चन्देरी-झांसी-ओरछा-ग्वालियर की सैर 10
Chanderi-Jhansi-Orchha-Gwalior ki sair10
हमारी जीप ने पुराने ओरछा शहर के बड़े से दरावाजे में प्रवेश कर लिया था और अब चारों ओर का नजारा बड़ा मनोरम दिख रहा था। दूर दूर तक फैले खेत और यहॉं वहॉ झांकते पुरानी हवेलियों, चौकियों और मंदिरों के खण्डहर ओरछा के इस पूरे क्षेत्र की ऐतिहासिक गरिमा और गौरव की गाथा सुना रहे थे।
मैंने बच्चों को बताया कि ओरछा को सन् 1531 मे बुदेंला राजपूत राजा रूद्रप्रताप ने बसाया था। इस नगरी को एक तरफ से सातार नदी और दूसरी और से बेतवा नदी ने घेर रखा है बीच में टापू की तरह बसा हुआ है ओरछा । वर्तमान में ओरछा एक छोटा सा गांव है, जिसकें प्रशासन के लिए एक नायब तहसीलदार और सुरक्षा के लिए एक नगर निरीक्षक तैनात है लेकिन एक जमाने में यानि कि पांच सौ साल पहले यह गांव एक बहुंत बड़ा नगर था, खूब बड़ा बाजार होता था, खूब बड़ी बस्,ती बड़े महल और कोठियां और सैनिकों की बैरक भी। ओरछा तब बुंुदेलखण्ड के हजारों ंकिलोमीटर इलाके में फैले राज्य की राजधानी थी, दूर दूर तक राजा के सामन्तों, मंत्रियों और परिवार के लोगों की हवेलियां बनी हुई थी और यहां से वहां तक सैनिक चहलकदमी करते थे। यहॅा की जमीन टापू की तरह हरी भरी और खूब सुंदर है सन् 1603 में ओरछा की राज गदृदी पर राजावीरसिंह बुदेला का रज्याभिषेक हुआ।
रामसिहं को महावीर ने ंचंदेरी का राजा बनाया था। ओरछा के वीरसिंह देव ने सन् 1627 तक राज्य किया। इसी बीच दुश्मन सम्राट अकबर के पूत्र सलीम ने विद्रोह कर दिया , तो बीर सिह देव ने उन्हे अपने यहॉं शरण दी और उनके समर्थन में अपनी सेना को तहस नहस कर डाला । बाद में सन् 1605 में में शहजादा सलीम मुगल साम्राज्य की गद्दी पर जहॉंगीर के नाम से बैठा तो उसने उसने वीर सिहं देव को ख्ूाब सम्मान दिया । ओरछा राज्य ने उस समय खूब उन्नति प्राप्त की। वीरसिंह देव ने अपने पूरे राज्य में एक साथ बावन इमारतो का निर्माण किया। एक बार जहॉंगीर ने ओरछा राज्य कि यात्रा की तो दतिया और ओरछा में उनके लिए जहॉगीर महल बनवाया गया । इस महल के निर्माण में मुगल कला के साथ साथ बुंदेली शिल्प का भी प्रयोग किया गया है । जहॉगीर महल एक पहाडी पर स्थित है। इसी पहाडी पर राजमहल का निर्माण हुआ और शीश महल का भी राज महल का निर्माण राजा मधुकरशाह ने बाद मे करवाया था। यह युग ओरछा का स्वर्ण युग था। यह नगरी खूब समृद्व थी यहॉं कला और संस्कृति का खजाना भरा पडा था।
मेरी बात पूरी होते होते हम लोग ओरछा नगर की प्राचीन चहार दीवारी के बाहरी द्वार को पार कर चुके थे। इस दरवाजे के भीतर ही दांयी और न्यायालय भवन की नई इमारत बनाई जा रही है। कुछ और आगे जाने पर दांयाी और एक सड़क जाती दिखी जिसके पास एक बोर्ड पर रेस्ट हाउस लोकनिर्माण विभाग लिखा हुआ था। उस सड़क पर कुछ आगे वलकर एक दरवाजा बना हुआ था। जिसमे ंएक जालीदार गेट लगा हुआ था। मैंने उतरकर दरवाजा खोला तो हमारी जीप उस घुमारदार सड़क से होती हुई टीले पर बने रेस्ट हाउस के सामने जाकर रूकी । हम उतरे और एक नगर रेस्ट हाउस पर डाली ।
दो कमरे वाला यह रेस्ट हाउस उॅंचीजगह पर बने होने के कारण बड़ा सुदर दिंखाई देता था। हम रेस्ट हाउस के बरामदे में से होकर चॉरो और देखने लगे। हमारे सामने ओरछा का पुरातत्व फैला बिखरा दिखाई दे रहा थां। दूर दूर तक तमाम इमारते और ख्ंाडहर सर उठाये खडे थे। बीच -बीच में खूब बडे़ वं्क्ष वाता वरण को हरा भरा बना रहे थे। यह दृश्य देखकर बच्चे किलक उठे।
