बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 23 Pradeep Shrivastava द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • आई कैन सी यू - 41

    अब तक हम ने पढ़ा की शादी शुदा जोड़े लूसी के मायके आए थे जहां...

  • मंजिले - भाग 4

                       मंजिले ----   ( देश की सेवा ) मंजिले कहान...

  • पाठशाला

    पाठशाला    अंग्रेजों का जमाना था। अशिक्षा, गरीबी और मूढ़ता का...

  • ज्वार या भाटा - भाग 1

    "ज्वार या भाटा" भूमिकाकहानी ज्वार या भाटा हमारे उन वयोवृद्ध...

  • एक अनकही दास्तान

    कॉलेज का पहला दिन था। मैं हमेशा की तरह सबसे आगे की बेंच पर ज...

श्रेणी
शेयर करे

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 23

भाग - २३

बात पूरी कर बेनज़ीर मुझे सवालिया नज़रों से देखने लगीं। मैं बिलकुल शांत सोचने लगा कि, कुछ भी रिपीट कराने का तो कोई चांस छोड़ा ही नहीं। सच कहूं तो मैंने उनसे बात करने से पहले यह सोचा ही नहीं था कि, वह अपनी पर्सनल लाइफ के बारे में इतनी सहजता से खुल कर ए-टू-जेड वर्णन करेंगी। हिन्दी बेल्ट के किसी व्यक्ति, वह भी किसी महिला से तो यह उम्मीद कदापि नहीं की जा सकती। लेकिन वह लगातार किये जा रही थीं। इसलिए मुझे तारीफ करने में भी संकोच नहीं हो रहा था। मैंने, 'कहा, 'मार्वलस! आप जिस तरह से, जैसी-जैसी बातें बता रही हैं, उसे देखते हुए मैं पूरे दावे के साथ कहता हूं कि, जब यह बातें नॉवेल के रूप में आएंगी तो पाठक हाथों-हाथ लेगा, और इसका श्रेय आपकी इस नैरेशन आर्ट को जाएगा।'

'लेकिन फिलहाल कॉफी, स्नैक्स का एक दौर होना चाहिए।'

'जी हाँ, ज़रूर, तब आप और फ्रेश मूड में और बेहतर बताएंगी।'

'और आप बेहतर सुन पाएंगे।'

यह कहकर वह खिलखिला हंसी, फिर नौकर के लिए घंटी बजा कर बोलीं, 

'अगले दिन भी हमें कार्यक्रम में निराशा ही हाथ लगी। सब कुछ था तो बड़े भव्य स्तर पर, लेकिन हम अपने को उन सबके लिए अनफिट पा रहे थे। इसलिए दोपहर होते-होते वहां से निकल लिए। और मदनपुरा में अपने लिए संभावनाएं तलाशीं, फिर एक थिएटर में फिल्म देखी और शाम को गंगा-मैया की दिव्य आरती का भव्य दृश्य देखा। यह बहुत बड़ा अद्भुत दृश्य था। मुन्ना ने सुना जरूर था लेकिन संयोगवश हमने देखा तो हम चकित रह गए। फिल्म के अलावा बाकी सारे समय गंगाराम हमारा गाईड, साथी बना रहा। वह एक-एक चीज की छोटी सी छोटी जानकारी देता था। मदनपुरा में एक जगह हमें कुछ उम्मीद नजर आई, तो लल्लापुरा में ज्यादा दिखाई दी।

हम घूमघाम कर रात दस बजे लौट आए। पहले ही की तरह खाना-पीना लेकर। देर रात तक बातें चलती रहीं। गंगाराम के अत्यधिक बातूनी होने से लेकर उसकी बताई बातों तक पर। मैंने उसकी कई बातों को याद करते हुए कहा, 'जो भी हो इस उमर में भी बीवी का बड़ा भक्त है। मैं आज जान पाई कि यह पक्का भंगेड़ी भी है। अपने को सही ठहराए जाने के लिए कहे जा रहा था कि, 'सवेरे-सवेरे पहला काम बाबा भोले को याद करना, उनका प्रसाद भांग का चार तोला भर का गोला एक लोटा पानी के साथ लेना। इससे मेरा पूरा दिन, पूरी मस्ती, पूरे आनंद में बीतता है। एक से बढ़ कर एक बढिया बाबू लोग मिल जाते हैं। दिन भर बढिया कमाई हो जाती है।' बताओ नशे की चीज के भी कसीदे पढे जा रहा था।'

