लक्ष्मी का गृहप्रवेश... मंजरी शर्मा द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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लक्ष्मी का गृहप्रवेश...

अरे!! आप... आप लक्ष्मी जी हैं ना..." रमाकांत ने आँखों पर चश्मा लगाते हुए कहा.

"जी; लेकिन आप कौन? माफ़ कीजियेगा, मैंने आप को पहचाना नहीं." लक्ष्मी ने आश्चर्य से पूछा.

"मैं; मैं; रमाकांत. नंदकिशोर का पिता." रमाकांत ने कहा.

"नंदू!! नंदू कैसा है? वो कहाँ है? आपके साथ आया है? लेकिन, आप इस अस्तपताल में क्यों?" लक्ष्मी के चेहरे पर ख़ुशी और हैरानी के भाव स्पष्ट दिखाई दे रहे थे.

"अरे, अरे, ज़रा सांस तो ले लो. तुम भी तो यहाँ..." तभी नर्स ने लक्ष्मी जी का नाम पुकारा.

"लगता है मेरा नंबर आ गया; आप थोड़ी देर यहीं इंतज़ार कीजिये, मैं अभी आती हूँ." लक्ष्मी जी तुरंत डॉक्टर के केबिन में जाती है.

कुछ समय पश्चात... "लक्ष्मी आंटी, कब तक दवाइयों का सहारा लोगी".
"क्या हुआ लक्ष्मी जी को?" रमाकांत ने नर्स की बात काटते हुए कहा.

"कैसे हस्बैंड हो अंकल? लक्ष्मी आंटी को दवाइयां नहीं; अच्छी खुराक और आराम की ज़रूरत है. आपको इनकी सेहत की कोई चिंता है की नहीं." नर्स रमाकांत को कड़वी डांट पिलाकर चली गई.

"लक्ष्मी जी क्या हुआ आपको? ये नर्स, ये दवाइयां..." रमाकांत ने परेशान होते हुए कहा.

"रमाकांत जी कुछ नहीं. अब बुढ़ापे में डॉक्टर और दवाईयां तो आस-पास रहेगी. और ये नर्स भी, बिना सोचे-समझे ना जाने आपको... खैर मेरी छोड़े, नंदू के बारे में बताएं..." लक्ष्मी ने अपने प्रति बेफिक्री से कहा.

"लक्ष्मी जी यहाँ पास ही कॉफी हॉउस है, वहीँ चल कर बात करते हैं".

"कॉफी हॉउस; लेकिन मुझे घर जल्दी पहुंचना है. बेटाबहू मेरी राह देखते होंगे."

"कोई बात नहीं, फिर कभी." रमाकांत ने लक्ष्मी को तसल्ली देते हुए कहा.

"लेकिन, आप अस्तपताल में; सब ठीक है ना रमाकांत जी. आप क्या सोच रहे है? कुछ परेशान दिख रहे है, कहीं नंदू को ..." लक्ष्मी के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आई.

"हाँ लक्ष्मी जी, आपका नंदू जीवन और मौत के बीच झूल रहा है. उसकी दोनों किडनियों में इन्फेक्शन है, इसलिए उसकी किडनी ट्रांसप्लांट करनी होगी."
"लेकिन मेरी किडनी नंदू की किडनी से मैच नहीं हो रही. उसी की रिपोर्ट लेने आया था. डॉक्टर ने कहा है की जल्द से जल्द डोनर ढूँढना होगा नहीं तो ..." कहते-कहते रमाकांत जी सुबक पड़े.

"रमाकांत जी अपने आप को सम्भालिये ..." लक्ष्मी ने रमाकांत को पानी की बोतल देते हुए कहा.

"आप परेशान मत होइए, अपने नंदू को, मैं अपनी किडनी दूँगी."
"नहीं...नहीं... लक्ष्मी जी; पहले ही कितने उपकार हैं आपके; आप मुझे शर्मिंदा ना करें".

