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पति को सीखाऊंगी

एक कहानी रोज़--50

*पति को सीखाऊंगी*

*'पढ़ी-लिखी* हो तो क्या अपने पति को समझाओगी!' डिटर्जेंट पावडर विज्ञापन का यह संवाद घर-घर में सुनाई दे रहा था। मगर आशा की सास ने यही बात उसके मुंह पर कह दी थी। जिसने आशा के मन-मस्तिष्क पर बहुत उथल-पुथल मचाई। योगेश से आशा ने प्रेम विवाह किया था। पांच साल हो चुके थे दोनों की शादी को। योगेश की शराब पीने की लत ने घर का सुख चैन ही नहीं छीना अपितु परिवार के सम्मुख आर्थिक संकट भी उत्पन्न कर दिया था। आशा की सास नम्रता चाहती थी की आशा मां बनने का निर्णय जल्दी ही ले। ताकी वे लोग अपने पोते-पोतियों का मुख देख सके। मगर आशा जानती थी इन परिस्थितियों में बच्चें का आना कष्ट को और भी अधिक बढ़ा सकता था। बुढ़े सास-ससुर की दवा-दारू, घर का किराया और राशन पानी का व्यय पहले ही बमुश्किल से हो पाता था। उस पर नन्हें बच्चें की आगवानी का भार वह नहीं सह सकेगी। आशा के ससुर रामप्रसाद चाहते थे की गांव में उनकी थोड़ी-बहुत जमींन है जिसे बेचकर शहर में घर खरिदा जा सकता था। इससे परिवार को बड़ी मदद मिल जायेगी। मगर इसके लिए आशा तैयार नहीं थी। पूर्वजों की संपत्ति बेचकर स्वयं को सुखी करना उसे स्वीकार नहीं था। प्रतिवर्ष उसी कृषि से खाने योग्य अनाज की आपूर्ति निरंतर जारी थी। पुरखों की भुमि का यह बहुत बड़ा योगदान था। जिसे आशा उपकार ही मानती थी। उसने तय किया कि अब वह भी काम करेगी। योगेश ऑटो रिक्शा ड्राइवर था। उसका जब मन करता तब वह आॅटो चलाता वरना अपने दोस्तों के साथ यहाँ-वहां घुमने-फिरने निकल जाता। ऑटो की कमाई भी वह शराब और दोस्तों के संग पार्टी करने में लुटा देता। आशा अब और सह नहीं सकती थी। उसने योगेश के दोस्तों को साफ-साफ कह दिया की वे लोग योगेश से दुर ही रहे अन्यथा वो उनकी शिकायत उनकी पत्नियों से करेगी। वह भी उनके घर आकर, सारे मोहल्ले के सामने। योगेश के दोस्त झेप गये। उन्होंने योगेश से दुरी बनाना ही उचित समझा। वे लोग अब योगेश से काम पुर्ती ही बात करते। योगेश का उनसे मिलना-जुलना भी कम हो गया। आशा ने बड़े दिनों बाद चैन की सांस ली।
एक रात योगेश बारह बजे तक घर नहीं आया। आशा नाम की वह वीरांगना आधी रात में ही योगेश को ढूंढने निकल पड़ी। सभी जगह उसे खोजा। किन्तु योगेश इतनी सरलता से मिलने वाला नहीं था। वह शराब के ठेके पर नशे में धुत पड़ा था। आशा ने योगेश को कंधे की सहायता से सहारा दिया। सम्मुख खड़े पुरूष मुक दर्शक बनकर देखते रहे। किसी न आकर आशा की मदद नहीं की। छींटाकसी की सो अलग। वे लोग आशा पर कमेंट्स कर रहे थे। आशा ने इग्नोर करना ही सही समझा। जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो जम़ाने का क्या दोष देना? योगेश से रहा नहीं गया। वह उन शराबियों को दण्डित करना चाहता था। मगर उसके पैर जमीन पर टिक नहीं पा रहे थे। थोड़ी हिम्मत कर वह आगे बड़ा भी तो कुछ ही दुरी जाकर गिर पड़ा। सम्मुख खड़े युवक हंस पड़े। आशा ने पुनः योगेश को संभाला। योगेश अपनी पत्नी से आंखें नहीं मिला पा रहा था। आज उसी के कारण आशा को इतनी शर्मिंदिगी झेलना पड़ी थी। रात के दो बजे वह योगेश को सही सलामत लेकर घर पहुंची। योगेश बिस्तर पर जाते ही ढेर हो गया। आशा की आंखे भीगी हुई थी मगर सम्मुख खड़े सास-ससुर को उसने कुछ-भी जाहिर नहीं होने दिया।