तो मुन्ना ने कहा, ' देखो उसका जीवन जीने का अपना तरीका है। बेहद स्वाभिमानी व्यक्ति है। स्वाभिमान से समझौता नहीं करता। लड़कों की भी मदद नहीं लेता। कितना खुले मन का और कितनी दूर तक सोचने वाला है कि, लड़कों के साथ रहेंगे तो उनकी आज़ादी में खलल पड़ेगा और मेरी भी। ऐसे में दोनों एक दूसरे के लिए भारू यानी कि बोझ बन जाएंगे। फिर एक दूसरे को लेकर मन में गुस्सा बनेगा। लड़ाई-झगड़ा होगा। वह कितनी दूर तक सोचता है कि मां-बाप को चाहिए कि शादी ब्याह के बाद बच्चों को आज़ाद कर देना चाहिए। कितना तरीके से बता रहा था कि, 'बाबू जी देखो, हमें पशु-पक्षियों से इस बारे में शिक्षा लेनी चाहिए कि, वह भी अपने बच्चों को बड़ा हो जाने पर उन्हें अपने झुंड से बाहर कर देते हैं। पक्षी भी मां-बाप का घोंसला छोड़ कर उड़ जाते हैं। तो हम तो आदमी हैं। हमें भी किसी पर बोझ नहीं बनना चाहिए।'

कितना सिस्टम से काम करता है, कितना दूर तक सोचता है कि जब रिक्शा खींचने लायक नहीं रह जाएंगे, तो भी मदद ना लेनी पड़े, इसके लिए मियां-बीवी मिलकर पिछले बीस वर्षों से पैसा जमा कर रहे हैं, जिससे बैठने पर भी महीने में इतनी रकम मिलती रहे कि, किसी भी बेटे से मदद ना लेनी पड़े, मैं तो इस शख्स की तारीफ करूंगा कि, वह इतना कर रहा है। और मैं उसे भंगेड़ी भी नहीं कहूँगा, क्योंकि वह भांग को एक दवा की तरह लेता है। उसकी एक निश्चित डोज लेता है। डॉक्टर शराब के लिए भी कहते हैं कि, यदि सोते समय रेड वाइन के दो पैग लिए जाएं तो वह फायदेमंद हैं। मगर जो लोग बोतल की बोतल चढा जाते हैं, वह गलत है। जैसे पुनीतम, वह गलत था। उसकी जो हालत बताई गंगाराम ने उससे तो यह कहना चाहिए कि वह नहीं, शराब उसे पी रही थी। यह तो संयोग था कि, बाबा की कृपा हो गई और वह बच गया।'

'अरे बस भी करो, तुम तो उसी की तरह चालू हो गए बिना रुके ही। मेरी समझ में इतनी जल्दी नहीं आता। वह भी बिना रुके ना जाने क्या-क्या बोलता चला जाता है, उसकी तमाम बातें तो मेरी समझ में अभी तक नहीं आई।'

'अच्छा, उसने ऐसी कौन सी बात कही, जो अभी तक नहीं समझ पाई।'

यह कहते हुए उन्होंने मेरी नाक पकड़ कर कसके हिला दी, इससे मुझे एक के बाद एक कई छींकें आ गईं तो वह हँसते हुए बोले, 'मेंढकी को जुखाम हो गया, अरे क्या समझ में नहीं आया, कुछ बताएगी।'

मैं उनके पैरों पर सिर रखे, लेटी हुई बात कर रही थी। वह बेड पर पीछे पीठ टिकाये बैठे ऐसे ही प्यार से जगह-जगह छेड़ रहे थे। मैंने कहा, 'छीकें बंद हो तब तो बोलूँ। यह कहते हुए मैंने उनके दोनों हाथ पकड़ कर कहा, 'तुम्हारे हाथ तुमसे भी ज़्यादा शरारती हैं, इन्हें ऐसे रखो और सुनो पहली नशे की बात, दूसरी यह कि, 'काशी नगरी तो तब भी थी जब यह पृथ्वी ही नहीं थी।' अब तुम ही बताओ, जब यह पृथ्वी नहीं थी तो नगर क्या हवा में बस जाएगा। क्या कमाल की बातें करता है।'

