जिंदगी मेरे घर आना - 19 Rashmi Ravija द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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जिंदगी मेरे घर आना - 19

जिंदगी मेरे घर आना

भगा- १९

मिनटों में ही जैसे सारा पिछला जीवन जी गई. अभी भी नेहा की नजरें तो फाइल पर ही जमीं थीं. शरद इतनी देर तक कुर्सी से पीठ टिकाए, एक प्रिंसिपल की व्यस्तता टॉलरेट कर रहा था। नेहा का व्यस्त होने का बहाना अब बिखरने लगा था. फाइल में गड़ी नजरें धुँधली पड़ने लगी थीं, अक्षरों की पहुँच तो पहले भी दिमाग तक नहीं थी। आखिरकार... उसे फाइल गिराना ही पड़ा और बिखरे कागजों को समेटने के बहाने आँखों की नमी को सुखा पेपर व्यवस्थित कर सर उठाया तो पाया, हल्का सा स्मित लिए शरद की नजर उस पर ही टिकी हुई है. पर नेहा इतनी जल्दी संभाल लेगी, खुद को...यकीन नहीं था और अभी क्षण भर पहले की बेचैनी पर मन ही मन हँसी आ रही थी।

नेहा ने बिलकुल ही निर्विकार चेहरा लिए पूछा.“ जी कहिये...”

“वो एक्चुअली इस बच्ची का एडमिशन करवाना है “

“एडमिशन....हम्म एडमिशन तो मिडसेशन में हम लेते नहीं...” नेहा ने कुछ अटकते हुए कहा.

“वो दरअसल इसके डैडी का ट्रांसफर.... “

डैडी शब्द पर ही नेहा की आँखें थोड़ी सिकुड़ गईं और उसने कुछ चौंककर बच्ची की तरफ देखा. शरद ने भी इसे लक्ष्य किया और उसके होठों पर हल्की सी मुस्कान तैर गई. नेहा ने बच्ची के चेहरे से नजरें लौटाकर शरद की तरफ देखा और पल भर के आँखों के क्षणिक मिलन में वर्षों का अंतराल ढह गया।

नेहा एकदम असहज हो उठी. जल्दी से पूछा...” हाँ ट्रांसफर हो गया तो...”


“दरअसल जहाँ ट्रांसफर हुआ है वहां अच्छे स्कूल नहीं हैं, इसलिए अब पंखुरी को वे हॉस्टल में रखना चाहते हैं. वे खुद ही आते पर चार्ज लेने के लिए गए हुए हैं और इसकी मम्मी की तबियत ठीक नहीं है.इसीलिए मैं इंक्वायरी करने आया हूँ. बोर्ड एक ही है तो पढाई में कोई मुश्किल नहीं आएगी.”

नेहा ने कुर्सी पर पीठ टिका दी और पेन गालों पर टक टक मारती कुछ सोचती रही. एक ख्याल आया अगर बच्ची को एडमिशन दे दिया तो फिर शरद से मुलाक़ात होती रहेगी. और इसके लिए उसका मन बिलकुल तैयार नहीं हो पा रहा था. शरद एक बार उसकी जिंदगी से निकल ही गया है तो चाहे जहां घूमता रहे दुबारा उसकी जिंदगी की परिधि में शामिल न हो, नेहा यही चाहती थी. मिड सेशन में उसके स्कूल में एडमिशन नहीं होता, वो आसानी से बहाना बना सकती थी पर फिर बच्ची का साल खराब हो जाएगा. स्पेशल केस में उसे एडमिशन देना चाहिए और फिर खुद को ही झिड़का, वो ऐसी बेवकूफी भरी बातें क्यूँ सोच रही है. शरद अभी इस बच्ची के गार्जियन के तौर पर आया है. शायद ये सोचकर आया हो कि उसके आर्मी के यूनिफ़ॉर्म के प्रभाव से बच्ची को एडमिशन मिल जाएगा. हो सकता है, आगे ना भी आये.और नेहा ने हाथ बढाकर टेबल पर रखी घंटी बजा दी. प्यून तुरंत आकर अदब से खड़ा हो गया...”जरा शर्मा जी को भेज दो “