युं तो योगेश के कारण आशा ने बहुत बार रात जागरण किया था। कई बार वह उसे शराब के नशे में घर तक लायी थी। किन्तु आज अन्य शराबियों द्वारा छेड़छाड़ की घटना से आशा अंदर तक हील गयी थी। पुरी रात उसने आसुंओं में काट दी।
आशा के लिए सुबह का सुरज आज भी वैसा ही था। हर रोज़ की तरह। किन्तु आज का योगेश कुछ अलग था। शांत और चुपचाप। यह किसी तुफान के आने का संदेश तो नहीं था? आशा नहीं चाहती थी की योगेश आज काम जाए। उसने जिद कर योगेश को घर पर ही रूकने के लिए मना लिया। उसे डर था कि रात वाली घटना के आक्रोश से आन्दोलित योगेश उन लोगों से बदला लेने अवश्य जायेगा। हुआ भी वही। आशा को कुछ काम के चलते घर से बाहर जाना पड़ा। योगेश ऑटो लेकर चल पड़ा। वह शराब के ठेके पर उन लोगों को ढुंढ रहा था। मगर जिन युवकों ने उसकी पत्नी को छेड़ा था उनका पता वहां से नहीं मिला। वह अन्य जगह उन युवकों की तलाश करने लगा। किसी ने योगेश को बताया की वे लोग ऑटोडील का व्यवसायी है। पुरानी-गाड़ीयों की खरीद-फरोख्त करते है। पुरानी गाड़ीयों की दुकानें पास ही थी। योगेश के सिर पर खुन संवार था। उसने उन युवकों को आखिर ढुंढ ही निकाला, जिसने पिछली रात उसकी पत्नी आशा के साथ बद्तमीज़ी की थी।
योगेश ने वहां मोटरसाइकिल की दुकान पर एक युवक को पहचान लिया। वह ऑटो एक ओर खड़ी कर उस युवक को मारने दौड़ा। संयोग से वहां से गुजर रही आशा ने योगेश की ऑटो वहां देख ली। उसे गड़बड़ी की आशंका हुई। वह तुरंत ऑटो के पास पहूंची। ऑटो में कोई नहीं था मगर वहां कुछ दुर सामने ही एक दुकान पर योगेश दिखाई दिया। वह एक युवक से मारपीट कर रहा था। आशा तुरंत वहां पहूंची। उसने योगेश को उस युवक से अलग किया और अपने पति के किये पर क्षमा मांगी। हालांकी वहां काम कर रहे युवक, योगेश और आशा को पहचान चूंके थे। उन्हें डर था कि बात पुलिस तक न चली जाये? किन्तु आशा ने उन्हीं से माफी मांगकर उन लोगों को अपने दुकान मालिक के सामने शर्मिंदा होने से बचा लिया था।
योगेश ऑटो पर आ लौट आया। आशा ने उसे घर चलने को कहा। ऑटो स्टार्ट हुआ ही था कि वही लोग उन दोनों के पा आ पहूंचे। वे कल रात वाले अपने कृत्य पर पछता रहे थे। उन्होंने आशा और योगेश से हाथ जोड़कर क्षमा मांगी। आशा ने प्रसन्न होकर उन सभी को माफ कर दिया। योगेश सामान्य हो गया। वह अपनी पत्नी पर गर्व कर रहा था।
दोनों खुशी-खुशी घर पहूंचे। गांव से सरपंच साहब आये हुये थे। आशा ने उन्हें प्रणाम किया और किचन में चली गयी।
