अनकहा अहसास - अध्याय - 16 Bhupendra Kuldeep द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अनकहा अहसास - अध्याय - 16

अध्याय - 16

अनुज उसके जाते ही शांति से आँख बंद करके सो गया।
दूसरे दिन अनुज को थोड़ा स्वस्थ फील कर रहा था। इसलिए तैयार होकर कॉलेज आ गया। आते ही उसे स्टोर को लेकर कुछ शिकायतें मिली तो उसने रमा को बुलवाया।
मे आई कम इन सर। रमा ने पूछा।
ओह !! अंदर आओ रमा और ये मुझे सर मत बुलाओ प्लीज। अब से मुझे अनुज ही कहा करो।
बैठो।
पर आप यहाँ मेरे बॉस हैं सर ।
हाँ पर दोस्त पहले हूँ, हूँ कि नहीं हूँ ?
रमा चुप थी।
अच्छा शेखर तुम्हारा दोस्त हो सकता है मैं नहीं। ये तो अन्याय है रमा।
ठीक है अनुज। आई एम सॉरी फॉर एवरीथिंग। बताओ किसलिए बुलाया है।
हाँ मैंने तुमको इसलिए बुलाया है कि मैंने स्टोर का प्रभार गगन को दिया था, परंतु लगता है वो ईमानदारी से काम नहीं कर रहा है। उसकी शिकायतें आनी शुरू हो गई हैं।
तो मुझे क्या करना होगा अनुज ? रमा ने पूछा
तुम्हे स्टोर की जाँच करनी होगी। मैं तुम्हे जाँच समिति का अध्यक्ष बना रहा हूँ। दो और स्टाफ तुम्हारे साथ रहेंगे। आडर्स मैं अभी जारी कर देता हूँ तुम जाकर थोड़ी सूक्ष्मता से जाँच करो और मुझे एक्चुअल रिपोर्ट दो।
मैं आश्चर्यचकित हूँ अनुज कि तुमने मुझपे भरोसा किया।
आश्चर्यचकित होने की कोई बात नहीं है रमा। पूरे महाविद्यालय में तुमसे ईमानदार और समझदार कोई नहीं है। इसलिए मेरे पास तुम्हारे अलावा विकल्प नहीं था।
मुझ पर भरोसा करने के लिए धन्यवाद अनुज। मैं जल्द ही अपना रिपोर्ट सबमिट कर दूँगी। कहकर वो बाहर निकल गई। गेट पर अचानक शेखर से मुलाकात हो गई
ओ हेलो शेखर।
हेलो। रमा मैं तुम्ही को ढूंढ़ रहा था। कहाँ थी तुम।
बस बॉस ने बुलाया था तो ऑफिस आई थी। अब वापस डिपार्टमेंट जा रही हूँ। तुम बताओ किसलिए ढूढ़ रहे थे मुझे ? रमा पूछी।
तुमसे कुछ सलाह मशविरा करना है। शेखर बोला।
मुझसे ? रमा हंसने लगी। ये सब लोग अचानक मुझे समझदार क्यों समझने लग गए हैं।
तुम हो समझदार। इसमें क्या किसी को कोई शक है ? शेखर बोला।
नहीं ऐसी कोई बात नहीं है शेखर। बताओ क्या बात है। रमा बोली।
अभी नहीं। मैं तुम्हारे विभाग में आकर बात करूंगा।
अभी तुम अपना काम निपटाओ। मैं बाद में आता हूँ। शेखर बोला और अपने चेम्बर में चला गया।
रमा वहाँ से निकलकर समिति के दो अन्य सदस्यों के साथ सीधे स्टोर में गई।
गगन वहाँ पर पहले से ही बैठा था।
अरे। आप लोग यहाँ। गगन थोड़ा आशंकित होते हुए पूछा।
हाँ गगन। प्लीज बैठो ना। हम लोग कुछ काम से आए हैं।
तुम ये लेटर देखो। कहकर रमा ने आर्डर कापी गगन की ओर बढ़ा दी।
आर्डर कापी देखते ही गगन थोड़ा ज्यादा चिंतित नजर आने लगा।
घबराने की कोई बात नहीं है गगन। हम मिलजुलकर जो भी प्राबलम्स हैं उसको हल कर लेंगे। रमा बोली।
गगन आया तो था यहाँ अनुज और रमा को अलग करने। उनके बीच मनमुटाव पैदा कर विरोध पैदा करने परंतु अब खुद ही रमा को पाने की चाह करने लगा था। उसको थोड़ा अंदाजा तो था कि अनुज और रमा के बीच रिलेशन थोड़ा नाराजगी वाला है परंतु ये सोच नहीं पाया था कि स्टोर की जाँच के लिए वो रमा को ही अध्यक्ष बना देगा। क्या उन दोनों के बीच का रिलेशन ठीक हो गया। अचानक अनुज ने रमा के ऊपर इतना भरोसा कैंसे कर लिया। कोई अवसर तो मिले ताकि उसका भरोसा रमा के ऊपर से तोड़ सकूं। पर अभी तो यही मेरे ऊपर जाँच के लिए आ गई है। अभी क्या कंरू। गड़बड़ियाँ तो की है। उनको किसी तरह छुपाना ही पड़ेगा। या फिलहाल टल जाए तो भी अच्छा है। ये सोच ही रहा था कि अचानक रमा बोली।
