छूना है आसमान
अध्याय 10
‘‘बुरा मत मानिएगा अंकल, चेतना को इस तरह का फैसला लेने के लिए मजबूर आप लोगों ने ही किया है, क्योंकि आप जानते हैं बच्चा भावुक होता है, जरा-सी भी उपेक्षा मिलने पर उसका मनोबल टूट जाता है......और उनके मन में यह घर कर लेती है, कि वह बिल्कुल अकेला है, उसे कोई प्यार नहीं करता है......चेतना के साथ भी ऐसा ही हुआ है......उसकी उखड़ी-उखड़ी बातों से मुझे ऐसा लगता था, जैसे वह आप लोगों से नाराज रहने लगी हो......क्योंकि आप लोगों ने भी उसे एकदम अलग कर दिया था......बजाय उसका हौंसला बढ़ाने के उसकी हर बात में आलोचना करते थे, जिसकी वजह से वह खुद को अकेला महसूस करने लगी थी। ......कई बार उसने मुझे बताया कि वह कुछ करना भी चाहे तो आप लोग उसे करने नहीं देते हो। विषेषकर तब जब आपने उसे सिंगिंग रियलिटी शो के आॅडिषन में भाग लेने से मना कर दिया, तब से तो वह और भी ज्यादा परेषान रहने लगी थी......। अरे, अगर वह सिंगिंग काॅम्पटीषन में पार्टीसिपेट करना चाहती थी, तो कर लेने दिया होता। उसे रोकना नहीं चाहिए था। रोकने से उसका मनोबल और टूट गया। उसके बाद तो उसका मन पढ़ने में भी नहीं लगता था।’’
‘‘तुम ठीक कह रहे हो बेटा......सचमुच हमने चेतना के साथ बहुत ज्यादती की। हमेषा उसके साथ सौतेला व्यवहार किया है। हमने उसकी भावनाओं को समझने की कभी कोषिष नहीं की।’’
‘‘अंकल, आप एक काम कर सकते हैं......?’’
‘‘क्या......?’’
‘‘अंकल, मैं तो इस समय मजबूर हूँ आपके पास आ नहीं सकता, क्योंकि मैं हैविटेट आॅडिटोरियम में आया हुआ हूँ। यहाँ एक मोटिवेषनल कार्यक्रम हो रहा है। कार्यक्रम खत्म होते ही मैं आपके पास जरूर आऊँगा। आप चिंता मत कीजिए, ईष्वर पर भरोसा रखिए, मेरा दिल कहता है चेतना, कहीं दूर नहीं गयी होगी, वह यहीं-कहीं आस-पास होगी और वापस आ जायेगी।’’
‘‘ठीक है रोनित बेटा, हम चेतना को ढूंढ़ते हैं। हाँ, अगर तुम्हारे पास उसका कोई फोन वगैरह आये तो प्लीज, उसे समझाना और हमें बताना ताकि हम उसे वापस ला सकें।’’
‘‘ठीक है अंकल, अगर चेतना का फोन आया, तो मैं आपको जरूर बताऊँगा।’’
सुबह से शाम होने को आ गई, चेतना के मम्मी-पापा ने शहर का चप्पा-चप्पा छान मारा, मगर चेतना का कहीं कोई पता नहीं चला। सब तरफ से हार-थक कर चेतना के मम्मी-पापा थाने चले गये उसकी गुमषुदगी की रिपोर्ट लिखवाने के लिए। उन्होंने थाने जाकर इंस्पेक्टर को चेतना के बारे में बताया कि वह अचानक घर से गायब हो गई और कहीं मिल नहीं रही है।
इंस्पेक्टर ने कहा, ‘‘अभी आपकी बेटी को घर से गये चैबीस घण्टे नहीं हुए हैं। अभी आप उसको स्वयं तलाषिए, मिल जाये तो अच्छा है, और नहीं मिलेगी तो हम आपकी बेटी के खो जाने की रिपोर्ट लिखकर उसे तलाषेंगे।’’
इस तरह चेतना के मम्मी-पापा थाने से भी खाली हाथ वापस आ गये। वो सारे लोग बहुत परेषान थे, उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह चेतना को कहाँ ढूँढे़ ? उसके पास मोबाइल फोन भी नहीं है वरना उसे फोन करके उससे पूछा जा सकता था कि वह कहाँ है।
निराष मन लिए बोझिल कदमों से चेतना के मम्मी-पापा और अलका अपने घर की तरफ चल दिए। उसी समय चेतना के पापा के मोबाइल फोन पर रोनित का फोन आता है। वह उसका फोन रिसीव करते हैं, ‘‘हाँ बोलो रोनित ?’’
