अर्थ पथ - 17 - राष्ट्र प्रथम Rajesh Maheshwari द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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अर्थ पथ - 17 - राष्ट्र प्रथम

राष्ट्र प्रथम

हमें अज्ञानी नही होना चाहिए परंतु अपने ज्ञान की निपुणता का प्रदर्शन कब, कहाँ और किन परिस्थितियों में करना है, इसके लिए हमें सदैव सर्तक रहना चाहिए। हमें जीवन में अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए कभी कभी समय एवं परिस्थितियों के अनुसार समझौता भी करना पडता हैं। इसको लेकर कभी भी मन में हीन भावना नही आनी चाहिए। हमारी राह में कितनी भी बाधाएँ आ जाए परंतु यदि हम संकल्पित है तो हमारा संकल्प अवश्य पूर्ण होकर हमें सफलता प्राप्त होगी। हमें किसी भी काम का चयन करके एकाग्रतापूर्वक उसे पूर्ण करने का प्रयास करना चाहिए। जिस काम में आपको सफलता मिलने का विश्वास नही हो तो उसे करने का प्रयास मत कीजिए। हमारी तकदीर हमेशा साहस और समर्पण के गुणों पर निर्भर रहती हैं।

हमें अपने आप को दुस्साहस के कारण कठिनाईयों में फंसाने से ज्यादा अच्छा होता है कि ऐसे कार्यो से दूर रहना चाहिए और जीवन संघर्ष के लिए अपनी ऊर्जा को बचाए रखना चाहिए। जीवन में अपनी उपलब्धियों पर कभी घमंड नही करना चाहिए। आपकी योग्यता, परिश्रम और कार्य के प्रति समर्पण अपने आप ही लोगों की समझ में आ जायेगा और उनके मन में यह विश्वास उत्पन्न हो जायेगा की आप और बडी जवाबदारी भी सफलतापूर्वक निभा सकते है।

हमें किसी भी कार्य की पूर्णता हेतु जल्दबाजी नही करना चाहिए बल्कि उचित समय एवं परिस्थितियों का इंतजार करते हुए निर्णय लेकर उन्हें पूर्ण करना चाहिए। यदि हम इसका लाभ नही उठा पाये तो हमारी जिंदगी का सफर दुखों में बीत जायेगा। अपनी गलतियों को सुधारने की कोशिश के प्रति हमेशा समर्पित रहना चाहिए परंतु कभी कभी यदि भाग्य साथ नही देता है तो हमारी कोशिश व्यर्थ हो जाती है ऐसी परिस्थितियों में गलतियों को जैसे का तैसा छेाडकर उचित समय का इंतजार करना चाहिए। ऐसी समस्या पर ध्यान केंद्रित करने की गलती नही करें अन्यथा आप चिंता और तनावग्रस्त हो जायेंगे।

धनवान व्यक्ति के लिए कंजूसी का प्रदर्षन एक अवगुण हैं। जिससे उसकी प्रतिष्ठा को आघात पहुँचता है। यदि आप किसी मशहूर पिता की संतान है तो आपको उनके समकक्ष आने के लिए दोगुनी मेहनत करके उपलब्धियाँ हासिल करनी होंगी। किसी महान व्यक्तित्व का अनुसरण तभी तक करें जब तक जीवन में आपको सही दिशा नही मिल जाती है। हमें अपने लक्ष्य को पाकर एवं संतुष्ट होने के उपरांत भी विनम्रता, नैतिकता एवं सदाचार की भावना को नही छोडना चाहिए। मनुष्य का स्वभाव होता है कि उसकी अभिलाषाएँ कभी समाप्त नही होती, एक लक्ष्य को पाने के उपरांत वह दूसरे लक्ष्य के गंतव्य की ओर आगे बढ जाता है।

आपको ईनदारीमापूर्वक कार्यरत रहते हुए यह ध्यान रखना चाहिए कि आपके किसी निर्णय से कंपनी को कभी भी किसी प्रकार का नुकसान न सहना पडे इस संबंध में एक अनुभव राष्ट्र के प्रति प्रेम और कर्तव्य की स्वप्रेरणा देता है जिसे हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे है।

इन्जीनियर डी. सी. जैन एक सुपरिचित नाम है। वर्तमान में वे एक निजी इंजीनियरिंग कालेज के संस्थापक एवं निर्देशक हैं। वे मेकेनिकल इन्जीयनिरिंग की डिग्री लेकर 1957 में म.प्र.राज्य शासन की सेवा में आ गए। उन्हें 1994 में खरखरा परियोजना में कार्यपालन यंत्री के रूप में पदस्थ किया गया।

