अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे - भाग 30 - अंतिम भाग Mirza Hafiz Baig द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे - भाग 30 - अंतिम भाग

इस कथा के लम्बे सफर में आपने पढ़ा-
उल्कानगर के एक बड़े व्यापारी की मुलाकात एक खजाना खोजने वाले एक बूढ़े से होती है, जिसके पास एक कुत्ता है। वह बूढ़ा बताता है, कि यह कुत्ता सूंघकर गड़ा हुआ खजाना खोज निकालता है। व्यापारी उस कुत्ते के लिये अपना व्यापार और सारी सम्पत्ति और पुश्तैनी मकान सबकुछ उस बूढ़े के हवाले कर देता है और कुत्ते को लेकर खजाने की खोज में निकल पड़ता है। उस कुत्ते के कारण डाकुओं का एक गिरोह उसे वही कुत्ते वाला बूढ़ा समझकर पकड़ लेते हैं, जो भेस बदलकर घूम रहा है। यहाँ व्यापारी को पता चलता है कि उस बूढ़े ने इन डाकुओं को भी ठगा है। अपनी जान बचाने के लिये व्यापारी उस गिरोह से एक माह में खजाना ढूंढकर देने का समझौता कर लेता है।
डाकुओं का सरदार उसकी बात मान लेता है; लेकिन वह फिर से धोखा देकर भाग न जाये इसलिये अपने दो डाकुओं को उसके साथ लगा देता है। दोनो डाकू उससे पीछा छुड़ाने के लिये उसकी हत्या का इरादा करते हैं। व्यापारी उन्हे बरगलाने के लिये समुद्री तूफान, अनजान टापू और मत्स्यद्वीप की काल्पनिक कथा सुनाता है जो अंत में यथार्थ हो जाती है।
क्या है इस सारे घटनाक्रम का रहस्य? जाने इस अंतिम भाग में।
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे अंतिम भाग( भाग-30 )
अंततः
व्यापारी ने अपने आप को एक छोटी सी नौका पर सवार पाया। उसकी नौका को खेने वाला और कोई नहीं, उसका तथाकथित पुत्र ही था। ...यानि मत्स्यमानव!!
एक झटके में उसकी सारी चेतना जैसे वापस आ गई। वह उठ बैठा।
“हम कहाँ हैं?”उसने पूछा।
“सागर में।” नाव खेते हुये उस मत्स्यमानव ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया।
व्यापारी ने अचकचाकर आसपास देखा, “जलयान कहाँ है?”उसने पूछा।
अपने दोनो हाथों से नाव के चप्पू चलाते हुये मत्स्यमानव ने व्यापारी के पीछे की ओर इशारा किया। व्यापारी ने पीछे मुड़कर देखा दूर पर जहाज़ लंगर डाले खड़ा था।
“हम कहाँ जा रहे हैं?”व्यापारी ने फिर प्रश्न किया।
“अनजाने लक्ष्य की यात्रा पर।” उसके कथित पुत्र ने शांतिपूर्वक उत्तर दिया।
“अनजाने लक्ष्य की यात्रा पर?” व्यापारी ने चौंक कर पूछा, “यह कैसी यात्रा होती है?”
“वैसी ही यात्राहोती है जैसी यात्रा पर आप घर सम्पत्ति बेचकर निकले थे। एक लालच के वशीभूत होकर अनजानी राहों पर भटकते हुये आपने एक बार भी नहीं सोंचा कि आपकी यात्रा का कोई लक्ष्य ही नहीं है।” उसने कहा, “आपने अपना घर सम्पत्ति एक कुत्ते के बदले में देकर एक बार भी यह नहीं सोंचा कि किसी छिपे हुये धन को कोई कुत्ता नहीं ढूंढ सकता। क्योंकि उसे धन सम्पत्ति की आवश्यक्ता ही नहीं होती। यह काम तो केवल मनुष्य ही करता है।”
“यह सारी बातें तुम्हे कैसे पता?”व्यापारी ने संदेह भरी दृष्टि से उसकी ओर देखा। वह चुपचाप नाव खेता रहा। उत्तर में वह सिर्फ हँस दिया, कहा कुछ नहीं। व्यापारी को लगा जैसे वह इस हँसी को पहचानता है।
“तुम कौन हो?”व्यापारी ने प्रश्न किया।
“आपका पुत्र...” उसने कहा।
“असम्भव!” व्यापारी ने कहा, “सुनो! मैंने कभी भी किसी मत्स्यकन्या से या किसी जलपरी से विवाह नहीं किया। वह सब झूठ था...”