इस बीच वो शरद को बिलकुल ही नज़रंदाज़ कर बच्ची से बात करती रही...’उसका नाम...उसे अपना स्कूल कैसा लगता था....कौन से स्पोर्ट्स पसंद है...बड़ी होकर क्या बनना चाहती है’.नेहा को पता था, शरद की दृष्टि उसी पर जमी हुई है....उसे उलझन भी हो रही थी पर शुक्र है इस से निजात दिलाने के लिए हेड क्लर्क शर्मा जी तुरंत ही आ गए वरना नेहा के सवाल खत्म होते जा रहे थे. और फिर उसे शरद की तरफ मुड़ना पड़ता.

“शर्मा जी इन्हें सारी एडमिशन प्रोसिज्योर बता दीजिये. ये पंखुरी है, सेवेंथ में इसका एडमिशन लेना है “

“पर मैम मिडसेशन में...”

“ ये लोग हमारे लिए देश की रक्षा में लगे होते हैं....इनके लिए क्या नियम. इनका अनुरोध हम कैसे टाल सकते हैं. इनकी रेकमेंडेशन का तो ख्याल रखना ही होगा ना...इन्हें आप सबकुछ समझा दीजिये “
“येस मैम...आइये सर “ शर्मा जी ने शरद की तरफ इशारा किया. शरद झटके से खड़ा हुआ और सर क्या कंधे तक झुकाकर उसे थैंक्स कह, बच्ची को लेकर शर्मा जी के साथ चला गया

शरद के जाने के बाद नेहा ने कुर्सी की पीठ पर सर टिका आँखें मूंद ली. पर थोड़ी देर में ही मानो खुद को ही झकझोर कर जगाया.

ओह! आज इतने सारे काम निबटाने हैं उसे और वह यों निष्क्रिय बैठी अतीत के समंदर में गोते लगा रही है। इस रफ्तार से काम करने पर अपने स्कूल को इस शहर के ही नहीं, पूरे राज्य के और हो सके तो पूरे दश के शीर्षस्थ विद्यालयों के बीच देखने का सपना कैसे पूरा हो सकेगा ?? मिस छाया ने कितने भरोसे से इतनी बड़ी जिम्मेदारी उस पर सौंपी थी. यूँ ख्यालों में गुम होकर वह उनका भरोसा तोड़ेगी ? आज ही किस कदर व्यस्तता है, स्टाफ की मीटिंग है, डी. एम. से भी अप्वाइंटमेंट है। और प्यून की पोस्ट के लिए कुछ इंटरव्यूज भी तो लेने हैं... और... और अभी राउंड पर भी तो जाना है. पहले ये फाइल्स निबटा ले.

और नेहा ने फ़ाइल सामने खींच फुर्ती से फाइल पर कलम चलानी शुरू कर दी. कुछ देर बाद प्यून ने आकर कहा, शर्मा जी मिलना चाहते हैं. शर्मा जी ने शरद के साथ कमरे में कदम रखा.नेहा के इशार करते ही शरद कुर्सी खींचकर बैठ गया. शर्मा जी बोले, ‘मैडम सब कुछ बता दिया है. फॉर्म भी दे दिए हैं. बच्ची को यूनिफ़ॉर्म की मेजरमेंट लेने के लिए भेज दिया है. सर ने कहा, आज वो क्लास में बैठेगी “ सूचना देकर वे हाथ बांधे खड़े रहे. नेहा ने उन्हें देख सर हिलाया तो वे अनुमति लेकर चले गए. लेकिन ये शरद... ना शरद कौन... मि. मेहरोत्रा क्यों अभी तक बैठे हैं. बच्ची तो अब स्कूल की छुट्टी के बाद ही जायेगी.... फिर ? एक-दो बार नेहा ने सवालिया निगाहों से शरद की तरफ देखा भी पर... शरद तो... ओह! नो... मित्र मेहरोत्रा की आँखें तो खिड़की से भीतर आ गई बोगनवेलियां की कुछ लतरों पर जमी थीं।

