कलयुगी सीता--(अंतिम भाग) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • तेरी मेरी यारी - 1

      (1)ग्रीनवुड पब्लिक स्कूल की छुट्टी का समय हो रहा था। स्कूल...

  • Pankajs Short Stories

    About The AuthorMy name is Pankaj Modak. I am a Short story...

  • असली नकली

     सोनू नाम का एक लड़का अपने गाँव के जंगल वाले रास्ते से गुजर र...

  • मझली दीदी

                                                   मझली दीदी   ...

  • खामोश चाहतें

    तीन साल हो गए हैं, पर दिल आज भी उसी पल में अटका हुआ है जब पह...

श्रेणी
शेयर करे

कलयुगी सीता--(अंतिम भाग)

मैं एक पुरूष हूं, तो नारी के जीवन के बारे में मैं क्या कहूं, लेकिन जो नारी एक नए जीवन को दुनिया में लाती हैं, वो कमजोर तो कभी नहीं हो सकती,बस वो मजबूती का दिखावा नहीं करती,ताकि हम पुरूषों का मनोबल बना रहे, अपने लिए सम्मान नहीं चाहती, ताकि हम पुरूषों का स्वाभिमान बना रहे,सारी उम्र सिर्फ वो त्याग ही तो करती हैं और कभी जाहिर नहीं करती, कोई दिल दुखा दे तो कोने में जाके दो आंसू बहाकर अपना मन हल्का कर लेती है,वो कमजोर नहीं होती,बस अपनी शक्ति को वो उजागर नहीं करती।
बस,ऐसी ही थी कस्तूरी काकी____
मैं अब पच्चीस साल का हो गया था और इन्जियनरिन्ग पास करके रेल विभाग में नौकरी कर ली थी ,इसी बीच काकी ने दोनों बेटियों को ब्याह दिया था और अपनी सारी जायदाद तीनों बच्चों में बराबर-बराबर बांट थी, और बेटे के साथ रह रही थीं,उसे पढ़ा-लिखाकर कुछ बनाना चाहती थी,तो वो वो आई.टी.आई. का कुछ कोर्स कर रहा था, दसवीं पास करने के बाद, और काकी ने उसकी सगाई पक्की कर दी थीं, तो हमें भी परिवार सहित न्यौता मिला था और हम गांव गये।
लेकिन उस दिन कुछ ऐसा हुआ जो नही होना चाहिए था, पता नहीं राघव काका कहां से आ गए,सब लोगों के सामने अपना हिस्सा मांगने लगे, काकी ने भी सीधे-सीधे मना कर दिया कि आप कौन हैं मैं आपको नहीं जानती, चले जाओ यहां से___
इतने सालों बाद आए हो वो भी हिस्सा मांगने,तुम्हे अपने किये पर कोई पछतावा नहीं है, थोड़ी तो शर्म करो,तुम अपनी गलती मानते,इन बच्चों के सिर पर हाथ रखते तो मैं शायद तुम्हें माफ भी कर देती, इतने सालों बाद शकल दिखाने आए हो, और ऐसी ओछी हरकतें कर रहे हो, कुछ नहीं मिलेगा तुम्हे यहां से,ये सब बच्चों और मेरी मेहनत का नतीजा है, कहां थे उस वक्त ,जब हम सबको तुम्हारी जरूरत थी, तुम तो इस तरह ठोकर मारकर गये, हमलोगो को, बूढ़े बाप के बारे में ही सोच लिया होता___
लेकिन राघव काका कहां सुनने वाले थे, उन्होंने वही काकी को मारना शुरू कर दिया,सब मेहमानों के सामने, मेरे पिताजी ने बीच-बचाव करके मामले को निपटाया।
और राघव काका से पन्द्रह दिन का समय मांगकर , बात को सम्भाला, उस समय तो काका चले गए, लेकिन पन्द्रह दिनों बाद काका पूरी तैयारी के साथ आए, और उन्होंने गांव के पंचायत के आगे अपनी बात रखी।
एक घने बरगद के पेड़ के नीचे और कुंए के पास पंचायत बैठी, काका ने पहले ही पंचायत को शराब और पैसे खिलाकर फैसला अपने पक्ष में करवा लिया था,बस पंचायत को अपना फैसला सबके सामने सुनाना था, और पंचायत ने कहा कि कस्तरी का राघव से अभी भी कानूनी तौर पर तलाक़ नहीं हुआ है और वो अब भी राघव की पत्नी है, और उसे राघव के साथ रहना होगा।
इतना सुनते ही काका ने काकी का हाथ पकड़ा और साथ में ले जाने लगे, लेकिन काकी की आंखे गुस्से से लाल थी और उन्होंने अपना हाथ छुड़ाकर कहा कि मैं भी सतयुगी सीता की तरह अपने आत्मसम्मान की रक्षा करना जानती हूं, जैसे वो राम के साथ नहीं गई थी और धरती में समा गई थी उसी तरह मैं भी कलयुगी सीता हूं और मुझे भी अपने आत्मसम्मान की परवाह है,इतना कहकर काकी कुंए की तरफ भागी और कूद गई, और जब तक उन्हें कुंए से निकाला गया, उनकी जान जा चुकी थी।

समाप्त_____