अर्थ पथ - 4 - वाणी की मधुरता Rajesh Maheshwari द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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अर्थ पथ - 4 - वाणी की मधुरता

वाणी की मधुरता

हमें हमारा चिन्तन, मनन और उन पर मन्थन सही मार्गदर्शन दे तभी हमें सफलता प्राप्त होती है। हम दिशा से भटकते हैं इस कारण असफल होते हैं। ऐसी स्थिति में हम भाग्य और समय को दोष देने लगते हैं। हमें सफलता के लिये धैर्य रखते हुए समय पर विश्वास रखना चाहिए। यह हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि नैतिकता, आस्था और विश्वास जीवन के आधार स्तम्भ हैं। इनके अभाव में जीवन उस वृक्ष के समान होता है जिसके पत्ते झड चुके होते हैं और अब उसमें न तो शीतलता देने वाली छाया होती है और न ही वह प्राण वायु का उत्सर्जन करता है।

हमारी शिक्षा एवं जीवन की वास्तविकताओं में जमीन आसमान का अंतर है। वहाँ नैतिकता और ईमानदारी का पाठ व उच्च आदर्शो की बातें सिखाई जाती हैं, किन्तु जब हम अपनी शिक्षा पूरी करके जीवन के किसी भी क्षेत्र में पदार्पण करते हैं तब वास्तविकताओं से साक्षात्कार होने पर हम हत्प्रभ रह जाते हैं। हमें न चाहते हुए भी भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, भाईभतीजावाद इत्यादी का एक भाग बनना पड़ता है। यदि हम इनसे समझौता न करें तो सफलता बहुत दूर चली जाती है। यह एक कटु वास्तविकता है कि हमें सफलता पाने के लिये यह सब भी व्यथित मन से स्वीकार करना पड़ता है। आज किसी भी उद्योगपति या व्यापारी को पग-पग पर इनका सहारा लेना ही पड़ता है और प्रत्येक कार्य का मूल्य निर्धारित है। यह राष्ट्र का दुर्भाग्य है कि जो भी व्यक्ति इसका विरोध करता है उसके अस्तित्व पर आघात होने लगता है।

जीवन में वाणी की मार तलवार की धार से भी तेज होती है। तलवार की चोट तो तन पर लगती है जो ठीक भी हो सकती है परन्तु वाणी की मार दिल पर लगती है और यह चोट आजीवन कसकती है इसलिये इनसे सावधान रहना चाहिए तथा अपने विवेक एवं चिन्तन मनन से इनको अपने ऊपर हावी नही होने देना चाहिए। जीवन को चिन्ताओं से मुक्त रखकर चिन्तन को अपना मित्र समझना चाहिए। हमें यह ध्यान रखना चाहिये कि हमारी वाणी में प्यार और मिठास रहे जिससे सब प्रभावित हों।

एक प्रसिद्ध उद्योगपति बनवारी लाल के पुत्र कौशल कुमार ने अमेरिका से शिक्षा प्राप्त करने के बाद अपने कारखाने में काम देखना प्रारम्भ किया। उसे शिक्षा, साहित्य और सामाजिक गतिविधियों के क्षेत्र में काफी प्रतिभावान समझा जाता था। किन्तु उसमें एक बड़ी कमजोरी भी थी कि उसे धन का घमण्ड था और वाचाल होने के कारण गुस्सा बहुत जल्दी आता था। वह कब किसे क्या कह दे इसका उसे खुद भी ध्यान नहीं रहता था। एक दिन उसने कारखाने में श्रमिक नेता को बुलाकर पूछा कि कारखाने में समुचित उत्पादन और गुणवत्ता क्यों नहीं आ रही है? इस विषय पर बातचीत करते हुए कौशल कुमार नाराज हो गया और वह श्रमिक नेता व श्रमिकों के प्रति अपशब्दों का प्रयोग करने लगा। यह सुनकर श्रमिक नेता भड़क उठा और दोनों के बीच तनातनी एवं बहस होने लगी। यह जानकर सारे कर्मचारी अपना काम छोड़कर कौशल कुमार के कमरे के बाहर खड़े हो गये। उनमें से तीन लोग वार्तालाप हेतु कौशल कुमार के पास गये। वहाँ पर बातचीत के दौरान कौशल कुमार इतने गुस्से में आ गये कि उन्होंने एक कर्मचारी को थप्पड़ मार दिया। यह देखकर श्रमिक नेता ने बाहर आकर सभी मजदूरों को इस घटना से अवगत कराया। वे यह सुनते ही मजदूर भड़क उठे और सब के सब एक साथ कमरे में घुस गये और कौशल कुमार से हाथापाई करने लगे।

जैसे ही इस घटना की जानकारी सेठ बनवारी लाल को लगी वे दौड़े-दौड़े कारखाने आये। वहाँ के माहौल को देखकर वे हतप्रभ रह गये। उन्होंने तत्काल पुलिस बुलाकर बड़ी मुश्किल से कर्मचारियों पर नियन्त्रण करके कौशल कुमार की जान बचाई। इसके बाद बनवारी लाल जी ने कौशल कुमार को कहा कि मैंने कई बार तुम्हें समझाया था कि अपनी वाणी पर नियन्त्रण रखा करो किन्तु तुम्हारी वाणी हमेशा अनियन्त्रित हो जाती है और सामने वाला अपने को अपमानित अनुभव करता है।

आज के घटनाक्रम से परिवार का कितना नाम खराब हुआ है। जिस संस्थान में सभी कर्मचारी मेरे प्रति सम्मान रखते हैं वहाँ पर मेरा ही बेटा पिटकर घर आ रहा है। तुम्हारी क्या प्रतिष्ठा बची है और अब किस मुँह से तुम कार्यालय जाओगे। यह सुनकर कौशल कुमार ने अपनी गलती स्वीकार की और भविष्य में अपनी वाणी पर लगाम रखने की कसम खाई। इसीलिये कहा जाता है-

‘ऐसी बानी बोलिये, मन का आपा खोय,

औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय।’