“झूठ था?”
“हाँ, वह तो बस एक कथा थी।” व्यापारी ने देखा आगे समुद्रतट दिखाई देने लगा था।
“कथा थी?”
“हाँ, बिल्कुल।” व्यापारी ने उत्तर दिया।
“हाँ, मैं जानता हूँ,”उसने हँसते हुये कहा, “लेकिन तुम नहीं जानते कि तुम एक कमाल के कथाकार हो; क्योंकि तुमने तो उन्हे कथा के सच होने का विश्वास दिला ही दिया था। किंतु मैं भी तुम्हे एक कथा सुनाना चाहता हूँ...”
“कैसी कथा?”व्यापारी ने पूछा।
पत्थर के खेत
एक समय, एक गांव में एक किसान रहता था। उसके पास पुरखों की बहुत सारी खेती बारी थी। वह पूरी ज़मीन पर खेती नहीं कर पाता। फ़िर भी वह बहुत सम्पन्न था। लेकिन उसे एक बात खटक रही थी। उसके पुरखों के समय से ही खेती का एक टुकड़ा बिल्कुल अनुपयोगी और बंजर पड़ा था। बंजर इस लिये था, क्योंकि ज़मीन के उस हिस्से में सिर्फ़ पत्थर ही पत्थर थे। और पत्थर भी अजीब से थे। एक तो वे आम पत्थर से अलग रेतीले पत्थरो जैसे दिखते और पूरे खेत में बिखरे पड़े थे। हल चलाओ तो पत्थर ही पत्थर निकलते। किसान ने सोंचा अगर इस खेत के पत्थर निकल जायें तो यहां भी खेती होने लगेगी जिससे उसकी कमाई बढ़ जायेगी।
उसी गांव में दो गरीब नौजवान भाई रहा करते थे, भोलू और गोलू। वे दोनो भूमिहीन थे। बस गांव मेंमेंहनत मजूरी करके किसी तरह दिन काट रहे थे। आज कल उनके पास कोई क्जाम धंधा नहीं था। खेती बाड़ी का काम भी अभी शुरू नहीं हुआ था ; सो भूखो मरने की नौबत थी। किसान ने सोंचा क्यों न इन दोनो की हालत का फ़ायदा उठाया जाये।
किसान उनके पास पहुंचा और शर्त रखी कि उसकी खेती में से सारे पत्थर निकाल दें तो वह वे सारे पत्थर उन्हे दे देगा जिसे शहर में बेच कर वे कुछ पैसा कमा सकते हैं। मगर शर्त है कि वे सारे पत्थर निकालेंगे और उन्हे उठाकर ले जायेंगे। वहां कुछ भी छोड़ कर नहीं जायेंगे।
मरता क्या न करता। उन दोनो ने शर्त कबूल कर ली। दोनो ने कयी दिनो मेंहनत की। हल चलाया, खुदाई की, हर जतन किया और पत्थर का एक एक टुकड़ा बाहर निकाला और चूंकि उनके पास कोई गाड़ी न थी ; बोरे में भर भर कर सारे पत्थर लेजाकर अपने टूटे फ़ूटे घर में जमा किया। नतीजतन किसान के पीढ़ियों से बन्जर पड़े वे खेत उपजाऊ हो गये। किसान ने अपनी होशियारी से बिना एक पैसा खर्च किये खेत को उपजाऊ बना लिया। वह अपनी होशियारी पर बड़ा प्रसन्न था। गांव में भी सब लोग उसकी इस होशियारी की प्रशंसा कर रहे थे। देखो कितनी होशियारी से दोनो का काम बन गया। किसान का काम भी बन गया और दोनो भाईयों की भी कुछ कमाई हो गयी।