गगन मुझे थोड़ा कन्स्युमेबल आईटम वाला रजिस्टर दिखाओ। पिछले महीने वाला ही हिसाब किताब दिखओ।
तुम मुझ पर शक कर रही हो रमा ? गगन ने पूछा
नहीं गगन। शिकायत सिर्फ पिछले महीने के आधार पर की गई है इसलिए। अन्यथा हम लोग तो पूरे वर्ष भर का रजिस्टर चेक करेंगे। हो सकता है कोई गड़बड़ी ही ना हो, और फर्जी शिकायत की गई हो, ये बताओ तुमने कब से स्टोर का प्रभार संभाला है रमा पूछी।
पिछले महीने की एक तारीख से।
ओके। पहले हम लोग कन्स्युमेंबल का फिजिकल वेरीफिकेशन कर लेते हैं फिर नॉन कन्स्यूमेबल देख लेंगे। रमा बोली
कॉलेज में उपयोगी चीजों का हिसाब-किताब रखना तो थोड़ा मुश्किल काम होता है रमा थोड़ा कम ज्यादा तो हो ही सकता है। गगन थोड़ा चिंतित होते हुए बोला।
थोड़ा तो चलेगा गगन, परंतु ज्यादा अगर हो तब सोचना पड़ेगा। मैडम आप लोग भी सामान इश्यू रजिस्टर में देखकर गिनते जाईए। मैं भी खरीदी रसीद से मैच करती जाती हूँ।
ठीक है मैडम कहकर उसके अन्य दो साथी सामान गिनना चालू कर दिए।
थोड़ी देर में ही रमा को समझ आ गया कि गड़बड़ियाँ तो हुई हैं। इसलिए उसने एक फैसला लिया।
गगन एक काम करतें हैं इतना ज्यादा सामान है कि तत्काल तो सबको वेरीफाई कर पाना संभव नहीं होगा। इसलिए रजिस्टर और रिकार्ड वाले आलमारी की चाबी समिति को दे दो। हम अपने हिसाब से दो तीन दिन में जाँच पूरी करके रिपोर्ट मैनेजमेंट को दे देंगे। रमा बोली
देखो रमा गड़बड़ी वाली कोई बात ही नहीं है। अब तुम मेरे ऊपर अविश्वास कर रही हो। गगन बोला।
अविश्वास वाली कोई बात नहीं है गगन। जिम्मेदारी मेरी भी है।
तभी चपरसी अंदर आया।
शेखर सर बुला रहे हैं चापरासी बोला।
कहाँ है शेखर। रमा ने पूछां ।
आपके विभाग में बैठे हैं मैडम।
अच्छा ठीक है उनसे कहो मैं आती हूँ। गगन तुम चाबी दे दो। बाकी की कार्यवाही हम लोग बाद में करेंगे।
ठीक है ले जाओ आखिर क्या हो जाएगा। गगन चिढ़ते हुए बोला।
रमा चाबी लेकर सदस्यों के साथ बाहर निकल गई।
गगन के चिढ़ ने रमा को हांसिल करने की उत्कंठा को और बढ़ा दिया था। उसको लगने लगा था कि रमा उसके सभी अरमानों पर पानी फेर देगी या तो उससे जाकर बात करनी पड़ेगी या उसके लिए अवसर देखकर गड्ढ़ा खोदना पड़ेगा। यह सोचकर वह रमा के विभाग की ओर गया।
शेखर रमा के विभाग में अकेला बैठकर इंतजार कर रहा था।
अरे सचिव महोदय। क्या हाल हैं आपके। बड़े ऊतावले नजर आ रहे हो। रमा अंदर आते-आते बोली।
मेरा मजाक उड़ा रही हो रमा ? शेखर नाराज होते हुए बोला।
अरे नहीं नहीं। मैं क्यों तुम्हारा मजाक उड़ाऊँगीं।
मजाक उड़ाने और परेशान करने का ठेका तो यहाँ एक ही आदमी ने ले रखा है वो तुम्हारा खडूस दोस्त। अनुज कुमार।
नहीं रमा तुम उसको गलत समझ रही हो। वो असल में है बहुत अच्छा इंसान। हाँ एक बुरी लत लग गई है और आजकल मुझे भी लग गई है।

क्रमशः

मेरी अन्य तीन किताबे उड़ान, नमकीन चाय और मीता भी मातृभारती पर उपलब्ध है। कृपया पढ़कर समीक्षा अवश्य दे - भूपेंद्र कुलदीप।