यादों के झरोखे से Part 5 S Sinha द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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यादों के झरोखे से Part 5

यादों के झरोखे से Part 5

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मेरे जीवनसाथी की डायरी के कुछ पन्ने - पहला वेतन मिलने के समय का दिलचस्प ड्रामा

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3.जून 1968


आज मैं बहुत खुश हूँ . मुझे शिपिंग ऑफिस जाना है अपना पहला वेतन लेने . मैं एकाउंट्स ऑफिस गया अपना पेमेंट लेने . अकाउंटेंट ने कहा आपको पे नहीं देने का आर्डर मिला है . मेरे कारण पूछने पर मुझे पता नहीं है बोला और चीफ से मिलने को कहा . मैं बहुत डर गया था . मुझे लगा मेरी ट्रेनिंग में कुछ कमी रही होगी या कैप्टन बत्रा ने शिकायत की होगी . मन में भय था कि आज नौकरी से हाथ न धोना पड़े . खैर डरते डरते मैं चीफ के चैंबर में गया .


“ वेल , मिस्टर प्रकाश . प्लीज टेक योर सीट . हाउ आर यू डूइंग . “ चीफ ने कहा फिर इंटरकॉम पर दो कप कॉफ़ी भेजने को कहा .


उसने ड्रावर से एक चिठ्ठी निकाली , तभी कॉफ़ी आ गयी . उसने कहा “ टेक योर कॉफ़ी . “


फिर चीफ ने कहा “ शिपिंग मिनिस्टर साहब के यहाँ से यह चिठ्ठी आयी है , इसे पहचानते हो ? “


चीफ टेबल की दूसरी ओर बैठा था , मैं ठीक से लेटर देख नहीं सका था सो बोला “ नो सर . “


उसने चिठ्ठी मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा “ ब्लडी लुक . ये उसी चिठ्ठी की कॉपी है जिसे तुमने मिनिस्टर को लिखा था . “


मेरे पाँव के नीचे की जमीन खिसक गयी , मैं समझ बैठा आज तो नौकरी गयी . फिर कुछ शांत हो कर कहा “ लुक , शिपिंग में हमलोग मेरिन इंजीनियर्स को लेते हैं . ये फर्स्ट टाइम है जो ग्रेजुएट इंजीनियर को लिया जा रहा है . एक तो शिपिंग में मेरिन इंजीनियर्स की कमी है और दूसरे ग्रेजुएट इंजीनियर्स को नौकरी नहीं मिल रही है . सरकार का ही फैसला था कि तुमलोगों को ले कर कुछ ट्रेन कर शिप पर भेज दिया जाए . इस तरह हमारा और तुम्हारा दोनों का काम हो जाता . समझे कि नहीं . “


“ यस सर “ मैंने डरते डरते कहा


“ तुमने मिनिस्टर को यह चिठ्ठी क्या समझ कर लिखी थी ? “


“ सर मैं इंटरव्यू में पूछे गए नॉन टेक्निकल प्रश्नों से समझ बैठा कि इंटरव्यू बस एक रस्म के लिए है , नौकरी तो नहीं मिलने वाली है . “


चीफ हँसने लगा तो मेरे जान में जान आयी . वह बोला “ हम मेरिन इंजीनियर्स स्कूलिंग के बाद चार साल मेरिन इंजीनियरिंग का कोर्स करते हैं . इसमें इंजिन्स , ड्राइंग आदि के बारे में जितना हम पढ़े हैं उस से कहीं ज्यादा ग्रेजुएट इंजीनियर्स पढ़ते हैं . हमें खास कर नेवल आर्किटेक्चर , शिप बिल्डिंग के बारे में पढ़ना पड़ता है . उनके बारे में तुम लोगों से पूछता तो फिर तुम वही सोचते और मिनिस्टर को लिख देते . है न . “


मुझे खामोश देख कर बोला “ जो टेक योर पे एंड एन्जॉय . दो तीन महीने में हमारा नया जहाज आ रहा है , उसी पर तुम्हारी पोस्टिंग होगी . नए शिप में मेंटेनेंस का कोई प्रॉब्लम नहीं होगा और काम भी सीख जाओगे . “

उसने इंटरकॉम पर अकाउंट को पे देने के लिए कहा .


मैंने अपना पहला वेतन लिया और मैं ख़ुशी ख़ुशी गार्डन रीच वर्कशॉप वापस आया . रास्ते भर मैं नए जहाज और विदेश यात्रा के बारे में सोचता रहा . मैं तो पायलट बनना चाहता था पर उसके लिए मेरी हाइट कम पड़ रही रही थी . खैर अब शिप चलाने को मिलेगा .

