अध्याय - 15
हेलो रमा।
ओ हेलो मधु। कैसी हो तुम ?
मैं तो ठीक हूँ रमा। ये बताओ तुम्हारी तबीयत कैसी है उस दिन के बाद से असल में तुमसे मुलाकात ही नहींहो पाई थी ना इसलिए पूछ रही हूँ।
मैं तो एकदम ठीक हूँ मधु। बताओ कैसे फोन किया।
भैया की तबीयत ठीक नहीं है रमा ?
ओह !! क्या हुआ उसको ?
बुखार है रमा वो भी काफी तेज मधु बोली ।
तो डॉक्टर को फोन किया कि नहीं ?
नहीं पहले मैंने तुमको फोन किया है।
क्यों ? डॉक्टर को क्यों नहीं किया ? उनको ही पहले फोन करना चाहिए था ना मधु ?
तुम भी ना !!!
नहीं रमा। डॉक्टर से ज्यादा तुम जरूरी हो।
मैं जानती हूँ कि उसका बुखार शारीरिक वजहों से नहीं है। उसका बुखार मानसिक वजह से है, और उसका कारण हो तुम। तुमको वो दो दिन से देखे नहीं थे तो एकदम बेचैन हो रहे थे। मुझे तो रात को ही अंदाजा हो गया था कि ये जब तक तुमको देखेंगे नहीं इनको चैन नहीं मिलेगा।
ये तो पागलपन है मधु। तुम तो समझ सकती हो ना। तुम समझाती क्यों नहीं उसको। रमा बोली
समझाती हूँ रमा और कल भी समझाने की कोशिश की थी। परंतु वो हद तक तुमको प्यार करतें हैं।मैं क्या करूं बताओ ? मधु बोली
ये सुनकर रमा की आँखें भर आई, वो दो मिनट के लिए एकदम चुप हो गई।
देखो रमा, तुम्हारी क्या मजबूरी है मैं नहीं जानती, पर मैं अपने भैया के लिए तुम्हारे सामने हाथ जोड़ती हूँ कि प्लीज यहाँ आ जाओ। वो तुमको देख लेंगे तो अपने आप ही ठीक हो जाऐंगे, और नहीं आ सकती तो भी बता दो।
नहींनहीं मधु ऐसी कोई बात नहीं है। मैं आ जाती हूँ।
वो भर्राए गले से बोली। तुम डॉक्टर साहब को फोन कर दो।
मधु ने फोन काटा और डॉक्टर साहब को फोन कर दिया।
रमा घर से निकली और ऑटो लेकर अनुज के घर की ओर चल पड़ी।
रमा जब अनुज के घर पहुंची तो मधु वहाँ हाँल में ही मिल गई।
ओह!! रमा प्लीज कम। थैंक्यू फॉर कमिंग।
थैंक्स की कोई बात नहीं है मधु। अभी अनुज की तबीयत कैसी है।
जाओ ना तुम खुद ही देख लो। वो कैसे हैं।
मुझे तो समझ में ही नहीं आता ये सब क्या चल रहा है। इस तरह मैं उनको कैसे संभालूँगी।
अच्छा ठीक है मैं जाकर देखती हूँ। रमा बोली
तुम ही जाओ मैं डॉक्टर साहब को लेकर आती हूँ।
ठीक है। कहकर रमा बेडरूम में चली गई।
जब वह बेडरूम में गई तो अनुज पलटकर सोया था। रमा जाकर उसके नजदीक बैठ गई। वो चुप ही बैठी थी उसे लगा कि अनुज शायद नींद में है।
पर जैसे ही अनुज को एहसास हुआ कि कोई बैठा है वो पलटा और अचानक रमा को देखकर तेजी से उठकर उससे लिपट गया। उसकी आँखें छलछला गई और वो फफक कर रोने लगा।
रमा एकदम स्तब्ध थी। वो बुत की तरह बैठी रह गई। उसे एहसास हुआ कि अनुज का बदन एकदम जल रहा था और इस जलन का एहसास उसके बदन में भी होने लगा। वो बांहो में उसको समेट लेना चाहती थी कि तभी मधु डॉक्टर साहब को लेकर अंदर आई। अनुज एकदम से अलग हुआ और सुबकते हुए पलट कर लेट गया।
भैया डॉक्टर साहब आ गए हैं।
ओह !! नमस्ते डॉक्टर साहब। अनुज आँख पोछते हुए पलटकर बोला।
नमस्ते। नमस्ते। क्या हो गया भाई आपको ?