"मुझे आज भी याद है वो दिन; जब नंदू की माँ उसको जन्म देते ही गुज़र गई. डॉक्टर ने बताया की बच्चा बहुत कमज़ोर है और आपने अपने नवजात बेटे के साथ-साथ मेरे नंदू को भी 6महीने; अमृत पिलाकर उसकी जान बचाई और यही नहीं जब नंदू तीन साल का था तो सीढ़ियों से गिरने के कारण उसका काफी खून बह गया था, तब भी आपने ही, अपना खून देकर उसे बचाया था और एक बार फिर ..." रमाकांत जी की आँखों में शुक्रिया के भाव स्पष्ट दिखाई दे रहा था .

"रमाकांत जी; जब मैंने पहली बार नंदू को गोद में उठाया था, मुझे लगा की ईश्वर ने मुझे एक नहीं बल्कि जुड़वाँ बेटों को उपहार स्वरूप दिया है. चाहे नंदू को मैंने जन्म ना दिया हो, पर मैंने उसे माँ की तरह प्यार किया है. उसे देखते ही मुझे नंदगोपाल कान्हा का एहसास हुआ, इसलिए मैंने उसका नाम नंदू रखा. जहाँ मेरे बेटे रमन ने पहली बार अपने मुंह से पापा बोला वहीँ नंदू ने अपनी तोतली भाषा में मुझे माँ कह कर पुकारा. बस वहीँ से उसका और मेरा रिश्ता जुड़ गया. लेकिन, अचानक आप वो घर छोड़ कर कहाँ चले गए थे और वहीँ पता नहीं रमन के पिता ने भी अपने पुश्तैनी मकान को छोड़ कर दूसरे घर में शिफ्ट होने का फैसला कर लिया. एक बार नंदू को मुझसे मिलवा कर भी नहीं गए. कितना याद किया मैंने अपने नंदू को. खैर छोड़िये; इन बातों को. आप अभी के अभी डॉक्टर्स से बात करें." लक्ष्मी ने यादों से बाहर आते हुए कहा.

"लेकिन लक्ष्मी जी;"

"लेकिन-वेकिन कुछ नहीं. आप माँ और बेटे के बीच ना आएं. चलिए डॉक्टर के केबिन में" लक्ष्मी ने नंदू के लिए अपना प्रेमाधिकार जताते हुए कहा.

"देखिये बिना टेस्ट किये मैं किसी नतीजे पर नहीं आ सकता, आप कल सुबह आ जाइये." डॉक्टर ने कहा.

"लक्ष्मी जी, कहीं आपके परिवार वालों को कोई आपत्ति तो नहीं होगी." रमाकांत ने कहा.

"नहीं नहीं, रमन के पिता तो अब नहीं रहे और बहूबेटे को भी कोई आपत्ति ना होगी. आप निश्चिंत रहिये मैं कल सुबह बजे तक पहुँच जाउंगी .मेरे बेटेबहू बहुत संस्कारी है और वो अपनी माँ की बात से सहमत ही होंगे." जबकि ये तो लक्ष्मी जी का दिल ही जानता था की उस घर में उनका क्या स्थान है. लक्ष्मी जी घर में अपने बहूबेटे को किडनी वाली बात बताती है तो दोनों का मुंह बन जाता है. रमन ने तो शुरू से ही अपने पिता की तरह लक्ष्मी जी को कोई मान-सम्मान नहीं दिया और वहीँ रमन की पत्नी के लिए, लक्ष्मी जी का स्थान घर की नौकरानी से ज़्यादा कुछ नहीं था.

अगले दिन लक्ष्मी जी के सारे टेस्ट होते हैं और डॉक्टर उन्हें बताते हैं की उनकी किडनी, नंदू की किडनी से मैच हो गई है, इसलिए जल्द से जल्द ऑपरेशन कर देंगे.

