बीजांकुर Ratna Raidani द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

बीजांकुर

एडवोकेट बंसल के मोबाइल पर किसी अज्ञात नंबर से कॉल आ रही थी। निर्मला ने देखा तो समझ आया कि कोई अंतर्राष्ट्रीय कॉल है। वैसे वह कभी भी उनका फ़ोन नहीं उठाती थी। मि. बंसल अगर जरूरी समझते तो स्वयं ही कॉल बैक कर लेते। किन्तु जब दोबारा घंटी बजी तब मि. बंसल ने निर्मला को फ़ोन उठाने के लिए बाथरूम से आवाज़ लगायी।

निर्मला ने धीमे मधुर स्वर में कहा, "हैलो!"

सामने वाले ने किसी स्त्री के स्वर की अपेक्षा नहीं की थी अतः सकपकाते हुए कहा, "मैं शिकागो से डॉ महेंद्र अग्रवाल बोल रहा हूँ। बंसल जी से बात हो सकती है?"

"जी मैं मिसेस बंसल बोल रही हूँ।" निर्मला ने अपना परिचय दिया।

डॉ. महेंद्र ने अपने कॉल करने का प्रयोजन बताया, "मैंने मैट्रिमोनियल वेबसाइट ऑफ़ अग्रवाल कम्युनिटी से आपके सुपुत्र की जानकारी ली है तथा अपनी बेटी के रिश्ते के बारे में बात करना चाहता हूँ।"

"जी मैं मि. बंसल को आपका मैसेज दे दूंगी।" डॉ. महेंद्र की आवाज़ सुनकर निर्मला थोड़ा विचलित हो गयी और इतना कहकर झट से फ़ोन कट कर दिया।

धड़कते दिल और लड़खड़ाते कदमों से बाहर बालकनी में आकर खड़ी हो गयी। डॉ महेंद्र अग्रवाल यह शब्द बार बार कानों में झंकृत होने लगा। लगभग ३५ वर्ष पूर्व महाराष्ट्र के एक छोटे से कस्बे सावनेर में महेंद्र एवं निर्मला एक ही स्कूल में पढ़ते थे। महेंद्र दो वर्ष सीनियर थे पर स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते हुए परिचय मित्रता में तथा मित्रता किशोरावस्था के प्यार में तब्दील होने लगी।

हाई स्कूल में टॉप करने के बाद महेंद्र ने नागपुर मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लिया। सावनेर में आगे की पढाई न होने की कारण निर्मला को प्राइवेट ग्रेजुएशन की ही अनुमति मिल पायी। महेंद्र का एम.बी.बी.एस. तथा निर्मला का ग्रेजुएशन पूरा हुआ। संपन्न व व्यावसायिक परिवार की निर्मला के लिए धनिक परिवार तथा अपने पैरों पर खड़े वर की तलाश शुरू हुई। मध्यम वर्गीय महेंद्र एम. डी. करना चाहते थे। स्वयं निर्मला का हाथ मांग सके इस स्थिति में नहीं थे। अन्तोतगत्वा दोनों अलग अलग राहों पर निकल पड़े।

निर्मला का विवाह इंदौर के विख्यात धनी बंसल परिवार के होनहार युवा, एडवोकेट विजय बंसल से संपन्न हुआ। एक साल बीतते ही मिसेज बंसल को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। डॉ महेंद्र का सफर नागपुर से मुंबई और फिर शिकागो, अमेरिका तक पहुँच चुका था। दोनों का अपना अपना संसार था पर भौगोलिक संसार गोल है। चलते-चलते कौन कब मिल जाए, ये सब समय तय करता है। अपने परिवार की इच्छा को सर्वोपरि रखते हुए डॉ. महेंद्र ने भारत में इकलौती पुत्री के लिए योग्य वर की तलाश शुरू की।

निर्मला ने मि. बंसल को फ़ोन कॉल के बारे में बताया और कमरे से बाहर चली गयी। मि. बंसल ने डॉ. महेंद्र अग्रवाल से सविस्तार बात की और उनके भारत आने का प्रोग्राम जानकर दिन तथा स्थान तय कर लिया।

महेंद्र सारा दिन क्लीनिक में कुछ अनमने उदास बैठे रहे। सारी मीटिंग्स और अपॉइंटमेंट्स कैंसिल कर दिए। मिसेस बंसल का बातचीत का धीमा, मधुर लहजा दिलो-दिमाग से हट नहीं रहा था। असमंजस में थे क्या मिसेस बंसल उनकी चाहत निर्मला ही है या कोई और? भला हो इस I.T. क्रांति का, गूगल सर्च और सोशल साइट्स का। इनसे जुड़े लोगों का इतिहास भूगोल निकल आता है। और महेंद्र ने भी इसकी मदद से जान लिया कि इतने वर्षों पश्चात आज उसने जो आवाज़ सुनी वो निर्मला की ही थी।

यह सच है कि समय परिस्थितियों का निर्माता है और हम स्वयं समय निर्माता हैं। ३५ वर्ष पहले का बीजारोपण आज अंकुरित होता सा लग रहा था। महेंद्र को लैंडलाइन पर फ़ोन लगाने का विचार कई बार आया पर हर बार मिसेस बंसल का ओहदा सामने आकर उनके हाथ रोक ले रहा था। चूँकि मामला दोनों परिवार एवं बच्चों की ज़िन्दगी से भी जुड़ा था, अतः वे निर्मला की सहमति जानने को उत्सुक थे। आखिर भावनाओं और तर्क शक्ति के द्वन्द में तर्क की ही जीत हुई। व्यवहारिक रुख तथा संवेदना का संतुलन बनाते हुए उन्होंने फ़ोन लगाया।

वही चिर परिचित आवाज़, "हैलो!"

"कैसी हो निर्मला? मुझे पहचाना या नहीं?" महेंद्र ने हिचकिचाते हुए पुछा।

"मैं ठीक हूँ। आप कैसे हैं?" निर्मला ने बहुत ही संतुलित शब्दों में कहा।

"मैं भी ठीक हूँ। बच्चे एक दूसरे से मिले उसके पहले बस यही जानना चाहता था कि तुम इस रिश्ते के बारे में क्या सोचती हो?"

"शायद किस्मत हमें समधी ही बनाना चाहती है।" निर्मला ने प्यारा सा संक्षिप्त जवाब दिया।

डॉ. महेंद्र ने अपनी भारत यात्रा पर मुहर लगा दी यह कहकर कि वे निर्मला के हाथों की बनी साबुदाने की खिचड़ी अवश्य खाएंगे जो वह स्कूल में टिफ़िन में लाया करती थी।