दोनो भाई बड़े परेशान थे। उन्हे पत्थरों का कोयी खरीदार नहीं मिल्र रहा था। उन्होने किसान से मदद मांगी। चाचा कुछ उधार ही देदो पत्थर बिक जयेंगे तो चुका देंगे। किसान ने दो टूक कहा “जो अपने मेंहनताने में पत्थर स्वीकार करें ऐसे बेवकूफ़ों की मदद करके मैं क्यों अपना नुकसान करूं।“
दोनो भाई बहुत निराश हुये। उनके दिल को बड़ी ठेस लगी थी। दोनो ने गांव छोड़ दिया।
वे धीरे-धीरे करके अपने सारे पत्थर साथ ले गये। वे उनकी किस्मत के पत्थर थे। गांव में उन्होने किसी से बात नहीं की। कुछ दिनो चर्चा रही कि दोनो गांव में कहीं मेंहनत मजूरी करके अपने दिन काट रहे हैं। फ़िर धीरे धीरे लोग उन्हे भूल गये।
किसान के खेत सोना उगलने लगे। किसान जानता था कि यह उन दोनो भाईयों की मेंहनत रंग लाई थी। किसान और उसकी खेती का दूर दूर तक नाम होने लगा। उसकी होशियारी के चर्चे भी ज़रूर होते। अब उस गांव और आस पास के गांव के लोग भी उसकी बुद्धिमत्ता की प्रशंसा किया करते।
एक दिन शहर से एक बड़े हीरे के व्यापारी का आदमी किसान के पास आया। उसने बताया कि उसके खेतों की प्रशंसा उसके सेठ तक भी पहुंची है और वे उसके सारे खेत दुगने दाम पर खरीदने के लिये तैयार हैं।
किसान बहुत चालाक था। उसने मोल भाव किया और तिगुने दाम में सौदा कर लिया।
अब उसके पास तीन गुने खेत थे। हर कोई उस किसान की बुद्धिमत्ता की तारीफ़ कर रहा था।
खेत खरीद लेने के कुछ समय बाद, वह हीरे के व्यापारी का परिवार भी गांव में आ गया। गांव में वह जगह जो बरसो से उपेक्षित पड़ी थी, यानि गोलू और भोलू का टूटा फ़ूटा घर और उसके आस पास की ज़मीन को विकसित कर वहां बहुत बड़ी हवेली बन गई। वह हवेली इतनी ऊंची थी कि गांव के हर कोने से दिखाई दे जाती। अब हर जगह उस हवेली के चर्चे होने लगे। यह बात उस होशियार किसान को अखरने लगी। वह सोंचता- ‘इसमें तारीफ़ की ऐसी क्या बात है?पैसे थे, तो हवेली बना ली। पुरखों की कमाई हुई दौलत होगी। कोई मेरी तरह अक्लमंदी से तरक्की करके दिखाये तो जानूं। और यह तो बिल्कुल साफ़ है कि अक्ल से उनका दूर-दूर तक का कोई रिश्ता नहीं वर्ना कोई खेतों को तीन गुना दाम में खरीदता भला?’
