अनचाहा रिश्ता (शादी मुबारक) ७ Veena द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अनचाहा रिश्ता (शादी मुबारक) ७

" ये क्या है मीरा ? तुम्हे पता है ना मेरी मीटिंग है। फिर भी तुम्हे अभी वो फाइल गुमानी थी। याद करो कहा रखी है।" स्वप्निल गुस्से में सुबह सुबह उस पर चिल्ला रहा था कि तभी समीर केबिन में आता है।

"क्या चल रहा है? पूरे केबिन को कबाड़खाना क्यों बना रखा है दोनो ने ? और तो और अभी मीटिंग है ? " समीर ने गुस्से में पूछा।

"मीरा मैडम ने जल्दी जल्दी में फाइल कहीं गुमा दी है। खड़ी क्या हो अपना डेस्क चेक करो । याद करो आखरी बार कहा देखी थी।" स्वप्निल फिर से उस पर चिल्लाया।

" आप मुझे पैनिक मत कीजिए मैंने कहा ना ,कल मैंने फाइल आपके टेबल पर रखी थी। मुझे अच्छे से याद है। आप याद किजिए मेरे जाने के बाद कौन कौन आया था।" मीरा ने जवाब दिया।

" मैंने उसमे करेक्शन कर फाइल तुम्हारे टेबल पर रखी। तुम्हे फोन पर इनफॉर्म भी किया था। आगे याद करो" स्वप्निल

" हा याद आया। आपने मुझे बताया फिर मैंने उस में काम किया। फिर मैंने डेस्क पर फाइल रखी थी। तब आपने मुझे अंदमान वाली फाइल के लिए बुलाया था। जब में वापस गई राजू वहा ज़ेरॉक्स के लिए आया था। मैंने उसे इनफॉर्म किया कौनसी फाइल करनी है। शायद वो ले गया हो??" मीरा अपना हात सर पर मारते हुए केहती है।

" मुझे १० मिनिट. में फाइल टेबल पर चाहिए जाओ" स्वप्निल पूरी तरह से गुस्से में बोला।

" हा अभी जाती हूं। " मीरा वहा से चली जाती है।

" तू तैयार है।" वो थोड़ा शांत होकर समीर से कहता है।

" हा मै रेडी हू। तेरी फाइल आजाए तो निकलेंगे। लेकिन केबिन कि हालत तो देख । समेटेगा कब। कल निकलना है।" समीर

" वो समेट लेगी यार। उसे पता है में कौनसी चीज कहा रखता हू। और वैसे भी उसी की वजह से ये हुआ है।" स्वप्निल कुछ टेंशन में आकर कहता है।

सामने के दरवाजे से मीरा फाइल लेकर आती है।
"मिल गई। वो ही ले गया था गलती से। मैंने आपकी जगह उसे डाट भी दिया। में अच्छी हू ना ??" वो खुशी खुशी उसके हाथ में फाइल देकर केहति है।

" तुम्हे तो में आकर बताता हू। तुम कितनी अच्छी हो ये। मेरे आने तक केबिन क्लियर कर देना। मेरे जाने के टिकेट और सारी फाइल्स रेडी रखना। समझी" वो उसके हाथ से फाइल लेता है अपनी रेगुलर आवाज में उसे हुकुम देता है और दोनो वहा से जाने लगते है।

" थैंक यू तो नहीं मिला पर ज्यादा काम मिल गया" मीरा अपने आप में ही बड़बड़ाती है।

" तुमने कुछ कहा" स्वप्निल जाते जाते फिर उसे टोकता है।

" हा बेस्ट ऑफ लक फॉर मीटिंग" मीरा बात घूमा देती है।

वो दोनो वहा से निकल अगली प्रोजेक्ट मीटिंग में चले जाते है। चार घंटे चली इस लंबी सी मीटिंग के बाद जब दोनो वापस केबिन में आते है। सुबह सुबह बिखरा हुआ केबिन अब वापस पूरी तरह से जगमगाया हुआ था। हर चीज अपनी जगह पर यहां तक की वाज तक सजाया गया था।

