फिर कौन था वो? - 2 Shilpa Sharma द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

फिर कौन था वो? - 2

फिर कौन था वो?

शिल्पा शर्मा

(2)

सुबह खट-पट की आवाज़ से नींद खुली तो देखा प्रशांत स्नान करके तैयार होने जा रहे हैं.
‘‘अरे अभी तो साढ़े छह ही बजे हैं, इतनी जल्दी क्यों तैयार हो रहे हो?’’
‘‘बताया था ना कि प्रेज़ेंटेशन है...’’
‘‘...पर ये तो नहीं बताया कि साढ़े छह बजे जाना है.’’
‘‘अरे यार, नितिन के साथ भी डिस्कस करना है.वो सात बजे तक ऑफ़िस आ रहा है, रात को 1 बजे के क़रीब ही यह पता चला. तुम सो रही थीं तो सोचा क्यों जगाऊं?’’
‘‘पर नाश्ता?’’
‘‘चिंता मत करो, कैंटीन में कर लूंगा.’’
‘‘और लंच पर मिल सकोगे?’’
‘‘नहीं.आज तो पॉसिबल ही नहीं है.आज तो शायद यूएसए वाली टीम के साथ लंच के लिए जाना पड़े.’’
‘‘ओके.मैं इंटरव्यू के लिए जाऊंगी आज.’’
‘‘हम्म...इंटव्यू कैसा हुआ ये बताने के लिए मैसेज ही करना. फ़ोन शायद पिक न कर सकूं.’’
‘‘ओके.’’
‘‘तो चलूं?’’
‘‘कुछ भूल नहीं रहे?’’
‘‘क्या?’’
‘‘अरे कम से कम मुझे बेस्ट विशेज़ तो दो!’’
‘‘मेरी विशेज़ तो हमेशा ही तुम्हारे साथ हैं मीता, पर मांग ही रही हो तो...ऑल दि बेस्ट!’’ यह कहते हुए प्रशांत ने मुस्कुराते हुए मीता के माथे पर चुबंन जड़ दिया.

***
हल्के हरे रंग ड्रेस पहनकर मीता इंटरव्यू के लिए नियत समय पर ऑफ़िस में पहुंच गई. रिसेप्शन पर बैठी युवती ने उसे कुछ देर इंतज़ार करने कहा और वह सामने रखे सोफ़े पर बैठ गई.
‘‘अरे पूजा, तुम यहां कैसे?’’ अचानक वहां से गुज़रती हुई एक युवती को रोककर उसने पूछा.
‘‘हाय मीता! मैं यहां अपने ऑफ़िस के किसी काम के सिलसिले में आई थी और तुम?’’
‘‘इंटरव्यू देने. शादी के दस महीने बाद नए शहर में नए जॉब के लिए इंटरव्यू देने. और तुम सुनाओ ऑफ़िस में सब कैसे हैं?’’
‘‘सब मज़े में हैं यार. पर हम सब तुम्हें मिस बहुत करते हैं.’’

‘‘चल झूठी. इतने दिनों में कभी फ़ोन तो किया नहीं,’’ मुस्कुराहट के साथ साथ शिकायती भाव भी थे मीता के चेहरे पर.

‘‘अरे, फ़ोन करते तभी मानती कि याद करते हैं? कह रही हूं याद करते हैं तो करते हैं, मान ले भई…’’ पूजा हंसते हुए बोली.
‘‘हां यार, याद तो मैं भी तुम लोगों को बहुत करती रहती हूं.’’

‘‘पर फ़ोन नहीं कर पाती, है ना?’’ पूजा की इस बात पर दोनों खुलकर हंस पड़े.
‘‘कब तक हो यहां?’’
‘‘आज शाम की ट्रेन है मीता, पर मेरा काम ख़त्म हो गया है तो सोच ही रही थी कि क्या करूं?’’
‘‘थोड़ी देर इंतज़ार करो. मेरा इंटरव्यू हो जाएगा तो हम दोनों साथ-साथ लंच करेंगे और गप्पें मारेंगे.’’
‘‘या. इट विल बी फ़न.’’

