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महमूद, एक हास्य कलाकार जो सुपर स्टार भी था



महमूद : हिंदी फिल्मों का पहला हास्य कलाकार जो सुपर स्टार था

महमूद हिंदी फिल्मों के पहले ऐसे कलाकार थे जिन्हें केवल हीरो के खांचे में नहीं रखा जा सकता था। उन्हें ना तो चरित्र अभिनेता के खाते में और ना ही कॉमेडियन के खाते में डाला जा सकता था। उन्हें जो भी रोल दो, जैसा भी चरित्र दे दो, उसमें समा जाते थे।
परंतु ऐसा करने वाले महमूद को महमूद बनने में बरसों लगे। इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्होंने जो जो पापड़ बेले, जो बुरे दिन देखे और जैसे-जैसे काम किए, अगर उनको ध्यान से देखकर कोई अपने जीवन में उतारे, तो उसे सफल होने से कोई रोक नहीं सकता। सही मायनों में आगे बढ़ने के लिए जिस एक इंस्पिरेशन की जरूरत होती है, उस इंस्पिरेशन का नाम है महमूद।
महमूद के पिता मुमताज अली शायद हिंदी फिल्मों के प्रथम डांस डायरेक्टर थे। उन्हें बॉम्बे टॉकीज की सर्वेसर्वा देविका रानी ने अपनी टीम में शामिल किया। उन्होंने कई फिल्मों में साथ साथ-साथ काम किया। 1940 और 50 के दशक में वह काफी नामी डांसर थे। उनका परिवार पड़ा था और उनके 8 बच्चे थे। उन्हें 8 बच्चों में से एक महमूद अली का जन्म मुंबई में सन 1932 में हुआ। इतने बड़े परिवार को चलाने के लिए सिर्फ फिल्मों में काम करना काफी नहीं था इसलिए मुमताज़ अली घर पर डांस क्लासेज भी लेते थे। महमूद की छोटी बहन मीनू मुमताज को अपने पिता को नाचते हुए देखना बहुत पसंद था। वह भी अपने पिता की तरह नाचना चाहती थी परंतु उनकी अम्मी इसके सख्त खिलाफ थीं। जब मुमताज अली को पता चला उन्होंने अपने बेगम से इतना ही कहा , "बेगम यह एक मछली की बेटी है और मछली की बेटी मछली ही बनेगी झींगा नहीं।" कहने का अर्थ यह था कि एक डांस डायरेक्टर की बेटी के खून में डांस है और उसे डांस सीखने से रोकना ना तो संभव है ना ही समझदारी। यह बात अम्मी की समझ में आ गई और फिर उन्होंने कभी अपनी बेटी को नहीं रोका।
अपने पिता को देख देख कर मीनू मुमताज ने डांस दिखा और आगे जाकर फिल्मों में एक डांसर के रूप में फिर एक ऐक्ट्रेस के रूप में बहुत नाम कमाया।
परंतु यह सब होने से पहले घर की स्थिति बिगड़ने लगी थी, क्योंकि मुमताज अली समय के साथ शराब के नशे में डूबने लगे थे इससे उनका फिल्मों में काम मिलना कम हो गया। डांस डॉक्टर के रूप में लोग कान देने से आनाकानी करने लगे। घर पर भी डांस क्लास का ज्यादा काम नहीं होता था। इससे घर में फांका की नौबत आने लगी।
ऐसे में घर के बड़े बेटे महमूद अली पर दोहरी जिम्मेदारी आ गई, एक तो बूढ़े मां-बाप का ध्यान रखना, दूसरा अपने से छोटे छह भाई-बहनों की परवरिश। चूकीं पिता फिल्मों में काम करते थे, इसलिए महमूद कैमरे से अनजान नहीं थे ना एक्टिंग करना उनके लिए कोई दूर की कौड़ी की। वह बचपन से ही अपने पिता के साथ स्टूडियो में जाया करते थे।