'कमाल की तो बातें नहीं, जो उसने पढे-लिखे लोगों से पौराणिक ग्रथों की बातें सुनी हैं, वही बोल रहा था, तुमने पूरी बात सुनी नहीं, वह अपने किसी गुरु की बात कर रहा था। उन्हीं से सुनी बात कह रहा था कि, पुरानी बातों में यह बताया गया है कि काशी नगरी पहले भगवान शिव जी के त्रिशूल पर पर बसी थी। पृथ्वी बनी तो शिवजी ने काशी नगरी को यहां पृथ्वी पर रख दिया। इसीलिए कहते हैं कि, यह नगरी तब भी थी, जब यह पृथ्वी भी नहीं थी। उसने यह भी कहा था कि, 'बाबू जी किसी ठेठ, खांटी बनारसी से पूछेंगे कि बनारस कहाँ है? तो वो यही कहेगा कि बनारस न आकाश में है, न पताल में है, न पृथिवी पर, बनारस तो भगवान् शिव के त्रिशूल की नोक पर है।'

'अरे ! यह कैसे मुमकिन हो सकता है।'

' बहुत मुश्किल नहीं है इसे समझना। यह अपनी-अपनी आस्था की बात है। सुनो तुम इसको ऐसे समझो, जैसे तुम मोहम्मद साहब को पैगम्बर मानती हो। अल्लाह से जो संदेश उन्हें मिलते थे, उन्हें वह लोगों को बताते थे। लोग उन पर विश्वास करते थे। क्योंकि उनकी उन पर आस्था थी कि अल्लाह ने निश्चित ही उन्हें संदेश दिया है। किसी ने देखा नहीं, लेकिन आस्था के चलते विश्वास किया। आज चौदह सौ साल बाद भी उन पर आस्था रखने वाले लोग विश्वास कर रहे हैं। ऐसे ही लोगों का विश्वास है कि, भगवान शंकर ने ऐसा किया। उन्होंने अपने त्रिशूल से उतार कर अपनी बनाई काशी नगरी पृथ्वी पर यहां रख दी। क्योंकि ग्रंथों में भी ऐसा उल्लेख है, तो विश्वास अटूट और गहरा है। अब बताओ, तुम्हें अब भी कोई शक है।'

'तुम ऐसे समझाओगे तो कहां से शक होगा।'

'चलो तुम्हारी समझ में तो आया। रही बात नशे की तो उसे हर ग्रन्थ में गलत ही कहा गया है । कुछ नशेड़ियों ने भ्रम फैला रखा है बस। अब थोड़ा काम की बातें करते हैं। अभी तक फायदे का एक भी काम नहीं हो पाया है, सिवाय इसके कि दर्जनभर प्लेन साड़ियां ले ली गई हैं, जिस पर अब तुम लखनऊ पहुंच कर अपनी अम्मी से सलाह-मशविरा के बाद अपने हुनर को आजमाओगी। कुछ नया प्रेजेंट करोगी।'

'सही कह रहे हो। प्रदर्शनी में तो कुछ ख़ास हो नहीं पा रहा है।'

'लेकिन मेरे दिमाग में एक बात आ रही है। अगर तुम साथ दो, तो कल ना सिर्फ हम कुछ नया एक्सपेरिमेंट कर पाएंगे बल्कि काम के आगे बढ निकलने की राह भी खुल सकती है।'

'ऐसा क्या काम है, जब इतनी दूर आ सकती हूं तो यहां कुछ और कदम बढ़ा लेंगे, अगर उनके ना बढ़ाने के कारण काम रुका हुआ है तो। मगर कदम ऐसे बताना जो मैं कर सकूं।'

'मैं वही कहूंगा जो तुम कर सको। तुम वह काम पहले भी कर चुकी हो।'

'मैं!'

'हाँ, तुम।'

'क्या?'

'मॉडलिंग।'

'अरे!मैंने कब मॉडलिंग की?'

