अनिल जायसवाल
रोज का तरह अंशु स्कूल जाने के लिए मुंह अंधेरे उठा। उसके पिता लकड़ी के बड़े व्यापारी थे। बड़ा-सा बंगला था। उसके चारों तरफ हरियाली थी। अंशु की आदत थी, रोज सुबह उठकर बगीचे में जाना और पक्षियों को दाना चुगाना। हरे-भरे पेड़ों पर बैठे पक्षी उसका इंतजार करते।
पर आज तो गजब हो गया। अंशु जैसे ही घर से निकलकर बगीचे में गया, उसकी चीख निकल गई, ‘‘पापा पेड़, पापा पेड़।”
अंशु के पापा गोपालदास सो रहे थे। बेटे की चीख सुनकर दौड़े। बाहर पहुंचकर देखा, अंशु बदहवास सा खड़ा है।
‘‘क्या हुआ? क्यों चिल्ला रहे हो? ” गोपाल अनमने से होकर बोले।
आतंकित अंशु ने बगीचे की ओर संकेत किया। उनकी दृष्टि बगीचे की अर गई। अब उनके चीखने की बारी थी।
उनके बगीचे में एक भी पेड़ नहीं था। सारे पेड़ गायब थे। ऐसा नहीं था कि कोई उन्हें रातोंरात काटकर ले गया हो। देखने पर ऐसा लग रहा था कि वहां कभी पेड़ उगे ही नहीं थे। उन्होंने आसपास देखा। उनकी आंखे हैरत से फटने लगी। बाहर सड़कों से भी पेड़ गायब थे। बदहवास से गोपालदास ने तुरंत मोबाइल से पुलिस को फोन किया। बड़ी मुश्किल से इंसपेक्टर लाइन पर आया। आते ही उसने ही सवाल दाग दिया, “क्या आपके यहां से भी पेड़ गायब हैं?”
‘‘हां, पर आपको कैसे पता चला?” गोपाल दास हैरानी से बोले।
‘‘आपके यहां ही नहीं, सारे शहर का यही हाल है। सब जगह से यही फोन आ रहा है। अब तो प्रलय आई ही समझो।” कहते हुए इंसपेक्टर ने फोन रख दिया।
‘‘पापा-पापा, पेड़ कहां चले गए?” अंशु ने अपने पापा से पूछा।
वह क्या जवाब देते! वह तो खुद हैरान थे। ऐसा भी कहीं होता है क्या!
‘‘अंशु-अंशु।” तभी एक महीन-सी आवाज आई।
अंशु ने इधर-उधर देखा। तब उसकी नजर जमीन पर बैठी चिन्नी चिडि़या पर गई। वह चुपके से अपने पापा से अलग होकर एक ओट में हो गया। चिन्नी उड़कर उसके हाथ पर बैठ गई।
‘‘क्या बात ही चिन्नी? ये सारे पेड़ कहां चले गए? अब हम किसपर चढ़कर खेलेंगे और झूला झूलेंगे? अंशु ने भर्राए स्वर में पूछा।
‘‘ये पेड़ कहां चले गए, यह तो नहीं पता, पर क्यों और कैसे चले गए? यह मालूम है।” चिन्नी ने फुसफुसाते हुए कहा।
‘‘अच्छा!” आश्चर्य से अंशु की आंखे फैल गईं,‘‘क्यों चले गए हैं ये?” चिन्नी बताने लगी
कल रात पेड़ों की सभा हुई थी। उनमें में से एक पेड़ बोला, “हम एक जगह रहते-रहते ऊब गए हैं। फिर ये मनुष्य हमारा खयाल भी नहीं रखते हैं। जब चाहें, तब हमें काटते रहते हैं। काश हम कहीं और जा पाते।”
‘‘क्या सचमुच तुम लोग कहीं और जाना चाहते हो?” तभी वहां एक आवाज गूंजी।
पेड़ों ने इधर-उधर देखा। सामने एक बौना जादूगर खड़ा था। चेहरे से बड़ा आदमी पर कद से बच्चों जैसा। वह अपनी टोपी हवा में उछाल रहा था।
‘‘हां, हम कहीं और जाना चाहते हैं। अब हम धरती पर नहीं रहेंगे। पर यह होगा कैसे?” एक बुजुर्ग पेड़ ने उत्सुकता से पूछा।