रेस्ट हॉउस से चौकीदार आया और मुझसे पुंछा की क्या आपने अपने लिए रेस्ट हाउस में पहले से कमरा बुक कराया है ? तो मैंने कहा की हमको ठहरना नही है । हम लोग ओरछा घूमने आये है और शाम तक घूम कर निकल जायेगंे
चौकीदार ने बताया कि इसी टीले पर सिंचाई विभाग का भी एक रेस्ट हॉउस है । इन दो सरकारी जगहो के अलावा यहॉं शीशमहल बेतवा काटेज औार बेतवा रिसोर्ट नामक महॅंगे और पूरी सुविधा देने वाले तीन होटल भी पर्यटको के लिए बनाये गये हैै। राम राजा होटल तथा पर्यटक विभाग का धर्मशाला यहॉ कम खर्चे पर ठहरने की उम्दा जगहे है। सादा दाल चावल रोटी खिलाने वाले भोजनालय भी यहॉ ख्ुाले हुए है । रेस्ट हॉउस में ठहरने वालों को इन्ही होटलो से खाने का इंतजाम चौकीदार किया जाता है । इसके अलावा ओरछा से पन्द्रह किलो मीटर दूर स्थित झांसी मे कई थ्री स्टार और उच्च सुविधा के होटलों से लेकर सस्ते लॉज व धर्मशालाए भी ठहरने के लिए खूब आच्छी जगह उपलब्ध कराते है । झांसी से ओरछा के लिए कुछ बसें भी चलती है और दिन भर यहॉं टेम्पो भी चलते है ।
हम लोग अपनी जीप में बैठकर रेस्ट हाउस से चले और ओरछा बस्ती की ओर बढने लगे । पुलिस थाना और वन विभाग के कर्मचारी यहॉ आने वाले पर बडी सर्तक निगाह रखते है । इसका हमे जल्दी ही अहसास होगया
पुराने नगर का भीतरी दरवाजा पार पार करते हुए हम लोग घनी बस्ती में बने एक छोटे से चोराहे पर जा पॅहुचे । चौराहे से एक रोड रामराजा मंदिर को, दूसरा बेतवा नदी होते हुए पृथ्वीपुर को , तीसरा जहॉंगीर महल को और चौथा झांसी को जाता है । टेªफिक पुलिस के सिपाही ने हमारे ड्रायवर को इशारा किया कि वह बेतवा नदी की तरफ जानेवाले रोड पर बने बस स्टेंड पर जाकर जीप रोके । हमारी जीप और आगे बढी तो आगे बस स्टैण्ड था। बस स्टेंड पर कई टेंपो,कारे,जीपे और एक बस खडी दिखाई दी ।
जीप से उतर कर मैंने बच्चों से कहा कि राम राजा मंदिर मंे देापहर बारह बजे बाद किवाड बंद होजाते है। जो फिर सीधे आठ बजे रात को ही खुलते है। इसलिए सबसे पहले मंदिर चले, फिर दूसरी जगह देखेंगे। पर बच्चों ने पहले नाश्ता किया । एक दुकान पर ब्रेड मक्खन खाकर । चौराहे से रामराजा मंदिर की तरफ जाते समय हनने देखा कि रास्ते के दोनो और मिठाई ओर पूडी साग की दुकाने है,जिनके दरवाजे और उपर का छज्जा एक सा है ।इन्ही दुकानो मे से एक दुकान में पीतल की बनी चींजे बिक रही थी। इस रास्ते के आखिरी में एक खूब बड़ा महेराबदार दरवाजा बना हैं। इस प्रवेश द्वार से निकल कर हम लोग अंदर पहंुचंे तो ठीक सामने एक फव्वारा लगा था। दिखाई जिसमे से पानी की पतली पतली धाराऐं उछल रही थी।
दरवाजे से लगी हुई बांयी और की दुकानों में मिठाईयां बिक रही थी। सामने ही दो तीन फिट उंचा एक बहुत बड़ा चबूतरा था इस चबूतरे पर चढे और आगे बडे़ । सामने एक बड़ा सा महल यानि कि रामराजा मंदिर का बड़ा द्वार दिख रहा था। बंायें तरफ के टीले पर का बना हुआ खूब उंचा चतुर्भुज मंदिर था और दायें तरह दिख रही थी दो मीनारे ं और बैठका की इमारतें ।
रामराजा मंदिर की खुब उंची दीवारे तीस-तीस फिट उंची थी और मंदिर से बाहर निकलने का एक मुख्य द्वार और इसके बगल में एक थोडा छोटा दरवाजा थी बना हुआथा। मुख्य द्वार के दोनो और दो छोटी छोटी तोंपे लगी हुई है । यहीं पुलिस के दो सिपाही खडे थे जो मंिदर मे जाने के पहले सब लोग से अपने जूते बेल्ट और कैमरा बाहर रख जाने का निवेदन कर रहे थे । हन्नी ने पूछा तो मैंने बताया कि बेल्ट चमडें का होता है इसलिए मंदिर मे अंदर नही ले जा सकते है मनाही मंदिर के अंदर फोटो खिचंना भी धर्म के हिसाब से मन किया गया है ।
