जिंदगी मेरे घर आना - 20 Rashmi Ravija द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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जिंदगी मेरे घर आना - 20

जिंदगी मेरे घर आना

भाग- २०

अपने केबिन में आकर कुर्सी पर ढह सी ही गई. बार बार अपना दाहिना हाथ खोल कर देखती और फिर जोर से मुट्ठी बंद कर लेती मानो क्षण भर के लिए जो शरद के हाथों की नर्म ऊष्मा मिली थी वो कहीं खो न जाये.शायद काफी देर तक निढाल सी पड़ी रही क्यूंकि मिस जोशी कुछ पूछने आईं और उसे देखकर घबरा गईं, “मैम आपकी तबियत तो ठीक है ?? क्या हुआ ? बुखार है...सर दर्द है ? न हो तो आप घर चले जाइए. आज आराम कीजिए “

आराम के नाम से ही मानो नेहा को नफरत है और वह सजग होकर कुर्सी पर सीधी बैठ गई. हाथों से सर को दबाते हुए बोली, “सर में थोड़ा दर्द है....चाय ले लूँगी तो ठीक हो जाएगा. आप चाय लेंगी ?” मिस जोशी से पूछते हुए मेज पर रखी घंटी को दो बार दबाया. प्यून आकर सीधा खड़ा हो गया. मिस जोशी ने चाय के लिए मना कर दिया और स्पोर्ट्स डे के विषय में पूछने लगीं कि कब से अनाउंस किया जाए.

“ आज स्कूल के बाद एक मीटिंग रख लेते हैं, सबकी राय ले ली जायेगी और सबकुछ डिस्कस कर लिया जाएगा. “ अब नेहा बिलकुल अपने प्रिंसिपल वाले अवतार में लौट चुकी थी.

दिन भर स्कूल के काम निबटाती रही. स्कूल की छुट्टी के बाद भी देर तक मीटिंग चलती रही. शाम को घर पहुंची तब शरद से हुई मुलाक़ात का ध्यान आया. जब भी घर शब्द जेहन में आता एक विद्रूप सी मुस्कराहट फ़ैल जाती नेहा के होठों पर. घर ? ये प्रिंसिपल का कॉटेजनुमा बंगला क्या घर है ? पहले यहाँ छाया दी रहतीं थीं. अब नेहा रहती है....पर नेहा का शायद यह घर ही हो क्यूंकि वो तो यहाँ से कहीं जाने वाली नहीं. अंदर आते ही बेजान सी सोफे के हत्थे पर सर टिका आँखें मूँद लीं. सोनमती ने प्यून से उसका बैग लेकर रखते हुए चिंतातुर स्वर में पूछा, ‘दीदीजी आपने कपड़े भी नहीं बदले...तबियत ठीक नहीं है ? चाय ले आऊँ ? “

“ना...अभी नहीं....पहले नहाउंगी जरा “

कहने को कह दिया पर वैसे ही पड़ी रही. आखिर सोनमती ने जब तीसरी बार मनुहार की, “दीदीजी तबियत ठीक नहीं तो कपड़े बदलकर बिस्तर पर आराम से लेट जाओ न थोड़ी देर. मैं सर की मालिश कर देती हूँ या पैरों में तेल लगा देती हूँ “

कभी कभी नेहा को सोनमती पर भी बड़ा गुस्सा आता है.चैन से नहीं रहने देती जरा देर...जब देखो सर पर सवार रहती है. पूरा स्कूल उसका रौब मानता है और नेहा सोनमती से डरती है. उसका कहा न किया तो बस बोलती ही रहेगी. नेहा ने अपने को खींचकर उठाया और खुद को ही धेकल कर बाथरूम तक ले गई. जब शावर की पहली बौछार सर पर पड़ी तो सिहरन सी हुई फिर भला लगने लगा. देर तक शावर के नीचे खड़ी रही पर उसे कुछ महसूस कहां हो रहा था, दिलो दिमाग तो पुरानी गलियों में भटक रहे थे. सोनमती को भी कुछ आभास हो रहा था कि आज नेहा खोई खोई सी है वरना वह बाथरूम के दरवाजे पर थपकी देकर नहीं बोलती, ‘दीदीजी चाय चढा रही हूँ ‘

यही ठीक रहेगा, चाय पीकर वह थोड़ी देर लेट जायेगी तो सोनमती उसका पीछा छोड़ेगी. नेहा ने लम्बे गीले बाल पलंग की पाटी से नीचे लटका दिए और एक तकिया पीछे लगाए चाय के घूँट भरती रही. सोनमती सामने खड़ी उसे घूर रही थी...कुछ तो बात है दीदी जी आज कुछ अलग ही व्यवहार कर रही हैं. सोनमती इस धीर गम्भीर नेहा कपूर को ही जानती है, उसे उस खिलंदड़ नेहा नवीना की क्या खबर जिसकी याद ने यूँ दिलोदिमाग में खलबली मचा दी है.