जोर की आवाज से नेहा ने फाइल बंद की तो शरद ने चौंक कर उसकी तरफ देखा। नेहा ने एक प्रोफेशनल मुस्कान चिपका ली – “आइए, मि. मेहरोत्रा मैं, स्कूल के राउंड पर जा रही हूं... आप भी चलना चाहें तो चलें... हमारा स्कूल भी देख लेंगे”... और वह उठ खड़ी हुईं।

शरद ने बिना कुछ कहे, धीरे से कुर्सी खिसकायी और उसके साथ हो लिया। नेहा पूरी बिल्डिंग की परिक्रमा कर आई... कहीं बच्चों से कुछ पूछा... कहीं टीचर्स से कुछ बात की... शरद बस साथ बना रहा।

आखिरकार अब उस बरामदे पर पहुँच गई, जिससे सीढ़ियाँ उतर कर बस दस कदम के फासले पर लोहे का बड़ा गेट था। नेहा ने मुस्करा कर... ‘अच्छा तो‘ के अंदाज में शरद की तरफ देखा। पर शरद तो जैसे पॉकेट में हाथ डाले किसी गहन विचार में मग्न था... “अब क्या ऽऽशरद... बरसों पहले जो फैसला लिया... अटल रहो न उस पर... इतने दिनों बाद पीछे मुड़ कर क्यों देखना चाहते हो ? तुम तेज रफ़्तार से अपनी ज़िन्दगी की राह पर कदम बढा रहे हो, (उसकी कामयाबी के किस्से अक्सर अखबारों में पढ़ती रहती थी)...और नेहा ने भी खुद को समेट कर अपने लिए यह राह चुन ली है. दोनों राहें कितनी जुदा हैं एक दूसरे से.अपने अपने र्तास्ते पर दोनों चलते रहें, यही बेहतर नहीं.

नेहा असमंजस में दो पल खड़ी रही. फिर निश्चित कदमों से सीढ़ियों पर पैर रखा और बिना मुड़े गेट तक पहुँच गई... शरद ने भी अनुकरण किया... बाहर उसकी जीप खड़ी थी। शरद अब भी चुप खड़ा था। चाहता क्या है आखिर?? शायद शरद को भी नहीं पता... क्या चाहता है, वह? क्यों खड़ा है ? दोनों पॉकेट में हाथ डाले, शरद ने खोयी-खोयी निगाहें नेहा के चेहरे पर टिका दीं। नजरें जरूर नेहा के चेहरे पर थीं। पर वह जैसे उसे देख कर भी नहीं देख रहा था। क्षण भर को नेहा भी, जैसे वहाँ होकर भी नहीं थी।

एकाएक... खन्न की आवाज आई। दो लड़कियां कंकड़ों से पेड़ पर निशानेबाजी का अभ्यास कर रही थीं. उन दोनों को इधर देखते ही दुबक कर भाग गईं. पर इन्हें, वहीं से एक नया संदर्भ मिल गया। अब इस मुलाकात पर ‘द एण्ड‘ लगाना ही होगा। नेहा ने शरद की ओर देखा और पाया कि इस आवाज ने शरद को भी धरा पर ला खड़ा किया है।

पूरी चुस्त-दुरूस्त मुद्रा में बड़ी गर्मजोशी से शरद ने उस से हाथ मिलाया... थैंक्यू कहा और गेट से निकला कर एक ही छलाँग में जीप पर सवार हो गाड़ी स्टार्ट कर दी. पूरे वेग से काली सड़क पर जीप दौड़ पड़ी....और वह चला गया, बिना मुड़े।

नेहा शिथिल कदमों से लौट पड़ी और बैग से काला चश्मा निकाल, लगा लिया आँखों पर... जबकि आकाश में फिर से काले-काले बादल घिर आए थे।