जय हिन्द की सेना
महेन्द्र भीष्म
दस
अपने पूर्व निर्धारित समय पर भारतीय जवानों की एक टुकड़ी जिसमें तीन कम्पनियाँ सम्मिलित थीं, मेजर पाण्डेय के नेतृत्व में सेना के सोलह ट्रकों में गोला—बारूद, माल—असबाब सहित अग्रिम मोर्चे के लिए रवाना हुई।
बलवीर, भानु, तौसीफ़, हम्माद व रहमान सभी एक ही ट्रक में थे। हिचकोले खाता ट्रक मध्यम गति से आगे बढ़ रहा था। ट्रक में कुछ जवान अपनी राइफलें लिए सतर्क खड़े थे।
रहमान ने बांग्ला में एक राष्ट्रीय गीत सभी को सुनाना प्रारम्भ किया—
‘‘आमार सोनार बांग्ला आमार सोनार बांग्ला अमी तूमे भालोबासी चिरोदिन तोमार आकाश तोमार बाटाश
आमार प्राने बाजे बासी
ओ मा
फागुने तोर अमेर बोने
घराने पागोल करे मोरी है है रे
ओ मा
अघरने तोर भोरा केते अमी की देख ची मोधुर हँसी.............''
भारतीय सैनिक रहमान के भावों से गीत की गहराई का आभास कर रहे थे। रहमान द्वारा गाए जा रहे गीत की समाप्ति के बाद बलवीर ने भानु से कुछ सुनाने की फरमाइश की।
बलवीर के आत्मिक आग्रह को भानु टाल न सका और कवि प्रेम धवन रचित ‘काबुलीवाला' फिल्म के भावपूर्ण संवेदनशील गीत को सस्वर सुनाने लगा—
ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछुड़े चमन तुझ पे दिल कुर्बान।
तू ही मेरी आरजू, तू ही मेरी आबरू
तू ही मेरी जान।
छोड़कर गलियाँ तेरी कोसों चले आए हैं हम,
दिल में है यही तमन्ना तेरे जर्रों की कसम,
जिस जगह पैदा हुए उस जगह पर निकले दम,
तुझ पे दिल कुर्बान।
तू ही मेरी आरजू, तू ही मेरी आबरू
तू ही मेरी जान।
ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछुड़े चमन तुझ पे दिल कुर्बान।
माँ का दिल बनकर कभी सीने से लग जाता है तू,
और कभी नन्हीं—सी बेटी बनकर याद आता है तू जितना याद आता है तू उतना तड़फाता है तू
तुझ पे दिल कुर्बान..... तू ही मेरी आरजू......
तेरे दामन से जो आए उन हवाओं को सलाम
चूम लूँ मैं उस जुबाँ को जिस पर आए तेरा नाम,
सबसे प्यारी तेरी सुबह, सबसे रंगीन तेरी शाम तुझ पे दिल कुर्बान...... तू ही मेरी.......
ऐ मेरे प्यारे वतन......
भानु का गला गीत गाते गाते भर आया और अंत में वतन की याद में आँखों से आँसू छलक आए...... गीत सुनते—सुनते ट्रक में सवार सभी भारतीय सैनिकों की आँखें छलक आर्इं...... गला रुँध गया।
बलवीर ने भानु को अपने सीने से भींच लिया। दोनों की आँखों से अविरल अश्रुधारा बह निकली।
एक अलग अनुभूति सभी के अंदर इस यात्रा से हो रही थी। मार्ग में आते—जाते गाँवों में कुछ देर के लिए ट्रक रुकते गाँव के लोगों से भारतीय सेना के नियुक्त जनसम्पर्क सैनिक मुक्तिवाहिनी के वालंटियर्स के माध्यम से सैन्य अभियान के अंतर्गत उपयोगी जानकारी हासिल करते और उनका नैतिक सहयोग लेते हुए आगे बढ़ जाते।
रात्रि होने से पूर्व भारतीय सेना का यह दल मदारीपुर नगर से बीस किलोमीटर पहले अपने दूसरे पड़ाव स्थल पर सुरक्षित पहुँच गया। यहाँ पर मिले मुक्तिवाहिनी के स्वयंसेवक ने भारतीय दल को सचेत करते हुए सूचित किया कि मदारीपुर में पश्चिमी पाकिस्तानी सेना का जमाव खुलना शहर की भाँति है।
मदारीपुर पद्मा नदी के मुहाने पर बसा हुआ एक बड़ा व्यापारिक शहर है। मुक्तिवाहिनी के स्वयंसेवक के अनुसार मदारीपुर में पश्चिमी पाकिस्तानी नौसेना का भी जमावड़ा है। मेजर पाण्डेय को इस प्राप्त सूचना के कारण अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम बदलने पड़ेे। उन्हाेंने रात्रि भोज के लिए आदेश दे दिया।
खुलनावासियों द्वारा बनाकर भेजी गयी, पूड़ी सब्जी के पैकेट भारतीय सैनिकों में बाँट दिये गये।
खुलना शहर की गृहणियों द्वारा प्रेम से भेजे गये इस स्वादिष्ट भोजन का आनन्द भारतीय सैनिकों ने खाकर लिया।
शुद्ध घी की पूड़ियाँ, कचौरियाँ और एक—एक मिठाई का टुकड़ा लगभग सभी पैकेट में था, यह व्यवस्था मुक्ति वाहिनी ने की थी।
मेजर पाण्डेय ने भोजन के बाद अस्थाई टेंट लगा़कर रुकने का आदेश दे दिया और लाँस नायक सहित उत्तरदायी दायित्व निभाने वाले सभी अधिकारियों की एक आपात बैठक बुलायी।
बैठक में ही मेजर पाण्डेय ने अस्थाई सैन्य नियंत्रण केन्द्र कलकत्ता से संपर्क स्थापित किया। वहाँ से तात्कालिक परिस्थितियों को अवगत कराते हुए आगे की कार्यवाही के लिए आदेश माँगा।
उच्चाधिकारियों ने आधे घण्टे प्रतीक्षा करने को कहा तब तक मेजर पाण्डेय ने अपने अधीनस्थों से विचार—विमर्श किया।
ठीक तीस मिनट बाद पुनः कलकत्ता से संपर्क साधा गया।
