नीलांजना--भाग(८) Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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नीलांजना--भाग(८)

सुखमती ने नीला से कहा तुम नीला नहीं, राजकुमारी नीलांजना हो और मैं तुम्हारी मां सुखमती हो,अब हमें अपने पुलस्थ को वापस लेना होगा,क्या तुम इसके लिए सहमत हो।।
नीलांजना ने कहा, हां !!
लेकिन ये उत्तर उसके हृदय से नहीं मस्तिष्क से आया था,वो ये राज्य,वैभव और किसी भी राजकुमारी का पद नहीं चाहती थी, उसे तो बस नीला बनकर साधारण सा सादा जीवन चाहिए था, उसने विवश होकर हां की थीं।
वो सुखमती को पाकर प्रसन्न नहीं थी, उसे तो सौदामिनी में ही अपनी मां दिखाई दे रही थी, उसे लग रहा था ये तो बिना ममता की मां है जिसने तो कभी ये भी कहकर गले से नहीं लगाया कि मैं तुम्हारी मां हूं, फिर अब ___
उसे अब किसी भी चीज में कोई उत्सुकता नहीं हो रही थी,वो तो बस वही कर रही थी जो उससे कहा जा रहा था और वो अब नर्तकी बनकर पहुंच गई पुलस्थ राज्य,साथ में चित्रा को भी उसकी सौन्दर्य-चतुरा बनाकर भेजा गया।
पुलस्थ पहुंचकर नीलांजना एक निपुण नर्तकी के रूप में प्रसिद्धी प्राप्त करती जा रही थी, उसने धीरे धीरे राज्य के विषय में सारी गुप्त बातें प्राप्त कर ली।
नीलांजना एक बहुत ही निपुण नर्तकी है,ये खबर राजकुमार सूर्यदर्शनशील तक पहुंची और उनके मन में भी नीलांजना का नृत्य देखने की तीव्र इच्छा प्रकट हुई।
और वो नर्तकी नीला का नृत्य देखने पहुंचे,वो नीला के नृत्य और नीला पर मोहित हो गए, उन्होंने नीला के समक्ष राजनर्तकी बनने का प्रस्ताव रखा लेकिन लेकिन नीला ने प्रस्ताव ठुकरा दिया।
लेकिन सूर्यदर्शनशील नीला से तनिक भी क्रोधित नहीं हुए, नीला उनके मन को भा गई थी,अब वो प्रतिदिन नीला का नृत्य देखने जाने लगे और धीरे-धीरे नीला पर अपना हृदय हार बैठे।।
एक दिन चित्रा और नीला के बीच बातें हो रही थीं, सूर्यदर्शनशील के विषय में__
चित्रा ने अपने हृदय की बात नीला को बताई कि वो उन्हें पसंद करने लगी, लेकिन जीजी उनकी दृष्टि में तो सदैव तुम ही रहती हो,वो तुम्हें पसंद करते हैं, मुझे नहीं।।
नीला बोली,जब अपना पुलस्थ राज्य जीत लूंगी तो तेरा विवाह राजकुमार से करवा दूंगी,तू चिन्ता मत कर।।
और दोनों बहनें खिलखिला पड़ी।।
उधर राजा प्रबोध भी अपनी योजनाएं बना रहे थे उन्होने अब शंखनाद से कहा कि मित्र, मुझे तुमसे एक कुछ मांगना है अगर तुमने दे दिया, तो ठीक है और अगर नहीं भी दोगे तो कोई बात नहीं मुझे बुरा नहीं लगेगा क्योंकि तुमने कभी मेरे प्राण बचाए थे।
शंखनाद बोला, कहें मित्र,अगर बस में होगा तो जरूर दूंगा।।
प्रबोध बोले, मुझे आपका पुत्र चाहिए, कैलाश युद्ध कला में अब, परांगत हो चुका है और मेरी सहायता अब वहीं कर सकता है,अब मेरी अवस्था ढ़ल चुकी है मुझे किसी की सहायता की आवश्यकता है,बस एक बार अपने राज्य की दशा देखना चाहता हूं और कुछ नहीं, अपने साथ के लिए एक शक्तिशाली व्यक्ति की आवश्यकता है जिस पर मुझे पूर्णतः विश्वास हो और कैलाश से अच्छा साथी और कोई नहीं हो सकता मेरे लिए।।
शंखनाद बोला, मित्र कैसी बातें कर रहे हैं आप? बाल्यकाल से कैलाश आपके साथ रहता आया है आपने ही तो इसे सारी युद्ध कलाओं में निपुण बनाया है,आपका पूर्णतः अधिकार है उस पर आप जहां चाहे ले जा सकते हैं।
प्रबोध बोले, धन्यवाद मित्र!! बहुत बहुत आभार और उपकार आपका।।हम कल ही निकलेंगे।।
दूसरे दिन प्रबोध और कैलाश पुलस्थ की ओर निकल पड़े।।
पुलस्थ पहुंचने के बाद कैलाश और प्रबोध ने एक तालाब के किनारे स्थित वृक्ष के नीचे डेरा डाला।।