‘‘मैं जादूगर हूं। कुछ भी कर सकता हूं। मेरे लोक में पेड़ नहीं है। हम नहीं जानते, फल किसे कहते हैं। सच तो यह है कि हमें खाने की जरूरत ही नहीं पड़ती।” कहते हुए बौना जादूगर हंसा।
‘‘सच! क्या तुम हमें अपने लोक ले चलोगे?” पेड़ों ने खुशी से चहकते हुए कहा।
‘‘ठीक है, चलो।” कहकर बौना अपनी टोपी में हाथ डालकर कुछ बुदबुदाया। तभी सारे पेड़ हिलने लगे। सारे पक्षी जो उन पेड़ों पर रहते थे, डरकर उड़ने लगे। अचानक सारे पेड़ उखड़े और बौने जादूगर के साथ उसके लोक को उड़ चले।
‘‘तुम्हें तो अपने पेड़ों की चिंता है। पर हम पक्षियों की सोचो, हम कहां रहेंगे।” सारी कहानी सुनाकर चिन्नी चिडि़या दुखी होकर बोली।
‘‘हां, यह बात तो है। पर बिना पेड़ के क्या धरती बच पाएगी। हमें पढ़ाया जाता है कि पेड़ों के कारण ही वर्षा होती है। धरती की मिट्टी में कटाव नहीं होता। प्रकृति का संतुलन बना रहता है। फल खाकर स्वस्थ रहते हैं। पेड़ जहरीले गैसों को चूसकर आक्सीजन देता है।” अंशू बोला।
‘‘हां, यह तो है। पर अब हम क्या करें?” चिन्नी ने पूछा।
‘‘तुम बौने जादूगर का पता लगाओ। तब तक मैं बच्चों की टोली की बैठक बुलाता हूं। हमें पेड़ों को धरती पर लाना ही होगा।” अंशु ने दृढ़ स्वर से कहा।
अगले दिन बच्चों की टोली जमा हुई। सब अपने-अपने पेड़ों को यादकर रोने लगे। यशा नामक एक लड़की बोली, चाहे जो हो, मैं अपने जामुन के पेड़ को वापस लाकर रहूंगी। उसके साथ मेरा झूला भी चला गया।” कहते-कहते वह आंसू बहाने लगी। सारे बच्चे पेड़ों को वापस लाना चाहते थे, पर लाए कैसे, समझ नहीं आ रहा था।
‘‘तुम लोग मुझसे मिलना चाहते थे, लो मैं आ गया।”
तभी वहां आवाज गूंजी।
सबने चौंककर देखा। उनके बीच बौना जादूगर खड़ा था। ऐसा लगता था, जैसे वह भी उस टोली का एक बच्चा हो। चिन्नी चिडि़या उसके कंधों पर बैठी थी।
‘‘हां-हां! हम आपसे मिलना चाहते थे। आप हमारे पेड़ों को क्यों ले गए?” कहते-कहते अंशू की आंखें छलछलाने लगीं।
‘‘गलत! मैं उन्हें नहीं ले गया। वे मेरे साथ जाना चाहते थे। सबके सब तुम लोगों से तंग थे। इसमें मेरी क्या गलती है।” कहते हुए बौना हंसा।
“हमें अपने पेड़ वापस चाहिएं।” यशा ने अपना फैसला सुनाया।
‘‘यह मेरे वश में नहीं है। हां, वे आना चाहें तो मुझे कोई एतराज नहीं है।” बौना अभी भी हंसता जा रहा था।
‘‘पर हम उन्हें कैसे मनाकर लाएं। वे कहां हैं, हम जानते ही नहीं।” एक बच्ची ब¨ली।
‘‘उन तक मैं तुम लोगों को पहुंचा सकता हूं।” बौना अब गंभीर हो गया था।
‘‘नहीं-नहीं, हम वहां नहीं जाएंगे। कहीं हम भी वहां रह गए तो? ” यशा घबराकर बोली।
‘‘घबराओ नहीं। मैं बच्चों को बहुत प्यार करता हूं। यह धरती मुझे भी बहुत प्यारी है। मेरा काम है दूसरों की सहायता करना। पहले मैं पेड़ों के काम आया था, अब तुम्हारे काम आना चाहता हूं।” बौने ने दिलासा दिया।
‘‘ठीक है। इस टोली की तरफ से मैं पेड़ों से मिलने जाऊंगा।” अंशु ने आगे बढ़कर कहा।