‘‘क्या हुआ अंकल, चेतना का कुछ पता चला ?’’
‘‘नहीं बेटा, अभी तो कुछ पता नहीं चला।’’ चेतना के पापा ने निराष मन से कहा।
‘‘अंकल, प्लीज आप एक काम करिए, आप हैविटेट आॅडिओरियम आ जाइए। यहाँ मेरा कार्यक्रम खत्म होने वाला है। फिर मैं भी आपके साथ चेतना को ढूँढ़ने चलूँगा।’’
‘‘छोड़ो बेटा, तुम अपना कार्यक्रम करो। हम खुद ही देखते हैं।’’
‘‘अंकल प्लीज, मेरी बात मानिए और आप यहाँ आॅडिटोरियम आ जाइए। प्लीज। अंकल, मुझे बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि चेतना बेटी आपकी है, लेकिन उसको आपसे ज्यादा जानता मैं हूँ। मैंने न सिर्फ चेतना को पढ़ाया है, बल्कि मैंने उसे पढ़ा भी है। मंै समझ सकता हूँ वह कहाँ गई होगी। इसलिए प्लीज, मेरे कहने से आप यहाँ आ जाइए।’’
‘‘ठीक है बेटा, हम लोग आ रहे हैं।’’ कहकर चेतना के पापा ने फोन काट दिया।
कुछ ही समय में चेतना के मम्मी-पापा और अलका हैवीटेट आॅडिटोरियम में थे। पूरा आॅडिटोरियम दर्षकों की भीड़ से खचाखच भरा हुआ था। मंच पर एक छोटा लड़का गाना गा रहा था, और ओडियन्स में अंधेरा था। रोनित के कहने पर एक व्यक्ति ने टाॅर्च जलाकर चेतना के मम्मी-पापा और अलका को सीट पर बैठाया। रोनित भी उनके पास बैठ गया। बैठने के बाद रोनित की मम्मी ने कहा, ‘‘बेटा रोनित, हमें यहाँ क्यों बुलाया है......? ......चेतना की वजह से पहले ही हमारा दिलो-दिमाग परेषान है और हमारा कार्यक्रम में मन नहीं लगेगा, इसलिए हम बाहर जा रहे हैं। कार्यक्रम खत्म होने के बाद तुम बाहर आ जाना, हम तुम्हारा बाहर इंतजार कर रहे हैं।’’ चेतना की मम्मी ने उदास मन से कहा।
‘‘आण्टी जी, मैं आपकी भावनाओं को समझ रहा हूँ, लेकिन कुछ देर तो आप लोगों को यहाँ बैठना ही पड़ेगा बस एक बच्चा अपना कार्यक्रम दे ले, उसके बाद अगर आपका मन करे तो कार्यक्रम देखना, वरना हम यहाँ से चल देंगे।’’
रोनित के कहने के साथ ही जो लड़का मंच पर गाना गा रहा था, उसका गाना खत्म होते ही पूरा प्रेक्षागार लोगों की तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। तालियों के शोर के साथ ही चेतना के मम्मी-पापा का ध्यान भी मंच की तरफ चला गया। उद्घोषक ने आकर माइक पर दर्षकों को सम्बोधित करते हुए कहा, ‘‘और इस आॅडिषन की आखिरी प्रस्तुति होगी और आखिरी प्रतियोगी के रूप में अब मैं गाने के लिए एक ऐसी प्रतिभा को बुला रहा हूँ, जो शारीरिक रूप से भले ही विकलांग हो, लेकिन मैं यह पूरे यकीन के साथ कह सकता हूँ कि उसकी मधुर आवाज का जादू आप सबका मन मोह लेगा, और ऐसी विलक्षण प्रतिभा का नाम है, चेतना......।’’
चेतना का नाम सुनते ही उसके मम्मी-पापा एकदम चैंक पड़े। उसी समय एक व्यक्ति चेतना को व्हील चेअर पर लेकर मंच पर आता है। चेतना के मंच पर आते ही दर्षकों की तालियों से प्रेक्षागार गूँज उठता है। तालियों की गड़गड़ाहट को सुनकर और प्रेक्षागार में बैठे लोगों का जोष और उत्साह देखकर चेतना का मन भर आता है। वह भाव-विभोर होकर अपने दोनों हाथ जोड़ लेती है और माईक हाथ में लेकर दर्षकों से कहती है, ‘‘आप सभी दर्षकों का मैं हृदय से स्वागत करती हूँ और उन लोगों को शुक्रिया कहना चाहूँगी, जिन्होंने मुझ जैसी अपाहिज और बेकार लड़की को, जो शायद समाज के लिए किसी काम की नहीं है, और इस धरती के लिए, विषेषकर अपने घर वालों के लिए बोझ बनकर जी रही हूँ, मुझ जैसी लड़की को इस मंच पर आने और गाने का मौका देकर मेरा उत्साहवर्धन किया है। मेरा हौंसला बढ़ाने के लिए मैं पुनः चैनल वालों का हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ।’’
