BHAVBHUTI SAMIKSHATMAK TIPPANI-MAHESH ANAGH books and stories free download online pdf in Hindi

भवभूति’ समीक्षात्मक टिप्पणी- महेश अनघ

काव्य-प्रसूतिगृह का वास्तुविन्यास

समीक्षात्मक टिप्पणी

महेश अनघ

लेखक रामगोपाल भावुक का सध्यः प्रकाशित उपन्यास ‘भवभूति’ हिन्दी उपन्यासों की क्षीण होती श्रृंखला में एक अलग तरह की उपस्थिति दर्ज कराता है। श्री भावुक मूलतः एक गद्य लेखक हैं और भवभूति उनकी पाँचवी प्रकाशित कृति है। विश्व प्रसिद्ध संस्कृत कवि भवभूति के जीवन चरित एवं रचना प्रक्रिया को रेखांकित करता हुआ यह उपन्यासरस एक साग्रह प्रस्तुति है। उपन्यास की रचना के पीछे जो मूल घ्वनि है, वह है भवभूति की कर्मभूमि पवाया और उसी के निकट ग्राम सालवई में लेखक का जन्म स्थान होना। ऐसी संयोगिक स्थिति में लेखक और भवभूति का जो भावात्मक रिस्ता बनना था वही इसा पूरे उपन्यास में प्रतिध्वनित होता है।

निश्चित ही लेखक ने इस उपन्यास पर कलम चलाने से पहले इतिहास, संस्कृति, क्षेत्रीय भूगोल, पुरातत्व की गहन पडताल की है, साथ ही भवभूति की रचनाओं का सूक्ष्म अध्ययन भी समालोचनात्म दृष्टि से किया है। उनका यह श्रम, आमुख से लेंकर पूरे उपन्यास में फैला हुआ दिखाई देता है।

लेखक के सामने लक्ष्य है- महाकवि भवभूति की गरिमा से मण्डित कर्मभूमि पवाया को पुरातात्विक दृष्टि से रेखांकित करना। इसीलिए भवभूति के प्रारम्भिक और अन्तिम जीवनकाल को छोड़कर केवल उतने ही चरित्र का व्यापक विष्लेषण किया गया है, जितना पवाया से सम्बद्ध रहा। अर्थात उनकी प्रमुख कृतियों का रचना स्थल और वे पारिवारिक, भोगोलिक स्थितियाँ, जो उनके व्यक्तित्व मे संयोजित रहीं। पद्मावति(पवाया) में स्थित कालप्रियनाथ का ऐतिहासिक मन्दिर पूरे उपन्यास का केन्द्रिय घटक है। उसी से जुड़ी हुई राजनैतिक स्थितियाँ, कला एवं शिल्प की भावभूमि, आध्यात्म एवं शिक्षा संस्थान के माध्यम से कविप भवभूति कें सृजन की पृष्ठभूमि रूपांकित की गई है। इस तरह यह कहा जा सकता है कि भवभूति उपन्यास, कविता के जन्मस्थल- प्रसूति कक्ष का वैज्ञानिक वास्तु विन्यास है।

शोध की दृष्टि से यह एक श्रमसाध्य रचना है। तथ्यों की प्रमाणिकता के लिए लेखक ने अध्ययन भी किया है और व्यक्तिशःपर्यटन भी किया है। तात्पर्य यह है कि पूरी शक्ति से भवभूति की कर्मस्थली के पक्ष में तर्क जुटाये हैं, तथापि इस आग्रह के कारण उपन्यास की वस्तु का क्षरण हो गया र्है, साथ ही कथाशैली में व्यवधान उत्पन्न हुआ है।

उपन्यास में कथा अंतराल के माध्यम से सामकालीन प्रश्नों को भी उठाया गया है। जैसे कि पर्यावरण रक्षा, शिक्षा पद्धति, बलिप्रथा आदि पर गहन चिन्तन किया गया है, साथ ही आध्यात्मिक दर्शन के समान्तार भौतिकवाद(चार्वाक दर्शन) की संतुलित व्याख्या की गई है। यद्यपि, ये सारे प्रसंग मूल कथावस्तु से सीधे सम्पृक्त न होकर प्रसंगवश आये हैं। लेकिन, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के कथानक को समकालीन सरोकारों से जोड़ने का महत्वपपूर्ण कार्य करते हैं।

सम्भवततः कथक्रम में अभाव लक्षित होने के कारण लेखक ने भवभूति के नाटकों-मालती माधवम्, महावीर चरितम् और उत्तर रामचरितम् का सार संक्षेप भी दे दिया है।, जो उपन्यास का अंग न होने के कारण अनावश्यक प्रतीत होता है। इसके अतिरिक्त पूरे उपन्यास में लेखक अपने वैचारिक आग्रहों के साथ निरन्तर उपस्थित है? कभी परिस्थिति के विश्लेष्ण कें माध्यम से, तो कभी भाषण शैली में लेखक अपने मत का प्रवर्तन बार बार करता है, जिसके कारण कथानक के साथ अन्याय होता है।

कहानी एवं उपन्यास की वर्णण शैली में घटनायें तथा संवाद का महत्व होतार है। इस उपन्यास में संवाद शैली नगण्य है और घटनाएं रोचक नहीं हैं। ये दइोनों ही तत्व उपन्यास की पाठकीयता को शिथिल करते हैं। दूसरी उल्लेखनीय कमी है, भाषा पर लेखरक का नियन्त्रण न होना। यह उपन्यास मूलतः बोलचाल की भाषा में लिखा गया है, जिसमें हिन्दुस्तानी के अतिरिक्त क्षेत्रिय(पंचमहली) भाषा का भी मिश्रण है, यहाँ तक पाठक को कोई असुविधा नहीं है, किन्तु वर्तनी दोष का होना निश्चय ही पाठकीय असुविधा का कारण है।

समग्रतः भवभूति उपन्यास एक महान कवि के कृतित्व एवं व्यक्तित्व को निकट से जानने एवं समझने के लिए एक उपयोगी रचना है-इसमें मतभेद नहीं हो सकता।

38-शास्त्री नगर, ग्वालियर

आलोच्य कृति- भवभूति(उपन्यास)

लेखक -रामगोपाल भावुक

प्रकाशक -साक्षी प्रकाशन भोपाल

संस्करण - प्रथम 2000

मूल्य -अस्सी रुपये

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED