जयनंदन का ताजा उपन्यास एक असामान्य कथा कृति राजनारायण बोहरे द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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जयनंदन का ताजा उपन्यास एक असामान्य कथा कृति

उपन्यास

ऐसी नगरिया में केहि विधि रहना-जयनंदन

जयनंदन का ताजा उपन्यास एक असामान्य कथा कृति

जयनंदन का ताजा उपन्यास ‘ऐसी नागरिया में केहि विधि रहना.‘ एक दलित व्यक्ति के संघर्ष की लम्बी व्यथा कथा है। लोटन नामक ड़ोम अपने परिवार के साथ ग्राम रक्काबगंज में जिन-जिन मुसीबतों का दृढ़ता से सामना करता हुआ अडिग बना रहता हैं, उसका विस्तृत विवरण इस उपन्यास में जयनन्दन ने किया है।

पिता मुसई की विरासत को सम्भालता लोटन गॉंव में परम्परागत जलालत भरा काम करते हुए जीवन यापन कर रहा है। गॉंव के रऊफं मिया उसके प्रति सदभावना रखते हैं, तो गॉंव के अनेक चौधरी उससे खार खायें बैठे रहते हैं। लोटन की पत्नी बिजरी और उसकी बच्चियां सितियां, सुमिया, झुनकी, झालों, धुपड़ी आदि एकदम बबुआन बच्चियों की तरह गोरी और सुंदर हैं, जिन पर गॉंव के सवर्ण भी लार टपकाते है। सितिया का ब्याह करके निपटा लोटन सुमिया द्वारा नृत्य गान सीखने हेतु घर छोड़ देने से एक झटका खा जाता है, तभी सितिया भी शहर भाग जाती है और बुझे मन के साथ सितिया का परिव्यक्त पति राधे झुमकी के साथ घर बसा लेता है। घर में एक बेटा पैदा होता है और लौटन उसका धर्म निर्पेक्ष नाम जुम्मा रखता है। लोटन, रऊफ साहब के खैराती अस्पताल में चौकीदार से लेकर वार्डबाय तक का काम करता है, जहा मैमिन नामक नर्स उसके प्रति भ्रातृवत् स्नेह रखती है। डाक्टर सलाम साहब उसकी सेवा से प्रसन्न होकर घोड़े में चीरा लगाने से लेकर दवा लगाने तक में निपुण कर गये है पर नये डाक्टर दोलन को वह फुटी आँखं नही सुहाता। दोलन तो अस्पताल को गुंण्डों का अड्डा बनाए दे रहे है , मेमीन के मुखिया से चलते अवैध संबंधों के कारण उसे ब्लेकमैल करके वे गॉंव की युवतियों को बुलवाकर अय्याशी करने लगे है। अनेक चौधरी का हाथ डाक्टर दौलन पर आरंभ से है, यू तो खुद अनेर भी रऊफ साहब का मुख्तार आम है पर वह उनसे भी जलता है। लोटन को नीचा दिखाने के खातिर वह एक से एक करगुजारियां करता है। लोटन के पोसे हुये सुअर मार दिये जाते हैं और रऊफ साहब द्वारा लोटन के नाम कर दिये गये अस्पताल पर लोटन का कब्जा होने से हर प्रकार से रोका जाता है। इसके पूर्व ’सुमिया’ प्रसिद्ध लोकगायिका हो चुकी हैं और पटना में एक वकील के साथ रह रही है। जिससे मिलने लोटन पत्नी और बच्चे को लेकर जाता है, सुमिया दिल खोलकर मिलती है जबकि लोटन उसे वर्षो पहले मृत घोषित कर चुका था, वही सुमिया वकील द्वारा छोड़ देने के बाद निराश होकर ब्रेन टयूमर के कारण कमजोर हो जाती है और अंत में मरकर गॉंव की मिटटी में मिलने लाश के रूप में लौटती है । अपनी तीसरी बेटी लोटन ने छगनलाल को ब्याही है। जो हर मामले लोटन की मदद करता है। बंद हो चुके अस्पताल को पुनः शुरू करने के प्रयत्न में पूरा लोटन छगन को लेकर पटना के हर तरह के प्रयत्न करके अंततः उसको सरकरी रूप कराने का आश्ष्वासन लेकर लौटता है कि अस्पताल के आंगन में अनेक चौधरी शिवलिंग प्रकट करवा के पूरी इमारत को विवादग्रस्त करवादेता है और अंततः पूरी इमारत गिरवाकर वहां मंदिर बनवा देता है । इस बीच लोटन का बेटा जुम्मा भी अनेक के अवैध निष्कामों में सहयोग देता हुआ अंततः दुर्घटनाग्रस्त होता है और अस्पताल में एकाकी रह जाता है उसे लोटन और उसका परिवार ही सम्भालता है । जुल्मों की इंतहा हो जाने के बाद लोटन अंततः मौन नहीं रहता और वह अत्याचारियों के खिलाफ खड़ा हो जाता है।

विवरणात्मक शैली का यह उपन्यास पाठक को तमाम नयी जानकारियों के साथ-साथ कई चरित्रों की पेंची दगीयां भी समझाने में सफल रहा हैं, और नायक के साथ कुछ-कुछ तादाम्य स्थापित कराने में भी। लेकिन इसे एक अनूठा और विलक्षण उपन्यास नहीं कहा जा सकता। यह जयनन्दन का एक सामान्य उपन्यास नही है।

एक कथाकार के रूप में जयनन्दन एक बड़ा नाम है। उनकी कहानियां अपनी प्रामाणिकता, दिलचस्पी, स्वाभाविकता और वैचारिक पक्ष को बहुत जबर्दस्त तरीके से प्रकट करने के लिए जानी जाती है । कहानी कार के रूप् में वे बड़े सफल और सुलझे हुये लेखक सिद्ध हो चुके है क्योंकि उनकी कहानियां अपने कथ्य और शिल्प के साथ पूरा-पूरा न्याय करती हैं, पर वे उपन्यास का व्यापक कॅनवास वैसा नहीं संभाल पाये जैसा उन जैसे कथाकार से संभालने और निभा ले जाने की आशा की जाती है।

इस उपन्यास की भाषा का विन्यास तो ठेठ आंचलिक है पर उसमें रवानगी नहीं है। कथा पढ़ते पाठक में आगे की बात पढ़ने के लिये न तो भाषा ही रूचि जगाती नहीं शैली। आकर्षण हीन शैली और कथा में वृतांत कथा के प्राण नहीं होने से पाठक मन मार के कहानी पढ़ता रहता है।

उपन्यास में कम से कम संवाद प्रयुक्त किये गये हैं, इस कारण कथा पढ़ लेने के बाद लगता हैं कि कोई पुलिस रिपोर्ट या साहित्यिक रिपोर्ताज पढ़ लिया है। उपन्यास जैसी संवेदना और मार्मिकता लाने में लेखक सफल नहीं हो सका है। दसअसल इसमें घटनाओं की इतनी बहुलता है कि पाठक लगातार उलझता हुआ अपनी भौंह चढ़ाये रहता है। घटनायें भी इतनी सायास और प्रायोजित सी लगती है कि लेखक की नियत पर शक होने लगता है। अनेक चौधरी के लिये गॉंव में एक मात्र लोटन जैसे आदमी का रातदिन दुश्मनी सोचना केवल उसी के पीछे पड़े रहना गले नहीं उतरता। ऐसा लगता हैं कि लिखने व छपाने की व्यग्रता ने इस उपन्यास में तमाम कमियां छोड़ दी है ।