एक दिन वह अपनी होशियारी के अभिमान के साथ, उसका खेत खरीदने वाले हीरे के व्यापारी के घर चला गया। वहां उसे पता चला कि खेत खरीदने वाला दो भाईयों का परिवार है। जो कम उम्र लेकिन बेहिसाब दौलत के मालिक हैं। वह किसान समझ गया कि उसका अनुमान इनके बारे में बिल्कुल सही निकला। किसान ने उनसे कहा “लगता है आप लोगों की कम उम्र का हि यह दोष है, या फ़िर यह दौलत अपको विरासत में मिली हुई दौलत है। अथवा आपने यह दौलत ज़मीन में गड़ी हुई पा ली है, इसी लिये आपको इसकी कीमत नहीं मालूम। वर्ना तीन गुना दाम देकर खेत खरीदने के पीछे और कोई कारण नहीं हो सकता।“
दोनो व्यापारी भाईयों ने उससे विनम्रता दिखाते हुये कहा- “चाचा लगता है,आपने हमें पहचाना नहीं।मैं भोलू हूं और ये है मेरा भाई गोलू।हां, हमें तो यह दौलत ज़मीन में गड़ी हुयी ही मिली है। हमें मजूरी में जो पत्थर मिले थे,उसमें बड़ी मात्रा में कच्चे हीरे थे। चाचा, हमने आपके खेत नहीं हीरे की खदाने खरीदी हैं।“
इसके बाद उस किसान ने अपने नये खेत भी बेच दिये और गांव से चला गया। फ़िर उसे किसी ने नहीं देखा। हां, उसके बारे में कई अफ़वाहें सुनने को मिली जैसे- कुछ लोग कहते हैं कि, नये खेतों की बिक्री से उसने दस गुना मुनाफ़ा कमाया और विदेश में जाकर बस गया। अब वहां वह ऐश से जीवन गुज़ार रहा है। कुछ लोग कहते हैं कि उसने हीरे की खदाने खरीद ली है और अब नाम बदलकर बड़े-बड़े लोगों के समाज में सम्मान के साथ जीवन बिता रहा है।
एक दिन गांव का एक व्यक्ति बहुत दूर की यात्रा करके आया। वहां उसने बताया कि उस किसान जैसे दिखने वाले एक पागल व्यक्ति को उसने सड़कों पर भटकते देखा है। उसकी बात को किसी ने भी सच नहीं माना।
“किंतु यह कथा तुम मुझे क्यों सुना रहे हो?” कथा सुनकर व्यापारी ने पूछा।
“क्योंकि यह कथा तुम्हारी जीवनगाथा से मिलती जुलती है।”
“किस प्रकार?”व्यापारी ने पूछा।
“इस प्रकार कि जब तुम अपना घर सम्पत्ति बेचकर उस कुत्ते के साथ भटक रहे थे, कुत्ते के बदले में तुम्हारी धन सम्पत्ति हड़पने वाला वह व्यक्ति तुम्हारे घर में गड़ा हुआ खजाना निकाल रहा था।”
“खजाना? मेरे घर में?” व्यापारी चौंका।
“हाँ, तुम्हारे पूर्वजों का खजाना! सोंचो इतना अधिक धन जिससे तुम एक देश ही खरीद सकते थे तुम्हारे ही घर के किसी कोने में ज़मीन के नीचे दबा था और तुम उसीकी लालच में जंगल जंगल अपनी जान हथेली पे लिये भटक रहे थे।”
“यह खजाना जिसके बारे में मैं भी नहीं जानता था वह उसे कैसे मिला?”
“सीधी सी बात है, कि खजाना ढूंढने की प्रतिभा उस कुत्ते में नहीं बल्कि कुत्ते वाले उस बूढ़े में ही थी। जिस तरह कुछ लोग धरती में उपस्थित जल को देख लेते हैं, उसी प्रकार वह कुत्ते वाला बूढ़ा छिपे हुये खजाने को भांप लेता है। जब तुमने उसे अपने घर आमंत्रित किया था, तुम्हारे घर में प्रवेश करते ही उसने उसे भांप लिया था।”
“अर्थात् उसने मुझे धोखा दिया?”
“नहीं, उसने तुम्हारे साथ सौदा किया था। यह व्यापार के नियमो के अंतर्गत आता है। तुम अच्छी तरह यह समझते हो। तुम स्वयं एक व्यापारी हो।”
“लेकिन तुम इतना सब कुछ कैसे जानते हो?”व्यापारी ने पूछा।
“यह तट अब समीप आ चुका है। यह तुम्हारे ही शहर का तट है। यहाँ से इस नौका को तुम स्वयं खेते हुये तट तक पहुंच सकते हो।” व्यापारी की बात अनसुनी करते हुये उसने नौका के चप्पू उसके हाथ में पकड़ा दिये।
“रुको!! तुम इतने सारे प्रश्नो के साथ मुझे छोड़कर नहीं जा सकते।”
“नहीं, अभी मेरा काम पूरा नहीं हुआ। मैं जाने से पहले तुमसे एक सौदा करना चाहता हूँ।”
“कैसा सौदा?”