पूजा भी मीता की हमउम्र थी. काले रंग की वन पीस ड्रेस में वो सुंदर लग रही थी. अभी मीता और पूजा कुछ और बात कर ही पाते कि रिसेप्शनिस्ट ने मीता को आवाज़ दी.


‘‘मीता!अब आप अंदर जा सकती हैं.’’

रिसेप्शनिस्ट की आवाज़ सुनकर मीता पलटी और उसके इशारे पर अंदर जाने लगी. पूजा ने थम्सअप कर के मीता को शुभकामनाएं दी.


कोई 20 मिनट बाद मीता के बाहर निकलते ही पूजा ने पूछा,‘‘कैसा रहा इंटरव्यू?’’
‘‘ठीक ही था.लेट्स सी, क्या होता है.’’
‘‘तो अब बता कहां चलें लंच के लिए?’’
‘‘पास ही एक अच्छा-सा इटैलियन रेस्तरां है.’’
‘‘सुन भूख तो ज़ोरों की लगी है, पर मुझे होटल से चेक आउट भी करना है. मेरा होटेल भी पास ही है. पहले तुम मुझे रेस्तरां दिखा दो, फिर तुम जब तक ऑर्डर दोगी मैं सामान लेकर सीधे ही वहां आ जाऊंगी. फिर गप्पे मारेंगे और मैं वहीं से स्टेशन निकल जाऊंगी. अरे हां, प्रशांत को तो पता भी है कि नहीं कि उनकी पत्नी कहां खाना खानेवाली है और किसके साथ घूम रही है?’’
‘‘अरे वो तो ख़ुद ही बहुत व्यस्त हैं आज. उन्हें तो ये बातें सुनने की भी फ़ुर्सत नहीं है.’’ मुस्कुराते हुए मीता ने जैसे मन का ग़ुबार बाहर निकाल दिया.
मीता और पूजा टैक्सी लेकर इटैलियन रेस्तरां पहुंचे. वहां मीता उतर गई और पूजा अपना सामान लाने उसी टैक्सी में आगे निकल गई.
‘‘चलो प्रशांत के साथ नहीं तो पूजा के साथ सही. आज का समय यहां अच्छा बीत जाएगा,’’ मीता ने मन ही मन सोचा. रेस्तरां में पहुंचकर मीता ने एकदम कॉर्नर की एक मेज चुनी और मेनू कार्ड पर नज़र दौड़ाने लगी. उसने वेटर को ऑर्डर दिया और अकेली बैठी इधर-उधर देखने लगी. अचानक उसकी नज़रें एक जोड़े पर जाकर ठहर गईं, जो दूसरे छोर पर कॉर्नर की मेज पर बैठा था.अरे ये तो प्रशांत हैं, हां वही हैं... पर उनके साथ ये महिला कौन है? मीता अपनी मेज से उठ कर दरवाज़े की आड़ लेती हुई उस जोड़े के क़रीब पहुंची. वहां प्रशांत और उसके साथ बैठी महिला को देखकर वह सन्न रह गई. उसकी आंखों के आगे अंधेरा सा छाने लगा...

किसी तरह से ख़ुद को संभालते हुए मीता ने उन दोनों की ओर दोबारा नज़र डाली. शक़ की कोई गुंजाइश ही नहीं बची. प्रशांत के साथ बैठी महिला तो नुपूर ही है.

‘‘ओह... तो ये वजह है इनके रूखेपन की. फिर लौट तो नहीं आई ये प्रशांत के जीवन में? अभी जाकर पूछती हूं,’’ मीता के भीतर की पत्नी जाग गई, पर दूसरे ही पल उसने सोचा,‘‘नहीं...नहीं, यहां तमाशा करना ठीक नहीं होगा. देखूं तो भला ये लोग क्या करते हैं?’’

उन दोनों को देखते हुए न जाने कितनी बातें दिमाग़ में घूमती रहीं.और मीता की आंखों से आंसू बह निकले. उसने पर्स से तुरंत अपना मोबाइल निकाला और वहीं से उनकी तस्वीर ले ली.