' तुमने लखनऊ में मॉडलिंग अपने प्रोडक्ट के लिए की है। खुद उन्हें पहनकर, फोटो खींचकर, सोशल साइट पर लगाया है कि नहीं।'

यह कहते हुए उन्होंने नाक पकड़ कर फिर हिला दी।मगर इस बार ऐसे, जैसे किसी बच्चे की। '

'प्यार, आपके प्रति उनके प्रगाढ़ प्यार के प्रतीक हैं उनके यह सारे काम।'

'जी, जी, उनके ऐसे इतने काम है कि क्या-क्या बताऊँ, उन्हें सुन लेंगे तो एक नॉवेल उन्हीं पर तैयार हो जाएगी, फिलहाल जो बात छूटी थी उसे आगे बढाती हूँ, मैंने उनसे कहा, 'हाँ, लेकिन यहां इसका क्या काम।'

'कल इसका बहुत काम है, इसलिए तुम्हें कल यहां मॉडलिंग करनी है। अपने प्रोडक्ट को पहन कर फैशन शो में रैंप पर चलना है।'

यह सुनकर मैं एकदम चौंक गई। मैंने कहा, 'क्या? तुम भी कमाल करते हो, उन छोटे-छोटे कपड़ों को पहनकर मैं उन तमाम लोगों के सामने चलूंगी। हया-शर्म भी कोई चीज होती है।'

'हाँ, होती है पगली। इसीलिए तो उन छोटे कपड़ों को पहनकर नहीं, बल्कि उन फुल ड्रेस को जो तुमने डिज़ाइन किये हैं। जेंट्स वाले मैं पहन लूंगा और लेडीस वाले तुम।'

'तुम भी कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहे हो। इतने लोगों के सामने मटक-मटक के, कूल्हे उछालते हुए चलना मेरे बस का नहीं है। सारा काम बिगड़ जाएगा। फिर मॉडल जिस तरह चलती हैं, उस तरह तो मैं एक कदम भी नहीं चल पाऊँगी। धड़ाम से गिर जाऊँगी।'

'देखो जब तुमने पहली बार खुद ही मॉडलिंग की, तो पहले हिम्मत की तभी तो कदम बढाया । ऐसे ही हिम्मत करो, सब हो जाएगा। मैंने भी पहले कभी नहीं की है, मगर कल करने का पक्का इरादा है। कल कोई प्रॉब्लम न हो इसलिए अभी रिहर्सल करेंगे। सच कह रहा हूं कि दिल में ठान लो तो कुछ भी मुश्किल नहीं है। दशरथ मांझी अकेले ही पहाड़ काटकर रास्ता बना सकतें हैं, तीस साल तक अकेले काम करके, लुंगी भुइयां पहाड़ काट कर, खेतों तक पानी लाने के लिए तीन किलोमीटर लम्बी नहर बना सकते हैं, तो क्या हम लोग कुछ मिनट कुछ, कदम नहीं चल सकते हैं? क्या मुश्किल हो सकती है। और सुनो किस्मत भी उन्हीं का साथ देती है जो हिम्मत करते हैं, डरपोकों और बुजदिलों का साथ तो घर वाले भी नहीं देते। तुम हिम्मत करने लगी तो तुम्हारी अम्मी ही तुम्हें हर उस काम में मदद करने लगीं, इजाजत देने लगीं, पहले जिनके बारे में तुम कल्पना भी नहीं कर सकती थी। '

'तुम सही कह रहे हो। लेकिन मुझमें यह हुनर नहीं है।'

'तुममें यह हुनर भी है। तभी तो तुम बिना किसी सपोर्ट के खुद ही मॉडलिंग करने लगी। थोड़ी और हिम्मत करो तो कल बहुत कुछ बड़ा हो सकता है। देखो हुनर अपना रास्ता ढूंढ ही लेता है। तुम ओलंपियन धाविका दुती चंद को ही देख लो। एक छोटे से गांव में जन्मीं, गाँव में दिनभर घूमते रहने के कारण लोग उसे पागल भी कहते थे। लेकिन एक धाविका के गुण थे तो स्कूल पहुँचते-पहुंचते लोगों की नजर में आ गई। अच्छे कोच, उसकी मेहनत ने उसे इंटरनेशनल प्लेयर बना दिया।

