जिंदगी मेरे घर आना - 21 Rashmi Ravija द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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जिंदगी मेरे घर आना - 21

जिंदगी मेरे घर आना

भाग – २१

स्कूल की प्रिंसिपल छाया गुहा को देखकर मम्मी-डैडी एकदम निश्चिन्त हो गए.छाया दी, बहुत स्नेहिल थीं. उन्होंने मम्मी-डैडी को पूरा आश्वासन दिया कि वे नेहा का अपनी बेटी की तरह ख्याल रखेंगी. वे नेहा को देख बहुत खुश हुईं थीं. उन्हें आशा नहीं थी कि कॉलेज से निकली कोई फ्रेश लड़की यहाँ आने की सोचेगी. इस स्कूल को ऊंचाइयों तक ले जाने के उनके बहुत सपने थे और इस सपने को पूरा करने के लिए वे युवा लोगों का सहयोग चाहती थीं. जो उनकी तरह ही समर्पित हों.

इन बच्चों के साथ नेहा फिर से खिल उठी थी. शरद के अचानक रिश्ते तोड़ने से जो गुबार उठा था और नेहा उसमे खो गई थी. वह गुबार अब छंटने लगा था. यह बिलकुल नया अनुभव था नेहा के लिए और वह इसे बहुत एन्जॉय कर रही थी. उसे हॉस्टल के ही एक सिरे पर दो कमरे का सेट मिला था.जो वार्डन के लिए बना था. किचन भी था, वो चाहे तो अपने मन का बना-खा सकती थी. पर नेहा खाने में ज्यादा नखरीली नहीं थी. वो हॉस्टल का नाश्ता-खाना ही खाती. उन बच्चों के साथ ही उसकी सुबह होती और नौ बजे बच्चों की लाइट बंद होने के बाद वो कोई किताब खोल लेती पर इतनी थकी होती कि एकाध घंटे में ही उसकी आँखें बंद होने लगतीं. वह बच्चों की देखरेख, स्कूल का काम इतनी लगन से करती कि उसपर नई नई जिम्मेवारियां सौंपी जाने लगीं. छाया दी अक्सर स्कूल के बाद उसे अपने बंगले पर बुला लेतीं और स्कूल को आगे बढाने की ढेर सारी योजनायें डिस्कस करतीं.

जब नेहा गर्मी छुट्टी में घर गई तो उसके मम्मी-डैडी उसका खिला-खिला चेहरा देख खुश होने की बजाय उदासी में डूब गए. उन्हें लगा था, नेहा ऊब गई होगी और वापस नहीं जाने का फैसला करेगी. पर नेहा ने भविष्य के कोई सपने नहीं बुने थे इसलिए उसके पास भविष्य की कोई कल्पना नहीं थी जो वह वर्त्तमान से निराश होती. घर में सबसे छोटी-लाड़ली, हैप्पी -गो -लकी गर्ल की तरह अब तक उसका जीवन बीता था.पहली बार उसपर कोई जिम्मेवारी सौंपी गई थी, उसके विचार को महत्व दिया जाता, उस से सलाह ली जाती. इन सबने उसमें गज़ब आत्मविश्वास भर दिया था. मम्मी ने एकाध बार शादी की बात की तो नेहा ने स्पष्ट कह दिया, वो फिलहाल अपनी जिंदगी से बहुत खुश है और इसमें उसे कोई बदलाव नहीं करना.

मम्मी उस वक्त तो चुप रह गईं थीं पर आनेवाले दिनों में उनकी बस यही रट रहती, ना करना शादी...एक बार लड़के से मिल तो ले, क्या स्कूल में पढाने वाले शादी नहीं करते ? वे उसे लड़कों का बायोडेटा, फोटो भेजती रहतीं. पर नेहा क्या करे, वो फोटो हाथ में लेती और उसे शरद का चेहरा ही दिखता और वो तुरंत फोटो पलट कर रख देती. जब उसे अपना जीवन परिपूर्ण लग रहा है तो फिर क्यूँ करे वो यह सब झमेला. छाया दी के साथ घंटों योजनायें बनतीं. पढाई का स्तर कैसे बढ़ाया जाए. स्पोर्ट्स-डिबेट -कल्चरल एक्टिविटी को कैसे बेहतर किया जाए कि जिला स्तर, राज्य स्तर तक उनके छात्रों का ही बोलबाला हो. इन सबको वह मझधार में छोड़, वह किसी एक का घर संवारने के लिए चल दे, नेहा का दिल गवारा नहीं करता. इस छोटे से शहर में तो कोई लडका आने से रहा, नेहा को ही उसके साथ जाना होगा. और अगर नेहा शादी के बाद भी यहीं रहे तो फिर शादी का क्या मतलब...यह सब बातें वह मम्मी को समझा समझा कर थक गई पर मम्मी अपनी कोशिश से नहीं थकीं.

स्कूल प्रगति कर रहा था. दूर शहरों से, दूसरे राज्यों से लडकियां इस स्कूल में पढने आ रही थीं. आने वाले वर्षों में स्कूल की एक और बिल्डिंग बन गई थी. नया साइंस लैब, बास्केट बॉल कोर्ट, कम्प्यूटर लैब, एक बड़ा सा हॉल भी बन गया था. जहां इतवार को फिल्म दिखाई जाती, एनुअल फंक्शन होता, इंटर स्कूल डिबेट होता. स्थानीय नेताओं के आग्रह पर स्कूल में उस शहर में रहने वाली छात्राओं को भी एडमिशन दिया जाने लगा था. अब नए नए शिक्षक भी ज्वाइन कर रहे थे.कुछ पति-पत्नी दोनों ने ही शिक्षक के रूप में ज्वाइन किया था. उन सबके रहने के लिए स्कूल की दाहिनी तरफ सुंदर कॉटेज बन गए थे. नेहा को हॉस्टल में रहने में कोई तकलीफ नहीं थी पर वो कुछ दिनों के लिए मम्मी को पास बुला कर रखना चाहती थी. भैया की शादी और उसके विदेश जाने के बाद मम्मी बहुत अकेला महसूस करतीं. उसके शादी न करने के फैसले से निराश थीं ही. नेहा चाहती थी कि वे खुद आकर आँखों से देख लें कि वह कितनी व्यस्त है, उसपर कितनी जिम्मेवारियों का बोझ है, शादी के लिए उसकी जिंदगी में कोई जगह नहीं.

