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नीलांजना--भाग(५)

प्रात:काल हो चुका था,सूरज की किरणें अपनी लालिमा चारों ओर बिखेर चुकी थी,हरे हरे वृक्षों पर पंक्षी चहचहा रहे थे,जंगल की अपनी ही शोभा होती है, वहीं जंगल रात्रि को बड़ा ही भयानक प्रतीत होता है और प्रात:काल होते ही उसकी सुंदरता अलग ही दिखाई देती है।।
दिग्विजयसिंह और सुखमती उसी मार्ग से आए थे जो मार्ग सुखमती ने सौदामिनी को सुझाया था,जब वो नीलांजना को लेकर भागी थी।
रात भर नाव से नदी पार की और फिर जंगल में भागते भागते दिग्विजय और सुखमती बहुत थक गये थे, उन्हें दूर से एक गांव दिखाई दिया, दोनों वहां पहुंचे।।
गांव में प्रवेश किया, वहां जाकर देखा तो कुछ लोगों की भीड़ इकट्ठी थी,वो लोग कह रहे थे कि पता नहीं, ये स्त्री कौन है, किसी की ब्याहता है या फिर किसी की पुत्री को लेकर भागी है,दो दिन से यही वृक्ष के नीचे पड़ी है,इसके साथ जो नन्ही सी बच्ची है उस पर तरस खाकर गांव की स्त्रियों ने बच्ची के लिए दूध और इसके लिए खाने को भोजन दें दिया, स्त्रियों ने पूछा भी तो कुछ नहीं बताया।
पता नहीं इसकी क्या इच्छा है जो यहां पड़ी है,इसे शीघ्र ही इस गांव से निकालो।
इतना सुनते ही दिग्विजयसिंह ने भीड़ को हटाकर देखा तो,वह सौदामिनी थी और नीलांजना को अपनी दोनों हाथों में जोर से दबोच रखा था कि कोई उससे उसे छीन ना ले।
तभी दिग्विजय ने कहा,अरे तुम!! यहां हो ..
लोगों ने पूछा,भाई जानते हो,तुम इसे___
दिग्विजय बोला, हां ये मेरी पत्नी है,हम दोनों के बीच झगड़ा हो गया था तो ये हमारी पुत्री को लेकर ना जाने कहां चली गई, मैं इसे कब से ढूंढ़ रहा हूं ,ये इनकी बड़ी बहन है, हमारी बच्ची बिल्कुल अपनी मौसी का चेहरा लिए है ना हो तो देख लीजिए।
सबने कहा, ठीक है भाई ले जाओ, अपनी पत्नी को और सौदामिनी से भी कहा कि बहन थोड़ी थोड़ी सी बातों पर घर नहीं छोड़ा करते, पति-पत्नी में ये सब तो होता रहता है।
और सौदामिनी ने जैसे ही सुखमती को देखा तो बहुत प्रसन्न हुई और जीजी .... जीजी.... का अभिनय करती हुई,गले से लग गई।
रानी सुखमती अपनी पुत्री नीलांजना को सुरक्षित देखकर, बहुत ही प्रसन्न हुई, खुशी के मारे उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े, उसनेे अपनी पुत्री को हृदय से लगाकर अपना प्रेम प्रकट किया।
फिर सुखमती ने गांव वालों से जाने की अनुमति मांगी और धन्यवाद प्रकट किया कि आप सबने मेरी छोटी बहन को आसरा दिया और उसे शरण दी, मैं आप सब की कृतज्ञ हूं,अब हम चलते हैं।।
गांव वाले बोले,बहन आप सब हमारे गांव के अतिथि है, बिना भोजन किए हम आपको यहां से नहीं जाने देंगे।।
कृपया आप सब यहां से भोजन करके ही प्रस्थान करें।।
सुखमती ने गांव वालों की बात मान ली।। वैसे उसे भी बहुत जोरों की भूख लग रही थी और दिग्विजय ने भी संकेत दिया कि वो भूखा है।
गांव वालों ने बहुत अच्छी तरह से उन्हें भोजन कराया और वो लोग वहां से चले आए, दिग्विजय ने कहा क्यो ना हम अपने कबीले ही चलते हैं, वहीं चलकर सोचेंगे कि क्या करना है।