ऐसे में एक दिन उस जमाने के सुपर स्टार अशोक कुमार की नजर एक बालक पर पड़ी। उस बालक की शरारतें अशोक कुमार को बहुत भाईं। उन दिनों अशोक कुमार बॉम्बे टॉकीज की फिल्म हावड़ा ब्रिज में काम कर रहे थे और उन्हें अपने बचपन के रोल के लिए एक बाल कलाकार की जरूरत थी। उन्होंने तुरंत उस बालक को बुलाया और फिल्म में काम दे दिया। तब उन्हें पता चला यह बालक तो उनके डांस डायरेक्टर मुमताज अली के साहबजादे हैं। इस तरह फिल्मों से महमूद का नाता जोड़ा।
परंतु अभी कामयाबी की मंजिल बहुत दूर थी। परिवार चलाने के लिए महमूद ने बहुत पापड़ बेले। उस जमाने के प्रसिद्ध डायरेक्टर पीएल संतोषी के ड्राइवर के रूप में उन्होंने काम किया मुंबई के सड़कों पर मुंबई के सड़कों पर अंडे बेचें और प्रसिद्ध अदाकारा मीना कुमारी के स्पोर्ट्स टीचर के रूप में टेबल टेनिस सिखाने का काम भी किया। इसी दौरान महमूद मीना कुमारी की बहन के संपर्क में आए जो बाद में उनकी बेगम बनीं।
इस संघर्ष के बीच में महमूद फिल्मों में छोटे-मोटे रोल पाते रहें। उनके संघर्ष को देखकर एक बार मीना कुमारी ने तरस खाकर प्रसिद्ध फिल्मकार बी. आर. चोपड़ा से गुजारिश की कि वह महमूद को अपनी फिल्म में कोई रोल दें। उन्होंने मीना कुमारी की बात की इज्जत रखी और महमूद को अपनी फिल्म में ले लिया। परंतु खुद्दार महमूद को जैसे ही यह बात पता चली, उन्होंने फांके के दिन होने के बावजूद वह फिल्म छोड़ दी वह किसी के एहसान तले नहीं दबना चाहते थे।
महमूद को फिल्म परवरिश में राज कपूर के साथ एक बड़ा रोल मिला। यह उनकी पहली बड़ी और कामयाब फ़िल्म थी। इसमें उन्होंने राज कपूर के साथ एक गाना गाया था मामा ओ मामा ओ नाम मामा मामा...। इसके वाद एक हास्य कलाकार के रूप में पहली बार महमूद राजेंद्र कुमार की फिल्म ससुराल में नजर आए। यहां से उन्हें अपनी मंजिल नजर आने लगी।
फिर उनका संपर्क महान एक्टर और डायरेक्टर गुरुदत्त से हुआ। अब गुरुदत्त ने उन्हें अपनी फिल्मों में लेना शुरू किया। सबसे पहले वह उनकी फिल्म सीआईडी में एक हत्यारे के रूप में नजर आए। उसके बाद कई फिल्मों में दोनों ने साथ काम किया। अपने बुरे दिनों में काम आने वाले गुरुदत्त को महमूद कभी नहीं भूले। अमिताभ बच्चन बताते हैं कि अपने बेडरूम में महमूद ने गुरुदत्त का पोस्टर आजीवन लगाए रखा।
संघर्ष के दिनों में महमूद की पहचान फिल्मिस्तान स्टूडियो में किशोर कुमार से हुई, जो उस जमाने के सुपरस्टार अशोक कुमार के छोटे भाई थे। वह भी फिल्मों में हास्य कलाकार कलाकार के रूप में अपना स्थान बना रहे थे, साथ ही जबरदस्त गायक थे। उन्हें सफलता मिलने लगी थी। एक बार महमूद ने बात ही बात में किशोर कुमार से कहा कि वह डायरेक्टर से उनके बारे में बात करें। पर किशोर कुमार ने मुस्कुराकर बोला, "मैं कैसे अपने प्रतिद्वंदी को आगे बढ़ाने की बात करूं।"
