जय हिन्द की सेना
महेन्द्र भीष्म
सोलह
उमा अलबम देखने में खोई हुई थी।
विगत दिनों नई दिल्ली, सूरजगढ़ आदि स्थानों में तौसीफ भाई द्वारा खींचे गये ढेर सारे फोटोग्राफ्स्् अब उमा के लिए समय बिताने का बढ़िया साधन बन चुके थे।
अधिकांश फोटो में अटल भी था। अटल के कुछ एकाकी फोटो भी अलबम में थे।
गौरवर्ण ऊँचा पूरा सुन्दर अटल उसके साथ विवाह करने के लिए प्रस्तुत था जबकि उस जैसे आकर्षक नौजवान के लिए उससे भी सुन्दर लड़कियों की कमी न थी। उमा ने सोचा।
पिछले कुछ दिनों से उमा अटल को लेकर विचारों में खोई रहती। वह समझती थी कि उसका अटल से विवाह हो पाना महज एक कोरी कल्पना है।
यह सब जानते हुए भी उमा कल्पना के सुख से अपने आप को चाहकर भी वंचित नहीं रख सकी।
अटल के प्रति प्रेम का अंकुर उसके हृदय में फूट पड़ा। बीती स्मृतियाँ ताजा हो आईं। अब वह समझ पा रही थी कि क्यों अटल उसकी ओर देखकर गम्भीरता से विचारमग्न हो जाता था। वह समझ रही थी कि क्यों अटल उसे बेचैन दिखायी देता और उससे बातचीत करने में अक्सर लड़खड़ा जाता था। जरूर वह अपने मन की बात कहना चाहता था, परन्तु संकोचवश कह नहीं पाता था।
लाल किले के अंदर मैदान में अकेले खड़े आकाश की ओर देखते हुए अटल का यह फोटो उमा पिछले कई मिनट से देख रही थी। नीले पैंट के ऊपर आसमानी शर्ट और बालों में फँसा धूप का चश्मा, घनी मूँछों वाले अटल के आकर्षक व्यक्तित्व में चार चाँद लगा रहे थे।
‘‘बिन्नूँ बाई..... तुम इते आ बैठी हो..... मैं सगली हवेली छान आई.....' सुखिया ने कमरे में प्रवेश करने के साथ ही कहना शुरू कर दिया, ‘मैहर से तुमाए सास—ससुर आये हैं। तुम्हें लिवाउन...हओ, बब्बाजू से उनको कहवो है कि उनके घर में कौनऊ बड़ी पूजा—हवन होने है, ऊमे आ लिवाउन आये तुमें।'' सुखिया ने अपनी आदत के अनुसार कमरे में अव्यवस्थित पड़ी चीजों को सहेज कर रखते हुए कहा।
‘'माँ कहाँ है?'' उमा ने विचलित भाव से पूछा।
‘‘वे तो सपरखोर के पूजा करवे मंदिर गयीं हैं।'' उमा को असमंजस की स्थिति में डालकर सुखिया कमरे से निकल गयी।
उमा ने दीवानखाने से आ रही बब्बाजू के साथ किसी के जोर से बोलने की अपरिचित आवाज से अंदाजा लगाया कि यही उसके ससुर होंगे, खिड़की के परदे को हटाकर उसने दीवानखाने में बैठे अपने अपरिचित ससुर को देखा हट्ठे—कट्ठे शरीर के साथ रोबदार चेहरे के स्वामी ही उसके ससुर होंगे जो उसके बब्बाजू के ठीक सामने बैठे वार्तालाप कर रहे थे।
उमा अपने रोबदार चेहरे वाले ससुर को अधिक देर देख न सकी और खिड़की का पर्दा बंद कर निढाल पलंग पर लेट गयी।
ऊपर छत पर उपेक्षित लटके प्लास्टिक के नन्हें गुलदस्ते पर उसकी दृष्टि टिक गयी।
वह गुलदस्ते के फूलों की अपने जीवन से तुलना करने लगी। उसे अपना दुर्भाग्य उपेक्षित गुलदस्ते के कृत्रिम फूलों के दुर्भाग्य से कहीं बढ़कर लगा।
माँ शारदा का नैहर, मैहर नगर में उमा की ससुराल है।
रेलवे स्टेशन के बाहर चूने का बादल उमड़ा पड़ रहा था।
कैसे रहते होंगे यहाँ के लोग?