प्रबोध और कैलाश ने चन्द्रदर्शन के विषय में जानकारी इकट्ठी शुरू कर दी, राजकुमार सूर्यदर्शनशील के विषय में भी जानकारी प्राप्त कर ली, फिर एक दिन प्रबोध बोले, कैलाश बेटा तुम भी उस नर्तकी के पास जाकर देखो जहां सूर्यदर्शनशील जाता है, उसके बारे में जानकारी लो, सूर्यदर्शनशील से मित्रता करने का प्रयास करो,कदा्चित हमें कुछ जानकारी प्राप्त हो सके।।
कैलाश बोला,जैसा आपका आदेश काका श्री, मैं शीघ्र ही आप के कहे अनुसार करता हूं।।
कैलाश,जब नर्तकी के पास पहुंचा,तो वहां नीला को एक प्रसिद्ध नर्तकी के रूप में देखकर उसके मस्तिष्क में तरह-तरह के विचार उठने लगे, उसे लगा नींला के और कितने रूप है, अच्छा तो ये एक नर्तकी है तभी इसने मेरा प्रेम स्वीकार नहीं किया, कैलाश के हृदय में नीला के प्रति दुर्भावना घर कर गई, उसने सोचा जिसे मैंने अपने मन-मंदिर की देवी माना,जिसे इतना प्रेम किया,उसी ने मेरा हृदय दुखाया और ठीक भी है जिस स्त्री को इतने सारे पुरूषों के बीच रहने की आदत हो,भला उसे मेरी क्या आवश्यकता, उसने बिल्कुल ठीक किया जो मेरा प्रेम स्वीकार नहीं किया।
उधर कैलाश को देखकर, नीला के मन में भी तरह-तरह के भाव उठ रहे थे, उसे आज अपने नर्तकी होने पर लज्जा आ रही थी,वो भी तो कैलाश से ही प्रेम करती थीं, उसे इतने दिन बाद देखकर उसके हृदय को जो पीड़ा हो रही थी, उसे कोई नहीं समझ सकता था,उसका जी फूट-फूटकर रोने का रहा था,उसका व्याकुल मन कैलाश के हृदय से लग जाना चाहता था।
कैलाश उस समय वहां से किसी से बिना कुछ कहे चला आया।।
उधर नीला भी सबके जाने के बाद, बहुत रोई, चित्रा ने कारण पूछा, नीला ने आज कैलाश के विषय में सबकुछ बता दिया___
नीला बोली, कैलाश को मुझ पर संदेह हो गया, उसके हृदय में मेरे प्रति गलत धारणा उत्पन्न हो गई है।
चित्रा बोली, जीजी चिंता मत करो अगर कैलाश तुमसे सच्चा प्रेम करता होगा तो अवश्य उसका संदेह एक ना एक दिन मिट जाएगा,समय आने पर सब ठीक हो जाएगा।।
अब कैलाश को नीला से घृणा हो गई थी लेकिन प्रबोध के कहें अनुसार उसे सूर्यदर्शनशील से मित्रता करनी थी और उसके बारे में जानकारी प्राप्त करनी थी, विवशता वश उसे नीला के यहां जाना पड़ता था।
धीरे धीरे उसने सूर्यदर्शनशील से मित्रता कर ली और बहुत सी जानकारियां भी प्राप्त ली उसे सूर्यदर्शनशील की बातों से ये भी पता लगा कि उसके हृदय में नीला का एक अलग ही स्थान है।
कैलाश ने सूर्यदर्शनशील से पूछा कि , मित्र!!आपने कभी नीला से कहा नहीं कि आप उनसे प्रेम करते हैं।।
सूर्यदर्शनशील बोला, मित्र साहस ही नहीं हुआ कभी कहने का, हृदय ने तो कामना की लेकिन मस्तिष्क ने साहस नहीं दिखाया,लगा कि नीला स्वीकार करें या ना करें और उसकी आंखें तो कुछ और ही कहती हैं वो बहुत ही अन्तर्मुखी दिखाई देती है कभी आज तक उसने मुझसे बात करने की चेष्टा ही नहीं की।
अब कैलाश को लगा हो ना हो नीला किसी ऐसी परिस्थिति से घिरी है जिसे वह नहीं बता सकती।।
और ये मुझे ही बता करना होगा कि क्या बात है?
अब सुखमती और दिग्विजय तक सारी जानकारियां पहुंच चुकी थी और उन्होंने भी पुलस्थ में प्रवेश किया।।
उधर कैलाश ने कहा कि काकाश्री आज आप मेरे साथ चलिए और सूर्यदर्शनशील से पहचान कर लीजिए।
प्रबोध बोले, ठीक है जैसा तुम कहो।
और रात्रि प्रबोध और कैलाश नृत्य देखने पहुंचे,प्रबोध ने जैसे ही नीलांजना को देखा वो उन्हें बिल्कुल सुखमती जैसी दिखी उसकी ऐसी दशा देखकर उन्हें बहुत क्रोध आया।।
अब तो उन्होंने मन बना लिया, चन्द्रदर्शन से बदला लेने का लेकिन इससे पहले उन्हें ये पता करना था कि वो ही राजकुमारी नीलांजना है कि नहीं____

क्रमशः___
सरोज वर्मा___🦋