ऐसे ही रानू मरियम को भी ले लो। रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर गाना गा-गा कर भीख मांगती थीं। एक पैसेंजर ने उनका गाना रिकॉर्ड करके सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। वह मुंबई फिल्म इंडस्ट्री के लोगों को प्रभावित कर गया। आज वह बड़े-बड़े संगीतकारों के साथ गाना गा रही हैं। क्या पता किस्मत कहां साथ दे जाए। लेकिन कोशिश करेंगे तभी साथ देगी यह भी निश्चित है।'

'ठीक है, वह क्या कहते हैं उसको, रिहर्सल करते हैं । बताओ क्या करना है।'

'तुम्हें बस चलने की प्रैक्टिस करनी है। बाकी कपड़े पहनना तो आता ही है। कैसे चलना है बताता हूं।'

इसके साथ ही मुन्ना ने लैपटॉप में यूट्यूब पर फैशन शो का वीडियो चालू कर दिया और कहा, 'यह मॉडल कैसे चल रही हैं, इनके पैरों को ध्यान से देखो। यह दोनों पैर को क्रॉस करते हुए चल रही हैं। मतलब की बायां पैर दाहिने ज्यादा निकाल रही हैं, और दाहिना बाएं तरफ ज्यादा निकाल रही हैं। तुम्हें ऐसे ही चलना है। एकदम कैटवॉक करना है।'

'तुम भी ऐसे ही चलोगे।'

'जेंट्स को दूसरी तरह चलना है। मैं मेल वाला वीडियो देखता हूं।'

तो इस तरह हम दोनों ने वीडियो देखने के बाद कमरे में ही रैम्पवॉक की रिहर्सल की। करीब पन्द्रह मिनट तक। फिर मैं बेड पर बैठती हुई बोली, 'हो गई तसल्ली। मैं सही कर रही हूं ना।'

'चल तो ठीक रही हो, लेकिन लोगों के सामने चलने के लिए अभी और देर तक रिहर्सल करनी है। जिससे वहां कायदे से बिना रुकावट, हिचक के किया जा सके। तुम्हें एक बात बताऊं, मैं एक बार रोहतांग गया था। वहां जाने से पहले हरिद्वार, ऋषिकेश, नैनीताल गया। वहां पर बहुत से पहाड़ी कुली ऐसे लोगों को सरकंडे से बने एक ख़ास कोच में बैठा कर चढाई चढ़ते हैं, जो खुद नहीं चढ सकते। अपने से भी वजनी आदमी को पीठ पर लादकर ऊपर तक ले जाते हैं।'

'अरे! एक आदमी को लादकर कोई पहाड़ पर कैसे चढ जाएगा।'

'सुनो तो बताता हूं, कैसे चढ़ जाता है। सिर्फ आदमी ही नहीं बीस-पच्चीस किलो का पत्थर भी साथ में लादकर चढ़ता है।'

मैं आश्चर्य से आंखें बड़ी करती हुई बोली, 'क्या? साथ में पत्थर भी, वह क्यों?'

' वह इसलिए कि पत्थर सहित आदमी लेकर जब वह आगे बढ़ते हैं, ऊंचाई सीधी खड़ी हो जाती है तो चढ़ना मुश्किल हो जाता है। तब वह पत्थर को गिरा कर आसानी से चढ़ जाते हैं। एक तरह से वह अपने को मनोवैज्ञानिक ढंग से आदमी को ऊपर तक ले जाने के लिए तैयार करते हैं। सोचो दुनिया में लोग अपनी मंजिल पाने के लिए क्या-क्या तरीके अपनाते हैं। कितनी मेहनत करते हैं। बिना मेहनत के कुछ भी नहीं मिलता।'

'हाँ, लेकिन मैं भी तो मेहनत कर रही हूं। कुछ कमी दिख रही हो तो बताओ।'

'कॉन्फिडेंस में कमी है। मैं खुद में भी कॉन्फिडेंस में कमी महसूस कर रहा हूं। लेकिन कैसे बढाऊँ कॉन्फिडेंस, समझ नहीं पा रहा हूं। अच्छा चलो पहले खाना खा लेते हैं, फिर सोचते हैं। भूखे पेट होए ना भजन गोपाला। समझी।'

'हाँ, पूरा समझ गई।'