सुनकर महमूद गुस्साए नहीं, घबराए नहीं, बल्कि हंसकर बोले," तुमने मुझे अपना प्रतिद्वंदी माना, यही मेरे लिए बड़ी बात है। अल्लाह ने चाहा, तो एक दिन सचमुच में इतना बड़ा कलाकार बनूंगा, इतना बड़ा फिल्मकार बनूंगा कि तुम्हें अपनी फिल्म में काम दूंगा।"
महमूद इस घटना को कभी भूले नहीं और सचमुच जब अल्लाह उन पर मेहरबान हुए और वह प्रसिद्ध हास्य कलाकार के साथ-साथ एक अच्छे फिल्मकार भी बने, तो उन्होंने हिंदी की सर्वश्रेष्ठ हास्य फिल्मों में से एक 'पड़ोसन' बनाने की घोषणा की और इस फिल्म में उन्होंने अपने से बड़ा रोल किशोर कुमार को दिया। खुद प्रोड्यूसर होते हुए उन्होंने फिल्म के हित में किशोर कुमार के चरित्र को अपने पर हावी होने दिया। यह फिल्म हिंदी फिल्म इतिहास में मील का पत्थर मानी जाती है। बाद में कई फिल्मों में महमूद के लिए किशोर कुमार ने प्लेबैक दिया।
धीरे-धीरे महमूद की पहचान बनने लगी एक समय ऐसा आया, जब उन्हें फिल्म में रखना हर डायरेक्टर के लिए अनिवार्य सा हो गया। हालत यह थी कि कई बार जब फ़िल्म के हीरो को पता चलता था कि फिल्म में महमूद भी है तो वह बड़े ध्यान से अपना रोल चुनता था और महमूद के रोल से अपना रोल बड़ा रखने के लिए निर्देशक पर दबाव डालता था। फिर भी कई ऐसी फिल्में बनीं जिनमें कॉमेडियन होते हुए महमूद फ़िल्म के हीरो पर भारी पड़े। ऐसी ही एक फिल्म थी 'मैं सुंदर हूं' जिसके हीरो तो कहने के लिए विश्वजीत थे परंतु परंतु पूरी फिल्म महमूद के कंधों पर टिकी थी।
अल्लाह की मेहरबानी से दुख के दिन कटे, दुख के बादल छटें, तो महमूद ने इतना पैसा कमाया कि केवल घोड़ों को रखने के लिए एक फार्म हाउस खरीदा। एक समय ऐसा रहा, जब महमूद का 150 लोगों का परिवार या कुनबा था और सबके लिए खाने-पीने का इंतजाम महमूद ही करते थे। मुफलिसी देखी थी, इसलिए महमूद अपने आसपास के सब लोगों का ध्यान रखते थे। उनके छोटे भाई अनवर के अनुसार एक बार महमूद अपने विदेश से लौट रहे थे तो वह अपने लोगों के लिए ढेरों उपहार लाए। हालत यह हुई कि अलग से एक टेंपो में उपहार का सामान लाया गया। यह उपहार केवल भाई-बहनों और रिश्तेदारों के लिए ही नहीं था, बल्कि बिल्डिंग के चौकीदार, माली इत्यादि सभी कर्मचारियों के लिए भी था।
महमूद को घोड़ों के अलावा घर और गाड़ी का बहुत शौक था। एक समय ऐसा आया जब एक से बढ़कर एक मॉडल की 24 कार उनके घर पर खड़ी रहतीं। एक बार महमूद को किसी खास पार्टी में जाना था। उस पार्टी में जो सूट वह पहन रहे थे उसी कलर की कार में वह जाना चाहते थे। उन्होंने अपने कारों के लिए एक विशेष मैकेनिक ऑस्टिन को अपने यहां नौकरी पर रखा हुआ था।ऑस्टिन को कहकर उन्होंने अपनी एक कार का रंग बलवाकर अपने सूट के रंग जैसा करवाया भले ही इसके लिए उन्हें उस जमाने में हजारों रुपए खर्च करने पड़े, परंतु अपने शौक को पूरा करने से वह पीछे नहीं हटे। इस घटना से यह भी पता चलता है कि सफलता और पैसों का घमंड उनपर रंग जमाने लगी थी।
