सांसद अभिनेता गोविंदा ने एक बार एक तहरीर करते हुए कहा कि श्रद्धा में तो शक्ति होती ही है, लेकिन आश्चर्य की बात है कि शक्ति में भी श्रद्धा हो सकती है। ये परिहास उन्होंने जिस फिल्मी माहौल में किया वहां श्रद्धा कपूर भी उपस्थित थीं और उनके पिता शक्ति कपूर भी।
ये मिसाल इस लिए याद आती है कि दीपक से प्रकाश होना तो स्वाभाविक ही है किंतु प्रकाश से दीपिका का उदय होना भी कोई अनहोनी नहीं है।
और अगर प्रकाश की चमक उज्ज्वला हो तो फ़िर दीपिका के ग्लैमर की कोई सीमा ही नहीं, इसका उजाला ज़रूर दिखाई देगा।
प्रकाश की बड़ी बेटी दीपिका का आरंभिक रुझान अपने पिता की तरह बैडमिंटन खेलने में ही रहा किंतु इसमें कुछ बड़ी सफलताएं अपने नाम कर लेने के बावजूद उन्हें ग्लैमर वर्ल्ड लुभाता था।
उनकी कद काठी ही नहीं बल्कि सुगठित देहयष्टि उन्हें पिता की जागीर से इतर अपनी एक नई दुनिया बनाने के लिए बुलाती थी। जिस लंबी छरहरी काया की वो मालकिन थीं, वो उन्हें जब तब भरोसा दिलाती थी कि उनकी ये अप्रतिम रूपराशि खेल में पसीना बहाने के लिए नहीं बल्कि अपनी चमक से कोई नया आसमान रोशन करने में खुश रहेगी।
स्टाइलिश होने की जो मांग अमूमन टॉप मॉडल्स से होती है वो कैमरों को दीपिका की सादगी भरी एक मुस्कराहट में नज़र आती थी।
बिना किसी मेकअप, सजीले परिधान और ख़ास केशविन्यास के सिर्फ़ एक रंगीन साबुन की टिकिया हाथ में देकर उन्हें सागर की उत्ताल थिरकती लहरों पर जब लिरिल साबुन के निर्माताओं ने खड़ा किया तो लोगों को उस साबुन से खुशबू आने लगी।
डाबर और लिम्का ने उनके सहारे अपने ब्रांड्स फैलाए। ढेर सारे दन्तमंजन बाज़ार में होते हुए भी जब दीपिका का मुस्कुराता चेहरा लोगों को दिखा तो उनके दिल ने गहराई से चाहा कि काश, इस टूथपेस्ट का नाम "क्लोज अप" ही हो।
दीपिका के पूरी तरह पारंपरिक भारतीय लुक को देखते हुए जल्दी ही उन्हें ज्वैल्स ऑफ़ इंडिया ने अपना ब्रांड एंबेसडर बनाया। इससे दोनों ओर भारी असर पड़ा। जहां उत्पाद के प्रति लोगों का आकर्षण बढ़ने से उसे लोकप्रियता मिली वहीं इस महत्वपूर्ण प्रतिनिधित्व से एक उभरते हुए मॉडल के रूप में दीपिका ने भी लोगों का ध्यान खींचा।
जल्दी ही उनकी पहुंच ने अंतरराष्ट्रीय स्तर को छूकर उन्हें मेबिलिन का अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया।
इसके बाद तो दीपिका की पकड़ फैशन वर्ल्ड पर लगातार मज़बूत ही होती चली गई।
जहां उनकी छोटी बहन हॉकी, क्रिकेट, टेनिस और गोल्फ़ में हाथ आज़मा रही थी, दीपिका ने अपना सारा ध्यान मॉडलिंग पर ही केन्द्रित कर दिया।
प्रायः ये देखा गया है कि किसी भी क्षेत्र में अत्यंत सफ़ल होने वाले लोगों के बच्चे यदि सामान्य हों तो वो अपने पेरेंट्स के प्रोफ़ेशन को ही अपनाना चाहते हैं ताकि उन्हें एक जमी - जमाई दुनिया सहज ही मिल जाए और अपने आरंभिक जीवन में ही उन पर सफ़लता का ठप्पा लग जाए। वहीं, अगर ऐसे लोगों के बच्चे भी असाधारण प्रतिभा वाले अथवा विलक्षण हों तो वो माता - पिता की दी हुई सफ़लता से ही संतुष्ट होकर नहीं बैठते। वो अपने दम पर अपनी एक अलग सफ़लता रचना चाहते हैं।