सारे बच्चे इससे सहमत हो गए। बौना जादूगर भी मान गया। अपने मित्रों से विदा लेकर अंशु बौने के साथ चल पड़ा। वे बादलों के ऊपर से उड़ते हुए चले जा रहे थे। अंशु को देखकर एक बादल बोला, “मेरी शुभकामनाएं दोस्त। पेड़ों को मनाकर लाना। कहना, वे नहीं आए तो, हम बरस नहीं सकेंगे। फिर हम बादलों का बनना भी बंद हो जाएगा। ऐसे में धरती का विनाश निश्चित है।”
बादलों को सांत्वना देते हुए अंशु बौने जादूगर के साथ उसके लोक जा पहुंचा। वहां चारों तरफ इतने पेड़ थे कि वहां की धरती तक रोशनी पहुंच ही नहीं पा रही थी।
‘‘बाबा आ गए।” चिल्लाते हुए एक बौना बच्चा बौने जादूगर के पास पहुंचा। वह शिकायती लहजे में बोला, ‘‘बाबा, कहां से इन पेड़ों को ले आए? ये पेड़ तो हमारे लोक में अंधेरा कर रहे हैं। कल से यहां रोशनी नहीं हुई।”
बौने जादूगर ने उसे दिलासा दिया। फिर वह अंशु को अपने लोक पर घुमाने लगा। तभी अंशु के पेड़ ने उसे देख लिया। वह चहककर बोला, “अरे अंशु, कैसे हो? यहां कहां घूम रहे हो?”
‘‘तुम सब हमें छोड़कर क्यों चले आए? तुम्हें पता नहीं, तुम्हारे बिना धरती पर जीवन संभव नहीं।” अंशु शिकायत करते हुए बोला।
“हां, हां, अब तो ऐसे ही कहोगे। जब तुम्हारे पिता हमें कटवाकर बेचते हैं, तब तो किसी ने कुछ नहीं कहा।” एक बुजुर्ग पेड़ अपने पत्तों को सरसराते हुए कहा।
‘‘हां, मैं मानता हूं। हम लोग तुम्हारे साथ ज्यादती करते हैं। पर तुम्हें मालूम नहीं, दूसरों को काम आना से बड़ी और कोई बात नहीं होती।” अंशु ने उन्हें समझाया।
‘‘जाओ-जाओ, हम सब कुछ नहीं सुनना चाहते। तुम चाहे जो कहो, हम तो यहीं रहेंगे।” बुजुर्ग पेड़ ने अपना फैसला सुना दिया।
अंशु ने उन्हें बहुत समझाया, पर पेड़ कुछ समझने को तैयार नहीं थे। वह रोआंसा हो उठा। जाते समय वह अपने पेड़ से लिपट गया। उसके आंसुओं से पेड़ का तना भीगने लगा। पेड़ उसे कुछ समझाना चाहता था, पर वह कुछ न कह सका।
अंशु खाली हाथ धरती पर लौटा। पेड़ों का फैसला सुन धरतीवासी सन्न रह गए। पेड़ों के साथ की गई ज्यादतियों को याद कर वे पछताने लगे।
इधर दूसरे लोक में कुछ दिन तो पेड़ों ने मजे से काटे। पर धीरे-धीरे वे ऊबने लगे। उन्हें बच्चे, उनकी शरारतें याद आतीं। बौनों के लोक में कोई बच्चा उनके पास तक नहीं फटकता। न कोई उनके फल खाता और न कोई झूले डालता। जो पेड़ ठूंठ हो जाते, उन्हें कोई काटकर नहीं ले जाता। वे वहीं लगे-लगे सड़ते रहते। नए पेड़ों को उगने के लिए जगह नहीं मिलती। अब पेड़ उदास रहने लगे।
एक दिन सबसे बुजुर्ग पेड़ कुछ पेड़ों के साथ मंत्रणा कर रहा था। तभी आवाज आई, “दादा-दादा, मुझे बचाओ। मेरा दम घुट रहा है।”
सारे पेड़ अचकचाकर इधर-उधर देखने लगे। तभी उनका ध्यान नीचे गया। आम का एक नन्हा पौधा उन्हें पुकार रहा था। वह कमजोर-सा होकर मुरझा रहा था। अपनी टहनियों को हिलाते हुए बुजुर्ग पेड़ ने पूछा, “क्या बात है नन्हे?”
