हकीकत की हकीकत - 3 Akshay jain द्वारा मनोविज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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हकीकत की हकीकत - 3


कहा जाता है! कि इंसान गलतियों का पुतला होता है। और यदि कोई गलती नहीं करेगा तो सभी भगवान नहीं बन जायेगें। अतः हर किसी से गलती होना तो स्वाभाविक है। हर कोई जीवन में गलतियां करता है। क्योंकि गलतियों से ही इंसान कुछ सीखता है।
मगर जो इंसान गलतियों से सीख लेने के बजाय उन्हें छिपाने लग जाए फिर वो जीवन में कुछ सीखने लायक नहीं रह जाता। वह हमेशा भयभीत बना रहता है। उस सदा यही डर रहता है कि कहीं उसकी गलती सामने ना अा जाए।
ऐसा ही कुछ ध्यानचंद के जीवन में घटने वाला था।उसका जीवन नया आयाम लेने वाला था।आखिर उसने ऐसा क्या किया था?
मोहन ने ध्यानचंद को हत्या करते हुए देख लिया था तो वह घबराकर घर की ओर भागा। और ध्यानचंद ने भी मोहन को देखा तो उसे लगा कि ये किसी को बता ना दे इसलिए वह उसे पकड़ने भागा। और उसने मोहन को पकड़ लिया और वह उसके सामने गिड़गिड़ाने लगा कि वह किसी को कुछ ना बताए उस हत्या के बारे में। उसने बहुत विनती की मोहन से। और मोहन भी ठहरा सीधा, वह ध्यानचंद को बहुत अच्छा मित्र और स्वभाव से बहुत अच्छा व्यक्ति मानता था। उसे अपनी आंखों देखी पर विश्वास नहीं हो रहा था। इसलिए उसने ध्यानचंद से पूछा कि वह व्यक्ति कौन था? और तुमने उसकी हत्या क्यों की?
मोहन ने ध्यानचंद से कहा कि मैं तुम्हें एक आदर्श व्यक्ति मानता था, तुम गांव में भी सबके चहेते थे, हर कोई तुम्हें इतना सम्मान देता था, सभी तुम्हारी इज्जत करते थे। फिर क्यों तुमने इसे मारा? क्या वजह है बताओ मुझे? इस प्रकार बार बार मोहन ने उससे पूछा। मगर ध्यानचंद या तो कुछ भी नहीं बोलता था। और यदि बोलता था तो सिर्फ विनती करता था कि तुम इस बारे में किसी को मत बताना।
बार बार उसके ना बोलने पर मोहन ने अंत में कहा कि यदि तुम मुझे पूरी बात सही सही नहीं बताओगे तो मै तुम्हारी इस बात को पुलिस को बता दूंगा। जब मोहन ने इस प्रकार उसको थोड़ा धमकाया तो ध्यानचंद डर गया और हाथ जोड़कर उससे विनती करने लगा कि मुझ पर दया करो! मोहन, कृपा करके इस बात को किसी को मत बताना। ध्यानचंद ने मोहन के पैर पकड़ लिए और कहने लगा कि मेरा परिवार मेरे बगैर क्या करेगा? मेरा बेटा कैसे पड़ेगा? कौन मेरे बीबी, बच्चे का पालन पोषण करेगा?तुम्हे मैं सब सच बताता हूं, मगर मुझ पे रहम करके इस बात को किसी को मत बताना। इस प्रकार वह गिड़गिड़ाने लगा।
तब मोहन ने कहा ठीक है। मै इस बात को किसी को नहीं बताऊंगा। मगर तुम मुझे पूरी सच्चाई बताओ। कि क्या और कैसे हुआ? वह व्यक्ति कौन था और तुमने उसे क्यों मारा? ऐसी क्या वजह थी? तब ध्यानचंद ने बताना प्रारम्भ किया.......।