दुर्ग में स्थित भिलाई स्टील प्लांट में उसकी उत्पादन की क्षमता को दुगना करने के लिये अतिरिक्त पानी की आवश्यकता थी। इसके लिये खरखरा जलाशय का काम दो साल में पूरा करना था। भिलाई स्टील प्लांट रसिया सरकार ने भारत में लगाया था। इस परियोजना के लिये उनकी शर्त थी कि उनके देश की मशीनें खरीदकर उससे बांध बनाया जाये तथा भविष्य के लिये भी हैवी अर्थ मूविंग मशीनें उनसे ही खरीदी जायें। खरखरा जलाशय के लिये मषीनों का टेंडर रसिया सरकार को मिला और उसमें यह शर्त रखी गई कि उनकी मशीनों को चलाकर देखा जाएगा और अच्छी रिपोर्ट आने के बाद अन्य परियोजनाओं के लिये मशीनें खरीदी जावेंगी।

खरखरा परियोजना के लिये मशीनें विशाखापट्टनम पोर्ट के द्वारा खरखरा जलाशय पहुचाई गईं। इस काम को करने का दायित्व श्री जैन को सौंपा गया।

मशीनें मिट्टी खोदने और भरकर बांध के ऊपर लाकर डालने के काम में लगाई गईं। मशीनों के लोहे की क्वालिटी अच्छी नहीं थी। वे कुछ ही महीनों में एक के बाद एक खराब होने लगीं। श्री जैन और उनकी टीम के सदस्य बड़ी मेहनत और ईमानदारी से उन्हें सुधारते और चलाते किन्तु उनमें इतने अधिक मैन्यूफैक्चरिंग डिफैक्ट थे कि उनको ठीक करते-करते वे परेशान हो गए। इसी बीच दिल्ली से सेन्ट्रल वाटर पावर कमीशन से पत्र आये कि मषीनें कैसी चल रहीं हैं इसकी विस्तृत रिपोर्ट भेजो।

श्री जैन ने एक विस्तृत रिपोर्ट सेन्ट्रल पावन कमीशन नई दिल्ली को भेज दी। उस रिपोर्ट में लिखा कि मशीनों में बहुत खराबी है, इनका कार्य संतोषजनक नहीं है। दिल्ली में इस रिपोर्ट को पढ़ते ही हड़कम्प मच गया। ये मशीनें रसिया सरकार डालर के बदले रूपयों में दे रही थी। श्री जैन को रसिया एजेन्सी से चर्चा के लिये नई दिल्ली बुलाया गया। उन्होंने उनसे चर्चा में उन्हें बताया कि मशीनों में क्या-क्या खराबी है और मशीनें बिलकुल नहीं चलती हैं। उनके पास जितनी मशीनें थीं उनमें से तीस प्रतिशत ही चलती थीं बाकी हमेशा सुधार कार्य के लिये खड़ी रहती थीं। पुर्जे बदलने के लिये भारतीय एजेण्ट के फोरमेन और मेकेनिक भी हमेशा परियोजना में ही लगे रहते थे।

उन पर दबाव बनाया जाने लगा कि वे लिखकर दे दें कि खरखरा जलाशय में रसिया मशीनें संतोषजनक चल रही हैं। चारों ओर से दबाव के साथ लालच भी दिया जा रहा था किन्तु श्री जैन ने झूठा प्रमाणपत्र देने से साफ मना कर दिया। वे जानते थे कि उनके एक झूठे प्रमाणपत्र से करोड़ों रूपये मूल्य की बेकार मशीनें भारत में आ जाएंगी। उन्हें यह भी जानकारी मिली कि दूसरी परियोजना के लिये मशीनें काला सागर के बंदरगाह में रवाना होने के लिये खड़ी हैं। किन्तु टेण्डर की शर्तों के अनुसार जब तक खरखरा परियोजना के इन्जीनियर का प्रमाण पत्र नहीं आ जाता तब तक टेण्डर पर मशीनें भेजने के लिये हस्ताक्षर नहीं हो सकते।

श्री जैन का मत था कि देश प्रथम है, देश का विकास प्रथम है अतएव वे अपनी जिद पर अड़े रहे। उन्होंने झूठा प्रमाण पत्र नहीं दिया और अन्त में रसिया सरकार से अतिरिक्त मशीनों की खरीदी नहीं की गई। खरखरा जलाशय पूर्ण होने के बाद श्री जैन को स्थानान्तरित कर दिया गया। रसियन मशीनें जहाँ-जहाँ भेजी गईं सब खड़ी रहीं। कोई भी इन्जीनियर उनसे काम नहीं करा सका। अंत में उन मशीनों को तौलकर लोहे के भाव में रायपुर और दुर्ग के कारखानों से कबाड़ियों को बेच दिया गया।

श्री जैन को आज भी इस बात की अत्यधिक प्रसन्नता है कि उन्होंने अपने देश को करोड़ों की क्षति से बचा लिया। वे लालच में नहीं पड़े। वे आज भी कहते हैं- देश प्रथम है, देश का विकास प्रथम है।