पम्मी मम्मी .... मंजरी शर्मा द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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पम्मी मम्मी ....

नमस्ते जी; कैसे हैं आप? अरे!! आपने मुझे पहचाना नहीं. मैं पम्मी; लेकिन मैं पम्मी मम्मी नहीं...

रुकिए ज़रा; ठहरिये; परेशान मत होइए ... आराम से बताती हूँ. ज़रा खिड़की वाली सीट पर बैठ तो जाऊं. फिर सफर भी तो लम्बा है ना; दिल्ली से अमृतसर का; तो आराम से गपशप लगाते हैं ...

हाँ, तो; मेरा नाम है पम्मी और जिसकी मैं बात कर रही हूँ वो है मेरी मम्मी; "पम्मी मम्मी". हुआ यूं मेरी मम्मी का नाम है परमिंदर कौर, जिन्हें पम्मी नाम बहुत पसंद था, लेकिन किसी ने उन्हें पुकारा ही नहीं और उन्होंने मेरा नाम परमजीत कौर यानि की पम्मी रख दिया.

तो सब उन्हें पम्मी की मम्मी पुकारने लगे. धीरे-धीरे 'की' हटता गया और मम्मी का नाम "पम्मी मम्मी" पड़ गया. पम्मी मम्मी तो ख़ुशी के मारे फूल गई. एक बात बताऊं...; पापाजी भी उन्हें पम्मी मम्मी बुलाते थे.

कहीं आप मुझसे बोर तो नहीं हो रहे. वो क्या है ना... मुझे बातें करना बहुत पसंद है और वो भी तब, जब आप जैसे सुनने वाले कदरदार हों. तो मैं कहाँ थी; पम्मी मम्मी पर. मेरी पम्मी मम्मी अमृतसर की चुलबुली पंजाबन थी जिसका विवाह दिल्ली में हुआ था. जो अपने परिवार क्या, पूरे मोहल्ले की जान थी. किसी का घर का, शादी-वादी का या फिर किसी का दुःख-दर्द हो, पम्मी मम्मी सबसे आगे रहती. लेकिन वक्त को ये ख़ुशी मंज़ूर ना थी. अचानक दिल का दौरा पड़ने से पापाजी हमें क्या छोड़ गए, परिवार वालों ने हमें छोड़ दिया. पम्मी मम्मी, मुझे लेकर अपने पिंड अमृतसर आ गई. लेकिन यहाँ भी अकेली रह गई पम्मी और पम्मी मम्मी. यहाँ तक ना तो सर छुपाने को छत्त और ना ही खाने को अन्न. बस फिर क्या एक ही सहारा था, उस परमात्मा का जिस पर पम्मी मम्मी को सबसे ज़्यादा विशवास था, इसलिए अन्धेरी रात में गुरूद्वारे की शरण ली. लेकिन पम्मी मम्मी ने वहां पहले सेवा की फिर ही प्रशादा चखा.

किसी के आगे हाथ फैलाना उन्हें पसंद नहीं था, इसलिए दिनरात गुरूद्वारे में सेवा करती और साथ-साथ काम की तलाश करती. गुरूद्वारे के भाईजी पम्मी मम्मी की सेवा से बहुत खुश थे. उन्होंने कहा की आज से तुम मेरी धर्म-बहन हो और यहाँ पास में ही मेरी हवेली है. मेरा अपना तो है नहीं और हवेली तो खंडर बन गई है, इसलिए तुम इस हवेली का कामकाज सम्भालों. मेरी सेवा भक्ति तो गुरु के चरणों में है. भाईजी ने पम्मी मम्मी को कई जगह खाना बनाने का भी काम दिलवा दिया. बस हम दोनों पम्मी और मम्मी की गद्दी चल पड़ी ...

एक मिनट ... अरे ड्राइवर वीरे ज़रा गद्दी ते ब्रेक ते लाओ ...

हाँ तो मैं कहाँ थी ब्रेक पे... मेरा मतलब है भाई, हमारी गाड़ी तो आराम से चल रही है. पम्मी मम्मी मुझे पुलिस इंस्पेक्टर बनाना चाहती थी और मैं.... मैं तो डरपोक; पुलिस के नाम से ही थर थर कांपती थी. लेकिन पम्मी मम्मी ने मुझे मज़बूत बनाया और कहा लड़कियों को स्वाभिमानी और अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए और देश की रक्षा से बड़ी कोई सेवा नहीं, इसलिए उन्होंने मुझे पुलिस ट्रेनिंग के लिए दिल्ली भेज दिया था. बस यूं ही दिल्ली से अमृतसर और अमृतसर से दिल्ली का सफर ...; अब मेरी पहचान बन गया है. इसलिए पूरे एक साल बाद अपनी पम्मी मम्मी से मिलने अमृतसर जा रही हूँ.