कलकत्ता से सूचना प्राप्त हुई कि रात्रि बारह बजे, भारतीय सेना का दल जहाँ पर ठहरा है उससे पाँच किमी. पश्चिम को दो प्लाटून छाताधारी सैनिक, दल की मदद के लिए उतरेंगे। साथ ही भारतीय माल वाहक विमान विक्रांत से बमवर्षक विमान मदारीपुर में स्थित पश्चिमी पाकिस्तानी सेना की नौसेना व वायुसेना को प्रातः छह बजे तक ध्वस्त कर देंगे।
तदुपरांत आगे आदेश प्राप्त कर भारतीय थल सेना के जवान मदारीपुर को चारों ओर से घेर कर उसे नौ दिसम्बर की प्रातः तक अपने कब्जे में कर लेंगे।
इतनी सूचना के बाद कलकत्ता मुख्यालय ने पुनः रात्रि दो बजे संपर्क स्थापित करने के लिए कहा।
मेजर पाण्डेय ने प्राप्त सूचना व आदेश से सभी को अवगत कराया।
रात्रि एक बजकर तीस मिनट पर पुनः सभी को बैठक में उपस्थित होने का आदेश देकर बैठक का विसर्जन कर दिया गया। साथ ही पूरी चौकसी बरतने की चेतावनी सभी को दी गयी, क्योंकि शत्रु सेना का जमावड़ा निकट था और वह कभी भी सूचना पाकर बड़ा हमला कर सकता था। मुक्तिवाहिनी ने स्थानीय स्वयंसेवकों को सुरक्षा के लिए सचेत कर दिया। मेजर पाण्डेय ने दूरदर्शिता दिखाते हुए तत्काल भानु के नेतृत्व में पचास सैनिकों को पड़ाव स्थल से पाँच किमी. आगे अग्रिम चौकी के रूप में मुख्य सड़क के पास पहुँचने का आदेश सुनाया।
पचास भारतीय सैनिकों के साथ पच्चीस मुक्तिवाहिनी के स्वयंसेवक भी
स्वेच्छा से सम्मिलित हो गये। भानु के अनुरोध पर मेजर पाण्डेय ने बलबीर को
इस टुकड़ी के साथ जाने की अनुमति प्रदान कर दी। तौसीफ़ व हम्माद खुश थे क्योंकि उन्हें भानु व बलवीर के नेतृत्व में अग्रिम मोर्चा सँभालने वाले अभियान दल के साथ भेजा जा रहा था। दो ट्रकों में पर्याप्त गोला—बारूद लेकर बलवीर व भानु के साथ कुल पचहत्तर भारतीय जवान व मुक्तिवाहिनी के स्वयंसेवक मदारीपुर शहर की सीमा से पाँच किलोमीटर पहले स्थित एक बड़े फॉर्म हाउस पर आ गये।
फार्म हाउस मुख्य सड़क से लगा हुआ था। यहाँ से मुख्य सड़क पर जाने वाले वाहनों पर पूरी निगरानी रखी जा सकती थी।
सामरिक दृष्टि से यह बहुत अच्छा स्थान था। भारतीय सेना ने फॉर्म हाउस को अग्रिम चौकी के रूप में बदल लिया। फार्म हाउस के चारों ओर सैनिक अपनी—अपनी ड्यूटी में लग गये। सड़क के दोनों ओर छोटे—छोटे छः बंकर तत्काल बना लिए गये।
बलवीर ने सभी को चेतावनी दे दी थी कि वे एक पल भी सोये नहीं और मुस्तैद अपने स्थान पर चौकसी करते रहें।
फार्म हाउस के मुख्य द्वार पर चार सैनिक कड़ा पहरा दे रहे थे।
बंकरों में छिपे भारतीय सैनिकों की लाइट मशीनगनों की नाल मुख्य सड़क की ओर थी। फार्म हाउस के अंदर बलवीर व भानु रणनीति तैयार कर रहे थे।
वे कभी भी पश्चिमी पाकिस्तानियों को रोकने के लिए पूरी तैयारी में थे। स्वयं बलवीर ने भानु के साथ एक बार सभी बंकरों पर पहरा दे रहे
सैनिकों के पास जाकर सारी सुरक्षा व्यवस्था का सूक्ष्म निरीक्षण किया।
निरीक्षण के बाद वह वापस फार्म हाउस के हॉलनुमा कमरे में आ गया।
पेट्रोमेक्स का पर्याप्त प्रकाश हॉल में हो रहा था।
फार्म हाउस से मदारीपुर शहर में कहीं—कहीं हो रही रोशनी साफ दिखाई दे रही थी। मुक्तिवाहिनी द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार मदारीपुर में भी पश्चिमी पाकिस्तानी सेना ने खुलना शहर जैसा आतंक फैला रखा था। बलवीर व भानु दृढ़ संकल्पित थे कि वे मदारीपुर को शीघ्र पाकिस्तानी फौज से मुक्त कराएँगे।
हॉल में तौसीफ़ व हम्माद के अलावा बीस सैनिक उपस्थित थे।
सभी सतर्क अपनी—अपनी राइफलों के साथ बलवीर के अग्रिम आदेश की प्रतीक्षा में थे।
बलवीर ने उन्हें रोक रखा था। इसके पहले कि वह शेष सैनिकों को कोई आदेश देता, गेट पर तैनात एक जवान ने हॉल में प्रवेश किया।
सभी की दृष्टि सेल्यूट करते हुए उस सैनिक की ओर घूम गयी।
‘‘सर मुक्तिवाहिनी का एक वालंटियर मेजर साहब का संदेश लेकर आया है।'' सैनिक ने फौजी लहजे में सूचना देते हुए अग्रिम आदेश की प्रतीक्षा की।
‘‘उसे यहाँ ले आओ।'' बलवीर ने आदेश दिया।
‘‘यस सर'' सैनिक सेल्यूट कर वापस मुड़ा और हॉल के बाहर निकल गया।
थोड़ी देर में ही एक लम्बे—चौड़े डीलडौल के प्रौढ़ व्यक्ति के साथ उसी सैनिक ने हॉल में प्रवेश किया जो कुछ देर पहले सूचना देने आया था।
प्रौढ़ ने ठंड से बचने के लिए ओवर कोट पहन रखा था उसके सिर पर हैट चेहरे पर घनी खिचड़ी दाढ़ी थी।
वह अपने साथ कोई शस्त्र नहीं लिए था। उसके दोनों हाथ खाली थे। हॉल में आते ही उसने कुर्सी पर बैठे हुए बलवीर व भानु को सलाम की मुद्रा में अभिवादन किया। बलवीर ने प्रश्नवाचक दृष्टि से उसे ऊपर से नीचे तक घूरा।
