झंझावात में चिड़िया - 7 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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झंझावात में चिड़िया - 7

एक शाम अपने दफ़्तर में प्रकाश बैठे थे कि उनके वही दोस्त मिलने चले आए जिन्होंने कभी उन्हें क्लब के दो दोस्तों की कहानी सुनाई थी।
बातों के बीच न जाने कैसे उस दिन प्रकाश को बैठे बैठे उनकी वह कहानी याद आ गई। बरसों पुरानी बात।
प्रकाश ने उनसे पूछा - यार, तुमने ये तो बता दिया था कि विदेश में जीत कर आने के बाद दोस्त के बेटे ने उनकी कोई भी बात मानना छोड़ दिया था, लेकिन ये तो बताओ कि बच्चे ने ऐसा किया क्यों? क्या उसे अपनी जीत से घमंड हो गया था या फ़िर कोई और बात थी?
इतनी पुरानी बात प्रकाश के मुंह से सुन उनके दोस्त की आंखों में जैसे ख़ुशी के आंसू आ गए। उसे लगा कि उनके दोस्त को दुनिया जीतने के बाद भी बचपन में कही गई उनकी बात अब तक याद है?
उसने अभिभूत होकर बताया - लड़के को अपनी जीत का घमंड बिल्कुल भी नहीं हुआ था, वो तो हमेशा की तरह ही विनम्र और आज्ञाकारी था किंतु अपने पिता की बात न मानने का कारण कुछ दूसरा था जो दुनिया के सभी पिताओं को भी समझना चाहिए।
बात ये थी कि पिता ने जब बेटे को विदेश में खेलने जाने की अनुमति दी तो उसे समझाते हुए तीन शर्तें भी रख दीं। पिता ने कहा कि एक, वो विदेश यात्रा के दौरान कभी भी शराब नहीं पिए। दो, वो वहां कभी भी जुआ खेलने के बारे में सोचे भी नहीं। और तीन, पूरी यात्रा के दौरान लड़कियों से दूरी बनाए रखे।
- अच्छा, इंटरेस्टिंग! लेकिन ये सब बातें तो ठीक ही हैं, अक्सर हर पिता अपने युवा होते बच्चों को समझाता ही है। प्रकाश ने कहा।
- पर जब लड़का पहली बार विदेश गया ही था तो वहां घूमते हुए वह एक "बार" के सामने से गुज़रा। उसे ये ख्याल आया कि पिता ने शायद मुझे शराब का आदी न बन जाने के लिए ऐसा कहा होगा कि मैं शराब न पियूं। लेकिन मुझे केवल एक बार ये चख कर तो देखना ही चाहिए कि ये बुरी चीज़ है क्या? लड़के ने भीतर जाकर एक पैग का ऑर्डर दे दिया। वह मुंह सिकोड़ कर उस कड़वे पेय को सिप कर ही रहा था कि काउंटर से अनाउंसमेंट हुआ - आज हमारे बार के मालिक का जन्मदिन है, इस ख़ुशी के मौके पर हमने अपने सभी ग्राहकों के नाम की लॉटरी निकाली है। और उस लॉटरी के परिणाम स्वरूप लड़के को सौ डॉलर का पुरस्कार मिला।
लड़का चकित होकर वहां से निकल बाज़ार में टहलने लगा। अचानक एक जुआघर पर उसकी निगाह पड़ी। लड़का सोचने लगा - जुआ बेशक एक बुरी चीज़ है, मैं अपने पिता की मेहनत की कमाई की एक कौड़ी भी इस पर हरगिज़ नहीं लगाऊंगा, लेकिन इस वक्त तो मेरी जेब में बिना मेहनत से कमाए हुए सौ डॉलर और भी हैं। उन्हें दांव पर लगाने में कोई हर्ज़ नहीं।
संयोग देखिए कि लड़का उन्हीं पैसों से जैकपॉट की भारी रकम जीत गया।
खेल में चैम्पियन बन जाने के बाद वह सतर्क था कि उससे ऑटोग्राफ ले रहे लोगों में से वो किसी लड़की से बात बिल्कुल न करे। पर लड़कियां कहां मानती हैं! आख़िर एक लड़की उसके होटल का पता ले पाने में कामयाब हो ही गई।
लड़के का वो दिन अच्छा नहीं बीता। खेल के स्टेडियम से होटल लौटते समय लोकल ट्रेन में उसका बैग गलती से कहीं छूट गया। उस बैग में उसका सामान, घर वालों के लिए खरीदे तोहफ़े, और पैसे ही नहीं, बल्कि वो कीमती पदक भी था जो उसने यहां जीता।
वह अपने होटल में पहुंच कर मायूसी से एयरपोर्ट के लिए निकलने की तैयारी कर ही रहा था कि वही लड़की उसका बैग लिए उसे ढूंढती हुई वहां आ पहुंची। लड़की ने बताया कि उसे ये बैग स्टेडियम में ही पड़ा मिला जिसमें लगे एक फ़ोटो से उसने पहचाना कि बैग किसका है।
उसने हड़बड़ा कर लड़की को शुक्रिया कहा और अपने पिता को...
