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मैं भी खेलूंगा


अनिल जायसवाल

मोतीपुर राज्य के पहाड़ी इलाके में एक राक्षस रहता था। उसका एक छोटा बेटा था गुलटू। सुबह होते ही राक्षस और राक्षसी खाने की तलाश में चले जाते। पीछे रह जाता अकेला गुलटू। पहाड़ पर उसका मन नहीं लगता। भले ही वह छोटा था, पर था तो राक्षस ही। जो काम करना होता, पलभर में कर लेता। इसलिए समय की कमी थी नहीं। कई बार उसके लिए समय काटना मुश्किल हो जाता।
एक दिन वह ऐसे ही उदास बैठा था। पर तभी न जाने उसे क्या सूझी, वह पास के गांव की ओर चल दिया। वहां गांव के किनारे कुछ बच्चे खेल रहे थे। बच्चों को खेलते देखकर उसके मन में उत्सुकता हुई। वह तो कभी खेला ही नहीं था। बस, धम से बच्चों के बीच जा कूदा और बोला, “मुझे भी खिलाओ, मैं भी खेलूंगा।”
अपने बीच राक्षस के बच्चे को देखकर बच्चों की घिग्घी बंध गई। फिर तो जिसे जहां से रास्ता मिला, वह चीखता हुआ भागा। बच्चों को डरता देखकर गुलटू खड़ा का खड़ा रह गया। फिर संभला तो एक बच्चे को पकड़ लिया।
“मुझे छोड़ दो।” बच्चा रोते हुए बोला।
“अरे, मैं तो तुम लोगों के साथ खेलना चाहता हूं। तुम लोग भाग क्यों रहे हो?” गुलटू ने आश्चर्य से पूछा।
“अरे, राक्षस भी कहीं खेलते हैं, वे तो लोगों को खा जाते हैं।” बच्चा वैसे ही रोते हुए बोला।
इतने में जो बच्चे भागे थे, वे भी थोड़ी दूर जाकर रुक गए। अपने साथी को मुसीबत में देखकर उन्होंने कुछ सोचा। एक बच्चा तो गांव की ओर सूचना देने को दौड़ गया। बाकी बच्चे हिम्मत कर गुलटू के पास जा पहुंचे। उस समय गुलटू कह रहा था, “हम लोग वैसे राक्षस नहीं हैं जो लोगों को खाते हैं। हम तो फल-फूल खाने वाले राक्षस हैं। मेरे माता-पिता खाना लेने गए हैं। मैंने सोचा, तुम्हारे साथ खेलूंगा। पर तुम सब मुझसे डरते हो। मैं तो अच्छा बच्चा हूं।”
गुलटू को बच्चे से बातें करता देखकर बाकी बच्चों में हिम्मत बंधी। उनमें से एक बोला, “हम कैसे मान लें कि तुम अच्छे राक्षस हो?”
“नहीं खिलाना तो मत खिलाओ। पर मुझे राक्षस मत कहो। मेरा नाम गुलटू है।” गुलटू नाराज होता बोला।
तभी एक बैल के डकारने की आवाज आई। बच्चों ने देखा, एक बैलगाड़ी के पहिए कीचड़ में फंस गए थे। बैल पूरा जोर लगा रहे थे पर पहिया बाहर नहीं आ पा रहा था। तभी गुलटू उछलता-कूदता उस ओर बढ़ा। भले ही वह बच्चा था। पर राक्षस होने के कारण शक्ति की कमी तो थी नहीं। देखते-देखते उसने बैलगाड़ी के पहिए बाहर निकाल दिए। फिर बच्चों की ओर हाथ हिलाता वहां से चला गया।
इतने में गांव से कुछ लोग लाठी लिए भागते आए। उन्हें सूचना मिल चुकी थी कि राक्षस का एक बच्चा बच्चों को तंग कर रहा है। पर आकर देखा तो राक्षस गायब। बच्चों को लेकर वे वापस चल दिए। हां, बच्चों के उस स्थान पर आकर खेलने पर पाबंदी लग गई।
अगले दिन भी गुलटू उसी स्थान पर पहुंचा, पर आज एक बच्चा भी नहीं था। वह समझ गया कि उसी के डर से बच्चे नहीं आए होंगे। उदास गुलटू काफी देर तक बच्चों का इंतजार करता रहा, पर कोई नहीं पहुंचा। शाम को थक-हारकर गुलटू वापस लौट गया। ऐसे ही काफी दिन बीत गए पर कोई बच्चा उस इलाके में खेलने नहीं पहुंचा। गुलटू रोज वहां बैठकर उनका इंतजार करता।
मोतीपुर का राजकुमार विनय रोज शाम को घूमने बाहर निकलता था। साथ में कुछ अंगरक्षक होते थे। वैसे तो स्वभाव से विनय बहुत अच्छा था पर राजकुमार होने के कारण थोड़ा जिद्दी था। ऐसे ही घूमते हुए एक दिन विनय उसी जगह पहुंच गया, जहां गुलटू बच्चों का इंतजार करता था। एक राक्षस के बच्चे को इस तरह अकेले और उदास बैठा देखकर उसे डर नहीं लगा। बल्कि उत्सुकता हुई। विनय के अंगरक्षक राक्षस को देखते ही उसे मारने की तैयारी करने लगे। पर विनय ने उन्हें रोक दिया। वह गुलटू की ओर बढ़ा। गुलटू की नजर जब पास आते राजकुमार पर पड़ी तो वह प्रसन्न हो उठा। वह खुशी से उछलता-कूदता उसकी ओर बढ़ा। विनय ने उससे पूछा, “तुम यहां अकेले बैठकर किसका इंतजार कर रहे हो?”