बलवीर के पूछने से पहले ही वह जल्दी से बोला, '‘सर मुझे मेजर पाण्डेय ने आपको सूचना देने के लिए भेजा है कि पश्चिमी पाकिस्तानी सैनिकों ने यहाँ से एक किलोमीटर दक्षिण दिशा की ओर एक बहुत बड़े बंकर का निर्माण कर लिया है, जिसमें एक सौ सैनिक आराम से आ सकते हैं। मेजर पाण्डेय ने कहा है कि उस बंकर को फतह करना बहुत ज़रूरी है। अतः आप
यहाँ से साठ सैनिकों को शीघ्र दक्षिण दिशा की ओर रवाना कर दें। यहाँ से
चलने पर आगे आधा किलोमीटर पर कैप्टन सिंह के नेतृत्व में सैनिकों की एक
टुकड़ी इस टुकड़ी के साथ मिल जायेगी। साथ ही उन्होंने कहा है कि फार्म
हाउस में केवल पन्द्रह लोग पर्याप्त हैं।”
‘‘आप कोई लिखित आदेश अपने साथ लाए हैं।'' भानु ने पूछा।
‘‘जी हाँ।'' उसने एक लिफ़ाफ़ा भानु की ओर बढ़ा दिया।
भानु ने लिफ़ाफ़ा फाड़कर पढ़ा, ठीक वही लिखा था जो इस ओवरकोटधारी प्रौढ़ ने बताया था। पत्र में निर्देश था कि पन्द्रह सैनिक फार्म हाउस में रहें, जहाँ शीघ्र ही पचास सैनिक आकर मिल जायेंगे। पत्र के अंत में मेजर पाण्डेय का कोड नम्बर व मुहर सहित हस्ताक्षर देख कर बलवीर ने सहज ही प्रौढ़ को बैठने को कहा और सूबेदार जसवंत सिंह के नेतृत्व में बताये गये मार्ग पर साठ सैनिकों को जाने का आदेश दे दिया। हॉल में कुछ मिनट बाद केवल पाँच लोग शेष बचे। शेष जवान फार्म हाउस के बाहर चौकसी में लग गये।
प्रौढ़ व्यक्ति भानु को प्रारम्भ से रहस्यमय लग रहा था। फलस्वरूप भानु ने अपनी शंका बलवीर पर जाहिर करने के लिए उससे कहा, ‘‘आइये ज़रा बाहर एक राउण्ड ले आयें।‘' प्रौढ़ भी अपने स्थान से उठ गया। भानु ने उसे रोकते हुए कहा, '‘आप बैठिये थक गये होंगे। ये तौसीफ भाई व हम्माद भाई आपके खुलना के ही मूल निवासी हैं। मुक्तिवाहिनी के सदस्य हैं। हम दोनों अभी आते हैं, आप तब तक इनसे बातें करिए।''
प्रौढ़ मन मारकर वहीं बैठ गया।
भानु ने तौसीफ़ को एलर्ट रहने का संकेत कर दिया और बलवीर के साथ हॉल से बाहर आ गया।
बाहर एकांत में आते ही भानु ने बलवीर से अपनी शंका ज़ाहिर कर दी। बलवीर ने भी भानु की शंका की पुष्टि करते हुए कहा, ‘‘हाँ, मेजर साहब ने मुक्तिवाहिनी के सदस्य को क्यों भेजा ? वे भारतीय जवान को ऐसे मौक़े पर भेजते।''
‘‘दूसरी बात मेजर पाण्डेय को इतनी जल्दी पाकिस्तानी बंकर की सूचना कैसे मिल गयी?'' भानु ने कहा।
‘‘फिर भी वह कागज तो धोखा नहीं दे सकता।'' बलवीर ने कहा।
‘‘हो सकता है मेजर पाण्डेय को बन्दी बना लिया गया हो और उनसे ज़बरदस्ती हस्ताक्षर कराये गये हो या यह कागज ही जाली हो।'' भानु ने पुनः अपनी आशंका दोहरायी।
इस आशंका ने एक पल के लिए बलवीर के सामने विकट स्थिति पैदा कर दी।
‘‘हो न हो हमें इस रहस्यमय व्यक्ति का परीक्षण करना होगा। कहीं
ऐसा न हो कि हमसे कोई गम्भीर चूक हो जाये।''
‘‘हाँ शंका का समाधान अब जरूरी हो गया है।'' बलवीर ने वापस हॉल में चलते हुए कहा।
हॉल में तौसीफ़ व हम्माद के साथ वह व्यक्ति हिन्दी उर्दू में बतिया रहा था। बलवीर व भानु ने महसूस किया कि यदि वह मुक्तिवाहिनी का सदस्य है तब तो इसे बंगाली में बात करनी चाहिए थी।
इस तथ्य ने उस व्यक्ति के पश्चिमी पाकिस्तानी सेना का जासूस होने की पुष्टि कर दी थी, फिर भी वे दोनों पूरी तरह आश्वस्त हो जाना चाहते थे।
‘‘बड़े मियाँ नाम नहीं बताया अभी तक आपने।'' बलवीर ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा।
‘‘जी सर! मेरा नाम अब्दुल कादिर है।'' प्रौढ़ ने लापरवाही से अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए कहा।
‘‘कादिर बहुत अच्छा नाम है।'' भानु ने दोहराया।
‘‘तौसीफ़ भाई कोई अच्छा बंगाली गीत हो जाये।'' बलवीर ने तौसीफ
से आग्रह किया।
बलवीर का आशय समझ भानु ने टोका, ‘‘तौसीफ़ मियाँ से तो कई गीत सुन चुके हैं, अब तो कादिर भाई आप सुनाइये कोई अच्छा सा बंगाली गीत,
ऐसा गीत की रंग जम जाए।''
भानु के अनुरोध को सुनकर प्रौढ़ अचकचा गया।
बलवीर व भानु ने दाढ़ी व हैट से पर्याप्त ढके प्रौढ़ के चेहरे पर साफ
झलक रहे परेशानी के भाव पढ़ लिए। तौसीफ़ व हम्माद अभी इस रहस्य से
अनभिज्ञ थे परन्तु शीघ्र ही वे भी चौंके जब प्रौढ़ ने घबराहट में हकलाते हुए जवाब दिया।
‘‘मैं... मैं... जी... सर वो मुझे गीत नहीं आता।'' प्रौढ़ ने अपने आप में पूरा नियंत्रण पाने की चेष्टा करते हुए बहाना बनाया।
''भाई किछू सुनीये दाओ'' तौसीफ़ ने बलवीर का संकेत पाकर बंगाली में कहा।
प्रौढ़ तौसीफ़ की बंगाली समझ नहीं सका, फिर भी हाव भाव से धुएँ में लठ्ठ मारते हुए बोला, '‘बंगाली गीत तो याद ही नही।''
‘‘तो कोई लोक गीत ही सुना दो न''
