आशाओं से आच्छादित मानव जीवन
ईश्वर की महिमा अपरम्पार हैं। उनकी कृपा से ही जीवन में सफलता एवं लक्ष्य की प्राप्ति होती है। यह संसार गति, चिन्तन एवं चेतना पर निर्भर है। जब तक गति और चेतना है तब तक जीवन है। गति में विराम ही मृत्यु है। सभ्यता, संस्कृति, संस्कार ही हमारे जीवन का आधार होते हैं और हमारे जीवन को सार्थकता प्रदान करते हैं। जीवन में शिक्षा से ज्ञान प्राप्त होता है परंतु सभ्यता और संस्कृति से संस्कार आते है। हमारा वास्तविकता से सामना होने पर क्षण भर में हमारी मनोदशा बदल जाती है। उसमें आकाश पाताल का अन्तर आ जाता है। हमारी कल्पनाओं में वास्तविकता पर आधारित भविष्य की रुपरेखा होनी चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारा स्वभाव मृदु और वाणी में विनम्रता रहना चाहिए। हमें काम, क्रोध, लोभ, माया और मोह को संयमित एवं समन्वित रखकर सुखी जीवन के लिये प्रयासरत रहना चाहिए।
मानव इस सृष्टि में ईष्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है जिसके कन्धों पर सृजन का भार है । उद्योग व्यापार एवं नौकरी इस सृजनशीलता का एक रूप है और समाज के लिये अति महत्वपूर्ण है। आज देष का युवा अपनी उच्च शिक्षा के बाद, अब आगे क्या? के प्रश्न में उलझ जाता है। उसके परिवार के परिजनों की उससे काफी अपेक्षाएँ रहती है। एक समय था जब इंजीनियरिंग और आयुर्विज्ञान के पेशे को सर्वोत्तम समझा जाता था परंतु आज शिक्षा में अनेक प्रकार के क्षेत्र खुल चुके है। अपनी शिक्षा पूर्ण होने के पश्चात जो तकनीकी शिक्षा के छात्र होते है वे अपने विषय क्षेत्र में आसानी से आजीविका तलाश लेते है। युवाओं के लिए स्वयं का उद्योग, व्यापार या अच्छे संस्थान में उच्च पद पर नौकरी पाना भी विकल्प रहता है। यह हमारी सक्रियता और राष्ट्र की गतिशीलता का दर्पण है जिसमें समय के साथ-साथ परिवर्तन, परिमार्जन एवं परिष्करण होता रहता है।
उद्योग, व्यापार और नौकरी में किसका चयन करें, इस संबंध में निर्णय लेते समय हमें हमेशा अपने परिवार और अपने हितैषियों (जो क्षेत्र से संबंधित जानकारी रखते हैं) से सलाह लेना चाहिये और स्वविवेक से निर्णय लेकर उस पर दृढ़ रहना चाहिये। यदि आपकी रूचि स्वयं के उद्योग या व्यापार में पदार्पण करने की है तो पूर्ण लगन, क्षमता और परिश्रम के साथ इसके प्रति समर्पित रहिए। हमें यह ध्यान रखना चाहिये कि उद्योग एवं व्यापार के क्षेत्र में गिने-चुने ही राष्ट्रीय स्तर पर अपना स्थान बना पाते हैं। हम चन्द सफल लोगों के जीवन से ही परिचित होते हैं और हम उन बहुत से लोगों को जान भी नहीं पाते है जो असफल होकर अतीत के गर्त में खो जाते हैं। आज तीन प्रकार के उद्योगपति और व्यापारी देखने को मिलते हैं। एक वे जो उद्योग के नाम पर शासकीय कर्ज लेने के बाद रकम डकार कर भाग जाते हैं। वे हमारे देश व समाज के लिए कलंक हैं। दूसरे वे हैं जो उद्योग या व्यापार प्रारम्भ करने के बाद उसे स्थायित्व देने का प्रयास करते हैं, किन्तु अनुभव के अभाव एवं अन्य कारणों से उसे सुचारु रूप से चला नहीं पाते और अपनी पूंजी को भी गंवा कर कर्ज में डूब जाते हैं। तीसरे वे होते हैं जिनका निश्चय दृढ़ और स्पष्ट रहता है। वे ही सफल होकर जीवन में आगे बढ़ते हैं और राष्ट्र के आर्थिक विकास में भागीदार बनते हैं।
एक उद्योगपति परिवार में जन्म लेकर जीवन व्यतीत करने के कारण मैंने उद्योग व्यवसाय एवं नौकरियों में आने वाले उतार-चढ़ाव और उनके संचालन के रास्ते में आने वाले विभिन्न पड़ावों को देखा, परखा और उन्हें पार किया है। आज उद्योग, व्यापार और नौकरियों में प्रतिस्पर्धा बहुत बढ़ गयी है और किसी नये उद्योग या व्यापार को प्रारम्भ करके उसको स्थापित करना उतना आसान नहीं रह गया है जितना आज से 30-40 साल पहले था। आज बहुत हिम्मत, धन की प्रचुर उपलब्धता एवं अत्यधिक सचेत रहने की आवश्यकता है। यदि ये गुण आप में हैं तभी आप उद्योग या व्यापार के क्षेत्र में प्रवेश करने का प्रयास करें। अन्यथा निराशा ही आपके हाथ आयेगी। आज स्थापित होने वाले उद्योगों में अधिकांश उद्योग तो बन्द हो जाते हैं। मुश्किल से कुछ उद्योग ही संघर्ष करके अपने अस्तित्व को बचा पाते हैं और उनमें भी गिने-चुने ही मुनाफा देते हैं। आज युवाओं को स्नातक होने के बाद भी नौकरी प्राप्त करना आसान नहीं रह गया है। उसमें भी कठिन स्पर्धा से गुजरना पड़ता है।
हमें यह ध्यान रखना चाहिये कि हमारा दृष्टिकोण कैसा है। हमें उद्योग व्यापार व नौकरी में से किसे चुनना है जिससे आय में वृद्धि के साथ हमें मानसिक शान्ति एवं संतोष भी प्राप्त हो। हमारा जीवन भी सदाचारी रहे। हमें अच्छाईयों और बुराईयों पर सजग दृष्टि रखते हुए अपने लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ने के लिये नूतन शक्ति और नवीन ऊर्जा से प्रयासरत रहना चाहिए।