एक कॉमेडियन होते हुए महमूद एक हीरो, एक राजा के रूप में रहना पसंद करते थे। उस जमाने में वह लंदन में अपने कपड़ों की शॉपिंग करते थे। इसलिए उनके ड्रेस सेंस की उस जमाने में भी तारीफ होती थी एक बार हॉलीवुड के मशहूर कलाकार ग्रेगरी पैक मुंबई आए, तो महमूद से मिले। वह महमूद से बहुत प्रभावित हुए और बोले," एक हास्य कलाकार के हिसाब से तुम बहुत स्मार्ट हो, किसी हीरो से कम नहीं।'" यह वही ग्रेगरी पेक थे जिनका नकल करने का आरोप देवानंद पर लगता था
अपने संघर्ष के दिनों को महमूद कभी नहीं भूले और जैसे गुरुदत्त ने उनकी सहायता की थी, उसी तरह नए कलाकारों को सहारा देने और आगे बढ़ने में वह हमेशा साथ देते थे। बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि संघर्ष के दिनों में मुंबई में अमिताभ बच्चन को महमूद का सहारा मिला था। वह ग्यारह महीने तक नाहमूस के घर मे रहे। महमूद जे छोटे भाई अमिताभ के दोस्त थे। महमूद अमिताभ की हर तरह से सहायता करते थे। महमूद ने ही उन्हें अपनी फिल्म 'बॉम्बे टू गोवा' में हीरो के रूप में लिया था और उसी दौरान सलीम जावेद ने महमूद की फिल्म में अमिताभ को देखने के बाद प्रकाश मेहरा को जंजीर फिल्म में अमिताभ बच्चन को लेने के लिए राजी किया था। प्रसिद्ध एनाउंसर अमीन सयानी ने एक बार महमूद का इंटरव्यू लिया। उसमें उन्होंने महमूद से उनके सबसे तेज घोड़े के बारे में पूछा, तो महमूद का जवाब था," सबसे तेज घोड़ा तो अमिताभ बच्चन है। देख लेना, एक दिन यह सब को पीछे छोड़कर आगे निकल जाएगा।" शायद अमिताभ पर इतना भरोसा करने वाले अकेले महमूद थे। अमिताभ को भी अपने पर इतना भरोसा ना रहा होगा। इसी तरह इससे पहले अपने पिता की छत्रछाया में संगीत दे रहे राहुल देव बर्मन यानी आर.डी. बर्मन को भी एक स्वतंत्र संगीतकार के रूप में सबसे पहले महमूद ने अपनी फिल्म छोटे नवाब में ब्रेक दिया। इसी तरह प्रसिद्ध संगीतकार रोशन के बेटे, प्रसिद्ध अभिनेता राकेश रोशन के छोटे भाई और आज के हीरो ऋतिक रोशन के चाचा राजेश रोशन को एक संगीतकार के रूप में अपनी फिल्म कुंवारा बाप में महमूद ने ही ब्रेक दिया। इस फिल्म के गाने बहुत हिट हुए। इस फिल्म का एक गाना 'सज रही गली मेरी मां' उस साल की सबसे हिट गाना रहा। इस गाने की खासियत यह भी है कि जिस बूढ़े शराबी पर यह गाना फिल्माया गया, वह कोई और नहीं महमूद के वालिद मुमताज अली ही थे।
महमूद की खासियत थी कि एक कॉमेडियन होते हुए जब फिल्म बनाने की बारी आई तो अपने निर्देशन में उन्होंने सामाजिक फिल्में बनाने में दिलचस्पी दिखाई। महमूद के जीवन में दुख की कभी कमी नहीं रही। उनका एक बेटा पोलियो की चपेट में आ गया और इसी बीमारी पर आधारित फिल्म थी कुंवारा बाप।