" अब ये हुई ना बात एक सक्सेसफुल मीटिंग के बाद, सजासजया केबिन कितना अच्छा लगता है। सही कहा था तूने मीरा बेस्ट एसिसतंट है" समीर खुर्सी पर बैठ कहता है।

" हा मैंने ट्रेंनिग दिए हैं। बेस्ट तो उसे होना ही है।" स्वप्निल उसकी हा में हा मिलाता है।

" गरमा गरम कॉफी ऑर्डर कर। मीटिंग की चाय पी कर में बोर हो गया यार।" समीर सुस्ताते हुए केहता है।

" बस ५ मिनिट रुक कॉफी आती होगी।" स्वप्निल
जैसे ही घड़ी में चार बजते हैं। मीरा कॉफी के मग लेकर अंदर आती हैं।

"आज तुम! राजू कहा है?" स्वप्निल पूछता है।

" वो आप डाटेगे सोचकर डर के मारे नहीं आया अंदर बाहर देकर चला गया" मीरा स्वप्निल के हाथ में एक कप देती है।

" तुम्हे डर नहीं लगता स्वप्निल से ?" समीर कॉफी कप उठाते हुए सवाल करता है।

" अब नहीं लगता। मुझे इनकी डाट की आदत सी हो गई है। यहां तक कि इनके स्टेटमेंट डायलॉग भी याद हो गए। सुनाओ आप को?" मीरा उत्साह के साथ समीर से पूछती है।

समीर स्वप्निल को देखता है और एक हसी के साथ कहता है " वैसे तो मैंने कई बार उसे लोगो को दाटते हुए देखा है। फिर भी में उसका फीमेल वर्जन जरूर देखना चाहूंगा।"

मीरा तुरंत अपने शर्ट के स्लीव्स उपर करती है अंड कॉलर टाईट करती है।

"मैंने आज तक कभी ऑफिस में ऐसी ड्रेसिंग नहीं की" स्वप्निल उसे गुस्से से घूरता है।

" अरे ये तो बस आपका फील लेने के लिए हैं। प्लीज माइंड मत कीजिए ना आगे देखये।" मीरा अपनी एक्टिंग शुरू रखती है।

वह समीर को स्वप्निल के सारे गुसेवाले डायलॉग सुनाती है। स्वप्निल देख कर इरिटेट हो उसके पीछे जाकर खड़ा होता है। जैसे ही वो घूम ती है, उसे अपने पीछे देख चौंक जाती है। उसका पैर फिसलने वाला होता है तभी स्वप्निल उसे कमर से पकड़ लेता है। " फिर वही धक धक। ऐसा क्यों होता है? हर बार जब आप करीब आते हैं। मेरी धड़कन क्यों बढ़ जाती है। मुझे इसे रोकना होगा।" वह उसे देखते हुए सोचती है।

" ये आज कल तुम्हे हुआ क्या है ? अचानक ऐसे चुप हो जाती हो। अब खडा होना है या ऐसे ही रहना है ?" वो उसे पूछता है।

" वो में.......आपकी गलती है। में गिर सकती थी। अब मुझे खड़ा कीजिए ठीक से।" वो होश में आकर जवाब देती है।

" अब अगर तुम्हारा सब काम हो चुका हो तो जाओ और अपना सामान बांधो।" स्वप्निल

" क्या बस इतनी सी बात के लिए आप मुझे निकाल रहे है। कितने बेरहम है आप। सुबह हुए हादसे में तो मेरी गलती भी नहीं थी। आप ऐसा नहीं कर सकते । आप मुझे नहीं निकाल सकते।" मीरा

" पहली बात जो दवाई तुम ले रही हो ना उसका तुम पर कोई असर नहीं हो रहा है। तुम्हे अभी भी दौरे आ रहे है। और" वो आगे कुछ बोले उस से पहले मीरा बोल पड़ती है।