प्रौढ़ ने इस बार भी हिन्दी में उत्तर दिया, ‘‘कविता गीत मुझे कुछ नहीं आता।''
‘‘आप तो बंगला अच्छे से समझते होंगे।'' भानु ने बातचीत का क्रम आगे बढ़ाया।
‘‘जी ... जी हाँ'' पुनः घबड़ा उठा वह रहस्यमय प्रौढ़, जिसे अब अपना रहस्य खुलता महसूस हुआ।
‘‘आमि जा किछू बोल दी ओरा तो बुसते पारछो?'' (तब जो कुछ मैं बोल रहा हूँ उसे तो आप समझ रहे हैं?) तौसीफ़ ने पुनः बंगाली में प्रौढ़ से पूछा।
परन्तु इस बार प्रौढ़ कुछ न बोला, गम्भीर चौकन्ना हो तौसीफ़ को घूरने लगा।
प्रौढ़ ने धीरे से अपना दायाँ हाथ ओवरकोट की जेब में डाला। बलवीर ने उसकी हरकत को ताड़ लिया। एक झटके से प्रौढ़ का हाथ ओवर कोट की जेब से बाहर निकला। उसके हाथ में अब काला चमकदार रिवाल्वर आ चुका था। जितनी शीघ्रता से उसने रिवाल्वर निकालकर सामने बैठे तौसीफ पर पहला निशाना बनाकर टे्रगर दबाना चाहा था उससे कहीं बढ़कर पहले से चौकन्ने बलवीर ने अपने रिवाल्वर का टे्रगर दबा दिया और एक तेज धमाके के साथ प्रौढ़ के हाथ से रिवाल्वर दूर जा छिटका जिसे भानु ने चीते की फुर्ती की तरह उठा लिया। एक पल के लिए तौसीफ़ व हम्माद बलवीर व भानु की
गजब की फुर्ती देखकर भौंचक्के रह गये।
‘‘हैंड्स अप'' भानु ने गरजकर प्रौढ़ की खोपड़ी का निशाना लेते हुए कहा। लम्बा तगड़ा ओवरकोटधारी प्रौढ़ अपने स्थान से उठकर खड़ा हो गया।
‘‘तौसीफ़...... हम्माद तलाशी लो इस पश्चिमी पाकिस्तानी जासूस की।''
बलवीर ने तौसीफ़ व हम्माद से कहा।
बलवीर व भानु दोनों उसे अपने रिवाल्वर की रेंज में लिए थे। प्रौढ़ के लिए अब कोई भी चालाकी ख़्ातरनाक हो सकती थी।
उसकी दाहिनी हथेली से खून बहने लगा था। वह रह—रह कर दर्द को दांतों से भींचते हुए कराह उठता था।
इतनी जल्दी उसे रहस्य खुल जाने का अंदेशा नहीं था। उसकी तलाशी में कुछ कागज, लाइटर, सिगरेट केस, साइनाइड कैप्सूल तौसीफ़ व हम्माद के हाथ लगी जिन्हें उन्होंने परे रख दिया। बलवीर ने तौसीफ़ व हम्माद को आदेश दिया, ‘‘तुम दोनों तेजी से भागते हुए सूबेदार जसवंत सिंह को वापस यहाँ आने को कहो ... दुश्मन की किसी बहुत बड़ी साज़िश का शिकार हम लोग होने जा रहे हैं। जल्दी जाओ, वे अभी कुछ दूर ही गये होंगे।''
हम्माद व तौसीफ़ ने बलवीर के आदेश का तत्क्षण पालन किया और हॉल से भागते हुए बाहर निकल गये।
अंदर अब बलवीर व भानु के अलावा केवल वही पाकिस्तानी जासूस
था।
फार्म हाउस में हुई गोली की गूंज ने बाहर तैनात सैनिकों को खतरे की
घण्टी का अहसास पहले ही करा दिया था।
......फिर तौसीफ़ द्वारा सूचना पा वे किसी बहुत बड़े घेरे में अपने आपको घिरा महसूस करने लगे।
लांसनायक यादव ने सभी जवानों को इकठ्ठा किया और हॉल के अंदर चलने का आदेश दिया। वह शीघ्र बलवीर से मिलकर अग्रिम आदेश प्राप्त करना चाहता था।
वे सब अभी बरामदे में पहुँचे ही थे कि हॉल में तीन गोलियाँ क्रमशः
गरज उठी।
लांस नायक यादव अपने साथियों के साथ तेजी से हॉल में पहुँचा।
अंदर का दृश्य देखकर एक पल के लिए सभी चौंक पड़े।
लेफ्टिनेंट बलवीर अपने घायल हाथ को संभाले ओवरकोटधारी प्रौढ़ को अगली गोली मारने जा रहे थे—‘धाँय .. धाँय ..'
तीन गोलियाँ खाकर वह प्रौढ़ शांत हो गया। बलवीर घायल पड़े भानु के ऊपर झुक गया।
‘‘भानु ... भानु ......'' बलवीर चीखा।
‘‘आ ..ह'' भानु के मुँह से दर्द भरी कराह निकली।
प्रौढ़ ने बलवीर व भानु की नज़र बचाकर अपने ओवरकोट में छिपाये हुए दूसरे रिवाल्वर को अचानक निकाल लिया था जबकि हम्माद व तौसीफ़ की तलाशी की संतुष्टि ने बलवीर व भानु को इस ओर से पूर्णतया निश्चित कर दिया था कि प्रौढ़ के पास अब कोई हथियार शेष नहीं है और यहीं चूक हो गयी। प्रौढ़ ने रिवाल्वर का निशाना बलवीर की ओर साध कर एक साथ दो गोलियाँ दाग दीं। भानु ने प्रौढ़ की मंशा भाप ली और अगले क्षण, इसके पहले की गोली बलवीर के सीने को पार करती, भानु बलवीर के सामने छलाँग लगाकर आ गया और बलवीर के सीने पर लगने वाली गोली अपने सीने पर
झेल गया। बलवीर भानु के धक्का देने से लड़खड़ा गया फलस्वरूप दूसरी गोली उसके बाएँ हाथ की कुहनी को छीलती हुई निकल गयी।
लड़खड़ा कर गिरने के पहले बलवीर ने निशाना साधकर एक गोली प्रौढ़ पर दाग दी। प्रौढ़ कटे वृक्ष़ की तरह वहीं ढेर हो गया। गोली उसके भेजे को भेद गयी थी।
लड़खड़ा कर गिरने के बाद बलवीर फुर्ती से अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ और दूसरी, तीसरी गोली भी उस पश्चिमी पाकिस्तानी जासूस के शरीर में झोंक दी।
तब तक लांस नायक यादव अपने साथियों के साथ हॉल में आ चुका था।