सुखमती बोली, ठीक है__
अब सौदामिनी, दिग्विजय से बोली___
ए मैंने तुम्हें वहां तो कुछ नहीं कहा लेकिन तुमने मुझे अपनी पत्नी क्यो बना लिया,लज्जा नहीं आई!!
दिग्विजय बोला,उस समय और कोई उपाय सूझा ही नहीं, अच्छा सच सच बताओ बनोगी मेरी पत्नी....
ए,सुनो मैं तुम्हारा सर तोड़ दूंगी, मुझसे आगे से ऐसी बातें की तो, सौदामिनी गुस्से से बोली।।
तुम देखने में जितनी सीधी दिखती हो, वैसी हो नहीं, बहुत ही नकचढ़ी हो, दिग्विजय बोला।।
सौदामिनी रानी से बोली,इसे समझा लीजिए।।
सुखमती बोली,बस दिग्विजय बहुत हुआ परिहास।।
और दिग्विजय शांत हो गया।
और सब कबीले पहुंचे।।
कबीले पहुंचकर,सारी घटना कबीले वालों को पता चली, रानी सुखमती बोली, मुझे अपना राज्य वापस पाना होगा,इसके लिए मैं अपनी बेटी को युद्ध कला में निपुण बनाऊंगी,नीलांजना की देखभाल अब से सौदामिनी ही करेंगी और मैं वेष बदलकर चन्द्रदर्शन के ऊपर दृष्टि रखूंगी कि उसके कौन कौन लोग उसके कर्त्तव्यनिष्ठ है और उसकी आगे क्या क्या प्रतिक्रियाएं है।
और नीलांजना को ये कभी ना बताया जाए कि मैं उसकी मां हूं,समय आने पर मैं उसे खुद बता दूंगी।
सबने सुखमती की बात स्वीकार की,सुखमती के पिता बोले, जैसी तेरी इच्छा बेटी।।
अब नीलांजना कबीले में रहकर बड़ी होने लगी, वो वहां साधारण रुप से पाली जा रही थी किसी ने यह कभी नहीं कहा कि वो एक राजकुमारी है और उसका नाम नीलांजना है, उसे सब नीला कह कर पुकारने लगे।।
दिग्विजय और सौदामिनी के बीच प्रेम पनपा और सुखमती ने दोनों का विवाह करा दिया,नीला तो दिग्विजय और सौदामिनी को ही अपने माता-पिता समझने लगी क्योंकि सुखमती ने कभी भी नीला के समक्ष ये प्रकट ही नहीं होने दिया कि वो उसकी मां है।
कुछ समय पश्चात् सौदामिनी ने भी एक पुत्री को जन्म दिया, दिग्विजय ने उसका नाम चित्रा रखा।
समय बीतने लगा, दोनों बालिकाएं बड़ी होने लगी और सुखमती कभी कबीले में रहती, कभी बाहर, उसे तो जैसे तैसे करके अपना राज्य वापस चाहिए था।
उधर राजा प्रबोध भी अपने परिवार को खोज रहे थे लेकिन उनका परिवार नहीं मिला, उन्होंने यह नहीं सोचा कि शायद उनका परिवार कबीले में हो सकता है जहां सुखमती पहले रहती थी,वो कभी कभी तो परिवार को खोजते हुए महीनो बाहर रहते और हताश होकर फिर अपने मित्र मछुआरे के पास लौट जाते।
सबका जीवन ऐसे ही चल रहा था, देखते ही देखते नीला अठारह साल की हो गई और चित्रा सोलह साल की।
लेकिन सुखमती अभी भी हताश थी, उसे कोई राह नहीं सूझ रही थी, चन्द्रदर्शन से अपना राज्य वापस लेने की।
इसी बीच नीला, लगातार अभ्यास से घुड़सवारी और अस्त्र शस्त्र चलाने में बहुत ही निपुण हो गई।।
साथ साथ वो इतनी सुन्दर थी कि सौदामिनी उसे कोई भी साज श्रृंगार नहीं करने देती थी,बस हमेशा कहती कि तू अपनी युद्ध कला में निपुण हो जाओ बाद में ये सब करना।।

क्रमशः___
सरोज वर्मा___🦋


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