"आप मुझे पागल कह रहे है"

" क्या कभी तुमने किसी की पूरी बात सुनी है। मुझे मेरी बात तो केहने दो। जब में डाटता हू थोड़ा ध्यान मेरी बातो पर दो। अब क्या हुआ चुप क्यों हो ?" उसने सवाल किया।

" में ध्यान से सुन रही हूं।अब आप मुझे डाट ने वाले है ना।" उसका जवाब तैयार था।

" ठीक है। अपना सामान पैक करो क्यों की हम १ हफ्ते के लिए अंदमान जा रहे है। ज्यादा काम होने की वजह से तुम्हे मेरे साथ आना होगा। समझी।" स्वप्निल

" ओह। में भी ना ।मुझे लगा आप नाराज हो कर मुझे निकाल रहे है। ठीक है। कल कितने बजे निकलेंगे" मीरा

" कल शाम को ऑफिस से सीधे जाएंगे समीर हमे ड्रॉप कर देगा। अपना सामान सुबह ऑफिस में ले आना।" स्वप्निल उसे बतात है।

आखिरकार दिन खत्म होने के बाद मीरा घर जाकर उसके पापा को उसका शेड्यूल बताती है।
" मुझे नहीं लगता तेरा जाना जरूरी है। तुम मना कर दो बेटा।" मि. पटेल मीरा को समझाते है।

" पापा उन्हे जरूरत होगी। इसी लिए ले जा रहे है। वरना वो बोहोत खडूस है। में केहती तो भी नहीं मानते अच्छा हुआ ना अब खुद ले जा रहे है। मुझे अच्छा एक्सपीरियंस मिलेगा। मज्जा आएगा" मीरा

" हा पर वो जगह में जानता हू काफी खतरनाक है। और तुम वहा बिना सुरक्षा। " मि. पटेल उसे अपनी चिंता बताते है।

" कुछ नहीं होगा। बॉस ने कहा हम पुलिस प्रोटेक्शन के साथ जाएंगे" मीरा

" हा ठीक है। तेरे बॉस की काफी तारीफ सुनी मैंने आज अपने कुछ पुराने दोस्तो से जो तुम्हारे कंपनी के क्लाइंट है। काफी कम उम्र में अच्छी पोस्ट पर है वो।" मि. पटेल

"हा ३० से ऊपर है। पर दिखते नहीं है। छोड़िए चलिए पैकिंग करते है। में वहा से आपके लिए गिफ्ट लाऊंगी। आप कल मुझे छोड़ने आएंगे ना पापा। में अभी से आपको मिस कर रही हूं" मीरा उनसे गले लग केहती है।

" जरूर बेटा। जल्दी जाओ और जल्दी आओ। फिर मेरे पास भी तुम्हे देने के लिए एक गिफ्ट है। " मि. पटेल

"दीजिए" मीरा आंखे बंद कर हाथ आगे करती है।

"धत। ऐसा गिफ्ट नहीं। बोहोत बड़ा है। पहले वापस आओ फिर बताता हूं" मि. पटेल

हा में अपना सर हिलाए मीरा वापस अपना सामान समेटने में लग जाती है। दूसरे दिन सुबह सुबह ऑफिस में फिर से स्वप्निल और मीरा सामने टकरा जाते है।

" गुड मॉर्निंग बॉस" मीरा

" गुड मॉर्निंग। ऑल सेट। चलने के लिए तैयार?" स्वप्निल

" जी बिल्कुल।" मीरा

ऑफिस से सब काम समेटने में पूरा दिन निकल जाता है। शाम को तीनो समीर की कार से एयरपोर्ट के लिए निकलते हैं।

"आम लड़कियों से काफी कम सामान इस्तेमाल करती हो तुम मीरा एक बैग और वो भी इतना छोटा सा।" गाड़ी चलाते चलते समीर बात छेड़ता है।