मुख्य द्वार के किवांड सिंदूरी रंग के पुत हुए थे। जबकि दीवारे गुलाबी रंग से पोती गई थी। द्वार से प्रवेा करते ही पता चला कि नीचे के फर्श पर संगमरमर का चिकना पत्थर जडा हुआ है। सामने की दीवार मे दाये तरफ एक छोटा दरवाजा बन है जिस पार करके एक बरामदे मे पॅहुच जाते है । बरामदें मे छत से टंगा एक ख्ूाब बड़ा घंटा टंगा था। जिसे बजाते बच्चों कीा मैंन बताया कि किसी के यहॉं जाने पर किस तरह हम लोग द्वार पर लगी घंटी बजाके अपने पॅहुचने की सूचना देते है,उसी प्रकार मंदिर के अन्दर बाहर से घंटा बजाके भी दर्शक लोग अपनी सूचना देते है ।
चारों ओर लम्ॅबे लम्बे बरामंदे है जिनके बीचों बीच खूब बड़ा आंगन है जिसमे कि सफेद तथा काले रंग संगमरमर के टाइल लगे हुये है। आगंन और बरामदे मे खूब सफाई थी और कचरे का नामोनिशान नही था। प्रवेशद्वार से ठीक सामने ही यानि सामने वाले बरामदे में राम राजा का मंदिर था। यहॉ के बरामदे में लोहे ,की जाली लगीथी। जिसकी वजह से थोड़े थोड़े लोग मंदिर के सामने पॅहुचते थे।मंदिर मे इस समय भी अच्छी खासी भीड थी।
सामने ही राम, लक्ष्मण ,सीता की संगमरमर की बनी मर्तिया रखीथी। राम की मूर्ति काले संगमरमर की थी जबकि सीता व लक्ष्मण की मूर्तियां सफेद संगमरमर से बनी थी । लौग श्रद्वा से डूब कर झुक झुक कर प्रणाम कर रहे थे । मंदिर के किवाड चादी कि मोटी परत से ढकं हुए थे। दरवाजे पा बैठा एक युवक पंडित माथे पर खूब बडे़ तिलक लगाये पीले कपडों मे सजा धजा वहॉं आने वालों को आचमनी(चम्मच) से मीठा जल बांट रहाथा। कुछ लोेगो को वह तुलसी का पत्ता भी देता था।
उसके पास पुलिस का एक सिपाही बदुंक लिए नगे पॉव वहॉं खडा था। अभिशेक और सौरभ ने उससे पूछा कि आप मंदिर के अंदंर क्यों खडे है तो वह बोला कि लगभग पांच सौ साल पहले से यहां यही प्रथा है कि ओरछा के सबसे बड़े अधिकारी राजा रामचन्द्र है और हम उनके सेवक और द्वार पाल है ं। आजादी के बाद भी यहॉं पुलिस के लोग भेजे जाते है।
अंगन के बरामदों में राम लक्ष्मण के बहुत से मंदिर थे। बहुत से पुजारी थे।
झांसी- उत्तरप्रदेश का प्रसिद्ध नगर झांसी दिल्ली से मुम्ब्ंई जाने वाली रेल लाइन पर ग्वालियर और भोपाल के बीच में पड़ता है। यहां का निकटवर्ती हवाई अडडा खजुराहो 125 किलोमीटर और ग्वालियर का महाराजपुरा 115 किलोमीटर है।
पहुंचने के साधन- झांसी पहुंचने के लिए रेल मार्ग सर्वोत्तम है, दिल्ली से मुम्बई जाने व आने वाली सभी रेलगाड़ियां यहां रूकती है, तो कानपुर लखनउ से एक रेल मार्ग झांसी से जुड़ा है तो तीसरा रेल मार्ग मानकपुर - इलाहाबाद से भी झांसी को आता है। सड़क मार्ग से भी झांसी नगर कानपुर,इलाहाबाद,लखनउ,शिवपुरी, ग्वालियर आदि नगरों और पर्यटन स्थलों से जुड़ा हुआ है जहां से कि बस या निजी वाहन से आया जा सकता है।
क्या देखने योग्य -झांसी में रानी झांसी का किला, रानी महल, संग्रहालय और यहां से पंद्रह किलोमीटर दूर ओरछा व 125 कि.मी.दूर खजुराहो देखने योग्य प्रसि़द्ध स्थान है।
ठहरने के लिए- झांसी में ठहरने के लिए उत्तरप्रदेश पर्यटन विभाग का होटल वीरांगना, उत्तरप्रदेश सरकार के विश्रांतिगृह और दर्जन भर से ज्यादा थ्री स्टार होटल है