"क्या! सच में डॉक्टर; तो चलिए, जल्दी से मेरी किडनी नंदू को दे दीजिये..."
"अरे लक्ष्मी जी, ज़रा रुकिए. ये चिकित्सा पद्धिति है और आप तो ऐसे कह रही है की जैसे एक पेड़ से फूल तोडा और गुलदस्ते में सजा दिया." डॉक्टर ने हँसते हुए कहा.

"भगवान् तेरा लाख-लाख शुक्रिया... बस ये ऑपरेशन अच्छे से हो जाए" लक्ष्मी जी ने हाथ जोड़ते हुए कहा.

"शुक्रिया तो आपका लक्ष्मी जी; जो आपने एक बार फिर से नंदू की जान ..." रमाकांत की आँखें भर आई.

लक्ष्मी भी कुछ कह ना पाई और रमाकांत जी के आगे हाथ जोड़ दिए. उसकी आँखें भी नम हो गई.

"क्या मैं एक बार नंदू से मिल सकती हूँ?" लक्ष्मी ने उतावलेपन से कहा.

"हाँ-हाँ क्यों नहीं; मैं अपनी ही बातों में इतना उलझ गया की मुझे ध्यान ही ना रहा की आप उससे मिलने को बेताब हो रही होंगी. चलिए दूसरी मंज़िल पर है उसका कमरा. नंदू... देखो तुमसे मिलने कौन आया है?" रमाकांत ने अपनी ख़ुशी व्यक्त करते हुए कहा.

"लक्ष्मी माँ!!"

"नंदू; तूने मुझे पहचान लिया." लक्ष्मी भाग कर नंदू के सिरहाने बैठ गई.

"भला कोई बेटा अपनी माँ को भूल सकता है. आप कहाँ चली गई थी." दोनों की आँखे ख़ुशी से बहने लगी.

"अब मैं आ गई हूँ ना, अब कभी नहीं छोड़ कर जाउंगी." लक्ष्मी प्यार से नंदू के सर को सहलाने लगी.

कितने सालों बाद आज प्यार से "माँ" शब्द की गूँज सुनाई दी थी उसे. उसका वातसल्य उसके चेहरे पर साफ़ दिखाई दे रहा था. आज एक बार फिर उसे मातृत्व का एहसास हो रहा था.

"चलिए; मैं आपको घर छोड़ देता हूँ. इसी बहाने आपके बहूबेटे से भी मुलाक़ात हो जाएगी."
"नहीं नहीं, मैं चली जाउंगी, आप क्यों तकलीफ करते हैं." लक्ष्मी ने बात काटते हुए कहा

"ठीक है; फिर मैं अपने ही घर चाय पी लूँगा." रमाकांत ने बेचारा सा मुंह बनाते हुए कहा.

रमाकांत का मासूम-सा चेहरा देखकर, लक्ष्मी जी ने मुस्कुराकर हामी भर दी. लेकिन घर पहुँच कर बेटेबहू ने कुछ ख़ास दिलचस्पी नहीं दिखाई.

"आप बैठिये; मैं चाय बनाकर आती हूँ." और लक्ष्मी जी रसोई की तरफ चल दी.

रमाकांत ने ही बात शुरू की. "आपको; लक्ष्मी जी ने मेरे बेटे के बारे में तो बताया ही होगा. दो दिन बाद ऑपरेशन होगा."

"तो ऑपरेशन के बाद माँ की तीमारदारी कौन करेगा? उनका खाना-पीना, उनकी सेहत का कौन ध्यान रखेगा?" रमन ने मुंह बनाते हुए कहा.

"जी, लक्ष्मी जी को कोई परेशानी नहीं होगी. उनके खाने-पीने और देखभाल के लिए, मैं नर्स का प्रबंध कर दूंगा." रमाकांत ने अपनी बात को स्पष्ट रूप से कहा.

"जी सुनिए;" रमन की पत्नी ने इशारे से रमन को अपने पास बुलाया. "ज़िंदा हाथी लाख का, मरा तो सवा लाख का. नहीं समझे. अरे, सासु माँ ने पूरी ज़िंदगी तो कमाया नहीं, कम से कम इस उम्र में ...." और दोनों पतिपत्नी आँखों ही आँखों में मुस्कुराने लगे.