7 सितम्बर 1968


कैप्टेन बत्रा ने मुझे अपने ऑफिस में बुला कर कहा “ कल से आई मीन मंडे 9 th से तुम वर्कशॉप नहीं आओगे . तुम्हें जा कर हमारे टैंकर “ देश सेवक “ के कैप्टन और चीफ इंजीनियर को रिपोर्ट करना है . अब तुम्हारी ट्रेनिंग शिप पर होगी . “


9 , सितम्बर 1968


हुगली नदी में टैंकर “ देश सेवक “ एंकर डाले खड़ा था . किनारे से एक बोट से मुझे वहां तक जाना था . जहाज से एक सीढ़ी लटकी थी , उसी पर चढ़ कर जहाज पर जाना था . हुगली की तेज लहर पर बोट डोल रहा था मुझे चढ़ने में डर लग रहा था . तभी बोट वाले ने कहा “ यह तो कुछ नहीं है , समुद्री लहरों पर भी इसी तरह चढ़ना होता है जब जहाज बीच समुद्र में लंगर डाले खड़ा रहता है “


खैर दो तीन प्रयास के बाद मैंने हिम्मत कर सीढ़ी को पकड़ा और जहाज पर गया . चीफ इंजीनियर को रिपोर्ट किया . उसने कहा “केबिन में जा कर ड्रेस चेंज करो और बॉयलर सूट पहन कर इंजन रूम में जा कर ड्यूटी वाच इंजीनियर को रिपोर्ट करो . “


मैंने अपना सफ़ेद बॉयलर सूट पहना , यह ऊपर से नीचे तक वन पीस ड्रेस जिसे अक्सर गराज में मेकैनिक पहनते हैं . मैंने जैसे ही इंजन रूम का दरवाजा खोला कानों में शोर और नाक में तेल की अजीब सी एक गंध गयी . इंजन रूम के अंदर भी तीन फ्लोर थे , अलग अलग फ्लोर पर अलग अलग मशीन थे . दर्ज़नों सीढ़ियां उतरने के बाद सबसे निचले तल यानि जहाँ जहाज का विशाल दैत्याकार इंजन था . सब तरफ पाइपों का जाल , दर्जनों पंप , डीजल जेनरेटर्स , कंप्रेसर आदि मशीन थे .


मैं वाच इंजीनियर से मिला . उसने वहीँ खड़े खड़े जहाज के इंजिन बॉयलर आदि मशीनों की जानकारी दी और खुद घूम कर देख लेने को कहा . मेरी समझ में उस समय कुछ नहीं आया था .

10 सितम्बर 1968


आज सवेरे कैप्टेन का आर्डर आया कि शिप को कलकत्ता से कुछ दूर बजबज पोर्ट सेल करना है . मुझे जहाज के थर्ड इंजीनियर के इंजन रूम में जाना है . 8 बजे ब्रेकफास्ट के बाद मैं इंजन रूम में गया . थर्ड इंजीनियर ने पास में बुला कर समझाया और कहा “ थोड़ी देर में शिप सेल करेगा . सावधान रहना और ब्रिज से जैसे ही कॉल आयेगा मेन इंजन स्टार्ट करूँगा . ध्यान से देखना और समझ लेना फिर दोबारा कोई नहीं बताने जा रहा है . नेक्स्ट टाइम इंजन तुम्हें ही हैंडल करना होगा . तुम कंप्रेसर के पास रहना , कॉल मिलते ही उसे ऑन कर देना और मैं इंजन स्टार्ट करूँगा . “


ठीक 9 बजे मैंने कम्प्रेसर ऑन किया और उस हाई प्रेसर हवा को मेन इंजिन में जाते ही थर्ड इंजीनियर ने तेल खोला और विशाल इंजिन का पिस्टन दौड़ने लगा . फिर थर्ड इंजीनियर ने पास बुला कर स्पीड कंट्रोल करने का तरीका बताया . जैसे जैसे ऊपर ब्रिज से निर्देश मिलता स्पीड बढ़ाया गया और स्टीयरिंग सिस्टम से शिप की दिशा मेंटेन किया गया . करीब 5 घंटे बाद हम बजबज पोर्ट पहुंचे . इसे वॉयेज तो नहीं कह सकते पर यह हमारी पहली सेलिंग थी . बजबज एक छोटा और कलकत्ता का सहायक पोर्ट है . हमारे टैंकर में हजारों टन तेल थे , कुछ देर में हमने पम्प स्टार्ट किया तेल को शोर पर बने बड़े बड़े स्टोरेज बंकर में ट्रांसफर किया .

तो ये था जहाज पर पहला वर्किंग अनुभव .


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