते हो क्या?"
ऋषि -" तुमसे जितना कहा है सुन लो। जाओ घर आ गया। मैं थोड़ी देर में आता हूं घर।"
ऋषि चला गया। श्वेता सोचती रही क्या अब भी ऋषि के दिमाग में ये सब बातें चलती है। चलो शादी से पहले मैं सोचती थी कि मुझे लेकर शायद ज्यादा ही फिक्रमंद है। पर अब तो हद ही हो गई है। मैंने नौकरी छोड़ दी, बच्चा होने वाला है क्या अब भी ऋषि को मुझपर विश्वाश नहीं?
पहले भी विश्वास था या मेरा ही भ्रम था?? ये सब सोचते हुए श्वेता अंदर चली गई।
कुछ महीनों बाद बच्चा भी हो गया। श्वेता के मम्मी पापा श्वेता को घर ही लेे गए ताकि श्वेता की अच्छे से देखभाल हो सके। ऋषि का परिवार दूसरे शहर में रहता था, वहां से कोई भी श्वेता का ध्यान रखने के लिए आने को तैयार नहीं था।
ऋषि को कहां चैन था, रोज रात को ऋषि भी बच्चे को देखने के बहाने से श्वेता के घर ही आने जाने लग गया।
ऋषि को उसके किसी दोस्त ने एक बिजनेस स्कीम बताई। ऋषि ने श्वेता को कहा कि कुछ पैसे दे दो,बिजनेस चलने के बाद लौटा दूंगा।
श्वेता बच्चे की देखभाल में व्यस्त रहती थी, उसे पता था ऋषि को मना कर दिया तो अभी मम्मी पापा के सामने ही शुरू हो जाएगा। मम्मी पापा को दुख ना पहुंचे इसलिए उसने पैसे दे दिए ऋषि को।
श्वेता की मां ने कहा -" बेटा!! नौकरी तुम पहले ही छोड़ चुकी हो। अब ये बच्चा भी है यूं अंधा विश्वास करके सारी सेविंग्स भी लगा दी तुमने। औरत के हाथ में अगर अपने दम पर खड़ा होने का रास्ता ना बचे तभी लोग उसे गिराने कि कोशिश करते हैं।"


श्वेता -" मां! क्या हो गया आपको। पति है मेरा!! जैसा आप सोच रही हो ऐसा कुछ नहीं है। मेरा बहुत ध्यान रखते हैं ऋषि। मुझे पूरा विश्वाश है उन पर।"
श्वेता की मां -" काश ! ऐसा ही हो।"
श्वेता का बेटा अब 2 महीने का हो गया। श्वेता ऋषि के साथ घर चली गई ।

श्वेता ने घर पहुंचकर देखा कमरे में बीयर की बोतल इधर उधर बिखरी हुई थी।
ऋषि ने जल्दी जल्दी हड़बड़ाहट में सब हटाया।
ऋषि हकलाता हुआ -" वो तुम्हे तो पता ही है ऑफिस के दोस्तों का। बेटे की खुशी में पार्टी की थी। मैं साफ करवा देता हूं।"
श्वेता -" पर तुमने तो ऑफिस छोड़ दिया ना! अपना बिजनेस कर रहे हो!"
ऋषि घबराता हुआ -" हां!! हां!! वहीं तो ऑफिस वाले। गलती से बोल गया । हां नए ऑफिस वाले लोग आए थे!!"
श्वेता ने तब तो कुछ नहीं कहा। ऋषि ने थोड़े दिन बाद फिर से कहा -" श्वेता क्या तुम पापा से कुछ पैसे मांग सकती हो?? जल्दी ही लौटा दूंगा!"
श्वेता -" पापा से!! क्या बिजनेस शुरू किया तुमने ? बताया नहीं मुझे!! तुम अपने पिताजी से कुछ मदद मांग लो। सॉरी!! मैं पापा को नहीं कह सकती ।"
ऋषि -" अब तुम मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकती!! तब तो बड़े बड़े दावे करती थी हर कदम पर तुम्हारे साथ हूं। अब क्या हुआ?"
श्वेता हैरान थी। वो अपनी सारी सेविंग्स पहली ही दे चुकी थी।
श्वेता -" क्या मैंने तुम्हारा साथ नहीं दिया?? तुम्हारे कहने पर जॉब छोड़ दी। अपनी सारी सेविंग्स दे दी। अब कुछ नहीं है मेरे पास।"


ऋषि -" ये बोलो ना तुम्हे विश्वाश नहीं मुझपर। डूब गया बिजनेस। दिवालिया हो गया हूं मैं।"
श्वेता के पैरों तले जमीन खिसक गई। मां की बातें एक एक करके उसके कानों में गूंज रही थी।
ऋषि -" मुझे तुम बचा लो!! मेरे साथ धोखा हुआ है। "
श्वेता खुद को संभालते हुए बोली -" ठीक है!! पर मैं पापा से नहीं मांगूंगी। लोन ले लेते हैं । मैं जॉब करूंगी फिर से । तुम भी ढूंढ लो कोई जॉब। मिलकर हल निकल जाएगा।"
ऋषि -" अब मैं दोबारा किसी के यहां नौकरी नहीं कर पाऊगा। सब मेरा मजाक उड़ाएंगे।"
श्वेता अब भी सोच ही नहीं पा रही थी कि ये सब क्या हो गया!! बस अपने बेटे के बारे में सोचते हुए चुप हो गई।
श्वेता ने फिर से काम पर जाना शुरू किया। थोड़े दिन तो ऋषि अपनी गलती छुपाने के चक्कर में चुपचाप बैठा रहा।
पर कुछ दिन बाद ही उसने फिर से श्वेता को बार बार फोन करना शुरू कर दिया।
कभी किसी मीटिंग के चलते फोन ना उठा पाती तो उसे सफाई देनी पड़ती की क्यू फोन नहीं उठाया।
एक दिन श्वेता ने बोल ही दिया -" ऋषि तुम क्या चाहते हो?? मैंने आजतक तुमसे कभी नहीं पूछा! कौन तुम्हारा दोस्त है? कौन बिजनेस पार्टनर है?? आखिर हर सवाल मुझसे ही क्यूं?"
ऋषि -" तुम्हे पता नहीं आदमी कैसे होते है? वो दोस्ती को दोस्ती नहीं समझते!"
श्वेता -" बस करो अब!! तुम भी एक आदमी ही हो ना! अगर तुम ऐसे सोचते हो इसका मतलब ये नहीं कि सब ऐसा ही सोचते होंगे। "
ऋषि -" तुम मेरी मजबूरी का फायदा उठा रही हो?? कल से तुम नहीं जाओगी नौकरी पर। मैं ढूंढ लूंगा कोई काम।"


