इंसाफ की तारीख,
दोस्तो कभी कभी अधूरी इच्छाएं लिए लोग दुनिया से चले जाते लेकिन इस दुनिया और दूसरी दुनिया के बीच फस कर रह जाते है और अक्सर आम जनों से उनका आमना सामना हो जाता। ऐसी ही एक कहानी आपके सामने प्रस्तुत है......
संकल्प सिंह अपने माँ बाप के दो बच्चों में सबसे छोटी सन्तान था। संकल्प से बड़ी बहन निधि विवाह योग्य हो चुकी थी। संकल्प लगातार प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठ रहा था लेकिन अन्तिम चयन नही हो पा रहा था। इस लिये निराशा में आकर इस बार सिविल कोर्ट किशन पुर में चौकीदार पद के लिये भर्ती में संकल्प ने आवेदन किया। वह अपने भाग्य को अजमाना चाहता था कि उसके भाग्य में सरकारी नौकरी है भी या नही। भाग्य से उसका चयन भी हो गया। एक तरफ जहाँ मन में सरकारी नौकरी का उत्साह था तो छोटा पद होने का कष्ट भी था। लेकिन पक्की सरकारी नौकरी आज के बेरोजगारी के दौर में कौन छोड़ता भला। बाबू जी और बड़ी बहने के समझाने पर संकल्प नौकरी ज्वाइन करने राम पुर के लिये रवाना हुआ। रास्ते में हजारों सपने उसकी आँखों के सामने घुमने रहे थे बाबू जी के लिये खादी का कुर्ता और माँ के लिये सिल्क की साड़ी और बहन के लिये उसका मन पसन्द सूट दिलाना था जो मंहगा वाला था जिसको उसने पिछले रक्षा बन्धन पर बाजार में पसन्द किया था। लेकिन पैसे की कमी के चलते मन मसोस के रह गयी थी।
संकल्प की नौकरी से घर परिवार में सभी बहुत खुश थे और होते भी क्यों न गाँव के कुछ ही लड़के थे जो सरकारी नौकरी पाये थे। संकल्प सिंह किशन पुर पहुँच कर सिविल कोर्ट कैम्प में पहुँचकर आंग्लभाषा कार्यालय (प्रशासनिक कार्यालय) में अपनी ज्वाइनिंग ली। संकल्प को मुख्य न्यायाधीश महोदय के समझ प्रस्तुत किया गया। उसके बाद संकल्प को नजारत कार्यालय में नाजीर के पास भेजा गया। संकल्प को अभी नजारत कार्यालय में ही रखा गया। उससे उसके पद का कार्य अभी नही लिया जा रहा था। कार्यालय के विभिन्न कार्य जो कि नित्य प्रति आते थे वही लिये जाते थे। कारण यह भी था कि बड़े बाबू चाहते थे कि अपने पद पर कार्य करने से पहले संकल्प सिंह कचहरी के तौर तरीके सीख जाये। धीरे धीरे संकल्प को कचहरी में ज्वाइन किये हुये तीन महीने बीत गये थे। संकल्प वहाँ रहते हुये सभी कार्यालयों, अधिकारीयों एवं कर्मचारियों से जान पहचान बना चुका था। अब वो समय आ चुका जब संकल्प को अपने पद के लिये पोस्ट किया जाना था उसके पास दिन की शिफ्ट और रात की शिफ्ट दो विकल्प दिये गये। अपनी आगे कि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के मद्देनजर संकल्प ने रात की शिफ्ट का चयन किया। किन्तु अभी संकल्प नव युवक था सरकारी भवन में रात की चौकीदारी देने के पक्ष में बड़े बाबू चाहते नही थे। बड़े बाबू के कहने पर पहले सीखने के लिये 15 दिन के लिये दिन की चौकी दारी दी गयी। पुनः 15 दिन बात संकल्प ने बड़े बाबू से निवेदन किया तो बडे बाबू ने न चाहते हुये भी रात के चौकी दार के साथ कुछ दिन के लिये अरेंजमेंट कर दिया। रात का चौकीदार रामखेलावन एक पुराने व्यक्ति थे जो रात में दो पैग मार