“तुमने उस कुत्ते की जो कीमत दी थी वह सम्पत्ति यदि तुम्हे वापस मिल जाये तो तुम उसके बदले वह कुत्ता मुझे दे सकते हो?”
“वाह इससे अच्छा सौदा मैंने आजतक नहीं किया।”
“फिर ठीक है, फिर यह सौदा हो गया। तुम अब अपने घर जाओ तुम्हारी सारी सम्पत्ति तुम्हारे परिवार को सौंप दी गई है और वह कुत्ता वहाँ मेरे जहाज़ पर सुरक्षित है। मैं सौदा किया करता हूँ, डाका नहीं डालता।”
“और वह खजाना?”
“वह खजाना भी उसी जहाज़ पर सुरक्षित है, जिस जहाज़ पर यात्रा कर के तुम यहाँ तक पहुंचे हो। और उस खजाने का उल्लेख तो उस कुत्ते के सौदे में नहीं था। जब वह खज़ाना उस घर से निकाला गया था तब उस घर का मालिक वही बूढ़ा था, अतः वह जिसका था वह उसके पास है।”
“एक बात और...” व्यापारी ने गिड़गिड़ाकर कहा, “कृप्या यह तो बताओ, तुम मेरे बारे में इतना सब जानते कैसे हो?”
“तुमने मुझे पहचाना नहीं?”
“नहीं...”
“मैं तुम्हारी इस कथा का सूत्राधार हूँ।”
“लेकिन सूत्राधार तो निरपेक्ष होता है। तुमने मुझे उन डकैतों के चंगुल से निकाला, मुझे मेरा सब कुछ वापस दिलाया, मेरे शहर तक पहुंचाया। यह सब कुछ सूत्राधार नहीं करता।” व्यापारी ने कहा।
“तो सुनो मैं कोई साधारण सूत्राधार नहीं, मैं एक अय्यार हूँ। मेरे असली रूप को आजतक कोई नहीं जान पाया। मैंने यह भी सच ही कहा कि इस कथा का मैं सूत्राधार हूँ; क्योंकि तुम्हारे सौदे से लेकर तुम्हारे पैतृक घर से खजाना निकालने तक मैं वहीं था और जब तुम उन डाकुओं को कथा सुना रहे थे तब भी मैं किसी न किसी भेस में तुम्हारे साथ ही था। तुम्हारी कथा के पूरी होने की प्रतीक्षा में क्योंकि उस कथा ने मुझे भी बांध लिया था। मैं कभी तुम्हारे सामने भी आया, कभी छिपा भी रहा, तुम्हारी सुरक्षा करता रहा। किंतु तुम मुझे नहीं पहचान पाये।”
“ओह! मैं तुम्हे पहचान गया। तो वह तीसरा डाकू भी तुम ही थे?” व्यापारी ने पूछा।
“हाँ, तुमने सही पहचाना।” वह हँसा और व्यापारी ने उसे पहचान लिया।
“लेकिन तुमने मेरे लिये यह सब क्या क्यों?”
“दो कारणों से, एक तो मुझे भी तुम्हारी कथा ने बांध लिया था। दूसरा यह कि मुझे तुमसे यह सौदा जो करना था।”
“एक बात बताओ। शेरु तुम्हे किसलिये चाहिये, जबकि तुम जानते हो वह किसी काम का नहीं है?”
“क्योंकि वह मेरा मित्र है और मैं अपने मित्रों को धोका नहीं देता। मैंने उसे बेचा तो उसे वापस भी खरीदा। अंततः मैं भी तुम्हारी तरह एक व्यापारी हूँ, कोई ठग नहीं जैसा वे डाकू मुझे समझते हैं।”
“अर्थात्... तुम... तुम...” व्यापारी आश्चर्य से हकलाने लगा।
“हाँ, तुमने सही पहचाना। वह कुत्ते वाला बूढ़ा भी मैं ही था...” कहते हुये वह मत्स्यमानव सागर में कूद गया, और धनुष से निकले बाण की तरह द्रुत गति से तैरते हुये जहाज़ की ओर बढ़ने लगा।
*समाप्त*
मिर्ज़ा हफीज़ बेग की कृति