«उसने बताया कि यह बात है उस समय की जब मेरे बेटा का परीक्षा परिणाम आया था। और उस दिन मैं बहुत खुश था सभी तारीफ कर रहे थे। सभी कह रहे थे कि तुम्हारा बेटा इतना होनहार है तो तुम इसे किसी अच्छे विद्यालय में दाखिल क्यों नहीं कराते? इस बात को सुनकर मेरे मन में भी कुछ विचार आया कि मैंने आज तक अपने बेटे के लिए एक नया कपड़ा भी खरीदकर नहीं दिया। भले ही उसने न मांगा हो मगर इच्छा तो होती होगी। तब मैने सोचा कि मै अपने बेटे के भविष्य के साथ, उसकी इच्छाओं के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकता। और मेरा भी मन भर चुका था इस गरीबी से, मेरे मन में सिर्फ पैसे का ख्याल आने लगा था, चाहे मुझे कुछ गलत काम करके ही क्यों न करना पड़े। बस फिर क्या था मन तो बन ही चुका था अब बस किसी अच्छे मौके की तलाश थी। ऐसा मौका जिससे हमारी सारी परेशानियां दूर हो जाएं।
और उसी रात हमारी मित्र मण्डल की महफ़िल सजी। जिसमें गांव के सभी पुरुष जुड़े थे उसमें ही जब सब अपनी अपनी बातें बता रहे थे तभी हमारे मित्र “श्याम" ने भी बताया था कि उसकी बेटी की शादी किसी शहरी बाबू से तय हुई है और उन्होंने दश लाख की मांग की है। जोकि श्याम ने शादी की एक दिन पहले जोड़ कर रखे थे अपने पास।
बस तभी मैने सोच लिया था कि यही अच्छा मौका है। और दश लाख में मेरी सारी परेशानियां हमेशा के लिए दूर हो जाएंगी। और मैने तभी ये निश्चय किया कि मैं वो पैसे चुराऊंगा। और किसी को मुझ पर शंका ना हो इसके लिए ही मैने अपने बेटे के साथ शहर घूमने का तरीका अपनाया था। जिससे हम पर किसी को कोई शक नहीं होगा।
और हुआ भी वैसे ही था शहर जाने वाली रात को ही मैने श्याम के घर जाकर पैसे चुरा लिए और उन्हें लेकर उसी रात घर वालों के साथ शहर निकल गया।
तभी मोहन ने चौंककर पूछा कि तुम्हीं ने श्याम और उसके परिवार का कत्ल किया है?
तब ध्यानचंद ने कहा कि उस रात जब में चोरी करने उसके घर गया तो जब में वो पैसे ढूंढ रहा था तभी अचानक श्याम की आंखें खुल गई और उसने मुझे देख लिया तो मैने घबराकर वहां पड़ी छुरी उठाकर उसको दे मारी। इतने में उसके बीबी, बच्चे जग गए तो उन्हें भी मारना पड़ा। मगर मेरा इरादा उन्हें मारने का नहीं था, ऐसा कहकर ध्यानचंद रोने लगा।
वह कहने लगा कि कहां मैने सोचा था कि पैसे लेकर कुछ समय बाद किसी शहर में चला जाऊंगा और अपने परिवार के साथ सुख से रहूंगा। मगर इतने से लालच के कारण मुझसे क्या क्या हो गया। और उसकी आंखों से फिर आंसुओं की धारा बहने लगी।
मगर फिर मोहन ने पूछा कि जब तुम्हे किसी ने देखा ही नहीं था, तुम पर किसी को कोई शक ही नहीं था तो फिर तुमने एक और व्यक्ति की हत्या क्यों की? क्यों मारा उस व्यक्ति को? और कौन था वह?
तब ध्यानचंद ने अपने आंसुओं को रोकते हुए कहा कि जब वह शहर में था तभी किसी व्यक्ति ने उसे फोन करके कहा कि उसे मेरी सच्चाई के बारे में पता है और उसके पास सबूत भी है। और यदि मै उसे को सबूत पुलिस के सामने लाने से रोकना चाहता हूं तो उसे पांच लाख रुपए दूं। क्योंकि उस पता था कि मैने दश लाख रुपए के लिए ये सब किया है। इस तरह वह मुझे धमकाने लगा। इसलिए में शहर से जल्दी ही लौट आया था।
फिर मैं जैसे ही घर आया तो उसका फिर से फोन आया और उसने फिर पैसे कि मांग की तो मैने उसे पांच लाख देने का निर्णय कर लिया और उस व्यक्ति को पांच लाख देने चला गया। और जब उससे मिला तो मैने कहा कि पहले मुझे सारे सबूत दो, तब उसने कुछ तस्वीर मुझे दिए जिससे ये साबित हो जाता कि मैने ही श्याम को मारा है।
फिर मैने उससे पूछा कि तुम कौन हो? और तुम्हे ये कैसे पता चला?