‘‘ओह, पूजा आती ही होगी. वो मुझे आंसुओं में डूबा न देख ले, भला उसे क्यों मेरे निजी जीवन की जानकारी मिले?’’ यह सोचते सोचते उसने जल्दी से रुमाल निकालकर आंसू पोंछे, ख़ुद को संयत किया और वापस अपनी टेबल पर आकर बैठ गई. मन में तूफ़ान उठ रहा है, ज़िंदगी तबाह होने को आई है और इस बात को पूजा से छुपाते हुए लंच करना होगा. कहीं वो मेरे चेहरे पर ये भाव न पढ़ लें. कोई बहाना बनाकर निकल भी तो नहीं सकती...कम से कम खाना तो खाना ही होगा. खाना खाते ही घर निकल जाऊंगी. शाम को प्रशांत के लौटने पर ही सारी बातें करूंगी. पर दूसरे इंटरव्यू का क्या होगा? ऐसी मन:स्थिति में मैं अगला इंटरव्यू कैसे दे पाऊंगी?
मीता ने अपने फ़ोन पर तुरंत ही ईमेल लिखा और अपना दूसरा इंटरव्यू रीशेड्यूल करने की रिक्वेस्ट भी भेज दी.
जैसे ही वेटर खाना रखने आया मीता ने उससे बिल लाने को कहा और बिल भी पे कर दिया, ताकि लंच ख़त्म होते ही वो घर जा सके. उसके लिए एक एक पल काटना मुश्क़िल हो रहा था. दो चार मिनट ही गुज़रे होंगे कि पूजा भी आ गई.
‘‘अरे वाह, तुमने तो सारी तैयारी कर रखी है. बड़ी ज़ोरों की भूख लगी है यार,’’ पूजा ने सामान के नाम पर मौजूद अपने एकमात्र बैग के ऊपर अपना पर्स रखते हुए कहा.
‘‘हां, मैं भी बस तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही थी.जल्दी-जल्दी खाना खाते हैं...’’
‘‘जल्दी-जल्दी क्यों? मेरे पास तो अभी बहुत वक़्त है.’’
‘‘अरे तुम्हारे जाने के बाद प्रशांत का फ़ोन आया था.हमारे कुछ रिश्तेदार चार-साढ़े चार बजे तक आ रहे हैं. देखो न दो तो बज ही रहे हैं. मुझे घर जाकर उनके आवभगत की थोड़ी तैयारी भी तो करनी होगी,’’ मीता ने संयमित तरीक़े से अपने जल्दी जाने की भूमिका बांधी.
‘‘अरे, तुम्हारे रिश्तेदार तो आने के पहले बड़ा कम नोटिस पीरियड देते हैं.’’
‘‘हो जाता है कभी-कभी और मैं कौन-सा अभी नौकरी कर रही हूं यार. हो जाएगा मैनेज.’’
खाना खाते-खाते दोनों बातें करते रहे और मीता की नज़रें बार-बार उस कोने पर पड़ती रही, जहां प्रशांत और नुपूर बैठे थे. बड़ी मुश्क़िल से जज़्बात को रोके वो ख़ुद को संभालती रही.
‘‘तुम चाहो तो घर चलो, अभी तुम्हारी ट्रेन आने में वक़्त है,’’ मीता वहां से तुरंत उठना चाहती थी इसलिए आख़िरी कौर मुंह में लेते हुए उसने औपचारिकता निभाई.
‘‘नहीं-नहीं यार. वैसे ही तुम्हारे यहां मेहमान आ रहे हैं. मैं सीधे स्टेशन जाऊंगी, क्लॉक रूम में सामान रखूंगी और आसपास के मार्केट से थोड़ी शॉपिंग करूंगी. तब तक ट्रेन आने का समय भी हो जाएगा.’’
‘‘तो निकलें...? ’’
‘‘पर बिल?’’
‘‘मैंने पे कर दिया है.’’
‘‘ये तो ग़लत है...’’
‘‘क्यूं भला? भई, हमारे शहर में आई हो तो ट्रीट तो हमें ही देनी चाहिए और ऐसा ही सोच रही हो तो चलो वेटर की टिप तुम दे दो,’’ मीता को ख़ुद पर अचरज हुआ कि ऐसी परिस्थितियों में वो ख़ुद को इतना बनावटी भी बनाए रख सकती है.