सभी घायल भानु के ऊपर झुक गए।
‘‘पा .. पानी .. '' भानु कराहा।
एक सैनिक दौड़कर पानी ले आया।
बलवीर ने भानु के मुँह में गिलास लगा दिया। भानु दो घूँट पानी ही पी सका।
बलवीर ने उसका सिर अपनी गोद में रख लिया।
‘‘बलवीर .तुम . ठीक हो ..'' भानु बलवीर को टटोलते हुए बोला।
‘‘हाँ दोस्त मैं बिल्कुल ठीक हूँ .. तुमने मुझे बचाकर स्वयं को गोली का शिकार बना लिया ..।'' बलवीर उलाहना देते, भरे गले बोला।
भानु दर्द को दाँतों में भींचते हुए मुस्कराने की कोशिश करते हुए बोला,
‘‘बताऊँ.... तुम...... तुम मेरे दोस्त के अलावा भी कुछ हो........ मेरी छोटी बहन
........मो....... मोना....... के होने वाले ...... मेरे बहनोई .......... और मैंने अपनी बहन को ...... वचन दिया था .....' भानु एक—एक शब्द को कठिनाई से बोल पा रहा था, ‘‘कि मैं अपने रहते हुए तुम्हारा बाल भी...... बाँका...... नहीं होने दूँगा। ... पानी ........'' भानु कराहा।
‘‘लो पानी पियो .... दोस्त तुमने यह क्या किया।'' बलवीर चिन्तित हो उठा।
भानु ने एक घूँट पानी ही हलक से नीचे उतारा था कि एकाएक
फार्महाउस के चारों ओर से एक साथ कई गोलियाँ बरस पड़ीं।
‘‘पोजीशन लो'' बलवीर चीखा। सभी सैनिकों ने अपनी—अपनी राइफलें सम्भाल लीं और फार्म हाउस के बड़े हॉल की खिड़कियों से बाहर की ओर गोलियाँ बरसाने लगे।
पश्चिमी पाकिस्तानी फौज ने फार्म हाउस को चारों ओर से घेर लिया
था।
फार्म हाउस से लगातार हो रही फायरिंग से उन्हें महसूस हुआ कि फार्म
हाउस में पर्याप्त भारतीय सैनिक हैं।
वे नहीं जानते थे कि केवल तेरह भारतीय जवान इस समय फार्म हाउस
में थे, जिसमें एक मरणासन्न व एक घायल।
‘‘बलवीर मुझे छोड़ो ... शत्रु का सामना करो।'' भानु देह की सारी ताकत संजोकर गोलियों की गरज के बीच चीख़्ाा।
‘‘मेरा वक्त आ गया है बलवीर मैं .. मैं .. कहता हूँ .. तुम जाओ।'' भानु पुनः कराहते हुए बोला।
‘‘नहीं .. नहीं .. भानु तुम्हें कुछ नहीं होगा .. कुछ नहीं .. तुम्हें मुझसे कोई अलग नहीं कर सकता।'' बलवीर बिलख उठा।
‘‘शाबाश बहादुरों, पाकिस्तानी दरिंदों के छक्के छुड़ा दो..... हर—हर महादेव ...।'' बलवीर ने जवानों को उत्साहित करते हुए हुंकार भरी।
‘‘हर हर महादेव।'' फार्म हाउस का हॉल गोलियों की धाँय—धाँय के बीच गूंँज उठा।
‘‘हर हर महादेव'' भानु कमज़ोर आवाज़ में कराहते हुए बड़े प्रयत्न से बोला।
‘‘जो बोले सो निहाल.....'' सैनिक चरनजीत सिंह ने उद्घोष किया।
‘‘सत सिरी अकाल।'' इस बार यादव के साथ सभी सैनिकों ने दोहराया।
‘‘बलवीर।'' भानु कराहा।
‘‘हाँ भानु मैं तुम्हारे सामने हूँ।'' बलवीर ने भानु की पथराई आँखों में
झाँकते हुए कहा।
‘‘मुझे वचन दो तुम मोना से ही विवाह करोगे।''भानु ने बलवीर से कहा।
‘‘हाँ करूँगा।'' बलवीर ने अधीर होते हुए कहा।
‘‘उमा.... उमा.... का पुनर्विवाह..... करवा देना दोस्त...... मैं उसे भी तुम्हारे
.......हवाले .......उमा।'' थक गया भानु और हमेशा के लिए अपने दोस्त बलवीर की गोद में सो गया।
‘‘नहीं..... न..... हीं..... भानु .... तुम इस तरह हमें छोड़कर अकेले नहीं जा सकते।'' रो दिया बलवीर।
भानु को अपने सीने पर लगाए बिलख—बिलख कर रो रहा था बलवीर। भानु अपनी बहन मोना को दिए वचन को निभाते हुए देश के काम आ
गया था।
महायात्रा की ओर प्रस्थान कर गया था वह।
देश काल के लिए, आने वाली पीढ़ी के लिए अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत कर गया था लेफ़्िटनेंट भानु प्रताप।
गोलियाँ गरज रही थीं। दोनों ओर से धुआँधार गोलियों की वर्षा हो रही थी।
फार्म हाउस के बाहर से रुक—रुक कर कराह के साथ चीखते हुए पश्चिमी पाकिस्तानी सैनिक भारतीय जवानों की गोलियों से टकराकर शरीर छोड़ रहे थे।
बलवीर ने भानु को लिटा दिया। अपना हैट उतार कर अपने स्वर्गीय
मित्र को सैल्यूट किया।
अब उसकी आँखों में आँसू नहीं थे। बलवीर ने लाइट मशीन गन उठा ली।
जवानों को ललकारते हुए बलवीर ने फार्म हाउस के बाहर से, जहाँ से गोलियाँ छूट रही थीं, अंदाज करके लाइट मशीनगन से गोलियाँ बरसानी शुरू कर दीं।
फार्म हाउस के बाहर चीखें अब बढ़ने लगीं।
.......और पाँच मिनट के बाद ही ‘हर हर महादेव' का सिंहनाद करते हुए भारतीय सेना के जवान जसवंत सिंह के नेतृत्व में फार्म हाउस को चारों ओर से अपने घेरे में लेते हुए पश्चिमी पाकिस्तानी सेना के पीछे से पिल पडे।
इस दोतरफा मार के लिए पाकिस्तानी फौजी कतई तैयार नहीं थे और पहले ही राउण्ड में कई पाकिस्तानी सैनिक दो तरफे हमले के बीच गोलियों के शिकार बन गए।
‘‘जो बोले सो निहाल....