कर नौकरी पर आते थे। संकल्प सिंह के साथ रामखेलावन की ड्यूटी साथ में करते हुये अपने जिन्दगी के अनुभव शेयर करते कभी नौकरी के तनाव को तो कभी अपनी निजी समस्याओं को साझा करते और बताते कि किस तरह से दिक्कते तो आई लेकिन धीरे धीरे सब ठीक हो गया। रामखेलावन की कुछ बाते संकल्प को हिम्मत देती तो कुछ निराशा देती थी। पूरी रात में दोनो लोग पूरे कोर्ट परिसर का तीन से चार बार पूरा चक्कर लगा कर पुष्टि करते थे कि कोई दिक्कत नही है। हलांकि रात में पुलिस के जवान भी कैम्पस में रहते थे लेकिन उनका कार्य केवल सुरक्षा प्रदान करना था वे कोर्ट के समान के प्रति जिम्मेदार नही होते थे तो कोर्ट अपने चौकीदार रखता था। रामखेलावन अकेले ही कई सालों से नौकरी करते आये थे।
“दादा अपको डर नही लगता है अकेले रात को ड्यूटी करते हुये?”- संकल्प
“अरे बच्चा डर किस बात का यहाँ कौन कुछ धऱा है जो कोई लूटे आयी एक पैग मार के जहाँ झूमे सुबह हो जाती है बस हो गयी ड्यूटी तुम पढे लिखे वाले हो तुम्हारे लिये तो और बढिया है रात भर पढों और ड्यूटी भी करो। न तो कोई गर्ल फ्रेन्ड बना लेना बतियाते रहना रात भर,, आम के आम गुठालियों के दाम”- राम खेलावन ( दोनो ही हँस पड़ते है)
समय बितता गया रामखेलावन का रिटार्यडमेंट हो गया। अब संकल्प की ड्यूटी अकेले लगने लगी। रामखेलावन के साथ रहकर संकल्प भी मझ गया था। उसे अब दिक्कत नही होती थी। घर परिवार में भी सब सेट हो गया था।
धीरे धीरे ठण्ड का मौसम आने लगा रात में अब ठण्ड होने लगी थी। संकल्प ने नगर पालिका के पड़े लकड़ी के गठ्ठे को जला कर रात भर तापता रहता और पढ़ाई करता। एक दिन रात में कोहरा बहुत पड़ रहा था। पुलिस के जवान अपने अपने कैम्प में थे। संकल्प बैठा आग सेंक रहा था कि गेट पर एक बुर्जुग को खड़े देखा जो कांप रहा था। संकल्प ने सोचा कोई गरीब होगा जो ठन्ड से आग के पास आना चाहता है तो उसने तुरन्त उसके पास गया।
“क्या है दादा क्या चाहिये?”- संकल्प
“बाबू साहेब तारिख ले आये रहे, अगली तारीख कब की लगी है?”- बुर्जुग
“तारीख के लिये दिन में आना चाहिये दादा रात में सब बन्द है यहाँ कहा तारीख पता चलेगी”-संकल्प
“जी ठीक है बाबू जी”- बुर्जुग
(संकल्प के मुँह से जैसे ऐसा सुना बुर्जुग पीछे घुमा और अपनी लाठी पटकते हुये कोहरे में कहीं गायब हो गया।)
कुछ दिनों बाद रात में फिर कोहरे के साथ वो बुर्जुग आया और गेट के पास खड़ा हो गया पूरा शरीर मैले कुचैले कपड़ो से ढका था। पूछने पर फिर से वही बात तारीख बता दो संकल्प ने पुनः वही जबाव दिया और बुर्जुग फिर से चला गया। ठन्ड बढती जा रही थी और अब कोहरा अक्सर होने लगा था। एक दिन फिर तीसरी बार वो बुर्जुग आया ।
“क्या हुआ दादा तुम्हे रात में ही तारीख लेने आना होता है? दिन में आना चाहिये ना”- संकल्प
“बाबू जी दिन में आवात है लेकिन कोई हमारी बात सुनता ही नही है हम चिल्लाते रहते है सबसे पूछते है लेकिन कोई बताता ही नही कि हमारी तारीख कब लगी है?”- बुर्जुग ( आवाज में दर्द के साथ)
“जड़ा रहा होगा आइये आग के पास बैठ जाइये”- संकल्प
