"मां, काम वाली आंटी आज भी नही आई क्या?" स्कूल से आकर बस्ता पटकते हुए मीनू ने पूछा। मां के चिड़चिड़े चेहरे और बेतरतीब किचेन को देखकर वह समझ गई थी कि आज भी काम वाली बाई ने मम्मी को झटका दे दिया है।
"हां, नहीं आई है वो बदतमीज। इस बार आने दे, उसे निकाल दूंगी।"
"रहने दो मां। मैं पचास बार सुन चुकी हूं। शर्त लगा लो, आप उसे न निकालने वाली।" जब तक मां गुस्से में मीनू पर झपटती, वो बाथरूम में घुस चुकी थी।
उनकी काम वाली बाई पेट से थी। पहले ही तीन लड़के थे, अब चौथा आने वाला था।
"हम से तो एक भी नहीं पलता, ये पता नहीं, चार-चार कैसे पाल लेती है।" बड़बड़ाती हुई रीता ने मीनू का खाना निकलना शुरू किया।
खाना खाते हुए मीनू बोली, "मां, काम वाली आंटी को फोन कर लो। अगर कल भी नहीं आई तो ये बर्तन....।" आगे कुछ न कहकर वह चुपचाप खाने लगी। उसे अब डर लग रहा था कि बर्तन अब उसे मांजने पड़ेंगे।
सुषमा नहीं आएगी, सोचकर ही रीता घबराने लगी। सुषमा नई थी इस इलाक़े में, इसलिये सस्ते में काम करती थी। चूंकि उसे बच्चा होने वाला था, इसलिये भी कई लोग उसे रखना नहीं चाहते थे।
'कहीं उसे बच्चा तो नहीं हो गया?' सोचते हुए रीता ने फोन लगाया।
"हेलो।"
"हां जी कहिए।" उधर से एक मर्द की आवाज़ आई।
"यह सुषमा का नंबर है?" रीता ने तल्ख स्वर में पूछा।
"हां, आप कौन।"
"व मेरे घर में काम करती है।"
"जी, वो तो हॉस्पिटल में है। बात कराऊँ?"
"हां, करवा दो।" कहने को तो रीता ने कहा पर उसका दिल बैठने लगा। हो न हो उसे बच्चा होना था, और उसे हो गया, इसीलिये अस्पताल में है। अब काम कैसे होगा?
"हेल्लो।" उधर से कमजोर सी आवाज आई।
"कौन सुषमा, कैसी हो।" रीता उसकी आवाज को बड़ी मुश्किल से पहचान पाई।
"हां दीदी।"
"अस्पताल में क्यों? सब ठीक तो हैं ना। आज काम पर भी नहीं आई, तो सोचा पूछ लूं।" अपने गुस्से को दबाते हुए रीता ने पूछा।
"दीदी, कल रात ही भर्ती हुई थी। आज सुबह फिर लड़का हुआ है।" कहते हुए सुषमा की आवाज में कुछ गहराई सी आ गयी।
"अरे वाह। बधाई हो। अब तो लगता है, कुछ दिनों तक नहीं आ पाओगी?" अपना गुस्सा दबाते हुए रीता बोली। फिर लड़का हुआ, इस वाक्य ने जैसे उसके जले पर नमक छिड़क दिया था।
क्या करूँ? किसी को रख लूं?" रीता ने अब पांसा फेंका ताकि सुषमा जल्दी से काम पर लौटे।
"आपकी मर्जी दीदी। मैं तो एक हफ्ते बाद ही आ पाऊंगी।"
"अरे नहीं-नहीं। मैं किसी और को क्यों रखूंगी?" रीता हड़बड़ा गई। उसे नहीं पता था कि सुषमा इतनी जल्दी मान जाएगी काम छोड़ने के लिए।
"मैं मैनेज कर लूंगी। तू चिंता न कर। हां, जब आना, तो मिठाई जरूर लाना।"
"हां दीदी, वो मैं जरूर लाऊंगी।"
"ठीक है। अपना ध्यान रखना।" कहते हुए रीता ने फ़ोन रख दिया।
"माँ।"
"क्या है?"
"वो सचमुच मिठाई लाएगी और आप खाओगी उसकी लाई हुई मिठाई।" मीनू ने हैरानी से पूछा।
"लाने तो दे मिठाई। हम खाते हैं कि फेंकते है, यह वो थोड़े न देख पायेगी।" कहते हुए रीता हंसी और किचन में चली गई।