पूजा ने विदा ली और मीता ने दूसरे इंटरव्यू में न जा कर सीधे घर का रुख़ किया. रास्ते में उसने फ़ोन चेक किया तो देखा कि इंटरव्यू रीशेड्यूल करने की रिक्वेस्ट एक्सेप्ट हो गई है और इंटरव्यू 15 दिन बाद के लिए रिशेड्यूल हो भी गया है.

***

घर पर घुसते ही अपने आंसुओं के सैलाब को रोक पाना उसके बस में न रहा.फूट-फूट कर रोती रही. फिर मन हुआ क्यूं न प्रशांत को फ़ोन लगाए और पूछे कि कहां हो?फिर मन ने ही कहा, जब उसे परवाह नहीं और अब भी नुपूर के साथ घूमता-फिरता है तो फ़ोन लगाने से भी क्या फ़ायदा? यूं लगा जैसे पल भर में प्रशांत फिर अजनबी हो गया है. नहीं रहेगी वो प्रशांत के साथ... वह उठी और सामान पैक करने के लिए बैग निकालने लगी. बिना बताए ही चली जाऊंगी. मैसेज कर दूंगी बस. उन्हें भी तो समझे कि उनकी मनमानी नहीं चलेगी. यदि इतने पाक़-साफ़ हैं और नुपूर से ही मिलना था तो बताकर मिलते. वो कोई मना थोड़े ही करती.


वो अल्मारी के ऊपर रखे बैग निकालने के लिए स्टूल पर चढ़ी ही थी कि डोरबेल बज गई. दरवाज़ा खोलने के लिए उसने अपने आंसू पोंछे, मुंह धोया और पोंछने के लिए टॉवल हाथ में ली ही थी कि बेल दोबारा बज गई.


‘‘आ तो रही हूं...कौन है?’’ हाथ में टॉवल लिए हुए लगभग चीखते हुए उसने दरवाज़ा खोला.
‘‘अरे इतनी नाराज़गी से क्यों बोल रही हो?’’ सामने प्रशांत थे.
मन तो हुआ हाथ की हाथ की टॉवेल उनके मुंह पर दन्न से दे मारे और कहे कि तुम कौन होते हो ये पूछनेवाले? धोख़ेबाज़ कहीं के. पर उसने कुछ नहीं कहा और पलट गई.
‘‘अरे तुम्हें ख़ुशी नहीं हुई मुझे घर जल्दी आया देखकर?’’ प्रशांत ने पूछा.
उसने इस बात का भी कोई जवाब नहीं दिया.
‘‘क्या हुआ मीता? इंटरव्यू अच्छा नहीं हुआ?’’
‘‘इंटरव्यू तो ठीक ही हुआ. सिरदर्द हो रहा है.’’ मीता ने बात को टालते हुए कहा.
‘‘तुम क्या अभी लौटी हो?चाय बनाऊं तुम्हारे लिए?’’
‘‘नहीं मैं बना लूंगी.’’
‘‘तो मेरे लिए भी बना लो. फिर बताना कि इंटरव्यू कैसा हुआ. पिछले तीन-चार दिन से तुमसे ठीक से बात ही नहीं कर पाया. आज हमारा प्रोजेक्ट अप्रूव हो गया है.इसलिए मैं जल्दी आ गया.सोचा सुबह नहीं तो शाम को सही तुमसे ढेर सारी बातें करूंगा आज और हम डिनर भी बाहर ही करेंगे.’’
मीता ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और चाय बनाने किचन में चली गई और प्रशांत चेंज करने.
मीता ने चाय छानी और ट्रे में अपना मोबाइल भी रखा. उस पर दोपहर में रेस्तरां में खींची हुई नुपूर और प्रशांत की फ़ोटो डिस्प्ले पर थी.

क्रमश..