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भारतीय पुराणों में बहुत चर्चित संग्राम

भारतीय पुराणों में बहुत चर्चित संग्राम
भारतीय वेद और पुराणों में बहुत चर्चित संग्राम तो देवासुर संग्राम रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि लगभग बारह बार देवताओं और असुरों में संग्राम हुए । इनमें एक युद्ध इंद्र और वृ़त्रासुर में हुआ । इस युद्ध का नेपथ्य खोजें तो पता लगता है कि देवताओं के विरोधी हिरण कश्यप के पुत्र प्रहलाद थे, जो देवताओं के समर्थक थे, फिर उनके पुत्र राजा बलि हुए, उनसे भी इंद्र का युद्ध हुआ था। इस युद्ध में देवता हार गए थे और संपूर्ण जंबूदीप में असुरों का राज हो गया था। जम्मू दीप के बीच में इलावर्त नाम का राज्य था, यहां कालकेय नाम का असर राज्य करता था जो वृत्रासुर का सेनापति था। वृत्रासृर ने देवताओं और उनकी संस्कृति को त्रस्त कर दिया था वह जब चाहे स्वर्ग पर हमला कर देता था और महत्वपूर्ण वस्तुएं उठाकर ले आता था। अप्सराएं उस के दरबार में नृत्य करती थी। ज्ञात हुआ कि वृत्तासुर का शरीर हर धातु के हथियार अथवा पत्थर के हथियार की चोट सहन कर सकता है। यह भी पता लगा था कि वृत्रासुर कोे मारने के लिए हड्डियों की जरूरत है, ऐसी हड्डियां जो वर्षों की तपस्या से तपाई गई हो। तब ऐसे ऋषि की खोज करते हुए देवताओं को दधीचि ऋषि मिले । सब देवता और ऋशि मिलकर उनके पास निवेदन करने गए । मुस्कुराते हुए दधीच ने अपने शरीर की हड्डियां देने का वायदा किया और प्राण त्याग दिए। दधीचि की हड्डियों से जो हथियार बनाया गया, उसका नाम वज्र रखा गया। वृत्रासुर के विरूद्ध इंद्र जब युद्ध करने के लिए निकला तो इंद्राणी ने उसे तिलक किया और हाथ में रक्षा सूत्र बांधा । कहा जाता है कि यह विश्व का दूसरा रक्षा सूत्र बंधन था ।
वैसे विश्व का पहला रक्षा सूत्र तो लक्ष्मी जी ने राजा बलि को बांधा था, कथा यह है कि जब विष्णु को बलि ने कैद कर लिया था, तो अपने पति को छुड़ाने लक्ष्मी वहां गई और उन्होंने बलि को भाई का संबोधन दिया। रक्षा बंधन का दिन था लक्ष्मी ने उन्हें राखी बांधी तो बलि ने पूछा बताओ बहन राखी के बदले में तुम्हें क्या भेंट दी जाए , तो लक्ष्मी ने कहा था कि मेरे पति को मुक्त कर दो जो आप की कैद में हैं। इस तरह उनकी कैसे विष्णु को छुड़ाया गया था। दूसरा रक्षाबंधन इंद्राणी ने इंद्र को किया था।
वज्र के साथ देवताओं की सेना लेकर इंद्र ने वृत्रासुर पर हमला किया और वजीर की मार से वृत्रासुर मारा गया।
एक और संग्राम पौराणिक कथाओं में खूब याद किया जाता है। यह संग्रामहै परशुराम कार्तिवीर्य अर्जुन युद्ध है । हेहय वंश के राजा कार्तिवीर्य अर्जुन ने अपरा राज्य बड़ा ऑनर्त यानी वर्तमान के गुजरात में बहुत बड़ा साम्राज्य स्थापित किया था । कार्तिवीर्य ने परशुराम के पिता भुृगु मुनि के रेवा के तट यानि नर्मदा नदी के किनारे पर बने आश्रम में आकर आरम को नश्ट भ्रश्ट कर दिया था और भृ्रगु मुनि की हत्या कर दी थी। अपने पिता का बदला लेने के लिए परशुराम के नेतृत्व में एक बड़ी सेना ने कार्तिवीय अर्जन से युद्ध किया और अंत में उन्हें पराजित किया । एसा एक नहीं इक्कीस बार हुआ। हैहय राज के साथ अनेक संपूर्ण राजपूत इकट्ठा थे और कहा जाने लगा कि परशुराम ने इक्कीस बार धरती को राजपूतों से विहीन कर दिया। परशुराम