....सत सिरी अकाल।'' फार्म हाउस के बाहर भारतीय जवानों की गूँज
ने फार्म हाउस के अंदर मोर्चा सँभाले भारतीय जवानों को दोगुने उत्साह से भर दिया।
पूरे बीस मिनट तक पाकिस्तानी फौज आगे और पीछे से पिसती रही।
.....फिर शत्रु पक्ष से गोलियाँ क्रमशः एक—एक कर बंद हो गयीं।
अन्ततः जब पूरी तरह से गोलियों का प्रतिउत्तर मिलना बंद हो गया तब भारतीय जवानों ने भी फायरिंग बंद कर दी। सर्वत्र बारूद की गंध व्याप्त हो गयी थी।
लांस नायक यादव अकेले गैस लालटेन लेकर फार्म हाउस के बाहर आ गया।
बाहर पश्चिमी पाकिस्तानी सैनिकों की लाशें चारों ओर मैदान में छितराई पड़ी थीं। फार्म हाउस के बाहर से भारतीय सेना जय घोष करती अंदर आ गई।
तब तक बुझी पड़ी सभी पाँच गैस लालटेनें भी जला दी गइर्ं।
अब चारों ओर प्रकाश था। पाकिस्तानी सेना की इस टुकड़ी के अधिकाँश सैनिक इस मुठभेड़ में खेत रहे।
भारतीय सेना के पाँच जवान शहीद हुए दो मुक्तिवाहिनी के युवा स्वयंसेवक और बारह घायल जिसमें कोई भी चिन्ताजनक स्थिति में नहीं था जबकि फार्म हाउस के अंदर भानु, बलवीर के अलावा किसी को खरोंच भी नहीं आई थी।
भानु के शहीद होने की सूचना ने तौसीफ़ व हम्माद को हतप्रभ कर दिया।
जब उन्होंने बलवीर के मुँह से पूरा वृत्तांत सुना तब उन दोनों को अपने
द्वारा ली गयी तलाशी में बरती गयी लापरवाही पर बेहद खेद व अपने आप पर क्षोभ उत्पन्न हुआ। उन्हीं की लापरवाही से भानु को अपने प्राण से हाथ धोने पड़े थे।
बिलख उठे दोनों। बलवीर के बहुत समझाने पर भी वे दोनों पश्चात्ताप की अग्नि में जलते रहे।
आठों वीर शहीदों को फार्म हाउस के हॉल में लिटा दिया गया। सभी सैनिकों ने इन अमर शहीद देशभक्तों के सम्मान में अपने हैट उतार लिए। राइफलें नीची कर लीं।
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बलवीर, भानु सहित सात अन्य शहीदों व घायलों के साथ एक खाली ट्रक में वापस खुलना भेज दिया गया। खुलना तक बलवीर भानु के मृत शरीर के सिरहाने बैठे हुए आया। मेजर पाण्डेय ने भानु व बलवीर की बहादुरी की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। उन्हें भानु के देहांत का बेहद दःुख पहुँचा।
देर रात बलवीर को छोड़कर शेष घायलों को खुलना में अस्थाई रूप से कार्य कर रहे सैन्य अस्पताल भेज दिया गया।
शहीद सैनिकों का पूरे सैनिक सम्मान के साथ दाह संस्कार किए जाने का निर्देश मेजर पाण्डेय ने दिया।
भानु की आकस्मिक मौत ने बलवीर को अपना दर्द भुला दिया था। शेष रात उसने भानु के पास जागते हुए चिन्ता में बिता दी।
भानु ने अन्तिम समय उससे दो वचन लिए थे प्रथम मोना से विवाह द्वितीय उमा का पुनर्विवाह।
पहला कार्य जितना सरल था दूसरा कार्य उतना ही दूभर ।
विधवा उमा के लिए उपयुक्त वर की तलाश और फिर भानु के
रूढ़िवादी परिवार, समाज को झेलते हुए उमा का पुनर्विवाह सरल कार्य नहीं था।
बलवीर की आँखों में मासूम उमा का भोला चेहरा बार—बार आ रहा था।
वह अपने दोस्त की दोनों अन्तिम इच्छाओं की पूर्ति अवश्य करेगा,
उसने मन ही मन प्रतिज्ञा की।
भानु की आकस्मिक मृत्यु ने अटल, मोना सहित हम्माद व तौसीफ़ के परिवार के सभी सदस्यों को दहला दिया।
भानु जो कल ही, उनके पास से मुस्कराते हुए विदा हुआ था, आज
उसका मृत शरीर वापस खुलना आ जायेगा कोई सोच भी नहीं सकता था। मोना को बार—बार भानु दा के अंतिम शब्द याद आ रहे थे, ‘बहन तुम निश्चिन्त रहो, .... तुम्हारा भानु दा बलवीर का बाल—बाँका भी अपने रहते नहीं होने देगा।'
दिये गये वचन को निभाते हुए उसके भानु दा उसके लिए कभी न चुक सकने वाला ऋण चढ़ाकर चले गये थे।
मोना अपने भानु दा के लिए बिलख कर रोयी।
रुख़्ासाना व शमा मोना को संभालती रहीं पर वे मोना की रुलाई रोक न सकीं।
अपने परिवार से बिछुड़ने के बाद आज पहली बार अटल का हृदय
रोया था जैसे उसके परिवार का ही कोई अभिन्न आज उससे बिछड़ गया हो।
सभी महिला छात्रावास आ गए।
पानी की टंकी के पास भानु सहित अन्य शहीदों की चितायें लगाई गयीं थीं।
पूरे सैनिक सम्मान के साथ शहीदों की अंतिम विदाई की गयी।
भानु की चिता को अग्नि देते समय बलवीर बिलखकर रो पड़ा। मदारीपुर आते समय भानु द्वारा गाए गीत ‘‘ऐ मेरे प्यारे वतन...'' के बोल सस्वर उसे अपने कानों में सुनाई देने लगे।
उसे स्वयं अपने दोस्त को मुखाग्नि देनी पड़ेगी उसने सपने में भी नहीं सोचा था।
मुक्तिवाहिनी के मौलवी साहब सहित भारतीय सेना के जवान उदास,
अन्तिम क्रिया को देख रहे थे।
वातावरण बोझिल हो चुका था।
तौसीफ व हम्माद भानु के अंतिम संस्कार में नहीं थे।
उन दोनों को मदारीपुर में ही रुकना पड़ गया था।
ठीक छह बजे प्रातः भारतीय बमवर्षकों ने मदारीपुर में स्थित पाकिस्तानी वायु
व नौसैनिक अड्डे को पूरी तरह से तहस—नहस कर दिया।
पश्चिमी पाकिस्तानी सेना भारतीय सेना के वायु आक्रमण से बौखला उठी।
मदारीपुर में पश्चिमी पाकिस्तानी सेना को इस वायु आक्रमण से भारी
क्षति उठानी पड़ी। दूसरी ओर मेजर पाण्डेय के दो प्लाटून मदारीपुर में आकर मिल गये ।
