यादगार दिवाली Ratna Raidani द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

यादगार दिवाली

राघव आज बहुत उदास था। वह अपने फ़ोन में अपने ऑफिस और कॉलेज के दोस्तों की अपने माता पिता, अपने परिवार के साथ दिवाली की तस्वीरें देख रहा था जो उन लोगों ने सोशल मीडिया पर शेयर की थी। वह एक के बाद एक सबके पोस्ट लाइक कर रहा था पर उसके पास शेयर करने के लिए कुछ भी नहीं था।

राघव ने जबसे होश संभाला था खुद को "पहली किरण" नाम के एक अनाथाश्रम में ही पाया था। वहाँ के दूसरे बच्चों के साथ-साथ, ५ साल की उम्र में राघव का दाखिला भी पास के ही एक सरकारी स्कूल में करा दिया गया था। जैसे जैसे वो बड़ा होता गया, पढ़ाई में उसकी रूचि भी बढ़ती गयी। हर बार अपनी क्लास में अव्वल आता था। उसकी इसी लगन को देखते हुए अनाथालय के ट्रस्टी कपूर साहब ने उसकी पढ़ाई का खर्चा अपनी और से करने का निर्णय लिया और उसे एक अच्छे स्कूल में भर्ती करा दिया। राघव ने भी उनको कभी निराश नहीं किया और खूब मन लगाकर पढ़ाई करने लगा। कपूर साहब के द्वारा की गयी आर्थिक सहायता और कई स्कॉलरशिप्स मिलने से राघव ने एक बहुत ही अच्छे कॉलेज से आर्किटेक्चर की डिग्री हासिल कर ली। उसके अच्छे मार्क्स और उसकी रचनात्मक प्रतिभा को देखते हुए एक बड़ी प्रसिद्ध कंपनी में उसे जॉब भी मिल गयी। बचपन में ब्लॉक्स से घर बनाते बनाते आज वो सच के घर और ईमारत बनाने लगा था। वह अपने काम में बहुत अच्छा था। नए नए आइडियाज के साथ ही छोटी छोटी बारीकियों का भी ध्यान रखता था। कंपनी की तरक्की के साथ ही साथ उसे भी तरक्की मिल रही थी। मैनेजमेंट उसके काम से काफी खुश थे। जॉब के दो सालों में ही उसने अपनी बचत से अपने लिए एक छोटा सा घर खरीद लिया। बरसो अनाथालय और होस्टल के कमरों में रहने के बाद अब उसे अपना घर मिल गया था। लेकिन उसकी ज़िन्दगी का अकेलापन अभी भी पहले ही जैसा था। परिवार की कमी उसे बहुत खलती थी।

कुछ दिनों के बाद राघव के बॉस ने उसे बुलाकर एक नए प्रोजेक्ट के बारे में बताया और उसे क्लाइंट से जाकर मिलने को कहा।

राघव अगले दिन बताये पते पर पहुँचा। वह "Second Innings" नाम का एक वृद्धाश्रम था। चौकीदार राघव को अंदर ऑफिस की तरफ ले गया। वहाँ पर एक बड़े उम्र के सज्जन राघव का इंतज़ार कर रहे थे। राघव को देखते ही उन्होंने मुस्कुराते हुए उसका स्वागत किया।

"नमस्ते सर। मेरा नाम राघव है।"

"नमस्ते, मेरा नाम शशिकांत है। कुछ साल पहले मैंने ये वृद्धाश्रम शुरू किया था। अभी यहाँ लगभग ३०-४० बुज़ुर्ग रहते हैं। दरअसल मैं इसी कैंपस में पीछे की तरफ एक और बिल्डिंग बनवाना चाहता हूँ और ऐसी व्यवस्था चाहता हूँ की ये दोनों बिल्डिंग्स आपस में जुडी हों। जिससे लोग आसानी से एक से दूसरी ओर जा सके।"

राघव ये सारी बातें अपनी डायरी में लिखता जा रहा था। वह अपने क्लाइंट की हर जरूरत का ध्यान रखते हुए नक़्शे बनाता था।

शशिकांत जी ने आगे बोलना चालू किया, "दूसरी बिल्डिंग की डिज़ाइन बच्चों को ध्यान में रखते हुए होनी चाहिए। साथ ही बाहर के बगीचे में एक तरफ का एरिया प्लेग्राउंड में बदलना है। और बाहर की तरफ ये जो बड़ा हॉल है उसमे ऐसा कुछ करना है कि बुजुर्ग और बच्चे दोनों एक साथ कुछ एक्टिविटीज़ कर सके।"