उमा ने देखा चूने से व्याप्त वातावरण के अभ्यस्त लोग इस तरह अपने कार्य कलापों में मग्न हैं कि उन्हें तनिक भी असंतोष नहीं है कि उनके स्वास्थ्य के प्रति चूना कारखाने के मालिक कितना बड़ा अन्याय कर रहे हैं।
पहले से उनकी प्रतीक्षा कर रही एक फियेट कार में उमा अपनी सास के साथ एक कोने में सिमटी हुई बैठ गयी।
कुछ दूर चलने के बाद चूने के गुबार छँटने लगे।
उमा ने कार के बाहर देखा चूने का गुबार पूरी तरह छँट चुका था। उमा ने अपने फेफड़े ताजी हवा से भर लिए।
‘‘वो सामने शारदा माता का मंदिर है।''
उमा ने दूर ऊंची पहाड़ी में कतारबद्ध सीढ़ियों के ऊपर बने मंदिर की ओर देखा।
श्रद्धा से उमा ने अपने दोनों हाथ माँ शारदा को प्रणाम करते हुए बाँध लिए। हवा उमा के चेहरे पर पड़े घूंघट को हल्का—सा हटा गयी। पचास वर्षीय ठाकुर रणवीर सिंह को पहली बार अपनी सुन्दर बहू की छवि दिख गयी।
देवी जी के मंदिर की ओर निहारती हिरणी जैसी स्वच्छ निश्छल आँखों में अन्दर तक विधवा होने की टीस को परख लिया था ठाकुर रणवीर सिंह की अनुभवी आँखों ने।
एक दीर्घ साँस लेकर वह गंभीर मुद्रा में विचारमग्न हो गये।
मैहर में उमा को उसकी सास अपनी माँ की प्रतिमूर्ति लगीं।
उमा शारदा माता के मंदिर भी अपने सास—ससुर के साथ हो आई थी। ऊँची पहाड़ी की चोटी पर बने मंदिर तक तीनों सीढ़ियों से चढ़कर
गये। यद्यपि कार से भी मंदिर के कुछ नीचे तक पहुँचा जा सकता था, परन्तु
ठाकुर रणवीर सिंह सदैव कार नीचे ही छोड़ते थे। ऐसा वे अपनी धर्मपत्नी की इच्छानुसार करते थे।
माँ स्वरूप स्नेहिल सास से एक दिन उमा ने बातों—बातों में पूछ लिया था कि घर में पूजा कब होनी है ? जिसके लिए उसे विशेष रूप से यहाँ लाया गया है।
.....तब उमा की सास ने उसके प्रश्न के समाधान के स्थान पर अपने प्रश्न का उत्तर उमा से माँगा.....उन्होंने पूछा...‘‘उमा तुमने माता शारदा से क्या माँगा था ?''
उमा मौन रही, कुछ कह न सकी, सच उसने उस दिन बलवीर भैया सहित अटल के कुशल मंगल की कामना शारदा माता से की थी। उमा के
शांत रहने पर प्रश्न दोहराने की अपेक्षा उमा की सास ने स्वयं ही कह दिया था, ‘‘बेटी हम दोनों बुुढ्ढा—बुढ्ढी ने माँ शारदा मैया से अपने लिए पोता माँगा था।''
एक साथ हजारों मन का वजन उमा को अपने सिर पर महसूस हुआ।
यह क्या कह दिया उसकी सासजी ने। विधवा बहू से पोते की कामना। उमा कुछ और सोच पाती कि उसकी सास ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए प्यार से कहा, ‘‘बेटी इसके लिए तुम्हें पुनर्विवाह करना होगा और वह भी बलवीर के मित्र अटल से।''
‘‘क्या ?''
