उज्जैन के महाकाल:- एक अद्भुत अनुभव RISHABH PANDEY द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • Devil I Hate You - 7

     जानवी की भी अब उठ कर वहां से जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी,...

  • दरिंदा - भाग - 12

    इस तरह अचानक अशोक अंकल को अपने सामने खड़ा देखकर अल्पा समझ ही...

  • द्वारावती - 74

    74उत्सव काशी में बस गया था। काशी को अत्यंत निकट से उसने देखा...

  • दादीमा की कहानियाँ - 4

     *!! लालच बुरी बला है !!*~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~*एक बार...

  • My Devil Hubby Rebirth Love - 54

    अब आगे रूही रूद्र को गुस्से में देख रही थी रूद्र ‌रूही के इस...

श्रेणी
शेयर करे

उज्जैन के महाकाल:- एक अद्भुत अनुभव

बात आज से कुछ वर्ष 2012-13 की है प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हुए मुझे बहुत अधिक समय व्यतीत हो चुका था। मैं अब तैयारी के उस मुकाम पर था कि किसी भी परीक्षा में बेहतर स्कोर कर सकता था।


बचपन से ही मेरा वर्दी के प्रति प्रेम जग जाहिर था, पहले एन डी ए फिर वायुसेना के लिए मैंने भरकस प्रयास किया था किंतु निर्देशन के अभाव में सफलता नही मिल पाई। मेरी तीन बहने है उनके विवाह इत्यादि में बहुत पाइसा लगेगा यह सोचकर कोचिंग में पैसा लगाने की कोशिश भी मैंने नही की।

2013 की पुलिस कांस्टेबल भर्ती मेरे लिए एक उम्मीद की किरण बनकर आयी। प्रारंभिक परीक्षा में बहुत अच्छा स्कोर किया और प्रारंभिक परीक्षा के तुरन्त बाद रिजल्ट पर कुछ छात्रों ने हाईकोर्ट इलाहाबाद में केस कर दिया। अब लगा कि भर्ती फस गयी और महीनों जाएंगे।



31 अक्टूबर की शाम को मैं घर पर बैठा था कि मेरे मोबाइल पर पुलिस की तरफ से मैसेज आया कि मेरी दौड़ 14 नवम्बर को झांसी में लगी है। 1 नवम्बर को सुबह ही मैं ग्राउंड पर पहुँच गया। दौड़ में तीन श्रेणी में अंक मिलने थे 60 अंक जिसने 30 मिनट से पहले रेस पूरी की, 80 अंक जिसने 24 मिनट से पहले पूरी की, और 100 अंक जिसने रेस 19 मिनट से पहले पूरी की। समय कम था मात्र 10 दिन तो किसी तरह मैं 60 अंक पाकर रेस पास कर गया। मुख्य परीक्षा में स्कोर कर के जगह पक्की करने का मौका था अब मैने जम कर पढाई की और 300 में 251 अंक स्कोर किया जोकि रेस के अंक मिला कर 251 60=311/400 था। मन मे उत्साह था कि अब वेरोजगारी का दंश मिटने वाला है। विभिन्न सर्वे से मेरिट 285/400 लगने की संभावना थी और मेरे 311 थे पूरी तरह से निश्चिन्त था मैं।



लेकिन तत्कालीन सरकार ने बड़े पैमाने पर घोटाला किया लगभग 2800 से अधिक ओ एम आर में 40 से अधिक प्रश्न बदल दिए गए। नतीजा अब मेरिट 314 लगी मैं 3 अंक से बाहर हो गया सपना टूट गया था। आंदोलन हुए बहुत से प्रतियोगियों ने विधान सभा से लेकर राजमार्ग तक जाम किया न्यायालय की शरण ली लेकिन सारे प्रयास ढाक के तीन पात ही साबित हुए।



जीवन मे असफलता से पहली बार दर्द को महसूस किया था मैंने।

समय रेत की तरह हाथ से निकल रहा था।



देखते देेखते मैं कब 18 से 25 वर्ष का हो गया पता ही नही चला। अब वर्दी से सम्बंधित सभी परीक्षाओं के लिए मेरी उम्र निकल चुकी थी शारीरिक रूप से फिटनेस भी बिगड़ गयी। शरीर अब 90 किलो का हो चुका था।





भारत के लाखों करोड़ों युवाओं की तरह मैं भी अब सरकारी नौकरी की चाहत में एस एस सी, रेलवे बैंक सभी जगह हाथ पैर मार रहा था। फिर एक दिन उत्तर प्रदेश सरकार की पुलिस दरोगा भर्ती का फार्म आया। एक बार फिर से मेरा वर्दी प्रेम जागा। वर्दी की चाहत को हवा मिल गयी। फार्म भर कर मैं तैयारी में जुट गया।




मैथ रीजनिंग हिंदी और सामान्य ज्ञान तक बात आसान थी लेकिन इस बार मूल विधि और सँविधान एक नया बिल्कुल नया विषय था पढ़ने के लिए। सँविधान, भारतीयः दंड संहिता (आई पी सी), पुलिस कार्यविधि (सी आर पी सी) की किलिष्टता पूर्ण भाषा को समझकर सरल भाषा मे समझना एक बड़ी चुनौती थी।






