किसी को उनकी लेखनी दिलचस्प, बाँध लेने वाली तथा जानकारी से भरपूर नज़र आती है। तो कोई उन्हें भारत के महान कथाकारों में शुमार करता है। कोई उन्हें भारत का पहला साहित्यिक पॉपस्टार कहता है तो किसी को उनके लेखन में मौलिक चिंतन नज़र आता है। कोई उन्हें साहित्यिक करिश्मा बताता है तो किसी को उनकी लेखनी भारत के समृद्ध अतीत एवं संस्कृति के प्रति लोगों में जिज्ञासा जगाती नज़र आती है। उपरोक्त सभी बातें हमारे देश के जाने माने प्रसिद्ध दिग्गजों ने उस लेखक के बारे में कही हैं जिनका जिक्र मैं आने वाली पंक्तियों में करने जा रहा हूँ।
दोस्तों...आज मैं बात कर रहा हूँ एक ऐसे भारतीय कथाकार की जो मूलतः अंग्रेज़ी में लिखते हैं और उनकी किताबों के अब तक 29 भाषाओं में अनुवाद आ चुके हैं। आंकड़ों के हिसाब से अगर देखें तो उनकी किताबों की अब तक 50 लाख से ज़्यादा प्रतियाँ आ चुकी हैं। उनके लेखन को ले कर कुछ लेखक/साहित्यकार बेशक नाक मुँह सिकोड़ते फिरें मगर उन्होंने अपने लेखन...अपनी कामयाबी...अपनी एप्रोच से खुद को सही एवं विरोधियों को ग़लत साबित किया है।
आपकी जिज्ञासा एवं उत्सुकता को विराम देते हुए आज मैं अमीश त्रिपाठी द्वारा लिखित उपन्यास "रावण-आर्यवर्त का शत्रु" उपन्यास के हिंदी अनुवाद की बात करने जा रहा हूँ जो कि उनकी राम चंद्र श्रृंखला का तीसरा उपन्यास है।
श्री राम चंद्र जी के जीवन पर आधारित "रामायण" से प्रेरित हो कर पहले भी कई बार अनेक लेखकों ने इस कथा पर अपने विवेक, श्रद्धा एवं सामर्थ्यनुसार कलम चलाई और अपनी सोच एवं समझ के हिसाब से उनमें कुछ ना कुछ आमूल चूल परिवर्तन तक करते हुए, इसके किरदारों के फिर से चरित्र चित्रण किए। नतीजन...आज मूल कथा के एक समान होते हुए भी रामायण के कुल मिला कर विभिन्न भाषाओं में लगभग तीन सौ से लेकर एक हज़ार तक विविध रूप पढ़ने को मिलते हैं। इनमें संस्कृत में रचित वाल्मीकि रामायण सबसे प्राचीन मानी जाती है।
आम जनसुलभ एवं प्रसिद्ध मान्यता के अनुसार रामायण में रावण को हमेशा से खलनायक माना जाता रहा है। इस बहती धारा के विपरीत अपनी नाव को खेने का जोखिम उठा उन्होंने अपनी कहानी में रावण के मानवीय पक्ष को उजागर करने का अपने चिरपरिचित हॉलीवुडीय स्टाइल में प्रयास किया है। और अपने इस प्रयास में खासे सफ़ल रहे हैं।
पल पल आपको विस्मृत करती...चौंकाती इस तेज़ रफ़्तार कहानी में कदम कदम पर आप नए तथ्यों...नए रहस्यों...नए षड्यंत्रों से दो चार होते हैं। इस उपन्यास में रावण के जन्म से ले कर सीता हरण तक की कहानी को कुछ इस तरह से रोचक अंदाज़ से रचा गया है कि आप कोशिश करने को मजबूर हो जाते हैं कि इस दिलचस्प 365 पृष्ठीय उपन्यास को जल्द से जल्द पूरा पढ़ कर निबटा डालें।
उपन्यास में उसके मुख्य पात्रों रावण तथा कुम्भकरण के मानवीय एवं भावनात्मक पक्ष से जुड़ी ज़्यादातर बातों एवं उनके व्यवहार को तार्किक ढंग से जायज़ ठहराया गया है लेकिन अंत में एक आध जगह मुझे गुरु वशिष्ठ तथा विश्वामित्र से जुड़ी लेखक की कुछ बातें, मुझे मेरी समझ से परे भी लगे।
धाराप्रवाह शैली में लिखे गए इस बढ़िया उपन्यास के पेपरबैक संस्करण के प्रकाशक है Eka जो कि वैस्टलैंड पब्लिकेशंस प्राइवेट लिमिटेड की ही एक सहायक कम्पनी है। इस उपन्यास का मूल्य ₹ 399/- है कि किताब की क्वालिटी और कंटैंट को देखते हुए कम तो नहीं लेकिन जायज़ है।आने वाले समय में आप इस उपन्यास श्रृंखला पर आधारित हॉलीवुड की कोई वेब सीरीज़ बनते देखें तो कोई आश्चर्य नहीं।
बढ़िया हिंदी अनुवाद के लिए शुचिता मीतल तथा कंटैंट के लिए लेखक एवं उनकी पूरी टीम मय प्रकाशक के बधाई की पात्र है। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए सभी को अनेकों अनेक शुभ कामनाएँ।