“पीकॉक ले बेटा ये किताबें पकड़ और पढ़ाई शुरू कर दें । मन लगाकर पढ़ और पूरे मोहल्ले का नाम रोशन क।“ बाबा ने अपनी बची-कुची मूँछों को ताव देते हुए कहा। “गिर जाएँगी ये मूंछे भी अगर ज्यादा छेड़गा और वैसे भी मोहल्ले का नाम तो किसी और तरह से भी रोशन किया जा सकता है।“नानी ने रसोई से ही चिल्लाते हुए कहा । “ अपनी तरह न बना देना अम्माजी मेरी पीहू को । पूरे हिमाचल को पता है आपके और उस अंग्रेज़ के इश्क़-मुशक के बारे में मेरी लाडो तो बस पढ़ाई करेंगीं”। बाबा ने अपनी सफाई का सामान उठाते हुए कहा । “ औ !! झाड़ूवाले तमीज़ से बात कर ।“ नानी ने हाथ में पकड़ी कड़छी बाबा की और फैंककर मारी । बाबा बचते-बचाते बाहर निकल गए और मुझे हसीं आ गयी । “मैं अपने डंडे को उठा थेरेपी करवाने निकल गई । जिसे बाबा कसरत कहते हैं । सामने से मेरा इकलौता दोस्त सोनू आ रहा था, पूरा नाम सोनूवीर था । मगर लड़कियाँ कहीं भाई न बना ले इसीलिए अपना नाम हमेशा सोनू ही बताता था ।“
और पीकॉक कहा जा रही है? नाचने ?” सोनू ने बाइक रोककर पूछा! “हां वो भी तेरे बाप के बगीचे में ।“ पीहू ने भी तपाक से उत्तर दिया ।“ नाराज़ क्यों होती है पीकॉक ? आज मेरी सेटिंग परी से हो गई है, चल बैठ तुझे पूरी बात बताता हूँ । सोनू ने बाइक से लगभग उतरकर कहा । “नहीं मैं पैरो की थेरेपी करवाने जा रही हूँ, वैसे भी बोरिंग कहानी नहीं सुननी मुझे।“ पीहू ने मुँह बिचकाकर कहा । “चल ठीक है, मुझे थेरेपी खत्म होते ही कॉल करियो । मैं वही पास वाले बगीचे में पहुँच जाऊँगा।“ सोनू कहकर चला गया था । “एक यही है, जो बचपन से मेरे साथ मेरे हिसाब के खेल खेलता था, क्योकि इसे पता था कि मैं दौड़ -भाग नहीं सकती । बाकी गली के बच्चे तो मुझे पूछते नहीं थें, स्कूल में भी मुझे अकेले बैठ हमेशा मेरे पास आ जाता और उदास पीहू को हँसाता रहता था ।“ यही सोचते हुए वह थेरेपी सेंटर के अंदर घुस गई ।
“और पीहू पैर कैसे है?” डॉक्टर दीदी ने पूछा। “अब ठीक है, पीहू ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा । आखिर तुम्हारे बाबा ने तुम्हारे साथ बड़ी मेहनत की है, पीहू तुम्हारी थेरेपी के लिए डबल शिफ्टों में काम किया है ।“ दीदी ने कहा । “आप सही कहती है, अगर नाना मदद न करते तो शायद हमारा छोटा सा घर भी बिक गया होता पीहू ने डॉक्टर की बात से सहमति जगाई । इसीलिए अपने बाबा की खातिर बिलकुल ठीक होना है तुम्हे, डॉक्टर ने कहा । दीदी आप भी जानती है कि मेरे पैर औरो की तरह नहीं हो सकते इन्ही मुझे टेढ़ी -मेढ़े पैरो के साथ रहना है और इन्ही की वजह से नौकरी मिल जायेगी ।“ पीहू ने खीजते हुए कहा । “क्या बात है पीकॉक, आज तुमने डांस की बात नहीं की मूड ठीक नहीं है क्या ? डॉक्टर अलका ने पूछा । “छोडो न दीदी थेरेपी शुरू करते हैं।“ पीहू आँख बंदकर पैरो को पसारते हुए बोली ।
शाम को वो और सोनू दोनों बेंच पर बैठे हुए थें । “बता इतनी उदास क्यों है?” सोनू ने पीहू से पूछा। कुछ नहीं बाबा चाहते है कि मेरी सरकारी लग जाए और मैं दिन-रात किताबों में ही घुसी रहू और तो और यहाँ तक कि उन्हें मरे डांस सीखने के कार्य से भी प्रॉब्लम है , शायद मेरा यह सपन, सपना ही बनकर रह जाएगा।“ पीहू ने सोनू की ओर उदास नज़रो से देखा। “अंकल वैसे तेरा भला ही चाहते है मगर वो क्या कभी कोई नहीं समझेगा कि तू डांस भी करना चाहती है । सब या तो तेरे पर हसेंगे या तेरे पर तरस खाएंगे, वैसे एक बात बोलो मैं भी अपना एक पैर तुड़वा लेता हों फिर मुझे भी सरकारों मिल जाएँ सोनू ने फिर मज़ाक करके पीहू को हँसाने की कोशिश की ।“ “बड़ा ही बेहूदा मज़ाक था, सोनवीर । पीहू ने चिढ़ाते हुए कहा । “यार ! देख अब तू मेरी बेज़्जती कर रही है । ठीक है, सुन! अगर मान ले अंकल से छुप-छुपाकर डांस सीख भी लिया तो डांस सिखाएगा कौन ? कोई है जो तेरे जैसे लोगो को डांस सिखाता हों, पहले ये भी तो पता करना पड़ेगा, सोनू ने पीहू को समझाते हुए कहा।
“तू कोई मदद कर सकता है मेरी ?” पीहू ने सोनू से पूछा। “कोशिश कर सकता हूँ, पर पक्का वादा नहीं करता । सोनू ने आँखों पर काला चश्मा चढ़ाते हुए कहा । “वैसे भी मेरी परी से सेटिंग हो गई है, कुछ टाइम तो कॉलेज की गर्लफ्रेंड को भी देना होगा यार ! काश अंकल तुझे भी कॉलेज भेज देते वैसे तेरा बाप तुझे ज़रूरत से ज़्यादा कमज़ोर समझता है ।“ सोनू ने पीहू को देखते हुए कहा। “हाँ सही है,” पीहू ने हामी भरी । “चल निकलता हूं, ज़रा पापा की दुकान पर हाज़िरी लगा आऊं ताकि खुश होकर कुछ पैसे दे दें। तब तक तू सरकारी नौकरी की तैयारी करती रहें, चल, अब तुझे घर छोड़ देता हूँ ।“ बाइक पर बैठकर पीहू को सोनू ने घर पहुँचा दिया।
और वहाँ पालमपुर में आरव की बाइक किसी घर के आगे रुक गई।