तो उसने कहा कि मैं श्याम के भाई का बेटा “किशन” हूं। और उस दिन मै रात को किसी काम से श्याम काका के घर आया था और देखा की आपने उनकी हत्या कर दी थी तभी मैने ये तस्वीर खींच ली थी। और जोर से हंसने लगा।
तब ध्यानचंद ने कहा ठीक है मगर अब तुम भूल जाओ उस बात को तुम्हे पैसे मिल गए अब तो तुम खुश हो। और वहां से घर अा गया।
मगर फिर क्या किशन के मन में भी लालच अा गया था। कुछ महीने बाद कल रात मुझे फिर से फोन किया और कहने लगा मुझे दो लाख रुपए और चाहिए। तो मैने कहा कि अब नहीं है मेरे पास। मगर वो मुझे फिर धमकी देने लगा और कहने लगा कि अभी मैने सारे सबूत मिटाए नहीं हैं। तो मैने कहा कि तुमने मुझे धोखा दिया है, तुम्हे ऐसा नहीं करना चाहिए। मगर उसने एक ना सुनी और मुझे धमकाने लगा। मैने फिर हारकर उससे कहा कि कल मिलो खेत पर
फिर मैने रात को इस बात पर विचार किया और खूब सोचा की यदि मै फिर से पैसे दे भी देता हूं तो अब क्या भरोसा कि वह फिर से कभी और पैसे नहीं मांगेगा। मैने बहुत सोचा इस बारे में, और अंत में यही निर्णय लिया कि मै उसे भी अपने रास्ते से हटा दूंगा और मैने वैसा ही किया। मगर इस बार तुमने मुझे देख लिया।»
यही पूरी कहानी है। मोहन मुझ पर दया करो, और कृपा करके इस बात को किसी को मत बताना। इस प्रकार ध्यानचंद ने मोहन को पूरा सच बताया और उससे वीनती की, कि वो किसी को कुछ ना बताए। और मोहन ने भी उसे आश्वासन दिया कि को किसी को कुछ नहीं बताएगा।
मगर ये तो आप सभी भी जानते हैं कि सच सूर्य कि तरह होता है जिसे छिपाया नहीं जा सकता। तो फिर क्या? ध्यानचंद का भी सच सामने तो आना ही था। अब कैसे तो आगे पता चलेगा।
अब ध्यानचंद की कहानी अंतिम पड़ाव पर थी।क्योंकि अब ध्यानचंद का सच सामने आने वाला था।आखिर कब तक ये सच छिपता।
जाड़े का समय अंतिम छोर पर था जिस समय ठंड थोड़ी ज्यादा होती है। सभी अपने काम काज में लगे हुए थे और ध्यानचंद भी लगभग सब भूलने की कोशिश करता हुआ जीने का प्रयास करता था। मगर वह जब भी मोहन के सामने से गुजरता था तो वह अपनी नजरें झुका लेता था जैसे मानो वह अपनी शर्मिंदगी का उसे अहसास दिला रहा हो। साथ ही उसे यह भय सदा ही रहता था कि मोहन कहीं किसी को कुछ बता ना दे। क्योंकि झूठ के वशीभूत इंसान कभी सुख से नहीं रह सकता। और यहां भी कुछ ऐसा ही था, मोहन भी इतनी बड़ी हकीकत को पेट में पचा नहीं पा रहा था। लेकिन फिर भी उसने अभी तक किसी को नहीं बताया। ध्यानचंद हकीकत सामने ना अा जाए इसलिए दुखी था, और मोहन हकीकत को छिपा रहा था इसलिए दुखी था। “इसलिए कहते हैं कि हकीकत के साथ जीने में ही सुख मिलता है।"