समय किसी का सगा नहीं होता। समय को साधने वाले उम्र भर सुखी रहते हैं। गाड़ी भी तभी सही चलती है जब समय से उसके गियर बदले जाएं, और सही गियर में गाड़ी चलाई जाय। यहां महमूद चूक गए। 1975 के बाद उनके
कैरियर में ढलान शुरू हुआ। नए हीरो, नए हास्य अभिनेता और सबसे बड़ी बात नए दर्शक आ गए। नए दर्शक लाउड कॉमेडी और एक्टिंग से दूर थे। इसीलिये सामाजिक फिल्मों के पुराने हीरो राजकुमार, सुनील दत्त और धर्मेंद्र तक चोला बदलकर एक्शन हीरो बन गए। पर महमूद अब भी पुरानी यादों में जी रहे थे। काम न मिलने पर खुद फ़िल्म बनाने लगे। दर्शको जे लिये न बनाकर फ़िल्म बनाई अपनी मर्जी की और अच्छे अभिनेताओं के बदले अपने बच्चों को दर्शकों पर थोपने लगे। नतीजा, फिल्में डूबी, पैसा डूबा और डूब गई महमूद की साख। हालत यह थी कि उनके सम्मान के लिये उन्हें निर्देशक दो सागर मिनट के रोल देने लगे।
समय का फेर देखिए, जिस पी एल संतोषी के ड्राइवर के रूप में महमूद ने काम किया था उनके बेटे राजकुमार संतोषी ने जब 'अंदाज अपना अपना' फिल्म बनाई, तो उसमें महमूद के लिए स्पेशल रोल रखा और वही फिल्म महमूद की आखिरी फिल्म बनी।
महमूद उन गिने-चुने कलाकारों में थे जिन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड्स के लिए 25 बार नॉमिनेट किया गया। इनमें से 19 बार सर्वश्रेष्ठ हास्य कलाकार के लिए नामित हुए और छह बार सहायक अभिनेता के रूप में।
अपने आखिरी दिनों में अमिताभ बच्चन से अपनी नाराजगी महमूद छिपा नहीं पाए और भावुक होकर अपना गुस्सा लोगों के सामने रखा हुआ यह था की महमूद को दिल की बीमारी हुई और उनकी बाईपास सर्जरी जिस व्रीच कैंडी हॉस्पिटल में हुई, उसी हॉस्पिटल में अमिताभ बच्चन के पिता डॉ हरिवंश राय बच्चन भी एडमिट हुए थे। अमिताभ बच्चन अपने पिता को देखने कई बार आए, परंतु वहीं एडमिट महमूद से मिलना उन्होंने गवारा नहीं किया।अमिताभ के बुरे दिनों में साथ देने वाले महमूद को यह बुरा लगा और उन्होंने अपने मन की बात सबके सामने रखी। शायद अमिताभ को भी अपनी गलती का एहसास हुआ होगा या वह महमूद की इतनी इज्जत करते थे कि उन्होंने कभी महमूद के खिलाफ कुछ नहीं कहा।
इसे अल्लाह की लीला ही कहेंगे कि सबके दिलों में राज करने वाले महमूद की मौत भी दिल की बीमारी से हुई और 23 जुलाई 2004 को अमेरिका में सोते-सोते वह इस दुनिया को छोड़कर चले गए। उन्हें भारत लाया गया, मुम्बई ने लोगों के दर्शन के लिये रखने के बाद बेंगलुरु में दफनाए।
अपने 50 साल के कैरियर में महमूद ने 300 फिल्मों में काम किया। उस जमाने का शायद ही कोई नामी अभिनेता या निर्देशक होगा जिनके संग महमूद ने कोई फ़िल्म न की हो।

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