शास्त्री जी घर पर है ? आरव ने पूछा। कौन ? एक अधेड़ सी महिला ने दरवाज़ा खोला, फिर पूछा। “मैं शास्त्री जी से मिलना चाहा रहा था, अगर आप बता दे तो आपकी बड़ी कृपा होगी, वैसे वो मुझे जानते है ।“ “आप कहिये कि आरव आया है।“ वह औरत अंदर गयी और कुछ मिनटों के बाद आरव एक पचास साल के आदमी के सामे बैठा नज़र आया। “बताओ यहाँ क्या करने आये हों ? जी मिश्रा अंकल ने मेरे बारे में आपसे बात की होगी कि मैं डांस सीखना चाहता हूँ ।“ आरव ने थोड़ा सकुचाते हुए कहा । “तुम ? तुम तो पहले ही बहुत अच्छा डांस कर लेते हूँ, दो साल पहले तो तुम पालमपुर के महाडांस संग्राम के फाइनल को जीत गए थें । अब तुम्हे क्या पड़ गयी, मुझसे डांस सीखने की? वैसे भी मैं, कोई ब्रेकडांस नहीं सिखाता, मैं तो भारतीय संस्कृति से जुड़े प्राचीन नृत्य जो आजकल के बच्चे शायद सीखना भी नहीं चाहते वो सिखाता हूँ ।“ महावीर शास्त्री ने चाय का प्याला हाथ मैं लेते हुए कहा । “जी मुझे भी वही सीखना है, “आरव ने बड़े मौन के साथ उत्तर दिया । “क्यों तुम्हारी रुचि बदल गई”? “जी नहीं मेरी ज़िन्दगी बदल गई।“ शास्त्री जी ने आरव को गौर से देखा फिर बोले ठीक है, तुम आ जाओ ।“ कब से? कल सुबह सात बजे से और ध्यान रखना मुझे लेट आने वाले लोग पसंद नहीं है । मैं निकालने में देरी नहीं करता मुझे अनुशासन प्रिय लोग पसंद है ।“ महावीर जी ने सख्ती से कहा । और आरव समय पर पहुंचने का कहकर चला गया ।
आरव ने डांस करना शुरू कर दिया । वह पहले से ही अच्छा डांस करना जानता था इसलिए धीरे-धीरे विभिन्न प्राचीन नृत्य सीखना शुरू किया कथककली, भरतनाट्यम , कुच्चीपुड़ी धीरे- धीरे सभी डांस सीखता गया । अरुणा उसकी बहन जो हमेशा उसे उदास देखा करती थी, उसने ध्यान दिया कि आरव उदास अब भी है, मगर कहीं न कहीं उसने अपनी उदासी को छिपाना सीख लिया । अब उसे उसका भाई समझदार लगने लगा है । और हाँ! अब वो शादी कर सकती है यही सोचकर उसने ऋषभ को शादी की तारीख निकालने के लिए कह दिया। और ठीक छह महीने बाद अरुणा की शादी तय हो गई । “वैसे एक बताओ आरव तुम शास्त्री जी से डांस क्यों सीखते हों? तुम अपना पिछली डांस अकादमी भी तो ज्वाइन कर सकते थें ?” अरुणा ने आरव को अपनी शादी का कार्ड दिखाते हुए कहा । “मैं वहाँ नहीं जा सकता मुझे हरवक्त वहाँ रिदा नज़र आएँगी और मैं फिर पश्तात्ताप की अग्नि में जलजलकर खुद को कुछ कर लूंगा और तुम्हे तो पता है स्वार्थी तो मैं शुरू से ही था ।“ आरव ने वेडिंग कार्ड वापिस थमाते हुए कहा ।
“मेरा भाई स्वार्थी नहीं बल्कि नादान यही बस वो कई बार चीज़ो को वैसे नहीं लेता जैसे उसे लेनी चाहिए और थोड़ा जल्दी होंसला छोड़ देता है ।“ अरुणा ने आरव का गाल खींचते हुए कहा। “वाह ! मेरी बहन किसी की खामियाँ भी बता दी जाएँ और उसे बुरा भी न लगे यह कोई तुमसे सीखे । वाह !” आरव ने सोफे पर बैठते हुए कहा । “क्यों नहीं आखिर मैं एक पत्रकार हूँ, यहीं करना मेरा काम भी है और कला भी अरुणा ने इतराते हुए कहा । ओके मैडम अब आप दुल्हन भी बनने वाली है इसलिए थोड़ा पाककला भी सीख लीजिये या फिर बातों की ही रोटी खिलाऊँगी?” आरव ने अरुणा को छेड़ते हुए कहा । “ऋषभ को मैं ऐसे ही पसंद हो बाय द वे । अच्छा सुनो । देखो मुझे शॉपिंग करनी है इसके लिए तुम्हे मेरे साथ दिल्ली चलना होगा।“ अरुणा ने आदेश देते हुए आरव को कहा । “मैं क्या करूँगा वहाँ चलकर ऋषभ को क्यों नहीं ले जाती आरव अपना मोबाइल देखते हुए बोला । मेरे मायके में सिर्फ तुम हों और हाँ मैं, तुम, ऋषभ और उसकी बहन अनु भी जा रही है । आज माँ-पापा होते तो तुम्हे कौन पूछता ।“ अरुणा ने उदास होने का नाटक किया । “ठीक है, चलो ज़्यादा इमोशनल मत हों ।“ आरव ने बाहर जाते हुए कहा ।
“थैंक्यू ब्रदर ।“ अरुणा ज़ोर से बोली । ‘’आप बड़ी जल्दी चले गए माँ -पापा । मैं बीस साल और आरव 18 साल के थे, जब आप गए । आज मैं अठाइस की हो गयी हूँ और आरव पच्चीस का होने वाला है । इतना वक़्त गुज़र गया । मगर हम दोनों आज भी आपको बहुत याद करते हैं, उस दिन काश ! वो एक्सीडेंट न हुआ होता तो आप हमारे बीच में होते और मेरी शादी की तैयारी कर रहे होते । देखो माँ! आज हम दोनों भाई-बहन खुद ही दिल्ली जाकर सब शादी के काम कर रहे हैं” अरुणा ने माँ-बाबा' की दीवार पर लगी फोटो को देखकर अपने आँसू पोंछते हुए कहा ।