"देखिये अंकल; मेरी माँ आपके बेटे के लिए इस उम्र में अपनी जान जोखिम में डाल रही है. कम से कम आप तो उनके लिए ..." और रमन बेशर्मी से हंसने लगा.

"हाँ हाँ; बिलकुल, आप जितना रुपया कहेंगे मैं आप को दे दूँगा"...तभी लक्ष्मी जी चाय पकड़ाते हुए क्या दे दूंगा?

"कुछ नहीं, कुछ नहीं, मैं तो कह रहा था की मेरा आशीर्वाद इन दोनों के साथ है." रमाकांत ने बात पलटते हुए कहा. वो अच्छी तरह जानते थे की लक्ष्मी जी रुपयों के लिए कभी राज़ी नहीं होंगी.

रमाकांत जी हाथ जोड़ते हुए बोले; "अच्छा मैं चलता हूँ, लक्ष्मी जी मैं सुबह आपको लेने आ जाऊंगा".

लक्ष्मी रमाकांत को बाहर छोड़ने आती है और उदास मन से कहती है; "रमाकांत जी आप अच्छे बिज़नेसमेन हैं, आपने तो मेरी ममता का ही सौदा कर लिया."

"मुझे माफ़ कर दीजिये; लक्ष्मी जी मुझसे अनजाने में बहुत बड़ी गलती हो गई है." रमाकांत ने शर्मिंदा होते हुए कहा.

"गलती आप की नहीं, मेरे बेटेबहू की है और मैं उन दोनों को ये गलती नहीं करने दूँगी."

अगली सुबह अस्तपताल में किडनी ट्रांसप्लांट का ऑपरेशन सफल होता है और लक्ष्मी अपने बेटे नंदू को देखकर फूली नहीं समाती. डॉक्टर ने दोनों को कुछ महीने बैड रेस्ट करने को कहा.

रमाकांत रोज़, वीडियो-कॉल के ज़रिये, लक्ष्मी और नंदू की बात कराते और हफ्ते में कभी-कभी लक्ष्मी जी का हाल-चाल पूछने आ जाते, जो लक्ष्मी के बहूबेटे को बिलकुल पसंद नहीं आ रहा था. रमन ने दो तीन बार रमाकांत को रूपये ट्रांसफर करने को कहा तो उन्होंने कुछ न कुछ बहाना बना दिया.

"पापा; आज मैं बहुत खुश हूँ. आज दिवाली के शुभ अवसर पर मैं अपनी लक्ष्मी माँ से मिलकर उन्हें सरप्राइज दूंगा. वो तो ख़ुशी से पागल हो जाएँगी. कहीं आपने उन्हें बताया तो नहीं की उनका नंदू, उनसे मिलने आ रहा है." नंदू के चेहरे पर एक बच्चे की मासूमियत साफ़ झलक रही थी .
"पापा जल्दी चलो ना... कितना टाइम लगते हो".
बस दो मिनट, उनके लिए जो उपहार लिए है, वो तो ले लूँ" रमाकांत ने मुस्कुराते हुए कहा.

"लक्ष्मी माँ... दिवाली बहुत-बहुत मुबारक हो" नंदू लक्ष्मी के पैर छूते हुए कहता है.

"अरे नंदू; तू... कहीं मैं सपना तो नहीं देख रही. मेरे नंदू को भी दिवाली की ढेर सारी शुभकामनाएं... तुम हमेशा रौशनी की तरह चमकते रहो, यही मेरा आशीर्वाद है." लक्ष्मी नंदू को गले लगाते हुए कहती है.

"रमाकांत जी आपको भी दिवाली की बधाई." लक्ष्मी ने हाथ जोड़ते हुए कहा.

