शादी के बाद आज ममता की पहली रसोई थी। वैसे तो ममता खाना बनाने में माहिर थी, लेकिन ससुराल में पहली बार खाना बनाते हुए उसे भी बहुत डर लग रहा था कि कहीं खाने में स्वाद ऊपर नीचे हो गया तो ससुराल वालों पर क्या प्रभाव पड़ेगा। इसी उहपोह से गुजरते हुए उसने बहुत ही ध्यान से खाना बनाया।
बहुत ही प्यार व सलीके से उसने सबको खाना परोस दिया। उसकी सास ने कहा "बहू तुम भी हमारे साथ ही बैठो।"
"नहीं मांजी जी, मैं बाद में खा लूंगी!"
"क्यों भला! तुम कब से काम में लगी हो। हम खाना खाएंगे और तुम खड़ी रहो, यह कहां का न्याय है भई! एक साथ बैठकर खाने से परिवार के सदस्यों में प्यार बढ़ता है!चलो बैठो!" ममता की सास ने उसे प्यारी सी डांट लगाते हुए कहा।
"हां बहू, जल्दी से बैठ जाओ! खाने की खुशबू इतनी अच्छी आ रही है कि अब रुका नहीं जा रहा।" उसके ससुर मुस्कुराते हुए बोले।
ममता बैठ गई। उसने अपने लिए खाना भी डाल लिया लेकिन खाना उसके हलक से नीचे नहीं उतर रहा था। उसे तो बस इंतजार था कि सब खाने के बाद क्या कहेंगे!
खाना खाते हुए सबने खाने की बहुत तारीफ की। उसका पति चिराग तो उसके बनाए हलवे की तारीफ करते नहीं थक रहा था।
ससुर भी हां में हां मिलाते हुए बोले "हां बहू हमने भी ऐसा हलवा पहले कभी नहीं खाया। तुम तो साक्षात अन्नपूर्णा हो।"
"सही कह रहे हो जी लेकिन बस एक बात का डर है!"
"क्या मांजी!" ममता थोड़ी घबराकर अपनी सास से बोली
"बहू, मेरा बेटा तो पहले ही बहुत चटोरा था और मीठे का तो इतना शौकीन, बस पूछो मत। अब आगे तुम्हारी खैर नहीं!
ज्यादा इसकी फरमाइशें पूरी करने मत बैठ जाना वरना पूरा दिन भर तुम्हें रसोई में ही लगाए रखेगा!"
सुनकर ममता की हंसी छूट गई
"क्या मां, बेटे की बजाए बहू की तरफदारी कर रही हो। अरे, यह तो नहीं कहती, बहु मेरे बेटे का अच्छे से ध्यान रखना। उसको बढ़िया बढ़िया खाना बना कर खिलाना।"
"हां हां बसकर पेटूराम, खबरदार जो शहर जाने के बाद बहू को तंग किया तो। जैसे मेरे साथ मिलकर काम करवाता था, वैसे ही बहू का हाथ भी बंटाना!
और हां बहु, तुम भी कही ज्यादा ही भारतीय नारी बन यह मत सोचना कि हाय पति से काम करवाऊंगी तो लोग क्या कहेंगे! ऐसा उल्टा सीधा तो बिल्कुल मत सोचना। गृहस्ती तुम दोनों की है इसलिए मिल बांट कर काम करना। हम औरतें ज्यादा ही भावनाओं में बह सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ओढ़, अपने पति को पहले तो पूरा निकम्मा बना देती है और फिर हम सासुओं को
कोसती है कि हमने अपने बेटों को कुछ सिखाया ही नहीं
इसलिए अभी से कह रही हूं, इसकी लगाम कस कर रखना और जीभ को ज्यादा चटकारे मत लगा देना। वरना बाद में पछताते हुए मुझे कोसोगी। समझी बहू रानी!" उनकी यह बात सुन ममता के साथ-साथ सब हंस पड़े।
ममता के सास ससुर गांव में रहते थे और चिराग शहर में नौकरी करता था। शादी के बाद ममता भी उसके साथ ही चली गई।
शादी से पहले ही ममता घर के कामकाज में सुघड़ थी और उसके खाने की तो सभी तारीफ करते ना थकते थे और सबसे ज्यादा हलवे की।
