पूर्व कथा जानने के लिए पिछले अध्याय अवश्य पढ़ें।
सातवां अध्याय
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गतांक से आगे….
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सात नम्बर कमरे में रहती हैं शोभिता एवं विमलेश जी।
शोभिता एक बावन वर्षीय धीर-गम्भीर अविवाहित महिला हैं।परिवार में माता-पिता एवं एक छोटा भाई थे।पिता प्राइमरी स्कूल में अध्यापक थे,तथा मां सीधी-साधी घरेलू महिला थीं।कस्बा शहर की तरफ विकास कर रहा था, वहीं पिता ने एक छोटा सा घर बनवा लिया था।
शोभिता गोरी-चिट्टी सुंदर ,मध्यम कद की किशोरी थी।16 वर्ष की होने के बाद भी जब मासिक धर्म प्रारंभ नहीं हुआ तो चिंतित मां ने डॉक्टर को दिखाया।जांचों से ज्ञात हुआ कि गर्भाशय अल्प विकसित हैं।चिकित्सा के पश्चात भी गर्भाशय का विकास कुछ खास नहीं हो पाया।अतः डॉक्टर ने स्पष्ट कह दिया कि शरीरिक विकास तो सामान्य रूप से होगा,बस कभी मां नहीं बन सकती।शोभिता ने वैवाहिक जीवन के सपने ही देखने बन्द कर दिए।देखने में वह जितनी सुंदर थी, उतनी ही मीठी आवाज थी उसकी,उसे संगीत में बेहद रूचि थी, अतः BA करने के बाद संगीत से प्रभाकर कर एक स्कूल में संगीत की शिक्षिका हो गई।
रिश्तेदारों, हितैषियों ने उसके माता-पिता को सलाह दिया कि किसी बालबच्चेदार विधुर या तलाकशुदा से शोभिता का विवाह कर दें,किंतु शोभिता ने अविवाहित रहने का फैसला कर लिया, क्योंकि वह अच्छी तरह जानती थी कि समाज मां न बन पाने वाली स्त्रियों के ऊपर यह आरोप लगाने से नहीं चूकता कि जो खुद तो मां बन नहीं सकती वह सौतेले बच्चों को क्या प्यार देगी।
उसने घर में भी आसपास के बच्चों को संगीत एवं नृत्य की शिक्षा देना प्रारंभ कर दिया।यथासमय छोटे भाई की शिक्षा पूर्ण होने के बाद जॉब लगने के पश्चात सुयोग्य कन्या से विवाह संपन्न हो गया।तदुपरांत वह एक बेटी का पिता भी बन गया।भाई अपने परिवार के साथ कार्यस्थल शहर में निवास करता था और तीज-त्योहार पर आ जाता था।माता-पिता शोभिता के भविष्य के लिए चिंतित रहते थे कि उसका उनके बाद क्या होगा क्योंकि वे अच्छी तरह से जानते थे कि भाई के साथ शोभिता का निर्वाह सम्भव नहीं।
खैर, समय तो अपनी गति से प्रवाहमान रहता है।पहले पिता का स्वर्गवास हो गया।उनके गुजरते ही भाई अपने स्वरूप में आ गया, जमां-पूंजी एवं मकान अपने नाम करवाने के लिए मां पर भावनात्मक दबाव डालने लगा।वो तो शायद पिता को अपनी मृत्यु एवं बेटे के मनोभावों का पूर्वाभास हो गया था, अतः कुछ ही समय पूर्व उन्होंने शोभिता तथा उसकी मां के संयुक्त नाम से लगभग 10 लाख रुपये प्रधानमंत्री पेंशन योजना में जमा कर दिया था।2-3 वर्ष बाद ही मकान एवं शेष रकम तो हथिया लिया।आए दिन उन पैसों के लिए भी मां-बहन से क्लेश करता रहता था।
8-9 साल बाद मां भी स्वर्गवासी हो गईं।कुछ माह पश्चात ही भाई ने शोभिता से साफ कह दिया कि वह मकान बेचकर फ्लैट लेना चाहता है, अतः वह अपनी व्यवस्था कहीं औऱ कर ले।स्वार्थी भाई ने एक बार भी नहीं सोचा कि अकेली बहन कहां जाएगी, भावज ने तो फिर भी अपने साथ रहने की पेशकश की थी, परन्तु शोभिता के स्वाभिमान ने इसकी इजाजत नहीं दी।अतः वह पास में ही दो कमरों का घर किराए पर लेकर शिफ्ट हो गई।भाई ने शीघ्र मकान बेच दिया।इतने पर भी उसे संतोष नहीं था, आए दिन आकर उन पैसों के लिए झगड़ता रहता था।वो तो झुंझलाकर दे भी देती, परन्तु मां ने अपनी कसम दे रखी थी कि वह उसका अधिकार है, जिसे अपने जीते जी वह किसी को भी न दे।
अन्ततः आजिज आकर शोभिता बिना किसी को बताए चुपचाप सांध्य-गृह में शिफ्ट हो गई।अब यहां पर अपने आसपास के बच्चों को संगीत सिखाना प्रारंभ कर दिया है।
मैंने अंडरग्राउंड में एक बड़ा सा हॉल बनवा रखा है, जिसमें माह में एक बार हम कथा-सत्संग का आयोजन करते हैं।
शोभिता के आने के बाद ही हमारे मन में कोचिंग का विचार आया था।गरीब बच्चों को निःशुल्क हमने पढ़ाना शुरू कर दिया था, जिससे हमारा समय भी अच्छा व्यतीत हो जाता था और साथ ही इस उम्र में हमें अपनी उपयोगिता का अहसास हमारे अंदर एक उत्साह का संचार करता था।
क्रमशः ……
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