कहीं मैंने आपको ज़्यादा बोर तो नहीं किया, वैसे अमृतसर पहुँचने ही वाले है. आप मिलना चाहेंगे मेरी पम्मी मम्मी से. तो चलिए मिलवाती हूँ पम्मी मम्मी से; दूध सी नहायी, पंजाबी सूट, बालों में लम्बी परांदी और सर पर फुलकारी दुपट्टा... बोलने में तेज-करार, उससे ज़्यादा तो काम करने में उनके हाथ चलते और आँखे; एक सेकंड में सबके दिल की बात पढ़ लेती. सुबह शाम गुरूद्वारे की सेवा और पूरा दिन शबद जपना तो उनकी ज़िंदगी का हिस्सा है. तो पहुँच गए पम्मी मम्मी के घर. अरे दरवाज़ा मत खटखटाना; ये दरवाज़ा तो हमेशा ही खुला रहता है और ये है बोर्ड.... "पम्मी मम्मी का खाना यम्मी; भर जाये फुल टम्मी...ये लाइन्स मेरी हैं.

यहाँ 5 रूपये में भरपेट खाना मिलता है, यानि की जब तक आपका पेट ना भर जाये तब-तक आप अपनी प्लेट भर सकते हैं. लेकिन सिर्फ दो शर्त है : एक तो फ्री में खाना नहीं मिलेगा, पांच रूपये तो देने होंगे और यदि पांच रूपये भी ना हो तो पहले भर पेट खाना खा लो उसके बाद कोई भी सेवा कर दो. आखिर स्वाभिमान भी कुछ मायने रखता है और दूसरी शर्त; दूसरी शर्त ये है की खाना झूठा नहीं छोड़ना.

काफी सालों से पम्मी मम्मी ने इस हवेली में सुबह और रात का खाना खिलाना शुरू किया है जिसमें गरीब ज़रूरतमंद लोग सुबह और रात को अपना पेट भर सकें. थाली में रोज़ का मेन्यू अलग होता है, जिसमें चावल, रोटी, दाल/राजमा/छोले और सूखी सब्ज़ी होती है. कोई भी इस थाली को खा सकता है और अपनी इच्छानुसार इस थाली का जो भी मूल्य हो वो एक डिब्बे में डाल देता है. पम्मी मम्मी किसी से एक रुपया खुद नहीं लेती. इतना ही नहीं इस काम के लिए और भी ज़रूरतमंद औरतें; खाना बनाने, सब्ज़ियां काटने, बर्तन मांजने का काम करती है और काम खत्म हो जाने पर अपने हिसाब से डिब्बे में से अपनी मेहनत के रूपये ले लेती है. और सबसे बड़ी बात; कोई बेईमानी नहीं. यहाँ तक आटा, दाल, सब्ज़ी, घी, तेल भी दरवाज़े के पास बने कमरे में कौन रख जाता है, पता नहीं, इसलिए तो उस कमरे का नाम भण्डार गृह रखा है. साथ ही यदि किसी को बीमारी या किसी कारण से पैसे की ज़रूरत होती है तो पम्मी मम्मी की तेज़ अनुभवी आँखें फौरन उसकी झोली भर देती है.

ओह हो; बातों-बातों में कितनी देर हो गई. ज़रा मैं भी तो मिल लूँ अपनी पम्मी मम्मी से... लेकिन मम्मी को पुलिस वाली तो वर्दी में अच्छी लगती है लेकिन उनकी बेटी नहीं, क्यों? क्योंकि वो कहती है "ये वर्दी मेरी पहचान है, इस देश की आन और बान है, इसलिए वर्दी की इज़्ज़त करती है और ऐसे में वो मुझे डांट भी तो नहीं सकती.

तो आप दो मिनट रुकिए मैं पांच मिनट में आती हूँ ... हा-हा छोटा सा मज़ाक था. लेकिन ये क्या; इतना सोना पंजाबी सूट, मैचिंग फुलकारी से भरा दुपट्टा, ये सुनहरी परांदी, ढेर सारी चूड़ियां और छनछन करती झांझर और पंजाबी जुती.... हाय मैं गुड़ खा के मर जावां.

लगता है कोई खुराफात चल रही है पम्मी मम्मी के दिमाग में, तो चलिए मिलते हैं, लेकिन ज़रा धीरे-से, चुपके से, आहिस्ता-आहिस्ता....

"ये पकड़ लिया ..."

"ये क्या पम्मी मम्मी; मैं कोई चोर हूँ, जो आपने मुझे पकड़ लिया."

"लो जी... उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, भई गुनाह किया है तो सज़ा तो मिलेगी ही, हथकड़ियां भी पहननी पड़ेगी और उम्रकैद भी होगी..."

"मतलब??"

"मतबल क्या पूछती है; अब प्यार किया है तो शादी तो करनी ही पड़ेगी. तू क्या सोचती है, पम्मी मम्मी को कुछ नहीं पता चलेगा. अरे; पुलिस वाली की पम्मी मम्मी हूँ. सब खोज खबर रखती हूँ."

"ओ.. मुंडेबाहर आ जा... ले फर (थाम) ले हाथ और पहना दे अपने प्यार की हथकड़ी ..."

"मम्मी... मेरी प्यारी; पम्मी मम्मी..."

तो दोस्तों कैसी लगी आपको मेरी प्यारी-सी पम्मी मम्मी और इस पम्मी की बातें ... तो मुझसे ज़रूर शेयर करें. मंजरी शर्मा ✍️