चिराग भी ममता जैसी पत्नी पाकर बहुत खुश था।वह उसका हर तरह से ध्यान रखता। शुरू शुरू में वह अपने कुछ काम खुद ही कर लेता था। ममता को लगता कि सारा दिन तो ऑफिस में वह काम करता है और फिर घर आकर भी करे। यह तो सही नहीं। इसलिए धीरे-धीरे उसने चिराग के सारे काम अपने हाथ में ले लिए। चिराग ने पहले तो एक दो बार मना भी किया लेकिन ममता की प्यार भरी मनुहार के आगे वह भी चुप हो गया।
ममता ने पूरे घर को बड़े सलीके से सजा कर रखा था। जब भी चिराग के दोस्त व उनका परिवार खाने पर आता सब ममता की बहुत तारीफ करते । सुनकर ममता भी फूला ना समाती ।
समय यूं ही बीत रहा था। ममता व चिराग दो बच्चों के माता-पिता बन गए थे। घर व काम की जिम्मेदारियां बढ़ गई। जिसे केवल ममता को ही देखना था क्योंकि चिराग की तो उसने खुद ही आदत छुड़वा दी थी।
अब चिराग अपने दोस्तों को अगर खाने पर बुलाने की बात करता तो ममता यह कहते हुए मना कर देती बच्चे छोटे हैं, मुझसे इतना काम नहीं होगा। अगर तुम थोड़ी बहुत मदद करवा सकते हो तो बोलो।
सुनकर चिराग हाथ खड़े कर देता और फिर प्यार से बोलता "अच्छा ठीक है। डिनर पर नहीं चाय पर तो बुला सकता हूं ना! पर यार तुम अपने हाथ का हलवा जरूर उन्हें खिलाना। सभी तुम्हारे हलवे की बहुत तारीफ करते हैं!"
अब तो धीरे-धीरे चिराग की आदत बन गई। जो भी मेहमान घर पर आता चिराग हलवे की फरमाइश रख देता।
ममता को चिढ़ होने लगी थी, चिराग के इस हलवा प्रेम से। वह तो शुक्र मनाती हैं डायबिटीज नामक बीमारी का! जिसके कारण आधे मेहमान हलवा खाने से मना कर देते। उस समय चिराग का मुंह देखते ही बनता था क्योंकि मेहमानों का तो सिर्फ बहाना था, खाना तो उसे ही होता था।
ममता के सास ससुर कुछ दिन उनके साथ रुकने आए । इससे ममता को बहुत तसल्ली मिली । एक-दो दिन में ही ममता की सास चिराग की आराम परस्ती देख समझ गई थी कि उसकी आदत बिगड़ गई है। वह ममता से बोली "बहू मैंने तुझे पहले ही समझाया था फिर भी!"
"मांजी यह ऑफिस जाते और मैं घर पर खाली ही तो रहती थी ना! मुझे अच्छा नहीं लगता था इसलिए मैंने तो इन्हें आराम देने की सोची थी। पर मुझे क्या पता था, इनका आराम मेरा जीना हराम कर देगा और तो सब देख भी लूं ,पर इनका हलवा प्रेम उसका क्या करूं! कह उसने अपनी सास को सारी बातें बताई! मां जी, यह हलवा तो मेरा दुश्मन बन गया है। इसकी खुशबू भी मुझे अब चिढ़ाती है।" ममता दुखी होते हुए बोली।
तभी चिराग के कुछ दोस्त आ गए । चिराग ने बाहर से ही आवाज लगाई " ममता चाय बना देना और थोड़ा हलवा भी।"
सुनते ही ममता का माथा ठनक गया। "देख लो मांजी, ऐसा ही करते है हर बार। "
"बहु, आदत तो तूने ही बिगाड़ी है। चल तू बैठ आज मैं बनाती हूं हलुवा.....।"
रसोई में जाकर देखा तो चीनी खत्म थी और सूजी भी थोड़ी सी बची थी। ममता ने कहा "मांजी महीने का आखिर है इसलिए सामान लगभग खत्म ही था। सुबह मैंने इनको सामान लाने के लिए बोला था लेकिन अब क्या करें!"
सुनकर उसकी सास बोली "तू चुपचाप देखती रह बहू!" उन्होंने किसी तरह जोड़ तोड़ कर हलवा बना दिया और बाहर ले आई।
"मां आप लेकर आई हो। ममता कहां है!"