ने बाद में अपना धनुष राजपुत वंशीय दसरथपुत्र श्री राम को समर्पित किया था क्योंकि श्री राम ने शिव के धनुष पिनाक को तोड़कर सीता से स्वयंवर में विवाह किया था । अपने गुरू के धनुष के टूटने से नाराज परशुराम तुरंत ही राजा जनक की सभा में आ गए थे और गुस्सा प्रकट कर रहे थे कि लक्ष्मण और परशुराम ने अपनी विनम्रता और विनोद के साथ हादसे की भाषा का प्रयोग करते हुए परशुराम को बहुत ही प्रभावित कर लिया था। इसके बाद परशुराम महिंद्रा चल पर्वत पर तपस्या करने के लिए चले गए थे।
पौराणिक दिनों में एक और बहुत बड़ा युद्ध राम रावण युद्ध भी है । राम रावण युद्ध के बारे में सब जानते हैं । राम अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र थे और रावण लंका का राजा । राम की पत्नी सीता जी का हरण करने वाले रावण को पराजित करने के लिए राम ने वानरों भालुओं यानी वनवासी जातियों की सेना तैयार की, दुर्गम समुद्र पर पुल बांधा और रावण के ही आंगन में जाकर लंका के ही आंगन में जाकर रावण के साथ युद्ध कर परिवार सहित रावण का विनाश किया था।
पुराणों में एक और महत्वपूर्ण युद्ध दसराज्ञ युद्ध कहा जाता है । दसराज्ञ युद्ध आपस में भाइयों के बीच में हुआ था। वेद के साथ में मंडल में युद्ध का वर्णन है, इसमें एक और पुरू नामक आर्य के योद्धा थे तो दूसरी तरफ तूत्स नामक समुदाय के लोग लड़ रहे थे। दोनों ही आर्य थे । दोनों में विरोध और विवाद था जिसका परिणाम यह युद्ध था। तूत्स समुदाय के सेनापति सुदास थे । सुदास को इस युद्ध में वशिष्ठ ने सलाह दी थी, जबकि पूर्व के सैन्य सलाहकार विश्वामित्र थे । इस तरह विश्वामित्र और वशिष्ठ की यह लड़ाई दो राजाओं के मार्फत आमने-सामने हुई । दरअसल ऋग्वेद के सातवें मण्डल में आया चरित्र सुदास भरतवंशियों का सेनापति होकर अपने गुरु वशिष्ठ के निर्देशन में काम करता था । इनके प्रमुख जातियों को शत्रु समझ रखा था वे जातियां थी- अनु, यदु, पुरुष और पांच गौण । गौण यानी जनजातियां। पुरू के सलाहकार विश्वामित्र थे। इसमें इंद्र और वशिष्ठ की सेना के हाथों विश्वामित्र के शिश्य की सेना ने हार प्राप्त की थी।
एक और पौराणिक युद्ध बहुत चर्चित रहा है वह है महाभारत युद्ध । महाभारत के बारे में सब जानते हैं कि यह एक ही वंश के वंशजों के बीच लड़ा गया था । पांडु के लड़के पांडु और धृतराष्ट्र के लड़के कौरवों के बीच खेला जाने वाला यह युद्ध विश्व स्तरीय युद्ध था जिसमें अठारह अक्षोणि सेना ने भाग लिया था, कुल मिला कर अठारह दिन तक चले इस युद्ध के महानायक कृष्ण थे कृष्ण । जिन्होंने मथुरा में जन्म लिया, वृंदावन में गाय पालते हुए जिन्होंने अपनी किशोरावस्था व्यतीत की और युवा होते-होते महान राजनीतिज्ञ थे । उन्होंने इस युद्ध में पांडवों का साथ दिया था और शक्ति में कम होने के बावजूद इस युद्ध में विजयी हुए। कृष्ण के परामर्श का कौशल था जबकि कौरवों के साथ बड़े-बड़े योद्धा थे,जिनमें विश्वप्रसिद्ध योद्धा स्वयं भीष्म पितामह, कृपाचार्य, द्रोणाचार्य, जरासंध,कर्ण और स्वयं दुर्याेधन जैसे बड़े-बड़े योद्धाओं के बाद भी कौरव सेना हार गई, परास्त हुई । इसमें पांडवों से ज्यादा कृश्ण की नीति का कमाल था, जिन्होंने अपनी कूटनीति और अपने दूरदर्शिता पूर्ण विचारों से पांडवों को विजय दिलाई।

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