"यदि बधाई लेने-देने का सिलसिला खत्म हो गया हो तो असली लेनदेन की बात कर ली जाये." रमन ने उखड़े उखड़े शब्दों में कहा.

"रमन ये क्या तरीका है बड़ों से बात करने का और रही लेनदेन की बात, तो मैंने ही रमाकांत जी को मना किया था क्योंकि मेरी ममता का कोई भाव नहीं लगा सकता".
लक्ष्मी ने मिठाई की प्लेट सजाते हुए कहा.

"हाँ हाँ; सारी ममता तो दूसरे के बेटे के लिए और सगे बेटे के लिए क्या ... पराये के लिए अपना अंग काट कर दे दिया और अपने बेटे को कुछ रूपये देने में आदर्शवादी बातें. एक पराये के लिए इतनी ममता, कहीं आपका सगा बेटा.... नहीं नहीं; आप दोनों का नाजायज़ बेटा तो नहीं. पापा को भी आप दोनों के रिश्ते के बारे में पता चल गया था, तभी उन्होंने इतने बड़े घर को
छोड़कर इस छोटे घर में रहने का फैसला किया था, ताकि आप दोनों कभी ना मिल पाए." रमन की जुबां से मानों विष बह रहा था.

"बस बेटा, बस. अपनी गंगा जैसी माँ के लिए इतने अपवित्र शब्दों का प्रयोग करके उनका अपमान ना करो". मेरी हाथ जोड़कर विनती है तुमसे रमन बेटा..
और वहीँ लक्ष्मी जी तो जैसे जड़वत हो गई थी.

"वाह अंकल जी; कांटा माँ के पैर में लगा और दर्द आपको हो रहा है" रमन ने व्यंग्य करते हुए कहा.

"बस कर.. अपनी गन्दी जुबां से एक पवित्र रिश्ते का अपमान मत कर.तूने तो मुझे कभी सम्मान दिया ही नहीं और ना ही बेटे होने का फ़र्ज़ निभाया. बेटे होने के बावजूद, माँ का प्रेम लुटाने को तरस गई और आज; आज तो तूने हद ही पार कर दी. अपनी ही माँ के चरित्र पर उंगली उठा रहा है. तुझे तो बेटा कहने में भी शर्म आ रही है. शायद इसलिए भगवान ने नंदू का प्यार मेरी झोली में डाला."लक्ष्मी जी की वेदना आँखों से बहने लगी.

"इतनी नफरत हो रही; तो जा निकल जा मेरे घर से. मुझे भी तेरी कोई ज़रूरत नहीं है." रमन लक्ष्मी का हाथ खींचकर उसे बाहर ले जाने लगा.

"एक मिनट आपको कोई हक नहीं है मेरी माँ का अपमान करने का. अभी उसका बेटा, उसका नंदू; उसके साथ है. "लक्ष्मी माँ" आपने तो सगी माँ से भी ज़्यादा प्यार किया है. अब मेरा भी फ़र्ज़ है, आपको कुछ देने का. वैसे भी जहाँ लक्ष्मी का मान-सम्मान नहीं, वहां उनका वास भी नहीं रहता. चलिए; माँ... अपने घर; आज पापा की गृहलक्ष्मी और मेरी लक्ष्मी माँ का गृहप्रवेश है.

रास्ते में सिग्नल पर गाड़ी रुकी, तो एक आदमी लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां बेच रहा था. बाबूजी आज दिवाली है, ये मूर्तियां ले लो... घर धनधान्य से भर जायेगा.

"जी, हम तो साक्षात् लक्ष्मी को घर ले जा रहे हैं; जिन्होंने हमारी अंधियारी ज़िंदगी को रौशन कर दिया और नंदू ने अपना सर, अपनी माँ के काँधे पर रख दिया और लक्ष्मी ने भी अपना आशीर्वाद भरा हाथ नंदू के सर पर रख दिया.
इस कहानी के सन्दर्भ में अपने विचार ज़रूर साँझा करें ...

मंजरी शर्मा ✍️