केले का बगीचा Anil jaiswal द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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केले का बगीचा



अनिल जायसवाल

रेलगाड़ी धड़ाधड़ पटरियों पर दौड़ती जा रही थी। साथ में रामधन का मन भी उड़ता जा रहा था। पंद्रह साल बाद वह अपने गांव बिहार के हाजीपुर जा रहा था। बनारस से गाड़ी खुले एक घंटा हो चुका था। उसकी बेटी रमा पहली बार दादी के यहां जा रही थी। दोनों ही खुशी देखते ही बनती थी।
तभी ट्रेन आरा स्टेशन पर रुक गई। समान बेचने वाले आवाज लगाने लगे। उनमें एक आवाज गूंजी, "केले ले लो, केले, हाजीपुर के मस्त मालभोग केले।"
हाजीपुर का नाम सुनते ही रमा ने अपने पिता की तरफ देखा। रामधन के चेहरे पर अजीब सी खुशी दिखाई दे रही थी। वह उठा और जाकर दो दर्जन केले ले आया। रमा ने केले देखे। वह जैसा केला खाती रही थी, उससे आधे साइज के छोटे-छोटे केले देखकर, उसे बड़ा अजीब लगा। रामधन मुस्कुराकर बोला," जैसे तुम्हें पिज्जा-बर्गर आम पसंद हैं, वैसे ही यह मेरे बचपन का फ्रूट है। इससे मेरी बहुत यादें जुड़ी हैं।"
" कैसी यादें पापा?" रमा ने उत्सुकता से पूछा।
रामधन हंसकर बताने लगा," बेटा, मैं तुम्हारी तरह दिल्ली में पढ़ा-बढ़ा नहीं। मेरा बचपन तो गंगा के तट पर हाजीपुर के पास गुजरा। और पता है, मेरा हाजीपुर अपने केले के लिए दुनिया में मशहूर है। हम बच्चों का पूरा दिन केले के बगीचे में ही गुजरता था। भूख लगी, तो केले तोड़े और खा लिए। घर का खाना खाना हुआ, तो केले के पत्ते तोड़े और उसे प्लेट बना कर खाना खा लिया। और जब हम नहाने के लिए गंगा में जाते थे, तो केले के तने से नाव बनाकर उसे गंगा में तैराते थे।
पापा की बात सुनकर रमा को अच्छा तो लगा, पर कोई खास खुशी न हुई। केले उसने छुए भी नहीं।
कई घंटों बाद वे पटना पहुंचे और वहां से चाचा जी की गाड़ी में हाजीपुर के लिए चल पड़े। गंगा के चौड़े पाट को देखकर उसे डर लगा कि पापा इस स्विमिंग पूल में तैरने आते थे।
गंगा का तट खत्म होते ही उसे जंगल सा नजर आने लगा। "यह क्या है पापा?" रमा ने उत्सुकता से पूछा।
"यह बताने की नहीं, महसूस करने की चीज है।" रामधन ने मुस्कुराकर कहा।
एक घंटे में सब गांव पहुंच गए। तब तक मौसम भारी होने लगा था। मानो बादल भी इतने बरसों बाद गांव आए रामधन और उसकी बेटी से मिलने आ गए थे दादी से मिलकर रमा बहुत खुश हुई। चाचा की बेटी गीता उससे छोटी थी। वह तो बड़ी दीदी पाकर खुशी से फूला ना समा रही थी।
खाना-वाना खाकर सब आराम करने लगे। पर रमा का मन तो जंगल में बस रहा था। वह बोली, " पापा, अब बताओ ना, वह जंगल क्या था?"
पापा हंसकर बोले," गीता, रमा को जरा अपने जंगल मे घुमा लाओ।"
गीता के साथ जब रमा निकलने लगी, तो साथ में छाता ले लिया। गीता मुस्कुराकर बोली, " दीदी, यहां गंगा के किनारे की बारिश में छाता से काम नहीं चलता। चलो, आज मैं यहां की बारिश के मजे आपको दिलाती हूं।"
रमा ने भी कुछ सोचकर छाता को छोड़ दिया और दोनों बहनें घर से निकल पड़ीं। थोड़ी दूर जाते ही छोटे-छोटे पेड़ दिखाई देने लगे। दूर तक हजारों पेड़ दस-दस हाथ की दूरी पर थे। पेड़ों को देखकर रमा अचरज से भर गई। सारे पेड़ हवा के साथ मस्ती में झूम रहे थे। उन पर लगे हरे-पीले केले देखकर रमा समझ गई कि यह तो केले का बगीचा है। 'जिसे मैं ऊपर से जंगल समझ रही थी, वह केले का बगीचा था।' रमा मन ही मन बुदबुदाई।
" दीदी इनमें हमारा भी बगीचा है। मैं तो रोज पापा के साथ यहां आती हूं । यहां के केले ना खाऊं, तो वह दिन मुझे अच्छा ही नहीं लगता।" कहते हुए गीता ने कुछ केले तोड़कर रमा को दिए। पता नहीं रमा को क्या हुआ, उसने चुपचाप दो केले खा लिए। खट्टे-मीठे से केले कुछ अजीब तो लगे, पर उसका स्वाद दिल्ली के केलों से अलग था। तभी पीछे-पीछे उसके पापा और चाचा जी आ गए। "पापा, आपने बताया नहीं कि हमारे केले के पेड़ हैं?" रमा ने शिकायत की।
" कैसे बताता? तुम्हें तो केले पसंद ही नहीं आए थे।"
रमा ने अपने पापा को ध्यान से देखा। अपने गांव, अपनी मिट्टी में लौटने की खुशी उनके चेहरे से झलक रही थी। तभी चाचाजी बोले, "भैया, बहुत दिन हो गए। चलो, आज गंगा मैया में केले के नाव बहाकर दो डुबकी मारते हैं "
"आज नहीं, बारिश में नदी में नहाना खतरनाक है। मौसम साफ होने दो। रमा को भी गंगा में डुबकी लगवाएंगे। आज बगीचे की सैर ही काफी है।" बातें करते-करते दोनों भाई मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गए।
इतनी देर में बारिश शुरू हो गई। परंतु दिल्ली के बारिश में बूंदाबांदी से बचने के लिए भागने वाली रमा आज गांव की मिट्टी में आकर बदल गई थी। सुहानी हवा के साथ रिमझिम बारिश और मिट्टी की सोंधी खुशबू उसे अच्छी लग रही थी। थोड़ी देर में ही जब बरसात थोड़ी तेज हुई, तो गीता ने झट से दो केले के पत्ते तोड़े और रमा से बोली, "लो दीदी, नेचुरल छाता। यह हमें बारिश से भी बचाएगी और घर पर इस पर हम खाना भी खा लेंगे।"
बारिश से बेपरवाह गीता को देखकर रमा मन ही मन सोचने लगी, 'शहर में रहकर हर चीज के लिए हम परेशान रहते हैं। और एक यहां के लोग हैं, जो परिस्थितियों का आनंद लेते हैं और उसी हिसाब से काम कर लेते हैं। रमा को आज गांव का गवईपन भी अच्छा लग रहा था।
"गीता, जरा मेरी फोटो तो खींच। स्कूल में दिखाउंगी, अपना फ्रूट गार्डन और सुंदर बरसात।" गीता की तरफ मोबाइल बढ़ाते हुए रमा का चेहरा खिल से गया था।

30.07.2020