“यहां कुछ बच्चे खेला करते थे। मैं उनके साथ खेलना चाहता था। पर शायद मुझ जैसे राक्षस के साथ वे खेलना नहीं चाहते, इसलिए अब यहां कोई नहीं आता।” कहते हुए गुलटू उदास हो गया।
राजकुमार ने कुछ देर सोचा। फिर एक अंगरक्षक को उसने बच्चों को बुलाने के लिए गांव में भेज दिया। गांव के बच्चों को पता चला कि राजकुमार अपने साथ खेलने के लिए उन्हें बुला रहे हैं। सारे बच्चे खेलने के लिए भागे। पर राजकुमार के साथ खड़े गुलटू को देखकर वह सहम गए। पर राजकुमार को उसके साथ खड़े देखकर उनकी हिम्मत बंधी। सभी उनके निकट चले गए।
“चलो, आज हम सब यहां खेलेंगे। साथ में गुलटू भी खेलेगा।” गुलटू की तरफ इशारा करते हुए विनय ने आए बच्चों से कहा।
“पर यह तो राक्षस है। इसमें बहुत बल होगा। यह तो बार-बार हमें हरा देगा।” एक बच्चे ने शंका प्रकट की।
“हां, बात तो तुम्हारी ठीक है। ऐसा करता हूं कि मैं भी तुम लोगों की तरह छोटा हो जाता हूं। मैं खेल में अपनी शक्ति का प्रयोग भी नहीं करूंगा। तब तो हम सब बराबर हो जाएंगे।” गुलटू ने बच्चों से कहा। उसका यह सुझाव सबको पसंद आया। गुलटू ने अपना कद कम कर लिया। फिर वहां खेल शुरू हुआ।
बच्चों की दो टोलियां बनीं। एक राजकुमार की तो एक गुलटू की। राजकुमार विनय तो कोमल था। उसके साथी भी ज्यादा बलिष्ठ न थे। खेल में उसका दल हार गया। पर विनय ने हार मानने से इनकार कर दिया। कड़ककर बोला, “मैं राजकुमार हूं। ज्यादा शक्तिशाली हूं। मैं भला कैसे हार सकता हूं? हार तुम लोगों की हुई है। चलो, हम दोबारा बारी लेंगे।”
दूसरे दल को बुरा लगा। पर राजकुमार को भला कौन मना करता? कई बार ऐसा हुआ। लड़कों ने अब खेलना छोड़ दिया। फिर अचानक विनय ने सुझाव दिया, “चलो घुड़दौड़ का खेल खेलते हैं। देखें, सबसे पहले कौन घुड़सवार सामने की पहाड़ी को तक जाकर यहां वापस आ सकता है।”
उसका सुझाव सुनकर बच्चों एक दूसरे का मुंह देखने लगे। भला गांव के किस बच्चे ने घुड़सवारी की थी। पर गुलटू को विनय की बार-बार जीतने की जिद अच्छी नहीं लग रही थी। कुछ सोचकर उसने कहा, “मैं घोड़ा तो नहीं चला सकता। हां, मैं आपके घोड़े के साथ दौड़ूंगा। देखते हैं, कौन जीतता है।”
उसकी बात सुन विनय हंस पड़ा। बोला, “भला तुम दौड़कर घोड़े को हरा पाओगे? ध्यान रहे, तुम यहां एक आम बच्चे हो, राक्षस नहीं।”
“मुझे याद है। चलो, दौड़ शुरू करें।” गुलटू मुसकराकर बोला।
दौड़ शुरू हुई। विनय घोड़े को लेकर सरपट भागा। पर गुलटू ने अपनी शक्तियों का प्रयोग किया और देखते-देखते पहाड़ी तक जाकर वापस भी लौट आया। उसे जीता देख बच्चों ने हर्षनाद किया। थोड़ी देर बाद विनय लौटा तो बड़ा नाराज हुआ। बोला, “खेल में सब बराबर होते हैं। तुमने अपनी जादुई शक्ति से मुझे हराया है। यह खेलभावना नहीं है।”
“मुझे मालूम है। पर अगर खेल में सब बराबर होते हैं, तो आप भी तो हम जैसे साधारण बालक हुए। फिर पहले के खेल में आप बार-बार राजकुमार होने का धौंस क्यों दे रहे थे। आप भी तो खेल भावना से नहीं खेल रहे थे। इसीलिए मैंने ऐसा किया।” गुलटू ने मुसकराकर कहा।
विनय चुप हो गया। उसे लगा, गुलटू ठीक कह रहा है। अगर वह अपने राजकुमार होने का फायदा उठा सकता है तो भला गुलटू राक्षस होने का फायदा क्यों नहीं उठा सकता? उसने कुछ देर सोचा, फिर हंसकर बोला, “गुलटू की बात ठीक है। अब हम जो खेल खेलेंगे। उसमें न कोई राजकुमार होगा और राक्षस। बस, हम सब बच्चे होंगे। चलो, फिर खेल शुरू करते हैं।”
विनय का बात सुन सब खुशी से चिल्ला उठे। विनय ने गुटलटू को गले लगा लिया। गुलटू भी अब एक साधारण बच्चा लग रहा था। बस, बच्चों की धमाचौकड़ी शुरू हो गई।

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