" हा में भी शौक हू।" स्वप्निल

"ये मेरा पूरा सामान नहीं है सर। दो बैग्स डैड सीधे एयरपोर्ट लेकर पोहोच गए है। में दिन भर कहा लेकर घूमती सो उन्होंने कहा वो पोहचा देंगे" मीरा अपने मोबाइल में कुछ करते हुए जवाब देती है।

"अगर सब वहीं पोहचाने वाले थे तो तुम ये एक बैग क्या दिखावे के लिए लाई हो। और २ बैग्स मतलब तुम क्या वहा पर्मानेंट शिफ्ट हो रही हो इतने समान की जरूरत नहीं है। उन्हे मना कर दो।" स्वप्निल

"नहीं कर सकती। वो पहले ही पोहौच गए है। एन आप प्लीज उनके सामने अच्छा बिहैव करना।" मीरा उसे समझाती है।

" क्या कहा ? में बिहैव करू। पहले तुम सीखो अच्छा बेहवीयर फिर मुझे समझाना।" स्वप्निल

"फ़िक्र मत करो मीरा। स्वप्निल एक अच्छा बच्चा है। खासकर बडो के सामने।" इतना कह समीर और मीरा दोनो उस पर हसते है।

एयरपोर्ट पर जाते ही मि.पटेल उन्हे मिलते है। मीरा उन्हे देख खुशी से गले लगती है।
"डैडी इनसे मिलिए, ये मेरे बॉस मि. स्वप्निल पाटिल और ये अजय के बॉस मि. समीर सरदेसाई।" मीरा दोनो को मिलवाती है।

उनसे हात मिलाकर स्वप्निल कहता है " आपसे मिलकर अच्छा लगा मि. पटेल। अब तक काफी कुछ सुना था आपके बारे में आज आप को देख कर लगता है लोग आप की तारीफ यूहीं नहीं करते।"

"देखो बेटा मेरा तो सीधा मानना है जितना तुम्हारा साधा रहना होगा उतना जीवन सरल होगा। बस ये बात में इन्हे नहीं सीखा पाया। इसे फैंसी ड्रेसिंग की आदत है।" मि. पटेल

"लेकिन मीरा कपड़ों के सिवाय सबसे सिम्पल है। आपकी सीख उस में दिखती है।" समीर

"मेरी एकलौती बेटी जो ठहरी। संभाल कर जाना और जल्दी लौट आना। आने के बाद मिलते है आपसे मि. पाटिल। वहा आपको किसी भी चीज की कमी लगे मुझे एक बार फोन कर दीजिए गा मेरा नंबर मीरा से ले लीजिए। में हमेशा आप दोनो के लिए तैयार रहूंगा।" मि. पटेल

"आप फ़िक्र मत कीजिए। मीरा हमारे ऑफिस की जिम्मेदारी है। में उसे संभाल लूंगा। जल्द मिलते है।"

इतना कह मि.पटेल और समीर से विदा ले दोनो एक सफर पे निकल चुके हैं। पर इन्हे नहीं पता कि यही सफर अब अंग्रेजी वाला Suffer बनने वाला है।

कभी कभी किस्मत आपकी डोर एक ऐसे अजनबी के साथ बांध देती है। जो आपकी नजरो के सामने होते हुए भी आपसे अनजान होता है। ऐसे में कितना मुश्किल हो सकता है, एक जन्म जन्म वाला रिश्ता निभाना? आयिये साथ देखते हैं।
क्या मि.पटेल की चिंता जायज है?

या स्वप्निल का आत्मविश्वास सब चीजों का हल बन जाएगा या उसी को फसा देगा?

मीरा की नासमझी और उलझन सुलझेगी या और भी उलझने वाली है?

जो अजनबी बन यहां से गए है आते वक़्त भी अजनबी ही रहेंगे ना?

कितने सारे सवाल पर जवाब अभी नहीं कुछ वक़्त में मिलेंगे पर जरूर मिलेंगे।