प्रकाश पादुकोण की छोटी बेटी ने भी जब खिलाड़ी ही बनने का ख़्वाब देखा तो अपने पिता के खेल, बैडमिंटन में हाथ न आजमा कर पहले हॉकी और क्रिकेट तथा उसके बाद टेनिस खेलते हुए अंततः गोल्फ़ में अपनी जगह बनाई। एक दिन आया कि वो गोल्फ़ में देश का प्रतिनिधित्व अंतरराष्ट्रीय स्तर तक जाकर करने लगीं।
और बड़ी बेटी दीपिका पादुकोण ने तो मॉडलिंग को अपना क्षेत्र बनाया यद्यपि बैडमिंटन कोर्ट पर भी उनकी साख कोई कम नहीं आंकी गई।
एक बारीक सा अंतर इस दिशा के शुभचिंतकों को और देखना व समझना चाहिए।
क्रिकेट जैसे खेल में सुनील गावस्कर या सचिन तेंदुलकर जैसे लीजेंड्स अपने बच्चों को आकर्षित करके ला तो सके पर उन बच्चों को वो सफ़लता नहीं मिली जिसकी आशा या अपेक्षा उनसे की गई। किंतु प्रकाश पादुकोण की सुपुत्रियों ने पिता के नक्शे कदम पर चलने का शुभारंभ करके भी अपने सपनों को एक वैकल्पिक ज़मीन दी। जल्दी ही समुचित निर्णय लेकर उन्होंने अपने कैरियर में अपने चयन को सेकेंड हैंड कहलाने ही नहीं बल्कि होने से बचाया। ये बच्चों के एक अलग क़िस्म के विवेक को रेखांकित करता है।
दीपिका पादुकोण ने पांचवें किंगफिशर वार्षिक फैशन पुरस्कार समारोह में उस समय धूम मचा दी जब उन्हें वर्ष की शीर्ष मॉडल के रूप में चुना गया। यह एक प्रतिष्ठा पूर्ण उपलब्धि थी। उन्हें वर्ष दो हज़ार छः के किंगफिशर स्विमसूट कैलेंडर के लिए भी चुना गया।
परम्परागत सोच के लोग कह सकते हैं कि दीपिका की इस उपलब्धि ने उनके डाउन टू अर्थ माता- पिता की निगाह में अपनी इस उपलब्धि से अपना कद निश्चित रूप से नहीं ही बढ़ाया होगा किंतु यहां बात आधुनिकता या दकियानूसी सोच की नहीं है बल्कि बात ये है कि आप जिस क्षेत्र में हैं, वहां आप सर्वश्रेष्ठ ठहराए जाएं। आपकी सफ़लता देखने वालों के लिए एक सेंसेशन बन जाए। महत्व इस बात का है।
इसी वर्ष आइडिया जी के अवॉर्ड फंक्शन में दीपिका ने दो ज़बरदस्त अवॉर्ड्स अपने नाम किए।
उन्हें "फ्रेश फेस ऑफ़ द इयर" चुना गया। इसके साथ ही उन्हें कॉमर्शियल असाइनमेंट के क्षेत्र में "फीमेल मॉडल ऑफ़ द इयर" का खिताब देकर भी नवाज़ा गया। ये एक बहुत बड़ी बात थी।
एक तरह से देखा जाए तो ये मॉडलिंग के फ़ील्ड में बिल्कुल वैसी ही सफ़लता थी जैसी उनके पिता ने कभी राष्ट्रीय बैडमिंटन चैंपियनशिप में हासिल की थी। अर्थात जैसे प्रकाश पादुकोण एक ही वर्ष में जूनियर और सीनियर वर्ग के चैंपियन बने ठीक वैसे ही दीपिका को साल का सबसे ताज़गी भरा चेहरा तो चुना ही गया, साथ ही साथ साल की सर्वश्रेष्ठ महिला मॉडल भी ठहराया गया।
ये ठीक ऐसा ही था कि युवा होते ही आप पूर्ण परिपक्व वयस्क भी सिद्ध हुए।
न केवल पिता, बल्कि बेटी भी!
उस समय प्रकाश के अंतर से कहीं ये आवाज़ ज़रूर निकली होगी - "बेटी हो तो ऐसी"।
दीपिका के चुंबकीय व्यक्तित्व ने उन्हें एक बार फिर राष्ट्रव्यापी कामयाबी दिलाई जब किंगफिशर एयरलाइंस ने उन्हें अपना ब्रांड एंबेसडर बना दिया। एक एयरलाइंस की ब्रांड एंबेसडरशिप केवल श्रृंगार, सजावट, सौंदर्य से वाबस्ता तो हो नहीं सकती। ये दीपिका के करिश्माई व्यक्तित्व, बुद्धिमत्ता और प्रभावशाली संप्रेषण का ही स्वीकार माना जाना चाहिए। उनके खाते में आने वाली एक बड़ी सफ़लता।
इतना ही नहीं, उनका नाम लीवाइस और टिसॉस एस ए जैसे ब्रांड्स से भी जुड़ा।
सफ़ल लोगों की सफ़लता भी ख़ूबसूरत और उनका भविष्य भी! न जाने कौन सा मुकाम उनके इंतज़ार में था?