‘‘क्या बताऊं, सारी जगह घेरकर तो आप खड़े हैं। हम छोटे पौधों को बढ़ने के लिए न तो खाना मिल पा रहा है, न रोशनी है और न पनपने के लिए जगह है। जब तक आप लोग जगह नहीं देंगे, हम बड़े कैसे होंगे।?” छोटा पौधा भुनभुनाता हुआ बोला।
उसकी बात सुन पेड़ दादा सन्न रह गए। वह प्रकृति का नियम भूल गए थे। वह समझ गए कि यदि नए पौधे उग न सके, तो एक दिन सारे पेड़ समय के साथ सूख जाएंगे और पेड़ों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा।
पेड़ दादा ने कुछ देर सोचा।फिर बाकी पेड़ों से बोले, “यहां के नीरस जीवन से तो धरती का जीवन अच्छा था। वहां हम किसी के काम तो आते थे। यहां तो न कोई हमारी लकड़ी लेता है और न ही फलों का उपयोग करता है। हमारा तो जन्म लेना ही बेकार हो रहा है। हमें वापस धरती पर चलना चाहिए। क्या पता! हमारी कमी के कारण धरती वासी भी हमारे महत्व को समझ गए हों। और कुछ हो न हो, हमारे नन्हे पौधे तो वहां जीवन पाएंगे। वहां के बच्चों की खिलखिलाती हंसी सुनने को मन तरस गया है।”
‘‘हां दादा, बच्चों की तो हमें भी बहुत याद आती है। चलो, चलें। सभी पेड़ बौने जादूगर को याद करने लगे। उसके आते ही गिड़गिड़ाने लगे, “”हमें वापस धरती पर पहुंचा दो। हम वहीं ठीक थे।”
बौने जादूगर को उन पर दया आ गई। वह मान गया।
अगले दिन अंशु सोकर ऊठा, तो पेड़ों की टहनियां खिड़की से टकराकर उसे आवाज दे रही थी। अंशु भागकर बगीचे में गया। उसने पेड़ को प्यार से सहलाया। फिर इतना ही कह पाया, “थेंक्स यू। पर अब कभी कहीं मत जाना।”
‘‘नहीं जाऊंगा, चाहे तुम्हारे पिता या कोई और हम सबको काट ले, पर हम पेड़ों ने फैसला किया है कि अब धरती पर ही रहेंगे।” पेड़ ने झूमते हुए कहा।
अंशु के पापा सब सुन रहे थे। वह आगे बढ़कर बोले, “हमें माफ कर दो। अब सूखे पेड़ों के अलावा हम किसी पेड़ को नहीं काटेंगे। हम सबकी समझ में आ गया है कि तुम्हारे बिना हम अधूरे हैं।”
‘‘और आप सब के बिना हम पेड़ किसी काम के नहीं।” पेड़ भी डालियों को झुलाता हुआ बोला।
उसकी बात सुनकर सब हंस पड़े।