कुछ नहीं सर हल्का सा बुखार आ गया है।
शायद मौसम की वजह से है।
मधु और रमा पास ही खड़े थे।
हाँहो सकता है मौसम की वजह से हो। कोई स्ट्रेस तो नहीं है आपको ? डॉक्टर साहब ने पूछा ।
नहीं सर ऐंसी कोई बात नहीं है।
अच्छा फिर भी एक ब्लड टेस्ट लिख देता हूँ टेक्नीशियन सैंपल आकर ले जाएगा और आपको एक इन्जेक्शन लगा देता हूँ, ताकि आपका बुखार उतर जाए। बुखार ज्यादा देर रहना ठीक नहीं है। बाकि तीन दिन की दवाई लिख देता हूँ आप ले लीजिएगा।
ठीक है सर। मधु सर को छोड़कर आओ।
अच्छा भैया।
धन्यवाद डॉक्टर साहब। बाय करके डॉक्टर साहब मधु के साथ बाहर चले गए।
अनुज फिर रमा से मुँह फेरकर लेट गया।
इधर मुँह क्यों नहीं दिखा रहे हो तुम ? रमा स्टूल पर बैठते हुए पूछी।
अनुज चुप था। वो अब भी उस ओर पलटकर सोया था।
मैं तुमसे कुछ पूछ रही हूँ ना। ये क्या पागलपन है अनुज ?
मेरी आस छोड़ क्यों नहीं देते तुम? मैं जानती हूँ कि तुम्हारा बुखार कोई मौसम-वौसम की वजह से नहीं है। वो मेरी वजह से है, भगवान के लिए ऐसा मत करो। खुद भी चैन से जिओ और मुझे भी चैन से जीने दो। बड़बड़ातें हुए वो उठी और अनुज के बगल में रखे गरम पानी का कपड़ा निचोड़ कर बोली-
पलटो इधर। पलटो ना। कहकर उसने हाथ से जोर लगाकर अनुज को पलटा दिया। उसने देखा कि वो सुबक रहा था। वो आगे बोली।
क्यों रो रहे हो तुम। मालूम नहीं है तुमको कि मैं कितनी निष्ठुर हूँ। वो कपड़ा उसके माथे पर रखी। तुम जितना भी रोओ, मेरा दिल पिघलने वाला नहीं है। समझ आया तुमको। अपनी तबियत खराब करने का कोई मतलब नहीं है।
वो कपड़ा फिर से निचोड़ी और फिर रखी।
तुम परेशान किया करो मुझे उसी में तुमको खुशी मिलती है ना और तुम स्वस्थ भी रहते हो। वो अब भी बड़बड़ा रही थी और अनुज चुप था। दो दिन से मुझे परेशान नहीं किए तो अपनी तबियत खराब कर लिए।
क्या हुआ रमा कुछ बोल रही हो क्या ? मधु अंदर आते हुए बोली।
कुछ नहीं मधु। महोदय को समझा रही हूँ कि खुद भी खुश रहे और मुझे भी खुश रहने दें और क्या ? मेरी वजह से कम से कम अपनी तबियत तो खराब ना करें। अच्छा तुम बैठो मैं कुछ खाने का बनाकर लाती हूँ।
रमा के किचन मे जाते ही अनुज मधु को चिल्लाने लगा क्यों बुला लिया तुमने उसको मधु। देखो आकर कितना चिल्ला रही है, मुझ पर।
क्यों नहीं बुलाती भैया ? अभी अपने को देखो उसके आते ही कैसे जान आ गई है।
अनुज झेंप गया।
ऐसी कोई बात नहीं है मधु। वो तो डॉक्टर साहब के इंजेक्शन की वजह से ठीक लग रहा है। अनुज बोला।
मुझे सफाई देने की जरूरत नहीं है भैया। मुझे सब पता है, पर जब वो इस घर में नहीं आना चाहती तो छोड़ दो उसको अपने हाल पर उसकी खुशी के लिए खुश रहो। जीवन साथी नहीं तो कम से कम दोस्त तो बन ही सकते हो। जब उसका मन पलटे तो शादी कर लेना। मधु बोली
