यादों के झरोखे से Part 6
मेरे जीवनसाथी की डायरी के कुछ पन्ने - बोकारो स्टील प्लांट का इंटरव्यू और ऑस्ट्रेलिया जाने वाले जहाज पर पोस्टिंग
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12 सितम्बर 1968
देश सेवक टैंकर का तेल बजबज में खाली करने के बाद 12 बजे बजबज पोर्ट से खिदिरपुर पोर्ट कोलकाता के लिए रवाना हुए . शाम होते होते हम कलकत्ता में थे .
1 अक्टूबर 1968
दशहरा में छुट्टी ले कर बाबा से मिलने रांची आया हूँ . बाबा ने बताया बोकारो स्टील प्लांट से इंटरव्यू आया है और इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड से नियुक्ति पत्र भी . मैंने कहा बोर्ड का पे बहुत कम है मैं शिपिंग में ठीक हूँ . फिर बाबा ने कहा कम से कम कलकत्ता जाते समय रास्ते में बोकारो का इंटरव्यू देते जाओ . घर के पास सरकारी नौकरी होगी .
4 अक्टूबर 1968
बोकारो में इंटरव्यू देने के बाद आज कलकत्ता लौटा आया . बहुत थका था मैंने ड्यूटी नहीं ज्वाइन की .
15 नवंबर 1968
आज जब वर्कशॉप गया कैप्टन बत्रा ने बुला कर कहा “ प्रकाश , गुड न्यूज़ फॉर यू . कल से तुम्हें वर्कशॉप नहीं आना है . उसने दो पत्र दिए एक मर्केन्टाईन मेरिन डिपार्टमेंट ( MMD ) के नाम और दूसरा कैप्टन शिप “ MS विश्व विकास “ के नाम . मेरी पोस्टिंग विकास पर हो गयी . बत्रा ने बताया दो तीन दिन में में MMD से अपने सेलिंग डाक्यूमेंट्स और CDC बनवा लो और शिप पर रिपोर्ट करो जल्द से जल्द . “
मैंने CDC के बारे में पूछा तो कहा “ एक तरह से सेलर्स के लिए इसे पासपोर्ट समझो . इसे लेकर शिप जहाँ कहीं भी जाये तुम जा सकते हो . पोर्ट के बाहर निकल कर देश घूम सकते हो किसी वीजा की जरूरत नहीं होती है . “
आज मैं बहुत खुश था . कैप्टन बत्रा ने जब कहा कि विकास नया शिप है और कुछ दिनों में अपने फर्स्ट वॉयेज पर सेल करेगा . अभी इसका रूट मुझे पता नहीं है , बॉम्बे हेड ऑफिस से पूछना होगा . खैर अब मेरी विदेश यात्रा तय थी .
20 नवंबर 1968
मैं खिदिरपुर डॉक गया और मैंने कैप्टन “ MS विश्व विकास “ को शिप पर रिपोर्ट किया . उसने मुझे चीफ इंजीनियर को रिपोर्ट करने को कहा . चीफ ने मुझे मेरा केबिन नंबर बता कर कहा “ थोड़ी देर रिलैक्स कर इंजन रूम में जा कर सेकंड इंजीनियर को रिपोर्ट करो . ऑफिसर्स डाइनिंग रूम में जा कर लंच कर सकते हो पर वहां फुल यूनिफॉर्म में जाना होगा . “
मैं अपना केबिन देख कर बहुत खुश हुआ . अपर फ्लोर पर वेल फर्निश्ड विथ अटैच बाथ . इंटरटेनमेंट के लिए एक बड़ा इम्पोर्टेड रेडिओ भी था . थोड़ी देर में फ्रेश हो कर मैंने यूनिफॉर्म पहना पहली बार सफ़ेद हाफ पेंट , सफ़ेद हाफ शर्ट , काले जूते और सफ़ेद मोज़े . जैसे ही केबिन से बाहर निकला बगल वाले केबिन से फोर्थ इंजीनियर भी निकला था . वह भी डाइनिंग रूम जा रहा था उसने कहा “ लंच के लिए जा रहे हो ? “
“ यस . “
“ यस सर कहो . मैं तुम्हारा 4th इंजीनियर हूँ . तुम्हारा एपोलेट्स कहाँ हैं ? तुम्हारे शर्ट के दोनों बाजू में जो बटन होल्स हैं उनमें एपोलेट्स लगाओ तब डाइनिंग रूम में आना . “
“ मैं समझा नहीं . “
“ तुम्हारे ड्रावर में एक जोड़े ब्लू एपोलेट्स होंगे उन्हें शर्ट में लगा कर आओ . “