अब वो अपने देश लौटने के बाद से अपने पिता की कही कोई बात नहीं मानता था।
प्रकाश पादुकोण के द्रुतगामी खेल जीवन से ऐसे न जाने कितने किस्से जुडे़ और न जाने कितने सपने संवरे।
प्रकाश ने बैडमिंटन कोच के रूप में लगभग तीन साल काम किया।
प्रकाश को ये देख कर बहुत अच्छा लगता था कि उनकी दोनों बेटियां खेल में काफ़ी रुचि रखती हैं। छोटी बेटी का रुझान गोल्फ़ की ओर था जबकि बड़ी बेटी पिता की शानदार विरासत को संभालने की ख्वाहिश लिए बैडमिंटन में ही हाथ आजमाती थी।
दुनिया के बेहतरीन शॉट्स और स्मैश उसने अपने शिशुपन से ही देखे थे। ये तो उसके लिए बाएं हाथ के खेल जैसे थे। जिस तरह कोई मम्मी - पापा ताली बजा कर या झुनझुने से बहला कर अपने बच्चों को खिलाते हैं, वैसे ही शटलकॉक पर रैकेट के वार से इन बच्चों ने हुलस कर हंसना- मुस्कराना सीखा था।
प्रकाश ने भी बच्चों पर अपनी कोई इच्छा या राय कभी नहीं थोपी, वाे शुरू से यही मानते थे कि उन्हें अपने जीवन में जो कुछ भी करने का मन हो, वो करने के लिए पूरी तरह स्वाधीन हैं।
इसके उलट मां उज्ज्वला ज़रूर कड़े अनुशासन में परिवार को रखने की अभ्यस्त थीं।
एक बार तो उज्ज्वला जी ने ख़ुद सार्वजनिक तौर पर स्वीकार कर लिया था कि बच्चे और पति उनकी सख़्त अनुशासन प्रियता से परेशान थे। उन्होंने परिहास में ही इतना तक कहा कि उनका बस चलता तो वे उन्हें, यानी अपनी मां को घर से ही निकाल देना चाहते थे।
परंतु मज़ाक में कही गई इस बात में भी बेटियों का मां के लिए और मां का बेटियों के लिए स्नेह छलकता था। प्रकाश तो ख़ुद हमेशा पूरी दुनिया के लिए खुशमिजाज और मिलनसार रहे थे तो उनका अपना परिवार इससे कैसे अछूता रहता।
अपनी छोटी बेटी के तो जन्म के साथ ही उन्होंने सक्रिय खेल जीवन से संन्यास की घोषणा कर डाली थी।
प्रकाश ने देश के उम्दा भावी खिलाडि़यों की बेहतरी के लिए जो कुछ भी सोचा, उसे पूरी तरह अमली जामा भी पहनाया। वे केवल बातों में ही खेल जगत के लिए अपनी चिंता जताने वाले लोगों में नहीं रहे, उन्होंने लगातार इसे कार्यरूप भी दिया। जहां सुविधा सहयोग मिले, वहां सरकारी तौर पर और जहां इसकी सीमाएं रहीं वहां अपने निजी प्रयासों और संसाधनों से इसके लिए लगातार काम किया।
बिलियर्ड्स के विश्वस्तरीय लोकप्रिय खिलाड़ी गीत सेठी के साथ मिल कर उन्होंने ओलिंपिक खेलों में भाग लेने वाले खिलाडि़यों के लिए एक महत्वपूर्ण संस्था की स्थापना की।