ज्योतिष, कुंडली, ग्रहों और कर्मों का प्रभाव
हमारा जीवन हमारे कर्म के साथ ही हमारी कुण्डली, भाग्य की रेखाओं, नक्षत्रों और गृह-दशाओं पर भी निर्भर करता है, कि हम जीवन में कितनी उन्नति कर पाते हैं। ये हमारी प्रकृति और हमारी प्रवृत्तियों को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका रखते हैं। इस संबंध में प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य, भुवन विजय पंचांग के संपादक इंजीनियरिंग स्नातक पंडित रोहित दुबे के अनुसार-
‘ग्रहाधीनं जगत्सर्वं ग्रहाधीना नरावरा, कालज्ञानं ग्रहाधीनं ग्रहा कार्य फल प्रदाः।’’
अर्थात यह समस्त संसार ग्रहों के आधीन है और मानव भी ग्रहों के आधीन है। कर्म का फल, पुरूषार्थ का फल, व्यापार या कर्म क्षेत्र में प्रवृत्त होना भी ग्रहों के आधीन होता है। व्यापार अथवा कर्म क्षेत्र पर विशेष कर दशम भाव, एकादश भाव एवं तृतीय भाव में बैठे ग्रहों का बलाबल ही प्रमुखता से लिया जाता है। साथ ही जातक के ग्रहों की स्थिति के साथ विंशोत्तरी की महादशा, अंतरदशा तथा प्रत्यंतर दशा तक का विचार करके ही व्यापार की प्रगति या अवनति पर विचार किया जा सकता है।
व्यापार में प्रवृत्त होने के लिये नवांश कुण्डली का भी विशेष महत्व है। नवांश तथा दशमभाव कुण्डली की व्यापार एवं आजीविका चयन में विशेष भूमिका होती है। दशम भाव में सूर्य, बुध, गुरू, मंगल, शुक्र एवं राहु का प्रभाव उद्योग में सफलता दिलाने में सहायक होता है। व्यापार या कार्य स्थान का सूचक दशमांश और भाग्य का प्रतिनिधि एक साथ हो , लग्न का स्वामी द्वादश में या द्वादश का स्वामी लग्न पर हो तो जातक विपरीत परिस्थितियों से संघर्ष करता हुआ कर्म क्षेत्र एवं विदेश में भी व्यापार के लिये सफल होता है। दशम भाव का स्वामी अपनी दशा में उच्च पद या उन्नति, व्यापार एवं उद्योग में दिलाता है। कई दिग्गज उद्योगपतियों की जन्मपत्रिका के अवलोकन के बाद एक ही निष्कर्ष निकलता है कि जब ग्रहों की प्रबलता एवं प्रभाव बढ़ता है तो कई स्थानों पर सफलतापूर्वक उद्योग स्थापित हो जाते हैं तथा दीर्घकाल तक सफलता मिलती है लेकिन जब ग्रहों की विपरीत स्थिति आती है साथ ही दशाओं का क्रम ऋणात्मक हो जाता है तो शनैः शनैः उद्योग व्यापार पर मंदी की मार, कर्मचारियों का असंतोष, अफसरशाही का प्रभाव, शासन एवं बैंकिंग नियन्त्रण धीरे-धीरे व्यापार को समाप्त कर लेता है। अतः हमेशा ज्योतिष का सहयोग लें, स्वविवेक से कार्य करें एवं ईश्वर पर भरोसा रखें तो अवश्य ही सफलता मिलेगी।
साहित्यिक संस्था ‘पाथेय’ के महासचित एवं सनाढय संगम के संपादक, साहित्यकार राजेश पाठक ‘प्रवीण’ के अनुसार ज्योतिष का जीवन में अत्यन्त महत्व है। इसके अनुसार मानव जीवन पर बारह राशियों, नौ ग्रहों तथा उनकी गति का शुभाशुभ प्रभाव पड़ता है। इस प्रभाव का संबंध प्रारब्ध से भी होता है। धर्म शास्त्र और नीति शास्त्र में उल्लखित है कि कर्म के बिना कोई गति नहीं होती है। कर्म से ही भाग्य का जन्म होता है। वेद, उपनिषद और गीता तीनों ही ग्रंथ कर्म को कर्तव्य मानते हैं। यही पुरूषार्थ है। श्रेष्ठ और निरंतर कर्म किये जाने या सही दिशा में सक्रिय बने रहने से पुरूषार्थ फलित होता है। यही कथन कर्म का मूल सिद्धांत है। कर्म का कुछ भाग हमारे साथ अगले जन्म में भी चला जाता है। वही भाग प्रारब्ध है।
उपरोक्त बिन्दुओं से स्पष्ट है कि उद्योग व्यापार ही नहीं अपितु जीवन की उन्नति-अवनति में भी कुण्डली नक्षत्रों का अत्यन्त महत्व है। ठीक इसी प्रकार प्रारब्ध का भी असर जीवन में बना रहता है, किन्तु इनको प्राप्त करने के लिये कर्म की प्रधानता का सर्वाधिक महत्व है। कुण्डली, नक्षत्र, प्रारब्ध आदि जीवन को प्रभावित तो करते हैं किन्तु आपके द्वारा किये गये कर्म इस प्रभाव को बदलने की सामथ्र्य भी रखते हैं। ग्रह- नक्षत्रों को पूजा-पाठ विधि-विधान से अपने अनुकूल बनाते हुए कर्म प्रधान जीवन-शैली को अपनाने से सफलताएं सुनिश्चित हैं। अतः स्पष्ट है कि उद्योग, व्यापार और आजीविका की उन्नति-अवनति में कुण्डली नक्षत्रों का प्रभाव तो पड़ता ही है, साथ ही प्रारब्ध और कर्म का इससे गहरा संबन्ध है।
जीवन में समय व भाग्य कभी खराब नहीं होते एवं वे कभी हमारा अहित नहीं करते। हमें यदि अपेक्षित परिणाम नहीं मिल रहे हैं तो उसके लिये हमारे कर्म उत्तरदायी हैं। हम निश्चित रूप से कहीं गलती कर रहे हैं। हमारा चिन्तन, मनन व मन्थन हमें भ्रमित कर रहा है। इसके लिये हमारे कर्म उत्तरदायी हैं।