श्वेता -" तुम बेशक ढूंढ लो कोई काम। मैं अपने बेटे को किसी के ऊपर बोझ बनते नहीं देख सकती। ना रोज रोज तुम्हारे सवालों की इस अग्नि परीक्षा को बर्दाश्त कर सकती।"
ऋषि -" ओह!! तो ये अब अग्नि परीक्षा हो गई। मेरा हक है ये जानना ; मेरी बीवी कहां है, क्या कर रही है।"
श्वेता -" ये हक मुझे भी है मेरे पति ने कहां मेरी सेविंग्स को खर्च किया? कौन उसका बिजनेस पार्टनर है? किसके साथ वो घर पर पार्टियां करता है!"
ऋषि -" दो पैसे क्या कमाने लग गई तुम्हारी जुबां खुलने लग गई। घर आओ मैं बताता हूं किसको क्या हक है?"
श्वेता का सब्र जवाब दे चुका था। ऑफिस में भी सबको उसका परेशानी भरा चेहरा देखकर पता चल गया था कि कुछ तो गडबड है।
उसने ऑफिस से हाफ डे लिया और घर चली गई।
श्वेता -" हां आ गई मैं! नौकरी छोड़कर। अब जाओ तुम ढूंढो नौकरी। और हां मेरे जितने भी पैसे थे मुझे लौटा देना धीरे धीरे, फिर कुछ नहीं पूछूंगी मैं।"
ऋषि हड़बड़ा गया -" नौकरी क्यूं छोड़ दी?? मैं तो कह रहा था कि किसी ऐसे ऑफिस में तबादला करा लो जहां महिलाएं हो। मैं पैसे कैसे दूंगा बताया तो था कि बिजनेस में लॉस हो गया।"
श्वेता -" उस बिजनेस की कोई ज़मीन, कोई समान कुछ तो होगा!! बिजनेस का नाम ही बता दो या बिजनेस पार्टनर का!! "
ऋषि के पास कोई जवाब नहीं था,वो फिर से गिड़गिड़ाने लगा -" तुम मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकती। मैं प्यार करता हूं तुमसे!"
श्वेता -" प्यार से ज़िन्दगी नहीं चलती। मुझे ये तो बता दो तुमने क्या किया पैसों के साथ या तो पैसे वापिस कर दो।"


ऋषि अब आपे से बाहर हो गया -" देखा!! दिखा दी औकात ! इसलिए मैंने तुम्हारी नौकरी छुड़वाई थी। औरत कमाने लग जाए तो आदमी को आदमी नहीं समझती। कहीं चक्कर चल रहा है ना तुम्हारा? तभी तो बिना सोचे नौकरी छोड़कर चली आई, ये भी नहीं सोचा बच्चे को कैसे पालोगी। तुम क्यूं सोचोगी। पालने वाला ढूंढ लिया होगा ना कोई।"
श्वेता ने जोरदार चांटा जड़ते हुए कहा" घटिया आदमी!! तुम्हारे ऊपर अंधा विश्वास किया मैंने। अपने घर, रिश्तेदार, पड़ोसी, नौकरी, पैसे सब लूटा दिया। हर कदम पर तुम्हारे बेतुके सवालों पर सफाई देती रही की चलो घर ना टूटे। पर तुम!!
घर तो दोनो से होता है। तुम तो कभी समझते ही नहीं थे। सुनो !! ना मैंने नौकरी छोड़ी है ना छोडूंगी। कुछ छोडूंगी तो वो हो तुम। तुम्हे छोड़ रही हूं। रहो अपनी गलीच सोच के साथ।
मैंने गलती की हर बात पर सफाई देती रही। पर अब कोई अग्नि परीक्षा नहीं। अब फैसला होगा। और फैसला है - तलाक़।
ऋषि फिर से श्वेता के पैरों में गिरकर माफी मांगने लग गया।

पर श्वेता अपने बच्चे को लेकर चली गई।
रिश्ते आपसी विश्वास से बनते है। जो आदमी सोच लेे की सिर्फ मेरा हक है सवाल करने का। वो कभी रिश्ते नहीं निभा सकता।
रिश्ते तितली के पंखों से होते है, आज़ादी में ही खुश होते हैं। उन्हें पकड़कर रखोगे अपनी सोच के दायरे में तो वो टूट जाएंगे।

ये वो दौर नहीं की औरत हर कदम पर अग्नि परीक्षा देती रहे। अब अपनी किस्मत का फैसला वो खुद करेगी।

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