राघव के हाथ रुक गए। "मुझे लगा आप इस वृद्धाश्रम के लिए एक और विंग बनवाना चाहते हैं। पर डिज़ाइन बच्चों को ध्यान में रखकर बनानी है यह बात कुछ समझ नहीं आयी।"

"नहीं नहीं राघव जी, दूसरी बिल्डिंग उन बच्चों के लिए है जिनका इस संसार में कोई नहीं है। मैं इस वृद्धाश्रम के साथ ही एक अनाथाश्रम बनवाना चाहता हूँ।"

राघव आश्चर्यचकित होकर शशिकांतजी की तरफ देखने लगा। वृद्धाश्रम के साथ अनाथालय ऐसी परियोजना उसके लिए अनोखी थी।

"मैं समझ सकता हूँ आप क्या सोच रहे होंगे। मैंने जिसको भी अभी तक अपने इस विचार के बारे में बताया सबकी पहली प्रतिक्रिया ऐसी ही आती है।" शशिकांतजी ने राघव के चेहरे के भाव भांप लिए।

"माफ़ी चाहता हूँ सर। बस कभी ऐसा कुछ सुना नहीं इसलिए थोड़ा सा आश्चर्य हुआ।" राघव ने झेपते हुए कहा।

"अरे कोई बात नहीं राघव जी। देखिये, ये बुजुर्ग लोग भी अपने घर परिवार से दूर यहाँ अकेले रहते हैं। और ये बच्चे वो भी इस दुनिया में अकेले हैं। इसलिए मैंने सोचा क्यों न दोनों का अकेलापन इस तरह से दूर किया जाए। बच्चों को निश्छल प्यार और अनुभव की छत्र छाया मिल जाएगी और बुजुर्गों के जीवन में जो परिवार की कमी है वो पूरी हो जायेगी।"

राघव की आँखें खुली की खुली रह गयी। वो जानता था कि अनाथ होना, बिना प्यार के बड़े होना क्या होता था। शशिकांत जी की बातें सुनकर उसे लगा की काश वो भी ऐसी ही किसी जगह बड़ा हुआ होता, "सर आपकी ये सोच सच में बहुत अच्छी है। मेरे लिए अब ये सिर्फ एक प्रोजेक्ट ही नहीं बल्कि एक सपना है जिसे मैं साकार करने में अपनी पूरी क्षमता लगा दूंगा। आपके इस कदम से दोनों ही पीढ़ियों के जीवन में जो कमियां रहती हैं वो एक दूसरे के साथ से जरूर पूरी हो जाएँगी।"

शशिकांत जी को राघव के चेहरे पर भी वही उत्साह दिखा जो उनके मन में था इस सपने को लेकर।

कुछ दिनों में ही राघव ने अपनी लगन और प्रतिभा से एक सुन्दर नक्शा तैयार किया जिसे देखते ही शशिकांत जी की आँखें चमक उठी। जैसी उन्होंने कल्पना की थी बिलकुल वैसा ही था। कुछ ही महीनों में उस जगह की सूरत ही बदल गयी। राघव का प्रोजेक्ट के दौरान वहाँ आना जाना लगा ही रहता था। वहाँ के सभी लोगों से उसकी अच्छी पहचान हो गयी थी। लगभग साल भर में सब कुछ बनकर तैयार हो गया और प्रोजेक्ट पूरा हो गया। राघव के बॉस भी बहुत खुश थे राघव के काम को देखकर।

एक दिन बालकनी में बैठकर कॉफ़ी पीते पीते उसकी नज़र आस पास के घरों पर गयी जहाँ कुछ लोग अपने घरों में झालर लगा रहे थे। कोई रंगोली बना रहा था। कोई तोरण लगा रहा था। उसने फ़ोन देखा। आज फिर से दिवाली का दिन था। पर उदास होने की बजाय उसके चेहरे पर अचानक से मुस्कान आई और वो फटाफट तैयार होकर घर से बाहर निकल गया।

रास्ते से मिठाईयां, पटाख़े और बहुत सा समान लेकर वो सीधा "Second Innings Home" पहुँच गया। जी हाँ, अब उस जगह के नाम में home भी जुड़ गया था। अब वहां का माहौल पहले के जैसे ग़मगीन ना होकर चहल पहल और मुस्कुराहटों से भर गया था। इस दिवाली पर राघव ने भी अपने नए परिवार के साथ ली हुई तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर की क्योंकि ये दिवाली उसके लिए यादगार जो बन गयी थी।