किन्तु अथक परिश्रम से मैने यह समस्या भी दूर कर ली । परीक्षा का दिन निकट आया लखनऊ में परीक्षा हुई मेरा पेपर बहुत ही अच्छा गया कुल 140 में मेरे 117 प्रश्न सही हुए। निजी सर्वे के अनुसार मेरा नाम शुरू की कम से कम टॉप 50 की लिस्ट में अवश्य था। इस बार मेरिट आउट होने का खतरा नही था।



इस लिए पूर्ण विश्वास था कि वर्दी मिल जाएगी लेकिन अभी दौड़ एक बड़ा आयाम था इसके लिये। मैंने मार्च 2018 से दौड़ की तैयारी शुरू की। लक्ष्य बड़ा था वजन कम कर के 90 से 65 लाना लेकिन उत्साह था कि इसके बाद मन पसन्द दरोगा की वर्दी सीने पर होगी। मैं सुबह न दौड़ कर दोपहर में मई जून की गर्मी में 11 बजे दौड़ता, लगातार ग्राउंड में 1 घण्टे तक दौड़ता रहता था नतीजा लगभग 45 दिनों में मेरा वजन 66 kg हो गया।




रेस भी समय से पूरी हो रही थी आत्म विश्वास चरम पर था और होता भी क्यों न मेहनत भी जी तोड़ की थी। दौड़ का दिन आया मैं सीतापुर गया दौड़ के लिए 28 जून को । लेकिन इंद्र देव ने भंयकर वर्षा की नतीजा ग्राउंड में पानी भर गया । हमे अगली तिथि 6 जुलाई देकर घर भेज दिया गया। फिर 6 जुलाई को हम पहुँचे 5 जुलाई की रेस पानी गिरने के चलते कैंसिल हुई थी लेकिन मौसम खुल गया था तो 6 जुलाई की रेस कराई गई। भंयकर धूप से उमस का स्तर बहुत बढ़ गया। मैं दौड़ रहा था समय से सब ठीक जा रहा था अब मेरा आखरी चक्कर था कि मेरे ऊपर एक प्रतियोगी गिरा जिसने कोई दवा ली थी मेरे पैर में मोच आ गयी दर्द से चलना भी दूभर हो गया। किसी तरह मैं भागते हुए रेस पूरी किया किन्तु मात्र 4 सेकेंड से चूक गया। 4 सेकेंड में मेरे कंधे पर सजने वाले स्टार को दुर्भाग्य ले उड़ा। मैं निराशा और मानसिक पीड़ा के गर्त में चला गया यह हार मुझे सहन नही हुई। मेरा ईश्वर पर से विश्वास उठ गया था। लगभग 2 माह तक पूजा पाठ याचना प्रार्थना सब बन्द हो गयी। दोस्तो से दूरी बना ली फोन हटा दिया। निरन्तर अवसाद मुझे घेरता जा रहा था। उस समय मैं बीएड के द्वितीय वर्ष में था। पापा और माता जी ने कहा कि जाओ वैष्णो देवी हो आओ कुछ हवा पानी भी बदल जायेगा। मैने न चाहते हुए भी हा कर दी बीएड के एक साथी से बात हुई वो भी तैयार हो गया हम रेलवे का रिजर्वेशन करने लगे लेकिन कही नही मिला तो उज्जैन के महाकाल के दर्शन की इच्छा हुई टिकट बुक हो गयी हम दोनों मित्र 19 अक्टूबर 2018 को चल पड़े। 20 को शाम को दर्शन हुए महाकाल जी के लेकिन अंदर गर्भ गृह में नही जा सके। अब बात सुबह 21 अक्टूबर को गर्भ गृह में जाने की आयी। मेरी इच्छा बाबा जी को पीली धोती चढ़ाने की हुई। मैने खरीद ली सुबह हम नियत समय पर मंदिर में पहुँचे। मैने झुक कर बाबा महाकाल को धोती पहनाई और अपना सिर शिव लिंग पर रख दिया । एक ही क्षण में अद्भुत एहसास को मैने महसूस किया ऐसा लगा कि मेरे सिर से नकारात्मक ऊर्जा निकल रही थी और सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश कर रही थी। मैंने सिर उठाया तो सबकुछ शून्य हो चुका था मैंने महसूस किया कि वहाँ पर मेरे और महाकाल की शिवलिंग के सिवाय और कुछ है ही नही। ऐसा लगा मेरे सिर पर किसी ने हाथ फेरा आंखों से आंसुओ की धारा निकल पड़ी। यह बहुत ही अद्भुत एहसास था। मेरी सारी निराशा अवसाद खत्म हो गए थे। हम उसके बाद ओंकारेश्वर भी गए और 25 अक्टूबर को वापस आ गए। जीवन में अब शांति थी आज 2 वर्षों के बाद मैं सरकारी सेवा में कार्यरत हु बाबा की कृपा से जीवन चल रहा है। हालांकि उसके बाद पुनः बाबा की शरण अभी नही मिली है आशा है बाबा महाकाल जल्द ही अपने दरबार बुलाएंगे।


जय महाकाल