सरपंच साहब चाहते थे कि रामप्रसाद अपनी हाइवे की जमींन उन्हें बेच दे। बदले में बाज़ार भाव से अधिक मुल्य का प्रस्ताव था उनके पास। इससे पहले भी गांव के बहुत से समृद्ध लोग यह जमींन खरिदने का प्रस्ताव लेकर आ चूके थे। किन्तु आशा की असहमति के आगे किसी की एक न चली। सरपंच साहब भी यही चाहते थे। किन्तु आशा ने उनसे भी क्षमा मांग ली। आखिर इतने अधिक प्रस्ताव उनकी थोड़ी सी जमीन के लिए क्यों आ रहे थे? इस बात ने आशा को सोचने पर विवश कर दिया। आशा ने गांव जाकर इस बात का रहस्य जानने का विचार किया। योगेश और आशा गांव पहूंचे। थोडी-सी पुछताछ पर उन्हें पता चला की गांव के हाइवे वाली जमींन पर पेट्रोल पम्प खोले जाने की सरकारी तेल कम्पनीयों की योजना थी। सरपंच साहब को पक्की खब़र थी की तेल कम्पनीयां रामप्रसाद की भुमि पर पेट्रोल पम्प खोले जाने की इच्छुक थे। इसीलिए वे उस जमींन को हथियाने में अधिक रूचि दिखा रहे थे।
आशा की योजना सुनकर योगेश के कान खड़े हो गये। वह अपनी जमींन पर स्वयं का पेट्रोल पम्प खोलने का मन बना चुकी थी। उसने निविदा की शर्तों का अध्ययन कर स्थानीय बैंक में लोन का आवेदन कर दिया। तेल कम्पनी के इन्स्पेक्टर ने निरीक्षण में जमींन पर मालिकाना हक़ आशा और उसके पति योगेश का स्वीकार किया। बैंक ने ॠण की स्वीकृति दे दी। पेट्रोल पम्प का कार्य शुरू हुआ। किन्तु सरपंच साहब आसानी से हार मानने वाले नहीं थे। वे न-न प्रकार से आशा को परेशान करने लगे ताकी घबरा कर वह यह सब छोड़कर पुनः शहर चली जाये। दिन-भर वहां जो भी काम होता, अर्ध रात्री में सरपंच के आदमी वहां पहूंचकर बहूत उत्पाद मचाते। अध कच्चे निर्माण को ध्वस्त कर दिया जाता। आशा को बहुत अधिक आर्थिक नुकसान हो रहा था। इन सबके बाद भी आशा ने हिम्मत नहीं हारी। वह हर उस शख़्स से लोहा लेने को तैयार थी जो उसके पेट्रोल पम्प बनने में बाधा उत्पन्न कर रहा था। उसके इरादे अटल थे। उसने पुलिस से सहायता मांगी। अपने परिवार को लेकर आशा ने पेट्रोल पम्प निर्माण स्थली पर ढेरा जमा लिया। जहां से वह काम-काज की सतत निगरानी कर रही थी। सरपंच के आदमी पुलिस के हत्थे चढ़ गये थे। उनमें सरपंच का बेटा भानु भी था। आशा ने पेट्रोल पम्प बनने तक किसी भी तरह का समझौता करने से इंकार कर दिया। सरपंच साहब शांत बैठ गये। क्योंकी उनके बेटे की जेल से रिहाई आशा के बयान पर ही निर्भर थी।
आशा की परेशानियां धीरे-धीरे कम हो रही थी। पेट्रोल पम्प तेजी से आकार ले रहा था। रामप्रसाद और नम्रता के हाथों पम्प का उद्घाटन किया गया। योगेश वर्दी पहनकर वाहनों में पेट्रोल डाल रहा था। आशा मैनेजर बनकर वहां की सभी व्यवस्थाएं सुचारू रूप से संभाल रही थी। आशा ने वह कर दिखाया था जिसे विचार कर भी पाना असाधारण बात नहीं था। जल्द ही उसने अपनी सास को दादी बनने का समाचार सुनाया। रामप्रसाद और नम्रता प्रसन्न हो उठे। उनकी बहु आशा बहु न होकर अब उनकी बेटी बन चूकी थी।

समाप्त
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प्रमाणीकरण-- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।


©®सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखक--
जितेन्द्र शिवहरे
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