चाय का कप सोनमती को पकड़ा, नेहा ने खिडकियों के पर्दे बराबर करने के लिए कहे और बाल नीचे लटकाए ही लेट गई. वो खिलंदड़ी नेहा तो शरद की चिट्ठी पढ़ते ही जो दफन हुई फिर दुबारा नहीं लौटी. डैडी-मम्मी, भैया सब शरद के इस फैसले से नाराज़ थे. उनका कहना था, शरद जावेद की पत्नी की मदद, उसकी देखरेख शादी के बाद भी तो कर सकता है. शादी से मना करने की क्या तुक. पर उस वक्त नेहा का युवा मन त्याग और देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत था. वही मम्मी को समझाती, ‘शरद अपनी गृहस्थी बसाकर उनका ध्यान नहीं रख पायेगा. और अगर उनका ध्यान रखेगा तो अपनी गृहस्थी के प्रति न्याय नहीं कर पायेगा. शरद का फैसला बिलकुल सही है और वह उसके निर्णय के साथ है “

भैया इसे निरी भावुकता कहता. उसने गुस्से में शरद से अपनी दोस्ती खत्म कर दी थी. उसका नाम भी नहीं लेना चाहता. स्वस्ति ने एम.ए. के बाद बी. एड. का फॉर्म भरा तो नेहा ने भी साथ में भर दिया. डैडी उसके फैसले से बिलकुल ही सहमत नहीं थे.वे चाहते थे नेहा पी एच.डी करे.फिर किसी कॉलेज में अध्यापन करे. पर मम्मी ने नेहा का साथ दिया और डैडी को भी समझाया, ” स्वस्ति नेहा की बेस्ट फ्रेंड है. अभी अभी नेहा को शरद से इतना बड़ा झटका मिला है.अगर उसकी बेस्ट फ्रेंड भी दूर हो जायेगी तो नेहा का सम्भलना मुश्किल हो जाएगा.” नेहा का दिमाग तो जैसे शून्य सा हो गया था. वह बस बहाव के साथ बही चली जा रही थी. कोई आकांक्षा महत्वाकांक्षा नहीं रह गई थी. उसने कभी जीवन को सीरियसली लिया भी नहीं था. उछलते-कूदते -शरारतें करते....प्यार हो गया और प्यार के बाद शादी हो जाती तो वह वैसे ही आगे की जिंदगी बिताती रहती. नेहा ने खुद को लेकर कोई योजनायें बनाई भी नहीं थीं....ना कोई बड़े सपने देखे थे. पर बी.एड. की पढ़ाई उसे भाने लगी थी. उसके पैरेंट्स की योजना थी कि बी.एड करते वक्त गुजर जाएगा. नेहा, शरद को भूल जायेगी और फिर नए सिरे से जिंदगी शुरू करने के लिए तैयार हो जायेगी.

उन्होंने लडके देखने शुरू भी कर दिए थे पर उन्हें ज़रा भी इल्हाम नहीं था कि नेहा कुछ ऐसा कर बैठेगी. नेहा ने बी.एड के इम्तहान ख़त्म होने के बाद से ही नौकरी के विज्ञापन देखने शुरू कर दिए थे.सुदूर इस पहाड़ी शहर के रेसिडेंशियल स्कूल में टीचर के लिए अप्लाय कर दिया था. जब उसका नियुक्तिपत्र आया और नेहा ने घर में बताया कि वह ये नौकरी स्वीकार कर रही है तो जैसे तूफ़ान आ गया. डैडी बहुत चीखे-चिल्लाये, मम्मी ने रो धोकर, बुआ ने प्यार से समझाकर नेहा को रोकने की बहुत कोशिश की, पर नेहा को मानो यह नौकरी एक चैलेन्ज की तरह लग रही थी. नेहा ने अब तक घर के सुरक्षित माहौल में जीवन गुजारा था.इस तरह से सुरम्य पहाड़ियों के बीच बिलकुल अजनबी माहौल में बच्चों के बीच रहने का ख्याल ही उसे बहुत रोमांचक लग रहा था. भैया अपने यू पी एस सी के महत्वपूर्ण इंटरव्यू की तैयारी से ब्रेक लेकर उसे समझाने आया. पर नेहा को अपने निर्णय के प्रति इतना दृढ़प्रतिज्ञ देख फिर ज्यादा जोर नहीं डाला.

डैडी बिलकुल गुमसुम से हो गए थे. मम्मी उसका सामान सम्भालती आंसू पोंछती बुआ से कह रही थीं, “कहां उसके ससुराल जाने का सूटकेस सम्भालने का सपना देखा था और देखो क्या सम्भाल रही हूँ.” बुआ कहतीं, “ अरे आप चिंता ना करो भाभी. ये शहर में पली बढ़ी लडकी, उस छोटे से शहर में चारदीवारी के अंदर रह पाएगी?.देखना कुछ ही दिनों में खुद ही वापस आ जायेगी. थोड़े दिन उसे अपने मन की कर लेने दो “ मम्मी के डूबते मन को जैसे तिनके का सहारा मिला था...”ईश्वर करे ऐसा ही हो....शहर के सारे मंदिर में माथा टेकूंगी” कहते मम्मी ने हाथ जोड़ लिए थे.

वैसे तो नेहा का मन यहाँ खुद ही रम गया.वरना शायद कभी वापस लौटने की सोचती भी तो बुआ के वे शब्द उसकी राह रोक लेते. मम्मी-डैडी चाहे उसके इस फैसले से जितने भी नाराज़ हों पर उसे स्कूल तक छोड़ने आये थे.अपनी आँखों से देख लेना चाहते थे कि जगह उनकी लाडली बिटिया के लिए सुरक्षित है ना.