मेजर पाण्डेय ने मदारीपुर को चारों ओर से घेरते हुए अपने सैनिकों के तीन दल बनाये।
.......और तीनों टुकड़ी के प्रमुखों को अलग—अलग दिशा से मदारीपुर में प्रवेश कर कब्ज़ा करने का आदेश दिया।
मदारीपुर के पूर्वोत्तर दिशा में बहने वाली पद्मा नदी पर बना पुल पश्चिमी पाकिस्तानी सैनिकों के लिए वरदान सिद्ध हुआ।
भारतीय वायु सेना के आक्रमण से पहले ही टूट चुकी पश्चिमी पाकिस्तानी सेना भारतीय थल सेना के तीन ओर के आक्रमण को झेल न सकी।
.......और प्रातः होने के पूर्व ही मालवाहक ट्रकों में पश्चिमी पाकिस्तानी सैनिक अपनी जान बचाकर पद्मा नदी पर बने पुल के रास्ते से ढाका की ओर जाने वाली सड़क पर भाग खड़े हुए।
मेजर पाण्डेय से तीनों टुकड़ियाँ मदारीपुर शहर के बीचोबीच स्थित कालीबाड़ी में आकर मिलीं।
सभी ने पश्चिमी पाकिस्तानी सैनिकों से मुठभेड़ न होने की रिपोर्ट दी।
मेजर पाण्डेय ने कैप्टन सिंह के नेतृत्व में एक प्लाटून शहर के निरीक्षण के लिए भेज दिया और स्वयं खुलना बेस कैम्प को यह विजयी संदेश वायरलेस पर भेजा। तदुपरांत कलकत्ता रिपोर्ट सम्प्रेषित की गयी।
कैप्टन सिंह के नेतृत्व में तौसीफ़ व हम्माद भी नगर के हालात देखने निकले।
नगर में पश्चिमी पाकिस्तानी सैनिकों के अत्याचार की कहानी यत्र—तत्र
बिखरी पड़ी थी।
खुलना शहर से ज्यादा वीभत्स दृश्य यहाँ भारतीय सेना को देखने पड़े।
बंकरों में नग्न बंगाली लड़कियों की क्षत—विक्षत लाशें पश्चिमी पाकिस्तानी सैनिकों की दरिंदगी की कहानी कह रहीेंें थीं, जिन्हें पश्चिमी पाकिस्तानी फौजी अपनी वासनापूर्ति के लिए कैद किए थे और जब यहाँ से कायरों की भाँति जाने लगे तब अबला नारियों को खत्म कर अपनी नपुंसक मर्दानगी का परिचय छोड़ गए।
तौसीफ़ व हम्माद के साथ गये गश्ती दल के सदस्यों का मन क्षोभ से भर उठा।
हर एक अगले स्थान में ऐसी ही पुनरावृत्ति हो रही थी। कहीं भी जीवित पाकिस्तानी सैनिक नहीं मिला ।
हाँ गोला—बारूद भारी मात्रा में जो कायर पाकिस्तानी सेना छोड़ गयी
थी, वह भारतीय सेना ने अपने क़ब्ज़े में ले लिया।
गश्ती दल के सदस्य तब दहल उठे जब उन्होंने नगर के बीचोबीच स्थित वीरान से पड़े झील जैसे छोटे सूखे तालाब में दुर्गन्ध देतीं सैकड़़ों लाशें
देखीं।
नगर में प्रदूषण रोकने के लिए यह आवश्यक हो गया था।
लाशें इतनी अधिक संख्या में थीं कि यदि उन्हें तीन किलोमीटर चौड़ी पद्मा नदी में प्रवाहित किया जाता तो पद्मा नदी दुर्गन्धयुक्त होकर प्रदूषित हो जाती। मनुष्य द्वारा मनुष्य पर किये जाने वाली क्रूरता के इन भयानक दृश्यों को देखकर कठोर से कठोर हृदय के व्यक्ति की आत्मा भी करुणा से भरकर चीत्कार कर उठेगी। मनुष्य अज्ञानता से बर्बरता व क्रूरता की सारी हदें कैसे पार कर जाता है, यहाँ देखा जा सकता था।
मानव के विरुद्ध मानव की पाशविकता इतना घृणित रूप लेकर सामने आ सकती थी, यह सभी ने पहली बार साक्षात् अनुभव किया।
सृष्टि का रचयिता भी अपने द्वारा सृजित मानव के इस कृत्य को देखकर ज़रूर काँप उठा होगा। उसे ग्लानि हुई होगी जो उसने ऐसे लोगों को रचा जो उसके सिद्धान्तों के विपरीत धर्म की आड़ में अपनी धर्मान्ध मानसिकता के वशीभूत हो वर्ग विशेष को समूल नष्ट करने का संकल्प संजो कर बर्बर कत्लेआम में उतारू हो गए।
यह कत्लेआम पश्चिमी पाकिस्तानी सेना ने किया था।
निर्दोष शांतिप्रिय नागरिकों का सामूहिक नर संहार सम्भवतः़ इस सूखे तालाब मेंं एकत्र करके किया गया था और इन नागरिकों की महिलाओं को, लड़कियों को अपनी हवस का शिकार बनाने के लिए क़ैद कर लिया गया था।
यहाँ यह निश्चित रूप से स्पष्ट था कि धर्मान्धता का यह कहर अल्पसंख्यक बंगाली हिन्दुओं के ऊपर टूटा था। यह घटना नाजियों द्वारा
यहूदियों पर द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान की गई क्रूरता की याद दिला गई
जैसे उसी घटना की पुनरावृत्ति हुई हो। तब नाजियों ने सन् १९३९ से सन्
१९४५ के बीच साठ लाख यहूदियों को केवल इसलिए मार दिया था क्योंकि वे नाजी नहीं थे और अल्पसंख्यक यहूदी थे।
भारतीय सेना ने सर्वप्र्रथम निर्दोष नागरिेकोेें, अमानुषिकता की शिकार हुई लड़कियों, महिलाओं, बच्चों के शव एकत्र किए और उनका सामूहिक अन्तिम संस्कार किया।
देर रात गए भारतीय सेना के गश्ती दल को मदारीपुर के कुछ नवयुवकों ने सूचना दी कि शहर के बाहर स्थित एक पुरानी फैक्ट्री में पश्चिमी पाकिस्तानी सैनिक कई महिलाओं और लड़कियों को अपनी क़ैद में किए हुए हैं और उन्हें कहीं ले जाने की फिराक में हैं। यह सूचना पाते ही कैप्टन सिंह ने उन युवाओं के साथ एक प्लाटून चरण सिंह के नेतृत्व में तुरन्त रवाना कर दिया।
सूबेदार चरण सिंह ने प्लाटून के कुल पैंतीस सैनिकों के साथ पुरानी फैक्ट्री को घेर लिया और मोर्चा सँभाल ललकारने लगा परन्तु फैक्ट्री के अन्दर से कोई भी हरकत नहीं हुई और कोई भी बाहर नहीं निकला। हाँ अंदर से आ रही लड़कियों की चीखों ने यह स्पष्ट कर दिया कि नवयुवकों द्वारा दी गई ख़्ाबर सही थी। पुरानी फैक्ट्री के अन्दर कितने पश्चिमी पाकिस्तानी सैनिक हैं? कितनी लड़कियाँ उनकी कैद में हैं? इसका अन्दाजा लगाना मुश्किल था। अतः सारा ऑपरेशन बहुत सूझबूझ के साथ पूरा करना था।