पहली बार किसी शिप के ऑफिसर्स डाइनिंग हॉल में गया . देश सेवक टैंकर पर कुछ दिनों के लिए था तो वहां अपने बॉयलर सूट में ड्यूटी मेस में ही खाना होता था . डाइनिंग हॉल किसी स्टार होटल के डाइनिंग रूम जैसा सजा था बस साइज में थोड़ा छोटा था . टेबल पर बैठ कर मेनू देखा और स्टेवर्ड को ऑर्डर दिया . लंच कर थोड़ा आराम कर इंजिन रूम जा कर सेकंड इंजीनियर को रिपोर्ट किया . उसने कहा “ जेनरेटर्स , पंप्स , कंप्रेसर्स , बॉयलर, इंजन आदि के प्रेशर और टेम्परेचर नोट कर लॉग बुक में इंट्री करो . फिर डेक पर जा कर सारे ऑयल टैंक्स की सॉउन्डिंग्स रीडिंग भी लोग बुक में इंटर करना . “
तिथि स्पष्ट नहीं
आज हमारा जहाज कलकत्ता से बॉम्बे के लिए सेल करेगा . सुबह 8 - 12 का वाच मुझे थर्ड इंजिनीरिंग के साथ करना है . थर्ड ने मुझे मेन इंजन स्टार्ट करने के लिए कहा . जैसे जैसे ब्रिज से कॉल आती वैसे वैसे स्पीड डेड स्लो , स्लो , फ़ास्ट करता गया . फिर जब दोबारा रात 8 - 12 के वाच में आया तो ब्रिज से फुल अहेड का सिग्नल आया . शिप अब नदी से होकर बंगाल की खाड़ी में प्रवेश कर रहा था . दरअसल जहाज जब सेल कर रहा होता इंजीनियर को चार चार घंटे की दो वाच ( शिफ्ट ) करनी पड़ती है क्योंकि इंजन रूम में लगातार 8 घंटे काम करना बहुत कठिन है .
दिसंबर 1968 तिथि स्पष्ट नहीं
आज पांच दिनों की समुद्री यात्रा के बाद कलकत्ता से बॉम्बे पहुंचा हूँ . मैंने कल्पना नहीं की थी कि समुद्री यात्रा इतनी कष्टप्रद होगी . वैसे तो कलकत्ता से बॉम्बे हवाई जहाज से करीब 2 घंटे और ट्रेन से भी करीब 32 घंटे में पहुँच जाते हैं . ऊपर से भारत के तीनों सागर - बंगाल की खाड़ी , इंडियन ओशन और अरब सागर की परिक्रमा करने के बाद बॉम्बे पहुंचे हैं . सागर की लहरों पर ऊपर नीचे उछाल जिसे हम सेलर पिचिंग कहते हैं और बाएं दाएं डोलने जिसे सेलर रोलिंग कहते हैं ने नाक में दम कर रखा था . मैं खाना भी ठीक से नहीं पचा सका था , बार बार मिचली या उल्टी आती थी . रोलिंग और पिचिंग के कारण ड्यूटी पर इंजन रूम में मुश्किल से अपना बैलेंस बना सकता था हालांकि इन पांच दिनों में कुछ अभ्यस्त हो गया था . साथियों ने कहा कि अब तीन समुद्रों की यात्रा के बाद तुम्हें आगे और परेशानी नहीं होगी , शुरू के कुछ दिनों में ऐसा होता है .
बॉम्बे पोर्ट पहुँचने के बाद अभी कुछ देर पहले ही पता चला कि हमारा जहाज विश्व विकास एक सप्ताह के बाद ऑस्ट्रेलिया के लिए रवाना होगा . मेरी ख़ुशी का ठिकाना न था - मेरे लिए ड्रीम कम ट्रू था . दूसरी ख़ुशी की बात यह थी कि वहां मेलबॉर्न में मेरी पेन फ्रेंड डॉर्थी ससेला रहती थी .
पोर्ट में 12 घंटे की शिफ्ट होती है सुबह 6 से शाम 6 फिर शाम 6 से सुबह 6 बजे तक . इतफ़ाक़ से मुझे नाईट शिफ्ट मिली . मैं खुश हूँ कि सवेरे तैयार हो कर बड़े बाबा के घर चला जाऊँगा और घर का बनाया खाना खाऊंगा फिर शाम 6 के पहले शिप पर आ जाऊंगा . चार पांच घंटे वहीँ सो लूँगा .
5 दिसंबर 1968
तीन दिन बाद ही चीफ की डांट पड़ी “ तुम बिना बोले पूरे दिन शिप से बाहर सिटी में रहते हो . पहली बात अपने सीनियर को बता कर जाया करो और दूसरी बात कभी पूरे दिन के लिए शिप से बाहर नहीं जाना . कभी भी इमरजेंसी हो सकती है . शार्ट नोटिस पर सेल करना पड़े तब तो तुम यहीं बॉम्बे में रह जाओगे . “
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