नेहा भी एक क्वार्टर में शिफ्ट हो गई थी. मम्मी कुछ दिन आकर साथ रहीं और एक दिन ऐसी बात कही कि नेहा पेट पकड कर देर तक हंसती रही. मम्मी ने कहा, ’स्कूल नहीं छोड़ने का मन है तो उस नए फिजिक्स टीचर से ही शादी कर ले. दोनों यहीं साथ रहना.’ नेहा उन्हें क्या बताती कि वह यहाँ सिर्फ टाईमपास कर रहा है, कोई अच्छी नौकरी मिलते ही यहाँ से उड़ जाएगा. ज्यादातर शिक्षकों ने शौक से नहीं मजबूरी में यह पेशा अपनाया था. सेफ साइड के लिए बी.एड. कर लिया था पर दूसरी नौकरियों के लिए प्रयत्नरत थे.जब कोई और नौकरी नहीं मिली तो टीचर बन गए. फिर भी वे दूसरी नौकरियों की खोज में अखबार के कॉलम तलाशते रहते. इसीलिए स्कूल के प्रति वह समर्पण भाव नहीं था. लेकिन नेहा ने हंसते हुए मम्मी से बस इतना ही कहा, ‘कौन कहेगा तुम अपने जमाने की फर्स्ट क्लास एम.ए. हो. किसी गाँव की स्त्री की तरह सिर्फ यही चिंता है. बस बिटिया के हाथ पीले हो जाएँ...चाहे लडका कोई भी हो, मिटटी या कागज़ का ही बना हो....बिटिया के हाथ हल्दी से पीले होने की जगह कलम की स्याही से नीले हो रहे, इस से संतोष नहीं “

वर्ष गुजरते रहे, स्कूल नई उंचाईयाँ छूता रहा. अब छठी कक्षा में इस स्कूल में एडमिशन के लिए बकायदा प्रवेश परीक्षा होने लगी थी. और यह सब छाया दी, नेहा, मिसेज जोशी जैसी समर्पित टीचर्स के अथक प्रयास से सम्भव हो पाया था. छाया दी जब बीमार रहने लगीं तो उन्होंने अपना कार्यभार नेहा को सौंप दिया.नेहा के पास पर्याप्त अनुभव भी था और दस वर्षों का अथक परिश्रम भी. वह कई शिक्षकों से उम्र में छोटी थी पर जिस तरह दिन रात इस स्कूल की तरक्की के लिए मेहनत किये थे, मैनेजमेंट द्वारा उसके प्रिंसिपल पद पर नियुक्ति से किसी ने आपत्ति नहीं की. नेहा ने तो बरसों पहले मानो एक प्रतिज्ञा ही कर ली थी कि खुद 'दीपशिखा' की तरह जल कर जितना हो सके प्रकाश फैलाने की कोशिश करती रहेगी ।

बस अब कभी कभी नेहा उदास हो जाती. काम का बोझ इतना था कि वह पहले की तरह बच्चों के साथ ज्यादा समय नहीं बिता पाती. उनकी क्लास नहीं ले पाती, जो वो सबसे ज्यादा एन्जॉय करती थी. और इसका असर उसके स्वभाव पर भी पड़ रहा था...वह अब गम्भीर होती जा रही थी.

पर यह गम्भीरता ही आज काम आयी, अचानक इतने बरसों बाद शरद से मुलाकात उसने कितने अच्छे से हैंडल कर लिया. चेहरे पर कोई शिकन नहीं आने दी...अतीत की छाया भी अपने किसी व्यवहार पर नहीं पड़ने दी वरना शरद तो बार बार उन्हीं पुरानी यादों की वीथिकाओं में खो जा रहा था. नेहा करवट बदलते हुए थोड़ा सा सोने की कोशिश कर रही थी पर यादों की लहरें सैलाब सी उमड़ती आ रहीं थीं. सोनमती ने फिर से दरवाजे पर नॉक किया...नेहा खीझ गई, अब क्या है....अभी से रात के खाने के लिए पूछेगी क्या. ‘क्या है..आ जाओ अंदर. ‘ उसकी आवाज की तुर्शी से थोड़ा सा डरते हुए सोनमती ने धीरे से कमरे में प्रवेश किया और बोली, ‘कोई आपसे मिलने आये हैं...’

‘ओह नो...किसी कार्यक्रम का निमन्त्रण होगा या किसी सेमीनार या वर्कशॉप का बुलावा. जब से प्रिंसिपल का कार्यभार सम्भाला है...बाढ़ सी आ गई है, ऐसे निमंत्रणों की. बैठाओ उन्हें आती हूँ...वह तो गाउन में लेटी थी, अब कपड़े बदलने होंगे. एक कॉटन का सलवार कुरता पहन लापरवाही से दुपट्टा डाल बालों को एक कंधे पर समेटे जब ड्राइंगरूम में कदम रखा तो पैर वहीँ जमे रह गए. टी शर्ट, जींस में रजनीगन्धा के फूलों का गुलदस्ता थामे शरद खड़ा था.