तुम ठीक कहती हो मधु चलो मैं वचन देता हूँ कि अब से उससे मैं अच्छा व्यवहार करूंगा। उसको खुश रहने दूँगा और कभी उस पर अपना गुस्सा नहीं उतारूंगा।
अभी तो वो तुम पर गुस्सा है भैया। उसको कैसे शांत करोगे ? मधु बोली।
वो बहुत सुलझी हुई लड़की है मधु। मैं शांति से बात करूंगा तो वो खुद-ब-खुद शांत हो जाएगी। चुप रहो। अब वो आ रही है। अनुज अब उठकर बैठ गया था।
ओह !! महाशय उठ गए। अच्छी बात है। मैंने इनके लिए थोड़ा सा हलुवा और काढ़ा बनाया है। इससे इनको आराम मिलेगा रमा प्लेट बढ़ाते हुए बोली।
अनुज प्लेट उठाया फटाफट हलुवा खाया और काढ़ा पीने लगा।
अरे !!! रमा ने हलुवा बनाया तो झट से खा गए और कल मैं मर-मर के तुम्हारे लिए खाना बनाई थी तो सूंघे तक नहीं। देखा रमा, बहन से तो इनको कोई मतलब ही नहीं है। दिमाग में सिर्फ रमा ही रमा भरा हुआ है। तुम आई तो ये स्वस्थ हो गए। क्या करूं अब मैं बताओ। मधु बोली।
देखो अनुज ये ठीक बात नहीं है तुम अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखो। मैं रोज-रोज यहाँ नहीं आ सकती रमा बोली।
तो परमानेंट रूक जाओ ना रमा। ये घर भी तो तुम्हारा ही है। अनुज नजर झुकाकर बोला।
मैं जा रही हूँ मधु। इनको समझाने का कोई फायदा नहीं। कहकर वो उठने लगी।
रमा। एक मिनट। बैठो ना प्लीज। अनुज ने रमा का हाथ पकड़ लिया।
प्लीज। अनुज फिर बोला।
रमा बैठ गई।
देखो रमा ये सच है कि मैं तुम्हारे बगैर जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता परंतु आज तुमको मैं वचन देता हूँ कि अब से तुमसे मैं अच्छा व्यवहार करूंगा। तुमको परेशान भी नहीं करूँगा और खुद को भी स्वस्थ रखने की कोशिश करूँगा।
रमा पीछे पलटी।
अरे वाह !! तुम तो शरीफ हो गए। इसे मैं सच मानू या झूठ। रमा बोली।
सौ प्रतिशत सच। बस एक बात की परमिशन चाहता हूँ रमा कि तुमको दिन में एक बार देख सकूँ।
छोड़ो मेरा हाथ। तुमको समझाने का कोई फायदा ही नहीं।
कहकर रमा नाराज होते हुए उठकर जाने लगी।
थैंक्यू रमा। मधु बीच में ही बोली। मेरे एक बार बोलने पर ही तुम आ गई।
मैं तुम्हारे लिए ही आई हूँ मधु। इन महाशय के लिए नहीं आई हूँ। रमा अनुज की ओर देखते हुए बोली।
ठीक है ठीक है। सुनाने की जरूरत नहीं है। मेरे लिए कौन चिंता करता है यहाँ। तुम लोग आपस में ही एक दूसरे की चिंता किया करों। अनुज मुँह फुलाकर बैठ गया।
मधु रमा के गले लग गई।
मैं चलती हूँ मधु। अब तो ये पागल ठीक है।
परेशान मत होना और कोई भी बात होगी तो मुझे बता देना। रमा हँसते हुए बोली।
अनुज ने आँखें तिरछी करके रमा को देखा। रमा उसको देखकर मुस्कुराई और निकल गई।
क्रमशः
मेरी अन्य तीन किताबे उड़ान, नमकीन चाय और मीता भी मातृभारती पर उपलब्ध है। कृपया पढ़कर समीक्षा अवश्य दे - भूपेंद्र कुलदीप।