चेतना की दिल को छू लेने वाली बातों को सुनकर आॅडिटोरियम में बैठे दर्षक स्तब्ध रह जाते हैं। प्रेक्षागार में एकदम सन्नाटा बिखर जाता है और चेतना के मम्मी-पापा की आँखें तो नम हो जाती हैं।
चेतना गाना गाने से पहले कहती है, ‘‘जो गाना मैं आप लोगों के लिए गाने जा रही हूँ, वह गाना नहीं, मेरे दिल की वो आवाज है, जिसने आज तक मुझे मेरी विकलांगता, मेरी मजबूरी और लाचारी का अहसास करवाया है।’’
चेतना के इतना कहते ही एक बार पुनः प्रेक्षागार तालियों की गड़गड़हाट से गूँज उठता है। उसके बाद चेतना गाना गाती है। दिल को रुला देने वाले गीत को जब चेतना मार्मिक आवाज में गाती है तो लोगों के आँसू निकल पड़ते हैं, गाने के माध्यम से जो षिकवा और षिकायत वह वहाँ बैठे सभी लोगों से करती है, उसे सुनकर चेतना के मम्मी-पापा भी रोने लगते हैं।
चेतना की मार्मिक और दिल को छू लेने वाली आवाज को सुनकर प्रेक्षागार में बैठे लोग भावुक हो जाते हैं। पूरे प्रेक्षागार में एकदम ऐसा सन्नाटा फैल जाता है, मानो चेतना गाना न गाकर सबको अपनी अपंगता की आप बीती सुना रही हो।
चेतना का गाना समाप्त होते ही हाॅल में बैठे सभी लोग चेतना की षान में खड़े हो जाते हैं और तालियां बजाकर उसे सम्मानित करते हैं। चेतना को दर्षकों से मिलने वाले मान-सम्मान को देखकर उसके पापा और अलका तो खुषी से फूले नहीं समाते हैं, लेकिन उसकी मम्मी की आँखों से आँसुओं का सैलाब बहने लगता है। उन्होंने चेतना के साथ जो भी दुव्र्यवहार किया था, समय-समय पर जो भी ताने मारे थे, उसे उल्टा-सीधा कहा था, वह एक-एक षब्द उनको याद आ रहा था, जिसका उन्हें बेहद अफसोस हो रहा था, लेकिन वह अपने मन की बात किसी से कह नहीं पा रही थीं।
तालियों का शोर खत्म होते ही उद्घोषक ने मंच पर आकर कहा, ‘‘मुझे मालूम है कि आप सभी यह जानने के लिए बेचैन होंगे कि इस रियलिटी शो के लिए चुने गये, वो तीन भाग्यषाली बच्चे कौन हैं.....? जिनको हमारे रियलिटी षो का हमसफर बनकर मुम्बई का सफर तय करना
होगा......? ......तो, तो लीजिए आपका इंतजार खत्म हुआ। निर्णायक मण्डल द्वारा चुने गये हमारे आज तीनों प्रतिभोगियों का परिणाम मेरे हाथों में आ गया है। आप सभी लोग अपना-अपना दिल थाम कर बैठिए, क्योंकि मैं अब उन तीन बच्चों का नाम लेने जा रहा हूँ, जिन्होंने इस आॅडिषन में सर्वाधिक अंक प्राप्त करके टी.वी. पर शुरू होने वाले हमारे रियलिटी शो में अपनी जगह पक्की कर ली है।
......और इससे पहले मैं उन तीनों भाग्यषाली बच्चों के नाम घोषित करूं, मैं अपने निर्णायक मण्डल को मंच पर बुलाना चाहूँगा। उद्घोषक के कहने के साथ ही कार्यक्रम के तीनों जज मंच पर आ जाते हैं। अब मैं इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि महोदय से आग्रह करूँगा, कृपया वह भी मंच पर आयें और अपने कर कमलों द्वारा आज के विजयी बच्चों को मुम्बई जाने का टिकट और पुरस्कार देकर सम्मानित करें।
क्रमशः ...........
------------------------------------------------------------------------
बाल उपन्यास: गुडविन मसीह