उस दिन गांव में रात को सभी मित्र मंडल की सभा लगी। और सभा में ठंड ज्यादा होने के कारण मदिरा की भी व्यवस्था की गई थी। सभी गांव के पुरुष जुड़े हुए थे। सभी ने मदिरा का लुफ्त उठाया। ध्यानचंद और मोहन भी उपस्थित थे। उन्होंने भी मदिरा का मजा उठाया। मगर मोहन ने कुछ ज्यादा ही पी ली थी और वह अपना होश खो बैठा था। और नशे में व्यक्ति कभी झूठ नहीं बोलता वह हमेशा सच ही बोलता है। जो भी दिल में हो बोल जाता है चाहे अच्छा हो या बुरा।
और तभी किसी व्यक्ति ने कहा कि भाई आज तो श्याम कि भी कमी खल रही है। और सभी ने उसकी हामी भरी। तभी कोई दूसरा व्यक्ति बोला कि बेचारा बेमौत मर गया।
तभी अचानक मोहन बीच में बोल पड़ा“ कि मरा नहीं है वो, उसे मारा गया है।" मोहन नशे में था उसे कुछ पता नहीं था वह क्या बोलने जा रहा था। तभी किसी ने पूछा कि किसने मारा है श्याम को? दो तीन लोगों ने भी पूछा कि हां बताओ किसने मारा हमारे श्याम को?
तभी ध्यानचंद बात को काटने के लिए बीच में हंसते हुए बोला, क्या बक रहा है ये, मुझे लगता है इसे कुछ ज्यादा ही चढ़ गई है। तब मोहन ने डपटकर बोला - मुझे चढ़ी नहीं है.... , मै बिल्कुल ठीक बोल रहा हूं। ये जो अपना ध्यानचंद है ना, इसी ने मारा है श्याम को। मगर पहले तो लोगों ने सोचा कि सच में इसे ज्यादा चढ़ गई है, क्योंकि लोग ध्यानचंद को सीधा आदमी मानते थे। मगर जब धीरे धीरे मोहन ने सारी कहानी बताई और उसने किशन कि हत्या के बारे में बताया तब लोगों को कुछ उसकी बातों का यकीं सा हुआ। मगर फिर भी पूरी तसल्ली के लिए सभी गांव के लोग रात में ही ध्यानचंद के खेत पर गए और उन्होंने वहां पर देखा तो सच में किशन कि लाश थी। तब लोगों को पूरा यकीन हुआ।
तब सभी लोगों ने मिलकर ध्यानचंद को खूब मारा और उसे गालियां भी दी साथ ही साथ उसे पुलिस के हवाले कर दिया। और उसके परिवार को गांव वालों ने गांव से निकाल दिया। और उसके घर में आग लगा दी।
ऐसा तो एक ना एक दिन होना ही था क्योंकि हकीकत तो सामने आनी ही थी। अब वो चाहे नशे कि हालत में आए या होश में।
और इस सब की वजह बस इतनी सी थी कि उसके मन में पैसे का लालच अा गया था। बस इतनी सी वजह के कारण उसने एक पूरे परिवार की हत्या करदी। और उस छिपाने के लिए एक ओर हत्या। आखिर ऐसे में कब तक ध्यानचंद इस बात को छिपा सकता था। कैसे सुख पूर्वक रह सकता था। अंत में हकीकत छिपाने का परिणाम तो दुख ही होता है। और वही ध्यानचंद के साथ हुआ। उसे तो दुख मिला ही साथ साथ उसके परिवार को भी दुख झेलना पड़ा। अगर वह शुरुआत में ही सम्हल जाता तो ये परेशानी नहीं होती।
“क्योंकि जीवन में कभी कुछ भी गलत करके छिपाने वालों को सुख नहीं मिलता। वे हमेशा भयभीत ही बने रहते हैं कि कहीं सच सामने ना अा जाए और जब सच सामने आता है तो वो अंदर से टूट जाते हैं। फिर उनमें जीने की क्षमता नहीं बचती। अतः हकीकत के साथ जीना ही सुखी जीवन का राज है, और यही “हकीकत... की हकीकत है।"
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