उजाले की ओर - 11 Pranava Bharti द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर - 11

उजाले की ओर--11

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स्नेही मित्रो

आप सबको नमन

जीवन की आपाधापी कभी कभी हमें इतना निराश कर देती है कि हम उसमें उलझकर रह जाते हैं |हम ईश्वर के द्वारा प्रदत्त सुंदर शुभाशीषों को भी अनुभव नहीं कर पाते |त्रुटियाँ मनुष्य से होना स्वाभाविक है जिनके लिए ईश्वर हमें अवसर भी प्रदान करता है कि हम उनमें सुधार कर सकें |किन्तु हम उन्हें सुधारने की अपेक्षा उन्हें और भी अधिक जटिल बना देते हैं एवं अनेकों उतार-चढावों में भटकते रह जाते हैं | जीवन के ये उतार-चढ़ाव हमें किसी न किसी पर दोष आरोपित करवाते ही रहते हैं |हम यह नहीं सोच पाते कि जो कुछ भी हमारे साथ घटित होता है उसमें कहीं न कहीं हम स्वयं भी उसके उत्तरदायी होते हैं |कारण कुछ भी हो सकते हैं किन्तु हम उन कारणों में न जाकर केवल दूसरों पर दोषारोपण करके स्वयं को हल्का महसूस करने की चेष्टा करते रहते हैं|ऐसा करने से समस्या सुलझती नहीं बल्कि और भी बढ़ जाती है |

जीवन प्रत्येक मनुष्य को अवसर प्रदान करता है कि वह भूत को भुलाकर सकारात्मक भविष्य की ओर उन्मुख हो सके |किन्तु हम उस अवसर को भुनाते ही नहीं हैं |हमें लगता है कि हमारे सारे दुःख केवल दूसरों के द्वारा ही दिए गए हैं|जब तक हम दूसरों को अपनी समस्याओं तथा दुखों के लिए उत्तरदायी समझते हैं तब तक हम कभी भी उनमें से उबर नहीं सकते और उसीमें गोल-गोल घूमते रह जाते हैं जैसे एक मकड़ी अपने ही बनाए हुए जाल में कैद हो जाती है |

हम अपने मन में झांककर देखेंगे तो पाएंगे कि अपने वर्तमान के हम स्वयं ही उत्तरदायी हैं ,कोई अन्य नहीं |क्या यह सत्य नहीं है कि दूसरों पर दोष आरोपित करके भी हम सहज नहीं रह पाते ?बीता हुआ कल कभी वापिस नहीं आ सकता तब उसकी चिंगारियों से स्वयं को जलाने से भी कुछ लाभ नहीं हो सकता न ?

वास्तव में कोई भी व्यक्ति बुरा नहीं होता ,जन्म से तो वह परमपिता परमात्मा के द्वारा उनके ही गुणों से परिमार्जित होता है |वह उनके ही अंशों से बना है,उनके सभी गुण मनुष्य में हैं |ईश्वर सबको अवसर प्रदान करता है ,वह मनुष्य की दो मुट्ठियों में से एक में अच्छाई व दूसरी में बुराई भरता है |किस मुट्ठी में से मनुष्य को क्या और कैसे लेना है इसका चयन मनुष्य को स्वयं ही करना पड़ता है | मनुष्य गुणों का सदुपयोग करता है अथवा अपनी छोटी सी ज़िंदगी में दुर्गुणों को लेकर उसे समाप्त कर देता है ,यह उस पर ही निर्भर करता है |

हमें कोई नहीं सता सकता,हम स्वयं अपने आपको सताते हैं और इसका दोषारोपण अन्य कंधों पर रख देते हैं|एक बार ,केवल एक बार स्वयं में ईमानदारी से झाँककर देखने पर मनुष्य को समझ में आ जाता है कि उसकी त्रुटि कहाँ पर हुई है ? समस्या कहाँ पर है? और समस्या का समाधान देर-सवेर हो ही जाता है |बस, चेतना की आवश्यकता है | जब जागे तभी सवेरा ! पर हम जागें ,यह आवश्यक है | सोते रहने से जीवन अचेतनावस्था में न जाने कहाँ ? कब ? व्यतीत हो जाए ,पता भी नहीं चलेगा |

माना, दर्द होता हैवह पीड़ा देता है |समस्याएँ आती हैं ,हमें कमजोर बना देती हैं किन्तु ईश्वर ने आशा की ऎसी किरणें मनुष्य को सौंपी हैं जिनके सहारे वह पीड़ा व समस्याओं के बीहड़ बन से निकलकर पुन: स्नेह व प्रेम की सौंधी महक के साथ अपना जीवन बिता सके | कभी किसी पर दोषारोपण न करें ,कुछ घटनाएँ होनी सुनिश्चित होती हैं इसलिए वे घटित होती हैं ,उनकी पीड़ा बहुत देर तक गले से लगाकर रखने से बहुत देरी हो जाती है और कब जीवन कगार पर आ खड़ा होता है ,पता भी नहीं चलता |

दर्द क्या है एक ऐसा सिलसिला है

भिन्न-भिन्न रूपों में जो सबको मिला है

दर्द के बिन ज़िंदगी का क्या मज़ा है

दर्द है तो प्रीत का आँगन खुला है

जिस प्रकार अँधेरे के बाद उजाला,रात के बाद दिवस आता ही है ,उसी प्रकार पीड़ा के बाद स्नेह भी आता है ,इसका विश्वास रखना होगा |परमात्मा असीम कृपालु है,वह अपनी संतानों को भंवर में नहीं छोड़ता,हम उसके शुभाशीषों को अनुभव करके तो देखें |

आपकी मित्र

प्रणव भारती