हर्ष मिश्रित आश्चर्य से बोल गयी उमा... ‘‘सच माँ जी''
‘‘हाँ बेटी एक दिन बलवीर यहाँ आया था। वह तुम्हारे ससुरजी को और मुझे सारी बात समझा गया है। तुम्हारे बाबा जिस तरह बलवीर के कार्य में अड़चन डाल रहे थे उसका एक मात्र रास्ता यही था कि तुम्हें किसी बहाने से
यहाँ बुला लिया जाये और विशेष पूजा की बात कह हम तुम्हें यहाँ ले आये। तुम्हारे ससुरजी भी इस विवाह से बहुत खुश होंगे। रोज तुम्हारे दुःख को समझकर मुझसे चर्चा करते हैं।'' उमा को अपनी छाती से लगा कर वह आगे बोलीं, ‘‘बेटी परसों ही बलवीर यहाँ अटल के साथ आ रहा है, जिस विशेष पूजा की बात तुम पूछ रहीं थी वह पूजा परसों ही एक सादे समारोह में अटल के साथ तुम्हारे पाणिग्रहण सूत्र में बंधने के बाद ही समाप्त होगी। देर—सबेर बब्बाजू को भी मना लिया जायेगा।''
‘‘बहन जी किस विचार में खोई हुई हैं जो अभी तक चोटी भी बाँध नहीं पाई
हैं।'' मोना को सामने दर्पण में अपने पीछे से आते देख उमा की उंगुलियाँ स्वतः
ही चोटी बाँधने में लग गयी।
‘‘ओ हो..... लाइये मैं चोटी बाँध दूँ।'' मोना उमा के पास कुर्सी खींच कर बैठते हुए बोली।
‘‘रहने भी दो भाभीजी।'' उमा अब मोना को भाभी का संबोधन देने लगी थी।
कल शाम ही मोना बलवीर भैया व माँ शांति देवी के साथ आई थी और साथ में आये थे अटल, तौसीफ़ व हम्माद।
मोना जो उसकी ननद—भाभी दोनों थी उसके लम्बे बालों की चोटी हाथ मे ले चुकी थी।
‘‘बहनजी.....''
‘‘बहनजी नहीं भाभीजी बोलो।'' उमा ने मोना को टोकते हुए चुहल की।
‘‘ओह सॉरी भाभीजी...... मैं पूछ रही थी कि बालों की चोटी में तीन लटें रहती हैं परन्तु चोटी गुथ जाने के बाद दो लटें ही दिखती हैं। तीसरी लट क्यों नहीं दिखती?''
‘‘याद आया ननदजी''
‘‘ननदजी....?'' मोना ने आँखें निकाली।
‘‘ओह सॉरी भाभीजी.....'' उमा ने मोना वाली स्टाइल की पुनरावृत्ति करते हुए कहा।
दोनों कुछ देर के लिए खिलखिलाकर हँस पड़ीं।
‘‘हाँ मैं कह रही थी....'. उमा ने हँसी थामते हुए कहा, ‘एक बार मैं इलाहाबाद माँजी व पिताजी के साथ संगम स्नान करने गयी थी, तब मालूम पिताजी ने नाव में माँजी से पूछा कि गंगा, यमुना और सरस्वती नदी के संगम में सरस्वती नदी कहाँ विलुप्त हो गयी? तब नाविक जो कि पिताजी की बात सुन रहा था, मालूम क्या जवाब दिया।''
‘‘आगे आप बतायेंगी तभी तो मालूम चलेगा।'' मोना ने हँसते हुए कहा।
उमा भी हँसी बिखेरते हुए आगे बोली,‘‘नाविक ने पिताजी के प्रश्न का समाधान इस प्रकार किया जैसे अभी तुम तीसरी लट के बारे में पूछ रही थी।
उसने कहा कि गंगा, यमुना और सरस्वती नदी के संगम में, सरस्वती नदी ठीक वैसे ही विलुप्त हो जाती है जैसे कि स्त्री की तीन लट की चोटी में तीसरी लट लुप्त हो जाती है, परन्तु वास्तव में वह होती अवश्य है।''
‘‘वाह कितना अच्छा उत्तर दिया था उस नाविक ने।'' मोना चहकते हुए आगे बोली, ‘‘है न बहनजी?''
मोना के बहनजी कहने पर इस बार उमा ने अपनी बड़ी—बड़ी आँखें निकालकर मोना को कृत्रिम गुस्से से देखा था।
‘‘सॉरी भाभीजी.......'' मोना हल्के स्वर में कहते हुए खिलखिलाकर हँस पड़ी।
हँसने में उमा ने मोना का बराबर का साथ दिया।
दोनों परस्पर ननद व भाभी का रिश्ता रखने वाली बहुत देर तक हँसती रही थीं। इनमें एक कुँवारी बाल विधवा थी तो दूसरी शादीशुदा सधवा किंतु अब तक कुँवारी।
*****