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मैं ही मैं हूं

*मैं ही मैं हूं*
मैं महान हूं
मुझे समझना होगा तुम्हें
अपने अभिमान को परे रख
मेरी हर बात सुनो तुम
तुम क्या हो?
मेरे आगे
तुम्हारी कोई अस्तित्व नहीं मेरे आगे
मेरी धन-वैभव-संपदा को देखो
तुम्हारे पास भी होगा सबकुछ
किन्तु मेरे जितना नहीं
इन प्रसाधन की गुणवत्ता और मात्रा
तुमसे कहीं अधिक है
मेरे संसाधन आलौकिक है
इन्हें साष्टांग प्रणाम करो
मेरा घर, घर नहीं एक महल है
तुम्हारे पास भी होगा
किन्तु मेरे जितना भव्य नहीं
तुम्हारी राय का कोई मुल्य नहीं
तुम्हारी में कभी नहीं सुनूंगा
मेरा ज्ञान सर्वज्ञ है
तुम जानते ही कितना हो?
तुम्हारा ज्ञान शुन्य है
मेरे आगे
मेरी महत्ता सार्वभौमिक है
तुम नगण्य हो
तुम शून्य हो
और मैं अनंत
मेरी संतान ही संसार का कल्याण करेगी
क्योंकी वो मेरा अंश है
इसलिए वो भी महान है
उसका किसी से कोई मुकाबला नहीं
वो सर्वशक्तिमान है
मेरी तरह वह भी प्रार्थनीय है
ईश्वर का सर्वाधिक कृपा पात्र मैं हूं
क्योंकी मेरे पास सबकुछ है
अतएव मैं ईश्वर का प्रतिनिधि हुआ
मेरी ईच्छा को आज्ञा मानो
मैं भूखों को भोजन खिलाता हूं
अनाथों का नाथ मैं ही हूं
यदि मेरी कृपा हो जाए तो गूंगे बोलने लगे
क्योंकी मेरे पास धन-बल की शक्ति है
संसार का सारा ऐश्वर्य मेरे पास है
सभी सुविधाओं का मैं सर्वथा योग्य हूं
जिन्हें तुम केवल कल्पना में देख पाते हो
मेरे यह सभी गुण मुझे मानव से
ऊंचा और ऊंचा बनाते है
तुम मुझे ईश्वर मान सकते हो
तुम्हारी इच्छाएं मैं पुरी कर सकता हूँ
क्योंकि मैं महान हूं
मैं महान हूं
सर्वत्र केवल
मैं ही मैं हूं।
*एक कहानी रोज़-2014 (16/11/2029)*

*नोटीस- लघुकथा*

*शोभा* का लीगल नोटिस आदेश के हाथों में था। उसने पढ़ना शुरू किया। नोटिस में शोभा और आदेश के भावि शादीशुदा जीवन के संबंध में कुछ आवश्यक शर्तें टंकित थी। पहली शर्त यह थी कि शोभा अपने पति आदेश के माता-पिता के साथ नहीं रहना चाहती। जब तक उसके सास-ससुर जीवित है, वह आदेश के पास पुनः लौटकर नहीं आयेगी। साथ ही उल्लेख था कि आदेश को अपने मां-बाप को छोड़कर उसके पास आने की कोई जरूरत नहीं है। जीवन पर्यन्त वह अपने मां-बाप की सेवा कर सकता है। दूसरी शर्त में यह कहा गया कि आदेश को शहर में बड़े बाज़ार स्थित अपना मकान आशा और उसके दोनों बच्चों को रहने के लिए देना होगा। जहां वह अपने बच्चों को रखकर ठीक से निवास कर सके। अगली शर्त थी कि आदेश को अपनी सैलेरी को तीन बराबर भागों में बांटकर तीसरा भाग शोभा और उसके बच्चों की परवरिश हेतु देना होगा। इसमें किसी तरह का विलंब वह सह नहीं सकेगी। अन्यथा कि स्थिति में वह पुलिस और कोर्ट-कचहरी जाने से भी परहेज नहीं करेगी। आगे वह चाहती थी कि उसके शहर स्थित मकान में ब्यूटीपार्लर संबंधी आवश्यक सामग्री उसे आदेश खरीदकर लाकर दे। ताकी घर बैठे वह कुछ आर्थिक कमाई कर सके। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और उनके बिमार-दुःखी होने पर आदेश को त्वरित उनकी सेवा में हाजिर होना पड़ेगा। और जब-जब उन्हें आदेश की आवश्यकता प्रतित होगी, आदेश को फोन द्वारा सुचना मिलने पर तुरंत अपने सारे काम छोड़कर अपने बीवी-बच्चों के पास आना होगा। आशा ने आगे लिखा कि वह आदेश को अपने मां-बाप को छोड़ने का कभी नहीं कहेगी लेकिन वह आदेश को तलाक़ भी नहीं देगी। उसके सास-ससुर के स्वर्गवासी होने पर वह तुरंत अपने पति के पास वापिस आ जायेगी। उसने सबसे महत्वपूर्ण बात यह लिखी की आदेश के मां-बाप अथवा आदेश स्वयं या ससुराल में कोई उसे उसके ससुराल में आयोजित होने वाले सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजन में आने अथवा नहीं आने के लिए बाध्य नहीं करेगा, इसके लिए वह स्वतंत्र है। वह जब-तब आ-जा सकेगी। अंतिम शर्त यह थी कि आदेश को उसके पास आने-जाने हेतु सहमति है तथापि जब वह मना करे, आदेश उसके घर नहीं आ सकेगा। वह अन्यत्र सह संबंध स्थापितार्थ स्वतंत्र है किन्तु जब आशा को उसकी निजी आवश्यकता पूर्ति की जरूरत होगी, आदेश इसके लिए इंकार नहीं करेगा।
नोटिस पढ़कर आदेश क्रोधित था। वह ईंट का जवाब पत्थर से देने के लिए तैयार था। अब वह इस लीगल नोटिस को अपने विवाह विच्छेद का आधार बनायेगा। आदेश वकील से मिलने के लिए घर से निकल पड़ा।

समाप्त
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।

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लेखक--
जितेन्द्र शिवहरे
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जितेन्द्र शिवहरे इंदौर मध्यप्रदेश

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