“नही आग के पास ना बुलाओ नही तो जा नही पायेंगे घर में बुढिया बिमार है तुम हमारी बात सुन लिये तो हम चले आये तुम्हारे पास पूछने”- बुर्जुग
“जमीन का मैटर है काहे बुढ़ापे में हड्डी गला रहे हो दादा। थोड़ी बहुत जा रही है जाने दो लेकिन सुख से रहो”- संकल्प
“जमीन का क्या करूँगा बाबू जी जब बिटिया नही रही तो सब जने मिलकर मार डाले हमारी फूल सी बिटिया को जमीन खेत जो रही सब बेंच दिया ताकी इऩ्साफ दिला सके अपनी बिट्टी को”- बुर्जुग
“क्या हुआ आपकी बिट्टी के साथ?”- संकल्प
“बच्चा हम बियाव कर दिया हमार एक बिट्टी ही रहे अपनी जान में हम सबकुछ दिया खेत बारी जो रही बेंच के खूब दहेज दिया लेकिन दारिंदन का कम लगे और हमारी बिट्टी को जिन्दा जला कर मार दिन सब लोग मिल कर। लेकिन हम भी बचा कुछ खेत बारी बेंच के सब पर मुकदमा कर दिया अपना सब बेंच देब लेकिन इन्साफ दिला के रहब अपनी बिट्टी को”- बुर्जुग
(बुर्जुग की बात सुनकर संकल्प को अब बुर्जुग से हमदर्दी हो गयी थी। उसने बुर्जुग को समझाया की दादा परेशान न हो ये कोर्ट न्याय का मन्दिर है यहाँ सब को न्याय मिलता है कभी कभी देर हो जाती है लेकिन जरूर मिलता है।)
बुर्जुग की आँखो में आंसू थे लेकिन संकल्प के समझाने पर आँसू पोछे ।
“दादा ऐसा करो अपनी कोर्ट और मुकदमा नम्बर बता दो हम कल आपको बता देंगे अगली तारीख और कब आपका मुकदमा फाइनल होगा।”- संकल्प
बुर्जुग ने मुकदमे से सम्बन्धित सभी चीजे संकल्प को नोट करा दी। अगले दिन संकल्प देर तक रूका और सम्बन्धित कोर्ट में जाकर वहाँ के पेशकार से मिला और अगली डेट पूछी।
“कौन पूछ रहा है इस केस की डेट?”- पेशकार
“वही दादा पूछ रहे है जिनकी बेटी है कल रात में आये थे”- संकल्प
“संकल्प थोड़ी चढावे लगे हो तुम भी क्या?”- पेशकार
“क्यों बाबू जी क्या हुआ?”- संकल्प
“अरे यार मारा हुआ आदमी तुमसे डेट पूछने आ रहा है अजीब बात बता रहे हो”- पेशकार
“अरे क्या बात कर रहे है? अभी रात को ही आया था”- संकल्प
“इस केस के वादी लड़की के माता पिता थे 12 साल से केस चल रहा था डेट पर डेट पड़ रही थी बुढ्ढे ने एड़ी चोटी को जोर लगा दिया सब बेंच डाला महंगा से महंगा वकील किया लेकिन एक दिन बुढिया खतम हो गयी और बाद में बुढ्ढा भी हार्ट अटैक से मर गया। लेकिन वकील साहब में इंसानियत थी तो केस को आगे बढाते रहे और फैसला करा लिया है जल्दी ही लड़की के ससुराल वालो को सजा सुना दी जायेगी”- पेशकार
(पेशकार की बात सुनकर संकल्प को गहरा धक्का लगा। संकल्प वही गिर बेहोश होकर गिर पड़ा। उसे तत्काल अस्पताल ले जाया गया। संकल्प की तबीयत खराब होने से डॉक्टर साहब ने दो हफ्तों का चिकित्सीय अवकाश दिया और संकल्प अपने घर चला गया। वहाँ पर कुछ दिनों तक माहौल बदलने से संकल्प ठीक होकर ड्यूटी वापस आ गया। कुछ दिनो तक उसे रात की ड्यूटी नही दी गयी। इस दौरान उस केस का फैसला भी हो गया सभी आरोपियों को सात –सात वर्ष की कैद सुनायी गयी। फिर कोहरा तो आया लेकिन बुर्जुग इंसाफ की तारिख पूछने नही आया...... अब ये चाहे संकल्प की माँ द्वारा पहनाये गये दुआओ के ताबीज का असर था या कुछ और कभी कोई बता नही सका........................