"वह बच्चों को संभाल रही है इसलिए मैंने ही हलवा बना दिया ।खाकर तो बता कैसा बना है। कहीं तू अपनी मां के हाथों का स्वाद भूल तो नहीं गया!"
हलवा चखते ही सबका मुंह बन गया!
"अच्छा नहीं बना क्या! जो तुम सब ऐसे मुंह बना रहे हो!"
"मां अच्छा तो है। पर लगता है, आप चीनी डालना भूल गए!"
"अरे ,चीनी डालना नहीं भूली पगले! यह मैंने sugar-free हलवा बनाया है! यूट्यूब पर सीखा था। बहु से सुना था कि तेरे सभी दोस्तों को उसके हाथ का बनाया हुआ हलवा बहुत पसंद है।
फिर उसके दोस्तों की तरफ देखते हुए बोली, वैसे भी बेटा तुम शहर वाले अपनी सेहत का बहुत ज्यादा ध्यान रखते हो और घी चीनी से दूर रहते हो इसलिए मैंने तुम सबका ध्यान रखते हुए घी भी कम डाला है और बहू को भी सिखा दिया है। आगे से अब ऐसा ही हलवा बना करेगा! जिससे सबका स्वास्थ्य सही रहे। अच्छा अब ये तो बताओ कैसा लगा मेरे हाथों का बनाया लो फैट, शुगर फ्री हलुवा!"
सुनकर उसके दोस्त बोले "आंटी जी, बहुत टेस्टी बना है!"
"हां तो बेटा, अच्छे से खाओ ना! मैं और ला देती हूं!"
सुनकर सबके चेहरे की हवाइयां उड़ गई ।वे जल्दी से उठते हुए बोले "नहीं नहीं आंटी जी, बस पेट भर गया अब हम चलते हैं थोड़ा काम है।"
उनके जाते ही ममता व उसकी सास खूब हंसे। चिराग को जब सारी बात पता चली तो उसका चेहरा देखने लायक था ।
उसकी मां ने उसे डांटते हुए कहा "वो तो मैं यहां थी, जो बात संभाल ली। वरना तेरी बेवकूफी से 4 लोगों के बीच कितना शर्मिंदा होना पड़ता। खबरदार, अब आगे से जो तूने बैठे-बैठे हुकुम चलाया तो। "
"हां मां, गलती हो गई। मुझे सामान ला कर रखना चाहिए था। आगे से ध्यान रखूंगा।"
"हां ,बिल्कुल ध्यान रखना । घर तेरा ही है। तू ही ध्यान रखेगा।
और बहु तू भी ध्यान रखना ,आगे से हलवा जैसा मैंने सिखाया है, वैसे ही बनेगा। खबरदार जो तूने हलवे में चीनी या घी डाला तो! देख तो मेरे बेटे की कैसे तोंद निकलती जा रही है। कैसा हीरो सा अपना बेटा दिया था मैंने तुझे और तूने इसे क्या बना दिया। बिल्कुल ध्यान नहीं रखती तू इसका!"
"मांजी, मैं तो बना दूंगी लेकिन यह खांएगे तब ना!" ममता बेचारा सा मुंह बनाते हुए बोली।
"क्यों नहीं खाएगा! खाएगा ना तू ऐसा ही हलवा!"
"मां मां, वो मैं सोच रहा था कि आप सही कह रहे हो। मैं आजकल एक्सरसाइज नहीं कर पाता। देखो ना पेट कैसा बढ़ता जा रहा है। मैं सोच रहा हूं आज से हलवा ही खाना छोड़ दूं।"
"वाह , मुझे तो पता ही था, मेरा बेटा बहुत समझदार है।बस बहू ने तेरी आदतें बिगाड़ दी थी। "
"अच्छा मां, अब मैं थोड़ी देर आराम कर लूं थक गया हूं!"
"हां हां बेटा बिल्कुल !"
चिराग के अंदर जाते ही दोनों सास बहू पेट पकड़ पकड़ कर खूब हंसी।
ममता किसी तरह अपनी हंसी रोकते हुए बोली "वाह मांजी, क्या खूब तरीका निकाला आपने इनका हलवा प्रेम छुड़वाने का। मान गए आपको!"
सरोज ✍️