सूबेदार चरण सिंह ने फैक्ट्री के तीन ओर से पुरानी सूखी घास में आग
लगवानी शुरू की। इसका परिणाम अच्छा रहा। फैक्ट्री जल्दी ही किनारे से धू—धूकर जल उठी। घबराये व हताशा से भरे पश्चिमी पाकिस्तानी सैनिकों ने सर्वप्रथम कैद में की गई लड़कियों को बाहर निकाला, जिन्हें भारतीय सैनिक अपनी सुरक्षा में लेते रहे। कुल दो सौ छः लड़कियाँ कैद से छुड़ा ली गर्इं जो
ढाका इंजीनियरिंग कॉलेज की छात्राएँ थीे; जिन्हें पैदल रास्ते ऐसी जगह ले जाया जा रहा था जहाँ पश्चिमी पाकिस्तानी सैनिकों का ज्यादा जमावड़ा था ताकि वे इन लड़कियों के साथ वही कुकृत्य करें जो वे २५ मार्च, १९७१ से
‘ऑपरेशन सर्चलाइट' के नाम से अभी तक करते चले आ रहे थे। फैक्ट्री के
अन्दर से कुल बहत्तर पश्चिमी पाकिस्तानी सैनिक हाथ ऊपर उठाए बाहर निकले जिन्हें सूबेदार चरनसिंह ने अपनी क़ैद में ले लिया।
बहत्तर पश्चिमी पाकिस्तानी सैनिकों के साथ दो सौ छः छात्राओं की बरामदगी की सूचना सूबेदार चरन सिंह ने कैप्टन सिंह को दी। कैप्टन सिंह ने सूबेदार चरन सिंह को शाबाशी दी जिसने कुशलतापूर्वक बिना किसी नुकसान के इस कार्य को अंजाम दिया था।
मदारीपुर नगर में भारतीय सेना की सहज विजय की सूचना बलवीर को भानु के बलिदान की याद दिला गयी।
मदारीपुर जीता गया परन्तु भानु जैसा जीवट मित्र सदा के लिए उसने खो दिया था।
ढाका तक पहुँचने का समुद्री मार्ग मदारीपुर से खुलता था। भारतीय सेना क्रमशः चारों ओर से पश्चिमी पाकिस्तानी सेना को घेर रही थी जो क्रमशः राजधानी ढाका के परिक्षेत्र में सिमटती चली जा रही थी।
मोना बलवीर के पास दोपहर के भोजन के बाद से बैठी थी।
अटल, शमा एवं रुख़्ासाना कभी के वापस चले गये थे।
परन्तु मोना अपनी जिद्द से बलवीर के पास ही रुक गयी थी।
सैनिक अस्पताल में बलवीर की उत्तम चिकित्सा व्यवस्था के साथ देखभाल की जा रही थी।
बलवीर और मोना अपने—अपने ख्यालों में खोए थे।
बहुत कम बातें आपस में दोनों ने पिछले तीन घंटे में की थीं।
दोनों का दर्द समान था और जब दर्द एक जैसा होता है तब मौन रहते हुए भी व्यक्त हो जाता है।
बिना एक दूसरे को दिलासा देने की औपचारिकता निभाये वे अपने—अपने दर्द को अंदर ही अंदर सहन कर रहे थे।
कौन किसे समझाये जब एक दूसरे को अपने से अधिक समझे तो उसे किस मुँह से समझाये।
जैसे एक सामान्य स्वास्थ्य का बलहीन पिता अपने बलिष्ठ ऊँचे पूरे पुत्र को स्वास्थ्य की शिक्षा देने से कतराता है ठीक वही स्थिति बलवीर व मोना के बीच थी।
शाम का धुँधलका घिरने के पूर्व अटल मोना को लेने अस्पताल आ पहुँचा।
अटल अब स्वस्थ हो चला था, परन्तु अभी भी उसकी बाईं भुजा गले के सहारे लटक रही थी।
मोना व बलवीर को ग़मगीन मुद्रा में देख अटल एक पल के लिए विचलित हो उठा।
उसने अपने साथ लाए टिफिन पर दृष्टि जमाते हुए पुनः उन दोनों को देखा, जिन्हें उसकी उपस्थिति का आभास नहीं हुआ था।
अटल ने आगे बढ़कर टेबिल पर शमा के द्वारा बनाया गया बादाम के हलुवे से भरा टिफिन रख दिया।
बलवीर ने अपनी मुँदी आँखें खोलीं, अटल को आया जान वह औपचारिकतावश तकिया का सहारा ले टिककर बैठ गया।
‘‘शमा ने बादाम का हलुवा भेजा है'' अटल पास रखी कुर्सी पर बैठते हुए बोला '‘आप हाथ धोकर शीघ्र इसे ग्रहण कर लें अन्यथा इसके ठंडा हो जाने पर आनंद नहीं रह जायेगा जो मजा गर्मागर्म खाने में है।''
बलवीर ने मोना द्वारा बढ़ाई गयी तौलिया ले ली और निकट ही बने वाश—बेसिन में हाथ—मुँह धोने चला गया।
‘‘मोना हम लोग कल सुबह फिर यहाँ आ जाएँगे।'' अटल ने मोना को वापस घर चलने के लिए फुसलाने वाले अंदाज़ में कहा।
मोना शांत रही।
‘‘यहाँ रात्रि में ठहरने से सैनिक नियमों की अवहेलना होगी, वहाँ भी सभी लोग चिंतित हैं। तुम्हारे न होने से उन सभी की चिन्ता बढ़ जायेगी।'' अटल ने अमोघ अस्त्र का प्रयोग किया फिर भी मोना शांत रही।
बलवीर ने मोना द्वारा प्रस्तुत हलुवा हाथ में ले लिया।
‘‘भाई साहब! आप भी लीजिए।'' बलवीर ने औपचारिकतावश पूछा।
‘‘नहीं आप लें, मैं खाकर आया हूँ'' अटल ने झूठ ही कह दिया।
घर में शमा के बहुत आग्रह करने पर भी उसने हलुवा नहीं खाया था।
बलवीर ने टिफिन में शेष बचा हलुवा दूसरी कटोरी में डाल कर मोना की ओर बढ़ा दिया।
बडे़ भाई के सामने मोना ज्यादा प्रतिरोध न कर सकी। आखिर उसे हलुवा खाना ही पड़ा।
अटल दोनों को खाते देख आत्मसंतुष्टि का अनुभव कर रहा था।
हलुवा समाप्त कर दोनों ने पानी पिया।
मोना ने टिफिन पुनः पूर्व की स्थिति में कर दिया। अटल ने बाहर घिर रहे अंधेरे की ओर देखते हुए बलवीर से चलने की अनुमति माँगी।
अटल के खड़े होने के साथ ही मोना भी अपने स्थान से उठ खड़ी हुई।
‘‘सुबह फिर आएँगे, गुड नाइट'' अटल ने मुस्कराकर विदा लेते हुए कहा।
‘‘गुडनाइट ..'' बलवीर के दोनों हाथ अभिवादन की मुद्रा में आ गए।
बरबस लाई चेहरे की मुस्कान को अटल ने भाँप लिया।
मोना शांत रही।
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